दोस्तों आज मैं आपके सामने एक बहुत बड़ा सवाल लेकर आया हूं। ये सवाल, या आप इसे जो भी कहें, इत्ता बड़ा है कि इसके आगे सभी सवाल फीके और बेजान मालूम होते हैं। सवाल ये है कि इस देश में गांधी बड़े या महामानव। सबसे पहले तो इसी बात पर गौर कीजिए कि इत्ती बड़ी मतलब, बहुत बड़ी, मतलब बहुत से भी ज्यादा बड़ी शख्सियत महामानव की, गांधी उनके आगे क्या हैं? महामानव वर्ल्ड लीडर हैं इत्ते बड़े कि जहां अन्य देशों के राष्टपति, प्रधानमंत्री इत्यादी जमा होते हैं, वहां अकेले एकमात्र वर्ल्ड लीडर महामानव सबसे बीच में खड़े होते हैं, और सबकी फोटो खिंचती है, महामानव की फोटो उतारी जाती है, जैसे आरती उतारी जाती हो। वो इत्ते बड़े हैं वो हंसते हैं तो और लोगों को समझ में आता है कि यहां, यानी इस मौके पर हंसना है, और उनके बाद सब लोग हंसते हैं। यानी वो बहुत बड़े वर्ल्ड लीडर हैं। चाहते तो गज़ा पर इस्राइल का हमला यूं रुकवा देते, चुटकी बजा कर, लेकिन सबर किया, इंतजार किया, कि कोई छोटा मोटा लीडर इसका हल निकाले। और वजह सिर्फ एक, इतने हम्बल हैं कि अपने मुहं से अपनी तारीफ के लिए एक शब्द नहीं निकलता। अब इत्ते बड़े, माने विशाल व्यक्तित्व के मालिक, महामानव खुद महात्मा गांधी की बहुत चिंता करते हैं।
लेकिन गांधी को कभी आपने महामानव की चिंता करते हुए नहीं देखा होगा। वो तो संयोग की बात है कि महामानव से पहले ही रिचर्ड एटनबरो गांधी पर फिल्म बना लिए थे, वरना ये जिम्मेदारी भी बिचारे महामानव की हो जाती कि वो दुनिया को गांधी के बारे में बताएं। मैं आपको सच बताउं तो गांधी कभी उतने मशहूर नहीं थे, जितना हमें बताया जाता है,
ये वाली मोहतरमा जो कह रही हैं ना, वही दरअसल सच है। अगर आप अपनी आंखें खोल कर देखेंगे, सच्ची में देखेंगे तो आप को पता चलेगा गांधी सच में उत्ते मशहूर नहीं थे, जित्ता बताया जाता है, और महामानव वाली शोहरत तक तो कभी पहुंच ही ना पाए। उन्हें जानता ही कौन था, सिर्फ देश के कुछ लोग, कुछ लोग विदेशों में उन्हें जानते थे, जिन तक उनकी पब्लिकसिटी पहुंचती थी, वरना कौन जानता था, गांधी को। जबरदस्ती लोगों से गांधी का आदर करवाया जाता था, यानी कोई मन से उनका आदर नहीं करता था, जो उनका आदर नहीं करता था, उसके पीेछे ई डी और सी बी आई लगा दी जाती थी। किसी को उनकी आलोचना नहीं करने दिया जाता था। दूसरी तरफ हमारे महामानव हैं, जिन्होने शोहरत की सारी हदें पार कर दी हैं, और अपनी शोहरत के लिए उन्हें कोई वीडियो नहीं बनानी पड़ती, कहीं अपनी फोटो नहीं लगानी पड़ती, किसी अखबार, रेडियो प्रोग्राम या टी वी इंटरव्यू के ज़रिए नहीं बताना पड़ता कि वो महान हैं, बिना कुछ पब्लिकसिटी किए ही दुनिया की कुल 800 करोड़ से कुछ ज्यादा की आबादी के कम से कम अस्सी प्रतिशत लोगों में उनकी शोहरत है।
जिस महामानव को 600 करोड़ लोगों ने वोट दिया हो, बताइए वो इतना हम्बल है कि अब भी, आज भी गांधी जी को विनम्र श्रद्धांजली अर्पित करते हैं, अब मुझे ये बताइए दोस्तों कि क्या आपने कभी देखा कि गांधी ने कभी महामानव को आदर दिया हो, आदर देना तो दूर की बात है, महामानव के बारे में कभी दो अच्छी बातें नहीं बोली गई गांधी से। ये एटिट्यूड दिखाता है जो व्यक्ति जितना बड़ा होता है, वो उतना ही विनम्र होता है, महामानव हैं, गांधी नहीं थे।
