हमारे दौर में
महंगाई का खाता बिना कहे खुल जाता
मंगलवार, 2 दिसंबर 2025
महामानव-डोलांड और पुतिन का तेल
शनिवार, 29 नवंबर 2025
गंजहों का देश - भारत
बुधवार, 26 नवंबर 2025
सालाना नोटबंदी हो
दोस्तों मैं आपसे एक खास अपील करना चाहता हूं। एक अपील जिससे इस देश का बहुत भला हो सकता है। आपको याद होगा महामानव ने एक दिन रात को आठ बजे टीवी पर आकर एक ऐसा आदेश देश को दिया था, जिसने इस देश का पूरा रंग-रूप ही बदल दिया था।
जिस दिन से इस देश में नोटबंदी हुई, उसी दिन से इस देश तक़दीर बदल गई, एकदम से देश की किस्मत ने ऐसी पलटी मारी कि ये देश तरक्की के ऐसे रास्ते पर चल निकला कि आज तक कोई भी इस देश को उस रास्ते से हटा नहीं पाया है। आपको याद होगा दोस्तों महामानव के उस क्रांतिकारी कदम का क्या जमकर विरोध हुआ था, क्या तो प्रगतिशील, क्या वामपंथी, क्या कांग्रेसी, सब ने महामानव की नोटबंदी को देश के लिए घातक बताया था।
लेकिन महामानव को पता था कि ये नोटबंदी आखिरकार देश के कालेधन का बाहर निकाल लेगी, और आखिरकार सारा कालाधन बाहर आ गया। जो अरबों-खरबों रुपये का कालाधन लोगों ने दबा कर रखा हुआ था, वो बाहर आ गया, देश के कालेधन को लोगों की जेबों से बाहर निकालने में महामानव को जिन परेशानियों का सामना करना पड़ा वो तो महामानव ही जानते हैं। पूरे देश में कालेधन को बाहर निकालने के लिए जिस हिम्मत की ज़रूरत थी वो सिर्फ महामानव में थी। इस पूरे कालेधन पर हमले में सिर्फ कुछ हिम्मतवाले पत्रकार ही महामानव के साथ बने रहे थे। लेकिन आखिरकार महामानव ने सभी ग़रीब लोगों की जेबों से सारे कालेधन का बाहर निकाल ही लिया।
आखिरकार जब नोटबंदी के इस महती कार्य का मूल्यांकन किया गया तो पता चला कि, कुल 98 प्रतिशत धन वापस आया था। इसकी वजह ये थी कि ग़रीबों के पास जितना कालाधन था वो निकल गया, और अमीरों के पास जो कालाधन था, उसे व्हाइट करने के सारे रास्ते उन्होने अपना लिए होंगे।
ये सही कि बहुत ज्यादा कालाधन वापिस नहीं आ पाया था, यानी जितना पैसा देश भर में घूम रहा था, उसका ज्यादातर हिस्सा तो वापस आ गया। तब महामानव ने हमें बताया कि ये नोटबंदी तो उन्होने इसलिए की थी ताकि आतंकवाद की कमर टूट जाए। आतंकवाद की कमर आप जानते ही हैं कि आज तक कोई तोड़ नहीं पाया, लेकिन महामानव का निशाना अचूक था, उन्होने सीधे आतंकवाद की कमर पर चोट की थी और नोटबंदी के चलते आतंकवाद की कमर ऐसी टूटी कि आज तक वो बेचारा अपनी टूटी कमर के साथ कराह रहा है और नोटबंदी के बाद से देश में एक भी आतंकवादी घटना नहीं हुई है। इसलिए जब आप नोटबंदी के समय सामान्य नागरिकों की मौत की बात करते हैं तो ये याद रखिए कि इसी नोटबंदी से ही तो आतंकवाद की कमर टूटी है।
उसी समय एक अफवाह भी उड़ी थी कि महामानव के महान साथी, आधुनिक युग के चाणक्य और देश के गृहमंत्री ने कई हज़ार करोड़ रुपये का कालाधन इसी धकापेल में सफेद करवा लिए थे, जिनका कोई हिसाब नहीं था। खैर वो अफवाह थी, क्योंकि ई डी ने कोई छापा नहीं मारा, और इस खबर पर कोई कार्यवाही ना हुई। जिन खबरों पर कार्यवाही नहीं होती, वो सब अफवाहें होती हैं। लेकिन इन्हीं सब तथाकथित प्रगतिशीलों के लगातार हमलों से आजिज आकर महामानव ने कह ही दिया, कि 50 दिन में अगर नोटबंदी का कोई पॉजीटिव रिजल्ट ना आए, तो वो खुद चौराहे पर आएंगे और उन्हें सरेराह पीटा जा सकता है।
