नमस्कार। मैं कपिल एक बार फिर आपके सामने। जनाब एक बात तो बताइए मुझे ये लोग महामानव का पीछा छोडेंगे कि नहीं। यार पिछले तीन - चार दिनों से लगातार महामानव की एक वीडियो को लगातार वायरल किया जा रहा है, लगातार उस पर मीम और जोक्स बनाए जा रहे हैं।
बताइए, आखिर इस वीडियो में ऐसा क्या है कि जिसे मुद्दा बनाया जाए। एक तो आपको इतने कठिन प्रयासों के बाद, इतने खराब प्रधानमंत्री झेलने के बाद ऐसा छप्पन इंची छाती वाला, नॉन बायोलॉजिकल, विश्वगुरु टाइप महामानव पी एम मिला है, और अब जब वो कुछ नया, कुछ बेहतर, कुछ शानदार, कुछ दुनिया में पहली बार टाइप करने की कोशिश कर रहा है तो तुम हो कि उसके पीछे पड़े हो।
महामानव हमारे हमेशा कुछ नया करने की कोशिश करते हैं, जब वे पहली बार पी एम बने थे, तब याद कीजिए उन्होने नवयुवकों को, इस देश की फ्यूचर जेनरेशन को एक नई दिशा दी थी।
तब भी तुम लोगों ने महामानव का मज़ाक बनाया था, लेकिन देश के नौजवानों ने इसे हाथों-हाथ लिया, और तन, मन, धन से पकौड़े बेचने में लग गए। और आज आलम ये है कि पकौड़े बेचने और बनाने में भारत दुनिया में नंबर वन देश बन गया है, हर गली, हर चौराहे, हर नुक्कड़ पर, हर उम्र का व्यक्ति, पकौड़े बेच रहा है, कहीं कहीं तो नौजवानों ने अपनी डिग्री को ही अपनी दुकान का नाम बना लिया है। दोस्तों सिर्फ महामानव ही विश्वगुरु और वर्ल्ड लीडर नहीं बने हैं, बल्कि हमारे देश में रोज़गार का भी विकास हो गया है। और जो लोग महामानव के द्वारा सुझाए गए पकौड़ा बेचने वाले बयान का मज़ाक उड़ा रहे थे, वो आज कहां हैं? कहां हैं? अरे मैं पूछ रहा हूं कि वो आज कहां हैं? जबकि महामानव अपनी एंटायर पॉलिटिकल साइंस में एम ए की डिग्री के साथ अब भी महामानव पी एम ही बने हुए हैं।
महामानव जो भी करते हैं, उसमें वो अपनी अमिट छाप छोड़ते हैं। अब देखिए सदियों तक लोगों को ये एंटायर पॉलिटिकल साइंस याद रहने वाला है, और इसकी वजह ये है कि ये डिग्री आज तक किसी को मिली नहीं, और आगे भी ये डिग्री किसी को मिलने की संभावना नहीं है। हालांकि मैने अपना बी ए ऑनर्स पॉल साइंस दिल्ली यूनिवर्सिटी से किया है, लेकिन अफसोस कि मुझे भी एंटायर पोल साइंस की डिग्री नहीं मिली। क्या कोई जानकार मुझे ये बता सकता है कि क्या मैं दिल्ली यूनिवर्सिटी पर भेदभाव का इल्जाम लगाते हुए मुकद्मा कर सकता हूं क्या? क्या मुझे और मेरे जैसे लाखों, करोड़ों लोगों को भी एंटायर पोलिटिकल साइंस की डिग्री नहीं मिलनी चाहिए थी क्या?