दरअसल गांधी के बारे में जो सब अच्छी बातें हैं, वो सब सिर्फ उपर का आवरण था, उनकी पब्लिकसिटी की गई थी, ये पब्लिकसिटी का कमाल था कि उन्हें लोग इतना मानते थे।
इत्ती पब्लिकसिटी के बावजूद गांधी के बारे मे बहुत कम लोग आज तक जान पाए, और दूसरी तरफ हमारे महामानव, आप सच में सोच के देखिए, महामानव ने कभी अपनी शोहरत के लिए अपनी पब्लिकसिटी का सहारा नहीं लिया। महामानव की महानता की रौशनी इतनी चकाचौंध करने वाली है कि लोग खुद-ब-खुद उनके उपर निछावर हो जाते हैं। बचपन से लेकर आज तक, महामानव ने कभी कहीं, अपना ढिंढोरा नहीं पीटा, कभी कोई अच्छा काम किया भी तो उसका क्रेडिट नहीं लिया, बल्कि हर बार, बार -बार, लगातार कहते रहे कि उन्हें क्रेडिट नहीं चाहिए।
हालांकि अगर आप गौर से देखें, यानी अगर आप सच मंे देखे तो महामानव की उपलब्धियों के आगे गांधी की उपलब्धियां छोटी नज़र आती हैं। गांधी क्या थे, क्या थे गांधी, गांधी ने अपने पूरे जीवन में इतने कपड़े नहीं पहने होंगे, जितने महामानव एक हफ्ते में डिस्कार्ड कर देते हैं। देश के लिए महामानव ने अपना घर छोड़ा, अपनी पत्नि को भी छोड़ दिया। क्या गांधी ने ऐसा किया? नहीं किया, उनकी पत्नि कस्तूरबा लगातार पूरे जीवन उनके साथ रही। लेकिन महामानव, उन्होने सत्रह साल की उमर में घर छोड़ा, शायद उनके जीवन का यही कालखंड था, जिसमें उन्होने अपनी पत्नि को भी छोड़ दिया था। बताइए, किसका त्याग ज्यादा बड़ा है। महामानव खुद हाथ पकड़ कर राम को उनके मंदिर तक लेकर गए, गांधी तो कुछ छोटी -छोटी जनसभाओं में बस वो एक भजन जैसा गाते रह गए। इस बारे में कोई कुछ क्यों नहीं बोलता।
आखिर गांधी ने किया ही क्या था, देश को आज़ाद ही तो करवाया था। लेकिन रुकिए, ये भी पूरा सच नहीं है दोस्तों, पूरा सच वो है जो इस बार हमारे प्रधानमंत्री ने लालकिले की प्राचीर से दुनिया को बताया है।
असल में इस देश को आज़ादी आर एस एस ने दिलवाई थी, और जब आजादी मिल गई, तो वो अपनी हम्बलनेस के चलते अलग खड़े हो गए, और गांधी को इसका क्रेडिट दे दिया। सेवा की जो प्रवृति हमारे महामानव में आपको देखने को मिलती है, वो इसी आर एस एस की देन है। ये गुण, यानी सेवा, समर्पण, संगठन, और अप्रतिम अनुशासन, आपको महामानव में भी देखने को मिलेंगे, लेकिन क्या गांधी में आपको ये सेवा, ये समर्पण, ये अप्रतिम अनुशासन देखने को मिलता है? ये महामानव का ही जहूरा है कि आज भी दुनिया में गांधी का कोई नामलेवा है, वरना गांधी को कौन पूछता है। सब बस महामानव का ही गुणगान करते हैं।
दोस्तों आज मैं आपको राज़ की बात बताता हूं, अभी जो नोबेल पीस प्राइज़ मिला है, माजाडो नाम की एक महिला हैं, उन्हें मिला है, लोग कह रहे हैं कि वो गांधीवादी हैं। लेकिन अगर आप उनके काम देखेंगे, और उनकी विचारधारा पर गौर करेंगे तो वो गांधी से नहीं, हमारे महामानव से प्रभावित लगती हैं। नोबेल मिलते ही उन्होेने इसे महामानव के डीयर फें्रड डोलांड को समर्पित कर दिया। मुझे पूरा यकीन है कि अगर ये नोबेल महामानव को मिला होता, तो वो भी इसे अपने डीयर फ्रेंड डोलांड को ही समर्पित करते। और यहां गौर करने वाली बात एक और भी है, महामानव को पूरी दुनिया के लोग बुला-बुला कर अपने देश में सम्मानित कर रहे हैं, उन्हें अवार्डस् दे रहे हैं, क्या गांधी को कभी भी, कहीं भी, किसी भी देश ने कोई अवार्ड दिया है?
