गुरुवार, 13 नवंबर 2025

महामानव और महंगाई




 दिवाली दरवाजे़ पर है और चारों तरफ चर्चा है, महंगाई की। महंगाई जिसे आमिर खान द्वारा निर्मित एक फिल्म में डायन भी कहा गया है। मुझे इससे घोर एतराज है। महंगाई को डायन कहना, मितरों, हमारी पुरानी परंपरा और संस्कृति पर हमला है, और हमें इस हमले का पुरज़ोर विरोध करना चाहिए। महंगाई का समर्थन, करना दरअसल एक तरह से अपने महामानव का ही समर्थन करना है दोस्तों। कोई ज़रा महंगाई का विरोध करने वालों से पूछे कि क्या कांग्रेस के जमाने में महंगाई नहीं थी? क्या नेहरु के जमाने में, इंदिरा के जमाने में राजीव गांधी के जमाने में महंगाई नहीं थी, मनमोहन सिंह, क्या मनमोहन सिंह के जमाने में महंगाई नहीं थी। जाहिर है इन सभी जमानों में महंगाई थी, लेकिन यही लोग जो आज महंगाई का विरोध कर रहे हैं, उस समय महंगाई का विरोध नही ंकर रहे थे। आज ये महंगाई का विरोध सिर्फ इसलिए कर रहे हैं कि देश की गद्दी पर सदियांे बाद एक हिंदू शेर बैठा है, जिसे महामानव कहते हैं। महामानव द्वारा बढ़ाई गई ये महंगाई हमारे देश को, देश वासियों के लिए, राष्टप्रेमियों के लिए, महामानव का ही एक तोहफा है, एक वरदान है। महामानव की इस महंगाई से देश का चरित्र मजबूत होता है, नैतिकता बढ़ती है, आत्मा का परमात्मा से रिश्ता मजबूत होता है, और सबसे बड़ी बात, देश की नैतिकता और सद्चरित्रता का उत्थान होता है।



 

महंगाई के साथ इस देश ने कभी भी बहुत अच्छा व्यवहार नहीं किया है, लोग महंगाई को उसके सही अर्थों में समझ नहीं सके, और इस देश ने हमेशा कोशिश की कि महंगाई कम की जाए, महंगाई के प्रति एक नफरत का वातावरण हमेशा तैयार किया गया, जनता ने महंगाई को कभी अच्छा नहीं समझा। पहली बार हमें महामानव ने समझाया कि महंगाई अच्छी होती है। अगर आप सच्चे महामानव प्रेमियों से मिलेंगे, सच्चे देशभक्तों से मिलेंगे तो आपको पता चलेगा कि महंगाई परेशान करने वाली चीज़ नहीं है, बल्कि खुशी मनाने वाली चीज़ है। 


महंगाई का क्या ह ैना मितरों, ये हमारी परंपरा का हिस्सा है, याद कीजिए, बचपन से ही हमें सिखाया जाता है, सस्ता रोए बार-बार, महंगा रोए एक बार। महामानव हमारे परंपरा वाले हैं, ये उनका अजैविक कर्तव्य है कि पूरा देश अपनी परंपरा और संस्कृति को भूलने ना पाए। इसलिए वो हमें बार-बार नहीं रुलाना चाहते, वे चाहते हैं कि हम एक ही बार रोएं, जब हम महंगा खरीदें। अगर देश में चीजें सस्ती होंगी तो इस पारंपरिक कहावत के अनुसार हमें बार बार रोना होगा, और ऐसा कौन होगा, जो बार-बार रोना चाहेगा। इसलिए महामानव ने महंगाई को इत्ता बढ़ा दिया है, ताकि लोग रोएं, लेकिन एक ही बार रोएं। ये जो रोने की परंपरा है, बहुत उम्दा परंपरा है, इससे होता ये है कि रोने वाले को रोने से नहीं, बल्कि रोने की शिकायत करने वालों से परेशानी होती है, और दुआ की जाती है कि ज्यादा से ज्यादा लोगों को रोने का मौका मिले। 