खैर मैं विषय से भटक जाता हूं। महामानव विषय से नहीं भटकते, आखिर वो महामानव हैं, इसलिए जब से वो इस देश के राजा नियुक्त हुए हैं, उन्होने क़सम खाई है कि देश को बेरोज़गारी से, और बेरोज़गारों से मुक्त कर देंगे। अब ज़रा ध्यान से सुनिएगा। बेरोजगारी दूर करने के दो तरीके होते हैं, एक तो यही कि रोज़गार उपलब्ध करवाया जाए। अब इस तरीके में, कई अड़चने आती हैं, सरकारी नौकरियां हैं नहीं, क्योंकि सरकारी काम के लिए तो ठेके पर लोग रखे जा रहे हैं। दूसरा सरकारी सेक्टर को प्राइवेट हाथों में, या सीधा कहें तो अडानी के हाथों बेच दिया जा रहा है। इसलिए नौकरियों की गुंजाइश कम होती जा रही है। इसके अलावा पहले तो वेकेंसी ही नहीं निकलती, वेकेंसी निकलती है तो पेपर लीक हो जाता है, वेकेंसी निकली, पेपर भी लीक नहीं हुआ, तो जो पेपर पास करते हैं, उनका नियुक्ति पत्र आते-आते ही पंद्रह-बीस साल लग जाते हैं। ऐसे में सीधे रास्ते से रोज़गार सृजन हो तो कैसे हो।
रोज़गार सृजन का दूसरा तरीका है, हर उस चीज़ को रोज़गार का नाम दे देना, जिससे आप दो पैसा कमाते हो।
अब मान लीजिए, आप बेरोज़गार हैं, और मजबूरी में, दोस्त-रिश्तेदारों के तानों से बचने के लिए दिन में गांव के तालाब में मछली पकड़ने जाते हो तो क्या
उसे आप रोज़गार कहेंगे कि नहीं कहेंगे
या मान लीजिए, आपने बेरोज़गारी से तंग आकर भीख मांगना शुरु कर दिया। हालांकि शुरु में आपको किसी ने ना पूछा क्योंकि आपको एक्सपीरिएंस नहीं था। लेकिन फिर आपको थोड़ी-बहुत भीख मिलने लगी। अब आप मुझे बताइए कि
डसे आप रोज़गार कहेंगे कि नहीं कहेंगे
आपके पिता ने आपको पढ़ाने के लिए अपना छोटा-मोटा खेत बेच दिया, आपने भी अपनी पूरी मेहनत की, और बी टेक में अच्छे नंबरों से पास हो गए। इसके बाद आपने अपनी जिंदगी का सबसे अहम काम, यानी नौकरी की तलाश शुरु की, पर फिर मजबूरी में आपको डिलीवरी ब्वॉय का काम करना पड़ा। जिसमें सैलरी तो कम थी ही, लेकिन गालियां भी बहुत मिलती थीं, लेकिन आप मुझे बताइए कि
इसे आप रोज़गार कहेंगे कि नहीं कहेंगे
इसी तरह दुनिया में तमाम तरह के काम हैं, जिन्हें करने के बाद आप खुद को कुछ भी कह लें, बेरोज़गार नहीं कह सकते। महामानव की रोजगार देने की इस तकनीक से दुनिया में बेरोज़गारी का आंकड़ा यूं धड़ाम से नीचे आकर गिरेगा कि क्या न्यूटन का सेब भी गिरा होगा पेड़ से। भाई साहब सच बता रहा हूं आपको ग्रेविटी का कोई नया नुस्ख ईजाद करना पड़ेगा।
इस तकनीक का सबसे बड़ा फायदा ये होता है कि सरकार को कोई काम नहीं करना पड़ता, बस आंकड़ों में थोड़ी हेर-फेर करनी होती है, और वो कोई बड़ा काम नहीं है सरकार के लिए। ये दुनिया भर के आइ ए एस, आई आर एस, आई पी एस बनाए किसलिए हुए हैं जी। इनका मुख्य काम ही ये है कि महामानव जब चाहे ंतब उन्हें मनमुताबिक आंकड़े मुहैया करवा दिए जाएं।
अब जैसे ये बेरोज़गारी के आंकड़ों का ग्राफ है, अब इसमें देखिए तीर उपर की तरफ जा रहा है, इसका मतलब ये है कि बेरोज़गारी बढ़ रही है। अब अगर इसे लोगों को दिखाना है तो महामानव ने जिस मोबाइल की लाइट जलवाई थी, उसे उल्टा कर दीजिए। अब देखिए बेरोज़गारी का तीर कैसे नीचे जा रहा है।