देखते देखते पचास दिन बीत गए, लेकिन महामानव को चौराहे पर नहीं आना था, वो ना आए। इन प्रगतिशीलों के कलेजे पर सांप लोट गया, इनकी बड़ी इच्छा थी कि महामानव अपने कहे अनुसार चौराहे पर आएं, और ये लोग उनके सिर पर जूते बरसाएं, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। क्यों नहीं हुआ, इसलिए नहीं कि महामानव झूठे हैं, और उन्हें झूठ बोलने की आदत है, बल्कि इसलिए कि तब, यानी आखिर में महामानव ने अपना फाइनल दांव खेला, उन्होने जनता को बताया कि दरअसल ये नोटबंदी कालेधन के बारे में नहीं थी, ना ही इसका आतंकवाद से कोई लेना-देना था, बल्कि सारा मसला ये था कि जनता को डिजिटल करेंसी की आदत लगानी थी।
अब बताइए, नोटबंदी के बिना डिजिटल करेंसी का चलन कैसे संभव था। सदियों से इस देश में कैश का सिस्टम था, लोगों को आदत पड़ चुकी थी कि वो कैश में बैंक के ज़रिए डील करते थे। ऐसे में हमारे आधुनिक युग के महामानव ने ये सख्त कदम उठाया था कि लोग कैश को भूल जाएं, बैंक से पैसे निकालना बंद करें, और डिजिटल करेंसी का इस्तेमाल करें। और महामानव का ये कदम सफल रहा।
आज परे भारत में ढूंढ लीजिए किसी भी जेब में आपको कैश जिसे नगद कहते हैं, नहीं मिलेगा। अब कई लोगों को मानना है कि ऐसा इसलिए है क्योंकि किसी के पास पैसा ही नहीं है। और जब पैसा है ही नही ंतो किसी की जेब में मिलेगा कैसे। लेकिन यहीं ये लोग ग़लत हैं, दरअसल पैसा बहुत है, सिर्फ अकाउंट नंबर बदल गया है। पहले पैसा जनता के पास होता था, लेकिन नोटबंदी के बाद सारा पैसा कुछ खास अकाउंटस् में टांसफर हो रहा है। ये जो खास अकांउटस् हैं ये महामानव के दोस्तों के हैं, इनमें देश का ज्यादातर पैसा जमा हो गया है, और अब वहां सेफ है। इसी सेफ पैसे के बलबूते हमारा देश दुनिया की चौथे नंबर की इकानॉमी बन गया है। और तो और, अब देश के तमाम पैसे को इन्हीं सेफ जगहों पर रखने के लिए महामानव ने एल आई सी का पैसा तक इन्हीं लोगों के पास टांसफर कर दिया है।
और आपको याद होगा कि उसी दौरान दो हज़ार का ऐसा टेकनीकली एडवांस नोट भी ईजाद किया गया था, जिसमें चमत्कारी चिप लगी हुई थी।
ऐसे नोट की वजह से हालांकि कोई छापेमारी नहीं हो सकी, और ना ही किसी कालेधन का पकड़ा जा सका, लेकिन क्योंकि सरकार की तरफ से इसका कोई खंडन नहीं हुआ था, इसलिए मुझे तो अब भी लगता है कि ये खबर सच ही थी। पर सच कहूं तो मुझे तो दो हज़ार को नोट देखे ही सालों हो गए, क्या पता क्या सही है क्या ग़लत। पर इन महान पत्रकारों ने कहा और महामानव ने मना नहीं किया तो सही ही होगा।
अब जब मैं आपको, महामानव के इस महान क्रांतिकारी कदम के बारे में बता चुका हूं, तो मैं अब आपसे अपील करना चाहता हूं कि नोटबंदी जैसे इस महान कदम को रिपीट करने की ज़रूरत है। जरूरत इस बात की है कि नोटबंदी ने जिस तरह देश की काया बदली है, इस देश को हर साल इसी तरह के कायाकल्प की ज़रूरत है। इसलिए हमें महामानव अपील करनी चाहिए कि वो हर साल उसी तरह आठ बजे टी वी पर आकर नोटबंदी की घोषणा करें। दोस्तों मेरा कहना है कि हर साल नोटबंदी होनी चाहिए। हर साल कालाधन बाहर आना चाहिए, हर साल आतंकवाद की कमर टूटनी चाहिए, हर साल डिजिटल करेंसी और डिजिटल इकॉनॉमी को मजबूत करना चाहिए, हर साल देश की अर्थव्यवस्था को बूस्ट मिलना चाहिए, और हर साल जनता को देशभक्ति का पाठ पढ़ाया जाना चाहिए।