महंगाई के यू ंतो कई फायदे हैं, और मैं आपको गिना भी सकता हूं, पर सोचता हूं कि आप सभी समझदार लोग हैं, पिछले पंद्रह सालों में आपको समझ आ ही गया होगा कि महंगाई हो तो उसे उत्सव की तरह लेना चाहिए। महंगाई को क्या, महामानव ने हमें हर आपदा को उत्सव में बदलने के, आपदा को अवसर में बदलने का महत्व सिखाया है। याद कीजिए कोविड में जब देश में लाशों का अंबार लगा था, तो महामानव हमसे थाली बजवा रहे थे, मोबाइल की टॉर्च जलवा रहे थे, जब नोटबंदी के समय पूरा देश रोने लगा था, ए टी एम की लाइन में खड़े-खड़े ही लोग, इस नश्वर शरीर को छोड़ रहे थे, तब महामाानव ही थे, जिन्होने हमें समझाया था कि लाइन में लगने का कितना महत्व है। जब अमरीका ने टैरिफ लगाया तो महामानव ने उसे स्वेदशी में बदलने की कोशिश की, और फिर जी एस टी से बरबाद हुए लोगों को महामानव ने ही बचत उत्सव का नारा दिया था। 



महामानव ने आप पर ये अहसान किया है, वो आप को कर्मठ बना रहे हैं। इसे ज़रा इस तरह समझिए कि अगर सब कुछ सस्ता होगा, यानी उसे खरीदने में पैसे कम लगेंगे, कम पैसों की ज़रूरत हो तो लोग पैसा कम ही कमाते हैं, कम पैसे के लिए मेहनत भी कम लगती है। अब ज़रा सोचिए कि लोग कम मेहनत करेंगे तो देश में कर्मठता की कमी होगी, देश की उत्पादकता में कमी होगी, और देश ग़रीब हो जाएगा। जो देश के लिए घातक होगा। देश की भलाई इसी में है कि देश में महंगाई हो, देश में महंगाई होगी तो सामान जैसे खाना, कपड़ा, शिक्षा, स्वास्थय सब महंगा होगा, जब सब कुछ महंगा होगा तो उसे अफोर्ड करने के लिए लोगों को ज्यादा पैसा चाहिए होगा। ज्यादा पैसा बिना ज्यादा काम किए नहीं आएगा, लोग ज्यादा काम करेंगे तो देश की उत्पादकता बढ़ेगी और देश अमीर होगा। यूंह ी तो देश की अर्थव्यवस्था उछाल नहीं मार रही। अगर देश पुराने ढर्रे पर चल रहा होता जहां लोेग महंगाई के खिलाफ हों, और सरकार महंगाई के खिलाफ काम कर रही होती तो आज देश की अर्थव्यवस्था चौथे पायदान पर नहीं होती।



देश की अर्थव्यवस्था को ऐसी हालत में लाने का पूरा श्रेय इस महंगाई को दिया जाना चाहिए और ये महंगाई आपके जीवन में महामानव लाए हैं, ऐसी अभूतपूर्व महंगाई के लिए हमें महामानव को धन्यवाद देना चाहिए। महामानव को धन्यवाद दीजिए कि घर की मुर्गी को उन्होने सच में दाल बराबर कर दिया, बल्कि ये कहा जाए कि दाल की कीमत मुर्गी बराबर हो गई, ये महामानव का कमाल है। अब कोई पार्टी मांगे तो आप हंसते हुए दाल पका कर सर्व कर सकते हो, और कोई आपको नहीं टोकेगा। 



महामानव और उनकी पार्टी के लोग इस फिलासफी की बारीकी को समझ गए हैं, लेकिन अन्य लोग इसी महंगाई पर राजनीति करने को उतारु हैं, ये लोग तुम्हें महंगाई जैसे मुद्दों पर भड़काने की कोशिश करेंगे, लेकिन तुम असली मुद्दों पर डटे रहना, मंदिर बन ही गया है, भारत विश्वगुरु बनने ही वाला है, बस अब तुम इस रास्ते से मत भटकना, याद रखना, महामानव की ये महंगाई तुम्हारे भीतर के हिंदू की परीक्षा है, बच्चे भले ही भूखें रहें, अनपढ़ रहें, लेकिन एक बार भारत हिंदू राष्ट बन गया तो फिर मजे ही मजे होंगे। ये लोग, खुदा इन्हें गारत करे, इस देश में फिर से सस्ते दिन लाना चाहते हैं, एक हम हैं कि पिछले बारह सालों से अच्छे दिनों को इंतजार कर रहे हैं, अब जब अगले कुछ बारह-पंद्रह सालों में अच्छे दिन आने ही वाले हैं, ये लोग हमें फिर से उन्हीं दिनों में ले जाने की बातें कर रहे हैं, जब पैटरोल पचास-साठ रुपये का था और डॉलर भी इसी दाम मिल जाता था, कहां आज हम बड़े गर्व से दो-ढाई सौ रुपये किलो दाल खा रहे हैं, और कहां ये लोग हमें फिर से साठ-सत्तर वाली सस्ती दाल खिलाने पर आमादा हैं, कहां हम रसोई गैस के बारह-पंद्रह सौ रुपये दे रहे हैं, और ये लोग हमें चार-पांच सौ रुपये में रसोई गैस का लालच दे रहे हैं। 