अभी हमारे यहां इतिहास को ठीक करने की जो मुहिम महामानव के नेतृत्व में चल रही है, उसमें हमें इस इतिहास को भी ठीक करना चाहिए, और आजादी की लड़ाई में संघ के योगदान पर पूरा एक चैप्टर होना चाहिए। हां गांधी को भी जगह मिलनी चाहिए, कहीं एक आधी लाइन लिखी जा सकती है कि कोई गांधी भी एक नेता थे, जिन्होने अपनी तरफ से कोशिश की थी। वो भी इसलिए कि गांधी थे, वरना यूं हम हर छोटे-मोटे नेता का जिक्र करने लगे तो आजादी का इतिहास बहुत लंबा हो जाएगा ना। इसकी जगह हमें बाल नरेंन्द्र के कुछ चैप्टर्स को बच्चों को पढ़ाना चाहिए, ताकि आने वाली पीढ़ियों को ये पता चल सके कि आज के दौर में भी इस देश में अवतारों ने जन्म लिया है।
गांधी ने अपने पूरे जीवन में कहीं नहीं कहा कि वो नॉन बायोलॉजिकल हैं, गांधी ने एक किताब लिखी थी, सत्य के मेरे प्रयोग, जिसे गांधी की आत्मकथा कहा जाता है, पूरी पढ़ लीजिए, कहीं आपको गांधी ये कहते नहीं मिलेंगे कि वो अवतार हैं, लेकिन महामानव ने कहा है, और खुलेआम कहा है, एक से ज्यादा बार कहा है। क्या आपको इससे भी ज्यादा सबूत चाहिएं ये समझने के लिए कि महामानव का कद गांधी से ज्यादा बड़ा है। मेरा तो ये मानना है कि ये कांग्रेस और इसके लीडरों को महामानव से और इस देश की जनता से माफी मांगनी चाहिए कि गांधी ने कभी महामानव की तारीफ नहीं की, उन्हें आदर नहीं दिया, उनसे प्रेरणा नहीं ली।
पर मुझे पता है कि ये तथाकथित प्रगतिशील, ये वामी और कांगी, कभी इस सच्चाई पर विश्वास नहीं करेंगे, लेकिन आप तो जनता हैं, आप तो सच्चाई जानते हैं कि महामानव बड़े, बहुत बड़े हैं, और गांधी उनके सामने.....छोड़िए जाने दीजिए।
चचा जो थे अपने, ग़ालिब, गांधी पे कुछ ना लिख गए, समय का बहुत बड़ा अंतराल रहा, लेकिन महामानव तो अजैविक जीव हैं, इसलिए महामानव की महानता पर एक शेर लिख गए हैं। वही आपको सुना रहा हूं
अब तो दुनिया भी पहचान गई है उसको
कहो तो नाम उसका हम बताएं किसको
तुम्ही कहते हो कि तुम हो, महामानव
अब बताएं हम ये बात किसको किसको
तड़प रहे थे, चचा ये बताने के लिए कि महामानव स्वयंसिद्ध हैं, स्वयंभू हैं, स्वयंप्रसिद्ध हैं। पर ये बात पक्की है कि गांधी से महामानव की तुलना करना, सूरज का दिया दिखाने जैसा है, हम तो कहेंगे कि अब महामानव को इतनी शोहरत मिल चुकी है कि अपना एक नया धर्म भी वो शुरु कर ही सकते हैं। पर ये बात करेंगे अगली बार, इस बार चलते हैं। नमस्कार
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