दुनिया की हर ग़लत चीज़ की तरह, देश की बेरोज़गारी भी असल में नेहरु की ग़लती है। महामानव पिछले तेरह सालों से नेहरु की ग़लतियां गिनवा रहे हैं, और आप इतने बेमुरव्वत हैं कि आपको अब भी यकीन नहीं आता कि इस देश की जितनी मुसीबतें हैं, वो सब नेहरु की ग़लती हैं, जिनमें बेरोज़गारी तो मुख्य है। सच बता रहा हूं कि अगर देश की आज़ादी के समय नेहरु की जगह महामानव को देश का पहला प्रधान मंत्री बना दिया गया होता तो ये जो थोड़ी बहुत बेरोज़गारी इस देश में बची हुई है, वो भी खत्म हो गई होती। लेकिन इस देश को आज़ाद करवाने वालों को जाने क्यों तब महामानव की अजैविक, अद्भुत और अलौकिक क्षमता दिखाई ना दी, जो आज के टी वी एंकरों को दिखाई देती है।
बंधुवर, माननीय मेरी ये बात गांठ बांध कर रख लो, कि अगर आप भी महामानव के नुस्खों के हिसाब से चलोगे तो आप को भी ये नया चमत्कार दिखाई देगा, चारों तरफ बहार दिखाई देगी, हर तरफ रोज़गार दिखाई देगा। आज महामानव ने बिहार के हर रील बनाने वाले को बेरोज़गार की श्रेणी से बाहर निकाल दिया है। वो दिन दूर नहीं, जब वे अपने इसी मंत्र से पूरे देश के बेरोज़गारों को एक ही झटके में रोज़गार वाला बना देंगे।
ये तेजस्वी, राहुल, अखिलेश ये सब सिर्फ रोज़गार के दावे कर रहे हैं, ये सिर्फ आपको भरमा रहे हैं। महामानव ने तो चुनावों से पहले ये साबित कर दिया है कि उन्होने बिहार के युवाओं को रोज़गार उपलब्ध करवा दिया है। महामानव की इसी उपलब्धि पर एक बार जोरदार तालियां हो जाएं।
बिहार तो फिर मान लीजिए अब भी थोड़ा -बहुत, ज्यादा नहीं, पर थोड़ा-बहुत पिछड़ा राज्य है, लेकिन आप देखिए कि खुद को महान मानने वाला केरल जो कल तक यू पी के शिक्षा के मॉडल को फॉलो करता था, कहीं कल से उसे भी बिहार के रोज़गार वाले मॉडल को फॉलो ना करना पड़ जाए। बेरोज़गारी को मात अगर किसी ने दी है दोस्तों तो वो आधुनिक युग के अवतार हैं, महामानव। महामानव ने वो कर दिखाया जो पूरी दुनिया में आज तक कोई नहीं कर पाया। और ये तो अभी बिहार चुनावों की शुरुआत है, और मुझे पूरा यकीन है कि वो दिन दूर नहीं जब इसी तरह के रील्स बनाने और पकौड़े तलने के रोज़गार में पूरी दुनिया को लीड करेगा। और दुनिया ससम्मान महामानव को विश्वगुरु के ओहदे पर बैठाएगी।
जब तक उस दिन का इंतजार करना हो, तब तक आप दो-चार सौ रील और बना लीजिए। अब महामानव ने कह दिया है तो रील्स का ये कारोबार रुकना नहीं चाहिए, ताकि सबको रोज़गार मिलता रहे। और महामानव इस रोज़गार का श्रेय लेते रहें। जय महामानव, जय रोज़गार।
चचा जो हैं हमारे, ग़ालिब, जीवन भर बेरोज़गार रहे। क्या करें, ना तो पकौड़े बेच पाए ना उस वक्त मोबाइल था, और ना ही महामानव ने तब तक डेटा सस्ता किया था। इसलिए रील्स बनाने के रोज़गार को भी न जुटा पाए। पर रोजगार पर एक भावनात्मक शेर लिखा है उन्होने
तूने मुझे क्यों ना दिया रोज़गार, किसी काम आता मैं भी
जो तू डाटा सस्ता कर देता, तो रील्स बनाता मैं भी
ग़ालिब को अफसोस रहा कि वो अपनी शायरी की रील्स न बना पाए कभी, जब भी घंटे वाले हलवाई के यहां जलेबी खाने जाते थे तो इसका जिक्र जरूर करते थे। खैर चचा से अपनी बातचीत किसी और वक्त बताउंगा। आप अपना रोज़गार जारी रखिए, और हां, इस बार बिहार में महामानव को ही वोट कीजिए, ताकि मछली मारना, मच्छर मारना, पुलिस से पिटाई खाना, आदि को भी रोज़गार गिना जाने लगे।
इसे आप रोज़गार कहेंगे कि नहीं कहेंगे
मिले रोज़गार, जय बिहार। नमस्कार
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