याद रखना दोस्तों, अच्छे भविष्य के लिए हमें अपनी और अपने बच्चों के भविष्य की बलि देनी ही होगी, हमारे बच्चें ना पढें ना सही, उन्हें रोजगार ना मिले ना सही, लेकिन अखंड भारत, सनातन और धर्म की रक्षा के लिए ऐसा करना हमारा कर्तव्य है। तुम्हारी महंगाई से ही तो इस देश के वीर सपूत, अडानी और अंबानी दुनिया के सबसे अमीर लोगों की श्रेणी में आए हैं, अरे क्या तुम्हें गर्व नहीं होता कि चाहे देश में करोड़ो लोगों को खाने के लाले पड़े हों, लेकिन देश के कुछ लोग दुनिया के सबसे अमीर लोगों की सूचि में आते हैं। ये गर्व ही असली चीज़ है, राशन का क्या है, कल था, आज नहीं है, हो सकता है आगे भी ना हो, इसकी कोई गारंटी नही ंकर सकता। लेकिन असली चीज़ है देश का गौरव, तुम्हारे बच्चों की लाशों पर जो आलीशान महल बने हैं, वो पूरी दुनिया में देश का गौरव बढ़ाते हैं, सच कहना अपने बच्चों की मौत पर रोते हुए, क्या तुम्हें पूरी दुनिया में महामानव के नाम का डंका बजते हुए सुनने से गर्व नहीं होता, तुम्हारी छाती नहीं फूलती। बच्चों की दवा ना हो तो क्या, किसानों को खाद ना हो तो क्या, महामानव के नाम का डंका तो बदस्तूर बज रहा है दुनिया में। यही एक संतोष लेकर जीना हमें पिछले बारह सालों में महामानव ने सिखाया है, और मुझे पूरा यकीन है कि आगे भी वो अपने इसी कार्य में लगातार लगे रहेंगे। 


मैं सिर्फ ये कहना चाहता हूं दोस्तों की ये गाड़ी जो महंगाई की सड़क पर इतनी तेज़ रफ्तार से दौड़ रही है इसे किसी भी लालच में धीमा नहीं करना है, ये महंगाई हमें भले ही बरबाद कर दे, लेकिन हमें महामानव के जुमलों पर ही जीवन चलाते रहना है। महंगाई को बुरा मत समझिए, बुरा मत कहिए, बल्कि और लोगों से सवाल कीजिए कि, महंगा है तो क्या हुआ, पूरी दुनिया में डंका तो बज रहा है, अब हम अमरीका को ये तो कहते हैं कि तू क्या है बे, चीन को लाल आंखों से डराते तो हैं, अब्दुल को टाइट कर दिया, दलितों को लगातार सबक सिखा तो रहे हैं, औरतों के साथ वो सब भी तो कर रहे हैं, जो हम करना चाहते हैं। महंगाई है तो क्या, हम अपने देश को महामानव के सपनों का देश बना रहे हैं, और हम चाहे कितना भी मुश्किल झेलें, हम महामानव के दिखाए रास्ते से नहीं हटेंगे, महामानव का डंका बजता रहेगा। 


कहते हैं अपने दौर में चचा महंगाई से परेशान नहीं थे, लेकिन जैसा कि चचा के बारे में कहा जाता है, अपने दौर से आगे के शेर लिखे हैं उन्होने, उनके शेर उनके ज़माने के लोग तो समझ नहीं पाए, भविष्य को देख कर लिख रहे थे वो, इसीलिए महंगाई पर लिखे उनके इस शेर की उस जमाने के लोगों को कोई कदर ना हुई, आप देखिए, आपको पक्का इस शेर से कुछ सीख मिलेगी, तो मुलाहिजा फरमाइए।

महंगी है जिंदगी, इसे रोकर गुज़ार दे
खुद को तू बेवकूफ, महामानव पे वार दे
ग़र भूख प्यास से कभी हो जाए परेशान
जय बोल धर्म की, और कपड़े उतार दे

तो महंगाई के इस बेहद शानदार समय में आपकी दिवाली ठीक से गुज़रे, आप महंगा सोना भले ना खरीद पाएं, मिठाई भी महंगी ही है, तो बताशों से ही काम चलाइए, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने आज्ञा दे ही दी है, पटाखे ज़रूर जलाइए। बाकी महंगाई का जश्न मनाइए, और इस महंगाई के लिए महामानव को बधाई देना ना भूलें। 

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