और वहीं महान चाणक्य का ये अमर कथन भी गूंजा था कि जब विरोधी एकजुट हो जाएं तो समझ जाओ कि राजा सही कर रहा है। एक और महान मंत्री जी ने ये भी साबित किया था कि नोटबंदी की मार सहना ही देशभक्ति है। मेरा सवाल ये है कि क्या ऐसी देशभक्ति से देश की जनता को नियमित तौर पर दो-चार नहीं करना चाहिए।
इसीलिए दोस्तों मैं चाहता हूं कि आप सबके मुहं पर यही एक सवाल और नारा हो, कि महामानव के इस महान कदम को जनता याद रखे, कि हर साल देश में नोटबंदी हो। आज मेरी आप से यही अपील है कि महामानव या उनके जो भी यार, दोस्त, भक्त, आदि मिलें, तो उनसे कहें कि भैये, देश हर साल एक नोटबंदी मांगता है। हमें चाहिए नोटबंदी, नोटबंदी-नोटबंदी
हमारे चचा ग़ालिब के जमाने में नोटबंदी नहीं हुई थी। कैसे होती, उस वक्त ना कालाधन था, ना आतंकवाद था, और ना ही डिजिटल करेंसी की कोई बात थी। हालांकि सुनते हैं भारत बहुत अमीर था उस समय, महामानव वाली बात तो खैर नहीं थी, फिर भी ठीक-ठाक हालत में था। तो उसी दौर का चचा ग़ालिब का शेर है
हो जाए जनता में कभी देशभक्ति मंदी
करवा दे तू झटक के मेरी जान नोटबंदी
नोटबंदी वो शानदार कदम था दोस्तों, जिसका हर साल याद किया जाना ज़रूरी है, महामानव को याद दिलाया जाना ज़रूरी है, जैसे उस नोटबंदी से देश महान से महानतम बना, वैसे ही हर साल नोटबंदी से देश महान बनता रहे यही हमारी कामना है।
नमस्कार
शनिवार, 22 नवंबर 2025
महामानव - बेरोज़गार
बुधवार, 19 नवंबर 2025
जो नहीं कहा उसकी सज़ा
आज की बात एक शेर से शुरु करते हैं....
गुरुवार, 13 नवंबर 2025
महामानव और महंगाई
दिवाली दरवाजे़ पर है और चारों तरफ चर्चा है, महंगाई की। महंगाई जिसे आमिर खान द्वारा निर्मित एक फिल्म में डायन भी कहा गया है। मुझे इससे घोर एतराज है। महंगाई को डायन कहना, मितरों, हमारी पुरानी परंपरा और संस्कृति पर हमला है, और हमें इस हमले का पुरज़ोर विरोध करना चाहिए। महंगाई का समर्थन, करना दरअसल एक तरह से अपने महामानव का ही समर्थन करना है दोस्तों। कोई ज़रा महंगाई का विरोध करने वालों से पूछे कि क्या कांग्रेस के जमाने में महंगाई नहीं थी? क्या नेहरु के जमाने में, इंदिरा के जमाने में राजीव गांधी के जमाने में महंगाई नहीं थी, मनमोहन सिंह, क्या मनमोहन सिंह के जमाने में महंगाई नहीं थी। जाहिर है इन सभी जमानों में महंगाई थी, लेकिन यही लोग जो आज महंगाई का विरोध कर रहे हैं, उस समय महंगाई का विरोध नही ंकर रहे थे। आज ये महंगाई का विरोध सिर्फ इसलिए कर रहे हैं कि देश की गद्दी पर सदियांे बाद एक हिंदू शेर बैठा है, जिसे महामानव कहते हैं। महामानव द्वारा बढ़ाई गई ये महंगाई हमारे देश को, देश वासियों के लिए, राष्टप्रेमियों के लिए, महामानव का ही एक तोहफा है, एक वरदान है। महामानव की इस महंगाई से देश का चरित्र मजबूत होता है, नैतिकता बढ़ती है, आत्मा का परमात्मा से रिश्ता मजबूत होता है, और सबसे बड़ी बात, देश की नैतिकता और सद्चरित्रता का उत्थान होता है।
महंगाई के साथ इस देश ने कभी भी बहुत अच्छा व्यवहार नहीं किया है, लोग महंगाई को उसके सही अर्थों में समझ नहीं सके, और इस देश ने हमेशा कोशिश की कि महंगाई कम की जाए, महंगाई के प्रति एक नफरत का वातावरण हमेशा तैयार किया गया, जनता ने महंगाई को कभी अच्छा नहीं समझा। पहली बार हमें महामानव ने समझाया कि महंगाई अच्छी होती है। अगर आप सच्चे महामानव प्रेमियों से मिलेंगे, सच्चे देशभक्तों से मिलेंगे तो आपको पता चलेगा कि महंगाई परेशान करने वाली चीज़ नहीं है, बल्कि खुशी मनाने वाली चीज़ है।
महंगाई का क्या ह ैना मितरों, ये हमारी परंपरा का हिस्सा है, याद कीजिए, बचपन से ही हमें सिखाया जाता है, सस्ता रोए बार-बार, महंगा रोए एक बार। महामानव हमारे परंपरा वाले हैं, ये उनका अजैविक कर्तव्य है कि पूरा देश अपनी परंपरा और संस्कृति को भूलने ना पाए। इसलिए वो हमें बार-बार नहीं रुलाना चाहते, वे चाहते हैं कि हम एक ही बार रोएं, जब हम महंगा खरीदें। अगर देश में चीजें सस्ती होंगी तो इस पारंपरिक कहावत के अनुसार हमें बार बार रोना होगा, और ऐसा कौन होगा, जो बार-बार रोना चाहेगा। इसलिए महामानव ने महंगाई को इत्ता बढ़ा दिया है, ताकि लोग रोएं, लेकिन एक ही बार रोएं। ये जो रोने की परंपरा है, बहुत उम्दा परंपरा है, इससे होता ये है कि रोने वाले को रोने से नहीं, बल्कि रोने की शिकायत करने वालों से परेशानी होती है, और दुआ की जाती है कि ज्यादा से ज्यादा लोगों को रोने का मौका मिले।
महंगाई के यू ंतो कई फायदे हैं, और मैं आपको गिना भी सकता हूं, पर सोचता हूं कि आप सभी समझदार लोग हैं, पिछले पंद्रह सालों में आपको समझ आ ही गया होगा कि महंगाई हो तो उसे उत्सव की तरह लेना चाहिए। महंगाई को क्या, महामानव ने हमें हर आपदा को उत्सव में बदलने के, आपदा को अवसर में बदलने का महत्व सिखाया है। याद कीजिए कोविड में जब देश में लाशों का अंबार लगा था, तो महामानव हमसे थाली बजवा रहे थे, मोबाइल की टॉर्च जलवा रहे थे, जब नोटबंदी के समय पूरा देश रोने लगा था, ए टी एम की लाइन में खड़े-खड़े ही लोग, इस नश्वर शरीर को छोड़ रहे थे, तब महामाानव ही थे, जिन्होने हमें समझाया था कि लाइन में लगने का कितना महत्व है। जब अमरीका ने टैरिफ लगाया तो महामानव ने उसे स्वेदशी में बदलने की कोशिश की, और फिर जी एस टी से बरबाद हुए लोगों को महामानव ने ही बचत उत्सव का नारा दिया था।
महामानव ने आप पर ये अहसान किया है, वो आप को कर्मठ बना रहे हैं। इसे ज़रा इस तरह समझिए कि अगर सब कुछ सस्ता होगा, यानी उसे खरीदने में पैसे कम लगेंगे, कम पैसों की ज़रूरत हो तो लोग पैसा कम ही कमाते हैं, कम पैसे के लिए मेहनत भी कम लगती है। अब ज़रा सोचिए कि लोग कम मेहनत करेंगे तो देश में कर्मठता की कमी होगी, देश की उत्पादकता में कमी होगी, और देश ग़रीब हो जाएगा। जो देश के लिए घातक होगा। देश की भलाई इसी में है कि देश में महंगाई हो, देश में महंगाई होगी तो सामान जैसे खाना, कपड़ा, शिक्षा, स्वास्थय सब महंगा होगा, जब सब कुछ महंगा होगा तो उसे अफोर्ड करने के लिए लोगों को ज्यादा पैसा चाहिए होगा। ज्यादा पैसा बिना ज्यादा काम किए नहीं आएगा, लोग ज्यादा काम करेंगे तो देश की उत्पादकता बढ़ेगी और देश अमीर होगा। यूंह ी तो देश की अर्थव्यवस्था उछाल नहीं मार रही। अगर देश पुराने ढर्रे पर चल रहा होता जहां लोेग महंगाई के खिलाफ हों, और सरकार महंगाई के खिलाफ काम कर रही होती तो आज देश की अर्थव्यवस्था चौथे पायदान पर नहीं होती।
देश की अर्थव्यवस्था को ऐसी हालत में लाने का पूरा श्रेय इस महंगाई को दिया जाना चाहिए और ये महंगाई आपके जीवन में महामानव लाए हैं, ऐसी अभूतपूर्व महंगाई के लिए हमें महामानव को धन्यवाद देना चाहिए। महामानव को धन्यवाद दीजिए कि घर की मुर्गी को उन्होने सच में दाल बराबर कर दिया, बल्कि ये कहा जाए कि दाल की कीमत मुर्गी बराबर हो गई, ये महामानव का कमाल है। अब कोई पार्टी मांगे तो आप हंसते हुए दाल पका कर सर्व कर सकते हो, और कोई आपको नहीं टोकेगा।
महामानव और उनकी पार्टी के लोग इस फिलासफी की बारीकी को समझ गए हैं, लेकिन अन्य लोग इसी महंगाई पर राजनीति करने को उतारु हैं, ये लोग तुम्हें महंगाई जैसे मुद्दों पर भड़काने की कोशिश करेंगे, लेकिन तुम असली मुद्दों पर डटे रहना, मंदिर बन ही गया है, भारत विश्वगुरु बनने ही वाला है, बस अब तुम इस रास्ते से मत भटकना, याद रखना, महामानव की ये महंगाई तुम्हारे भीतर के हिंदू की परीक्षा है, बच्चे भले ही भूखें रहें, अनपढ़ रहें, लेकिन एक बार भारत हिंदू राष्ट बन गया तो फिर मजे ही मजे होंगे। ये लोग, खुदा इन्हें गारत करे, इस देश में फिर से सस्ते दिन लाना चाहते हैं, एक हम हैं कि पिछले बारह सालों से अच्छे दिनों को इंतजार कर रहे हैं, अब जब अगले कुछ बारह-पंद्रह सालों में अच्छे दिन आने ही वाले हैं, ये लोग हमें फिर से उन्हीं दिनों में ले जाने की बातें कर रहे हैं, जब पैटरोल पचास-साठ रुपये का था और डॉलर भी इसी दाम मिल जाता था, कहां आज हम बड़े गर्व से दो-ढाई सौ रुपये किलो दाल खा रहे हैं, और कहां ये लोग हमें फिर से साठ-सत्तर वाली सस्ती दाल खिलाने पर आमादा हैं, कहां हम रसोई गैस के बारह-पंद्रह सौ रुपये दे रहे हैं, और ये लोग हमें चार-पांच सौ रुपये में रसोई गैस का लालच दे रहे हैं।
याद रखना दोस्तों, अच्छे भविष्य के लिए हमें अपनी और अपने बच्चों के भविष्य की बलि देनी ही होगी, हमारे बच्चें ना पढें ना सही, उन्हें रोजगार ना मिले ना सही, लेकिन अखंड भारत, सनातन और धर्म की रक्षा के लिए ऐसा करना हमारा कर्तव्य है। तुम्हारी महंगाई से ही तो इस देश के वीर सपूत, अडानी और अंबानी दुनिया के सबसे अमीर लोगों की श्रेणी में आए हैं, अरे क्या तुम्हें गर्व नहीं होता कि चाहे देश में करोड़ो लोगों को खाने के लाले पड़े हों, लेकिन देश के कुछ लोग दुनिया के सबसे अमीर लोगों की सूचि में आते हैं। ये गर्व ही असली चीज़ है, राशन का क्या है, कल था, आज नहीं है, हो सकता है आगे भी ना हो, इसकी कोई गारंटी नही ंकर सकता। लेकिन असली चीज़ है देश का गौरव, तुम्हारे बच्चों की लाशों पर जो आलीशान महल बने हैं, वो पूरी दुनिया में देश का गौरव बढ़ाते हैं, सच कहना अपने बच्चों की मौत पर रोते हुए, क्या तुम्हें पूरी दुनिया में महामानव के नाम का डंका बजते हुए सुनने से गर्व नहीं होता, तुम्हारी छाती नहीं फूलती। बच्चों की दवा ना हो तो क्या, किसानों को खाद ना हो तो क्या, महामानव के नाम का डंका तो बदस्तूर बज रहा है दुनिया में। यही एक संतोष लेकर जीना हमें पिछले बारह सालों में महामानव ने सिखाया है, और मुझे पूरा यकीन है कि आगे भी वो अपने इसी कार्य में लगातार लगे रहेंगे।
मैं सिर्फ ये कहना चाहता हूं दोस्तों की ये गाड़ी जो महंगाई की सड़क पर इतनी तेज़ रफ्तार से दौड़ रही है इसे किसी भी लालच में धीमा नहीं करना है, ये महंगाई हमें भले ही बरबाद कर दे, लेकिन हमें महामानव के जुमलों पर ही जीवन चलाते रहना है। महंगाई को बुरा मत समझिए, बुरा मत कहिए, बल्कि और लोगों से सवाल कीजिए कि, महंगा है तो क्या हुआ, पूरी दुनिया में डंका तो बज रहा है, अब हम अमरीका को ये तो कहते हैं कि तू क्या है बे, चीन को लाल आंखों से डराते तो हैं, अब्दुल को टाइट कर दिया, दलितों को लगातार सबक सिखा तो रहे हैं, औरतों के साथ वो सब भी तो कर रहे हैं, जो हम करना चाहते हैं। महंगाई है तो क्या, हम अपने देश को महामानव के सपनों का देश बना रहे हैं, और हम चाहे कितना भी मुश्किल झेलें, हम महामानव के दिखाए रास्ते से नहीं हटेंगे, महामानव का डंका बजता रहेगा।
बुधवार, 12 नवंबर 2025
गांधी नहीं, महामानव महान हैं।
दोस्तों आज मैं आपके सामने एक बहुत बड़ा सवाल लेकर आया हूं। ये सवाल, या आप इसे जो भी कहें, इत्ता बड़ा है कि इसके आगे सभी सवाल फीके और बेजान मालूम होते हैं। सवाल ये है कि इस देश में गांधी बड़े या महामानव। सबसे पहले तो इसी बात पर गौर कीजिए कि इत्ती बड़ी मतलब, बहुत बड़ी, मतलब बहुत से भी ज्यादा बड़ी शख्सियत महामानव की, गांधी उनके आगे क्या हैं? महामानव वर्ल्ड लीडर हैं इत्ते बड़े कि जहां अन्य देशों के राष्टपति, प्रधानमंत्री इत्यादी जमा होते हैं, वहां अकेले एकमात्र वर्ल्ड लीडर महामानव सबसे बीच में खड़े होते हैं, और सबकी फोटो खिंचती है, महामानव की फोटो उतारी जाती है, जैसे आरती उतारी जाती हो। वो इत्ते बड़े हैं वो हंसते हैं तो और लोगों को समझ में आता है कि यहां, यानी इस मौके पर हंसना है, और उनके बाद सब लोग हंसते हैं। यानी वो बहुत बड़े वर्ल्ड लीडर हैं। चाहते तो गज़ा पर इस्राइल का हमला यूं रुकवा देते, चुटकी बजा कर, लेकिन सबर किया, इंतजार किया, कि कोई छोटा मोटा लीडर इसका हल निकाले। और वजह सिर्फ एक, इतने हम्बल हैं कि अपने मुहं से अपनी तारीफ के लिए एक शब्द नहीं निकलता। अब इत्ते बड़े, माने विशाल व्यक्तित्व के मालिक, महामानव खुद महात्मा गांधी की बहुत चिंता करते हैं।
लेकिन गांधी को कभी आपने महामानव की चिंता करते हुए नहीं देखा होगा। वो तो संयोग की बात है कि महामानव से पहले ही रिचर्ड एटनबरो गांधी पर फिल्म बना लिए थे, वरना ये जिम्मेदारी भी बिचारे महामानव की हो जाती कि वो दुनिया को गांधी के बारे में बताएं। मैं आपको सच बताउं तो गांधी कभी उतने मशहूर नहीं थे, जितना हमें बताया जाता है,
ये वाली मोहतरमा जो कह रही हैं ना, वही दरअसल सच है। अगर आप अपनी आंखें खोल कर देखेंगे, सच्ची में देखेंगे तो आप को पता चलेगा गांधी सच में उत्ते मशहूर नहीं थे, जित्ता बताया जाता है, और महामानव वाली शोहरत तक तो कभी पहुंच ही ना पाए। उन्हें जानता ही कौन था, सिर्फ देश के कुछ लोग, कुछ लोग विदेशों में उन्हें जानते थे, जिन तक उनकी पब्लिकसिटी पहुंचती थी, वरना कौन जानता था, गांधी को। जबरदस्ती लोगों से गांधी का आदर करवाया जाता था, यानी कोई मन से उनका आदर नहीं करता था, जो उनका आदर नहीं करता था, उसके पीेछे ई डी और सी बी आई लगा दी जाती थी। किसी को उनकी आलोचना नहीं करने दिया जाता था। दूसरी तरफ हमारे महामानव हैं, जिन्होने शोहरत की सारी हदें पार कर दी हैं, और अपनी शोहरत के लिए उन्हें कोई वीडियो नहीं बनानी पड़ती, कहीं अपनी फोटो नहीं लगानी पड़ती, किसी अखबार, रेडियो प्रोग्राम या टी वी इंटरव्यू के ज़रिए नहीं बताना पड़ता कि वो महान हैं, बिना कुछ पब्लिकसिटी किए ही दुनिया की कुल 800 करोड़ से कुछ ज्यादा की आबादी के कम से कम अस्सी प्रतिशत लोगों में उनकी शोहरत है।
जिस महामानव को 600 करोड़ लोगों ने वोट दिया हो, बताइए वो इतना हम्बल है कि अब भी, आज भी गांधी जी को विनम्र श्रद्धांजली अर्पित करते हैं, अब मुझे ये बताइए दोस्तों कि क्या आपने कभी देखा कि गांधी ने कभी महामानव को आदर दिया हो, आदर देना तो दूर की बात है, महामानव के बारे में कभी दो अच्छी बातें नहीं बोली गई गांधी से। ये एटिट्यूड दिखाता है जो व्यक्ति जितना बड़ा होता है, वो उतना ही विनम्र होता है, महामानव हैं, गांधी नहीं थे।
दरअसल गांधी के बारे में जो सब अच्छी बातें हैं, वो सब सिर्फ उपर का आवरण था, उनकी पब्लिकसिटी की गई थी, ये पब्लिकसिटी का कमाल था कि उन्हें लोग इतना मानते थे।
इत्ती पब्लिकसिटी के बावजूद गांधी के बारे मे बहुत कम लोग आज तक जान पाए, और दूसरी तरफ हमारे महामानव, आप सच में सोच के देखिए, महामानव ने कभी अपनी शोहरत के लिए अपनी पब्लिकसिटी का सहारा नहीं लिया। महामानव की महानता की रौशनी इतनी चकाचौंध करने वाली है कि लोग खुद-ब-खुद उनके उपर निछावर हो जाते हैं। बचपन से लेकर आज तक, महामानव ने कभी कहीं, अपना ढिंढोरा नहीं पीटा, कभी कोई अच्छा काम किया भी तो उसका क्रेडिट नहीं लिया, बल्कि हर बार, बार -बार, लगातार कहते रहे कि उन्हें क्रेडिट नहीं चाहिए।
हालांकि अगर आप गौर से देखें, यानी अगर आप सच मंे देखे तो महामानव की उपलब्धियों के आगे गांधी की उपलब्धियां छोटी नज़र आती हैं। गांधी क्या थे, क्या थे गांधी, गांधी ने अपने पूरे जीवन में इतने कपड़े नहीं पहने होंगे, जितने महामानव एक हफ्ते में डिस्कार्ड कर देते हैं। देश के लिए महामानव ने अपना घर छोड़ा, अपनी पत्नि को भी छोड़ दिया। क्या गांधी ने ऐसा किया? नहीं किया, उनकी पत्नि कस्तूरबा लगातार पूरे जीवन उनके साथ रही। लेकिन महामानव, उन्होने सत्रह साल की उमर में घर छोड़ा, शायद उनके जीवन का यही कालखंड था, जिसमें उन्होने अपनी पत्नि को भी छोड़ दिया था। बताइए, किसका त्याग ज्यादा बड़ा है। महामानव खुद हाथ पकड़ कर राम को उनके मंदिर तक लेकर गए, गांधी तो कुछ छोटी -छोटी जनसभाओं में बस वो एक भजन जैसा गाते रह गए। इस बारे में कोई कुछ क्यों नहीं बोलता।
आखिर गांधी ने किया ही क्या था, देश को आज़ाद ही तो करवाया था। लेकिन रुकिए, ये भी पूरा सच नहीं है दोस्तों, पूरा सच वो है जो इस बार हमारे प्रधानमंत्री ने लालकिले की प्राचीर से दुनिया को बताया है।
असल में इस देश को आज़ादी आर एस एस ने दिलवाई थी, और जब आजादी मिल गई, तो वो अपनी हम्बलनेस के चलते अलग खड़े हो गए, और गांधी को इसका क्रेडिट दे दिया। सेवा की जो प्रवृति हमारे महामानव में आपको देखने को मिलती है, वो इसी आर एस एस की देन है। ये गुण, यानी सेवा, समर्पण, संगठन, और अप्रतिम अनुशासन, आपको महामानव में भी देखने को मिलेंगे, लेकिन क्या गांधी में आपको ये सेवा, ये समर्पण, ये अप्रतिम अनुशासन देखने को मिलता है? ये महामानव का ही जहूरा है कि आज भी दुनिया में गांधी का कोई नामलेवा है, वरना गांधी को कौन पूछता है। सब बस महामानव का ही गुणगान करते हैं।
दोस्तों आज मैं आपको राज़ की बात बताता हूं, अभी जो नोबेल पीस प्राइज़ मिला है, माजाडो नाम की एक महिला हैं, उन्हें मिला है, लोग कह रहे हैं कि वो गांधीवादी हैं। लेकिन अगर आप उनके काम देखेंगे, और उनकी विचारधारा पर गौर करेंगे तो वो गांधी से नहीं, हमारे महामानव से प्रभावित लगती हैं। नोबेल मिलते ही उन्होेने इसे महामानव के डीयर फें्रड डोलांड को समर्पित कर दिया। मुझे पूरा यकीन है कि अगर ये नोबेल महामानव को मिला होता, तो वो भी इसे अपने डीयर फ्रेंड डोलांड को ही समर्पित करते। और यहां गौर करने वाली बात एक और भी है, महामानव को पूरी दुनिया के लोग बुला-बुला कर अपने देश में सम्मानित कर रहे हैं, उन्हें अवार्डस् दे रहे हैं, क्या गांधी को कभी भी, कहीं भी, किसी भी देश ने कोई अवार्ड दिया है?
अभी हमारे यहां इतिहास को ठीक करने की जो मुहिम महामानव के नेतृत्व में चल रही है, उसमें हमें इस इतिहास को भी ठीक करना चाहिए, और आजादी की लड़ाई में संघ के योगदान पर पूरा एक चैप्टर होना चाहिए। हां गांधी को भी जगह मिलनी चाहिए, कहीं एक आधी लाइन लिखी जा सकती है कि कोई गांधी भी एक नेता थे, जिन्होने अपनी तरफ से कोशिश की थी। वो भी इसलिए कि गांधी थे, वरना यूं हम हर छोटे-मोटे नेता का जिक्र करने लगे तो आजादी का इतिहास बहुत लंबा हो जाएगा ना। इसकी जगह हमें बाल नरेंन्द्र के कुछ चैप्टर्स को बच्चों को पढ़ाना चाहिए, ताकि आने वाली पीढ़ियों को ये पता चल सके कि आज के दौर में भी इस देश में अवतारों ने जन्म लिया है।
गांधी ने अपने पूरे जीवन में कहीं नहीं कहा कि वो नॉन बायोलॉजिकल हैं, गांधी ने एक किताब लिखी थी, सत्य के मेरे प्रयोग, जिसे गांधी की आत्मकथा कहा जाता है, पूरी पढ़ लीजिए, कहीं आपको गांधी ये कहते नहीं मिलेंगे कि वो अवतार हैं, लेकिन महामानव ने कहा है, और खुलेआम कहा है, एक से ज्यादा बार कहा है। क्या आपको इससे भी ज्यादा सबूत चाहिएं ये समझने के लिए कि महामानव का कद गांधी से ज्यादा बड़ा है। मेरा तो ये मानना है कि ये कांग्रेस और इसके लीडरों को महामानव से और इस देश की जनता से माफी मांगनी चाहिए कि गांधी ने कभी महामानव की तारीफ नहीं की, उन्हें आदर नहीं दिया, उनसे प्रेरणा नहीं ली।
पर मुझे पता है कि ये तथाकथित प्रगतिशील, ये वामी और कांगी, कभी इस सच्चाई पर विश्वास नहीं करेंगे, लेकिन आप तो जनता हैं, आप तो सच्चाई जानते हैं कि महामानव बड़े, बहुत बड़े हैं, और गांधी उनके सामने.....छोड़िए जाने दीजिए।
चचा जो थे अपने, ग़ालिब, गांधी पे कुछ ना लिख गए, समय का बहुत बड़ा अंतराल रहा, लेकिन महामानव तो अजैविक जीव हैं, इसलिए महामानव की महानता पर एक शेर लिख गए हैं। वही आपको सुना रहा हूं
अब तो दुनिया भी पहचान गई है उसको
कहो तो नाम उसका हम बताएं किसको
तुम्ही कहते हो कि तुम हो, महामानव
अब बताएं हम ये बात किसको किसको
तड़प रहे थे, चचा ये बताने के लिए कि महामानव स्वयंसिद्ध हैं, स्वयंभू हैं, स्वयंप्रसिद्ध हैं। पर ये बात पक्की है कि गांधी से महामानव की तुलना करना, सूरज का दिया दिखाने जैसा है, हम तो कहेंगे कि अब महामानव को इतनी शोहरत मिल चुकी है कि अपना एक नया धर्म भी वो शुरु कर ही सकते हैं। पर ये बात करेंगे अगली बार, इस बार चलते हैं। नमस्कार
महामानव-डोलांड और पुतिन का तेल
तो भाई दुनिया में बहुत कुछ हो रहा है, लेकिन इन जलकुकड़े, प्रगतिशीलों को महामानव के सिवा और कुछ नहीं दिखाई देता। मुझे तो लगता है कि इसी प्रे...
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किसी जमाने की बात बताता हूं। जब भी कोई पुरानी बात करनी हो तो ”किसी जमाने की बात है” कह कर बात शुरु करने से लोगों पर यथोचित प्रभाव पड...
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नमस्कार, मैं कपिल एक बार फिर आपके सामने। देखिए ये लोग मान नहीं रहे हैं, बिल्कुल नहीं मान रहे हैं। अरे ऐसी भी क्या दादागिरी है भई। सरकार के प...
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जनाबेमन, जब से नेपाल में नौजवानों ने उपद्रव मचाया, कुछ लोग इसे क्रांति भी कह रहे हैं, जेन ज़ी की क्रांति, खैर तो मेरा ख्याल है आठ तारीख क...