गुरुवार, 29 अक्टूबर 2015

भय और नफ़रत के खिलाफ संगवारी


भय और नफ़रत के खिलाफ संगवारी

कल यानी 28 तारीख को डूटा ने दिनेश सिंह के वीसी पद से हटने यानी जाने के मौके पर एक कार्यक्रम का आयोजन किया। इस आयोजन का नाम ”गुड रिडन्स् डे” रखा गया। इस आयोजन में संगवारी को क्रांतिकारी गीत पेश करने के लिए आमंत्रित किया गया। संगवारी का हर उस संस्था से जो लोकतांत्रिक हितों और जन अधिकारों के संघर्ष में शामिल है, बहुत ही इंकलाबी रिश्ता कायम है। हम डूटा के कई कार्यक्रमों में पहले भी गए हैं, और डूटा के लोग हमारे कार्यक्रमों को बहुत पसंद करते हैं, इसलिए समय-समय पर हमें बुलाते भी रहते हैं। इसी तरह दिल्ली के अन्य संगठन भी संघर्ष के मौकों पर, संगवारी को अपने कार्यक्रमों में आमंतत्रत करते हैं। दिल्ली में जन संस्कृति से जुड़े ज्यादातर लोग जानते हैं कि संगवारी एक निश्चित राजनीतिक विचारधारा से जुड़ा हुआ सांस्कृतिक समूह है, हम हर हालत में जहालत का, फिरकापरस्ती का, पूंजीवाद का, विरोध करते हैं। हम जनता के अधिकारों के पैरोकार हैं, जनता की ताकत पर भरोसा करते हैं, और जनता के लिए, जनता के साथ, जनता से ही सीखे हुए गीत गाते हैं, नाटक करते हैं। संगवारी गैर सरकारी, स्वयंसेवी संस्थाओं के लिए काम नहीं करता, कार्यक्रम नहीं देता और ना ही किसी कोरपोरेट, कंपनी, सरकार आदि से पैसा लेता है। इसीलिए संगवारी भव्य कार्यक्रम नहीं करता, और अपने संघर्ष के साथियों के सहयोगअपने कार्यक्रमों का आयोजन व अन्य काम करता है। हमारे साथी, जैसे डूटा के सदस्य ये भी जानते हैं, कि संगवारी किस किस्म के गीत गाता है और कार्यक्रम करता है। तो जब संगवारी को डूटा की तरफ से कार्यक्रम में शिरकत का निमंत्रण मिला तो सगवारी ने उत्साह के साथ अपनी मंजूरी दी और नियत समय पर, निश्चित जगह यानी आटर््स फैकल्टी के गेट पर पहुंच गया। 

कार्यक्रम की शुरुआत में नंदिता नारायण जी ने कार्यक्रम का परिचय दिया और संगवारी को अपने गीत पेश करते हुए कार्यक्रम की शुरुआत करने को कहा। संगवारी ने अपने तौर पर कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए, वी सी के जाने को सभी के लिए अच्छा बताते हुए हबीब जालिब की गज़ल ”मै नहीं मानता, मै नहीं जानता” पेश की। इसके बाद देश में नफरत और भय के, असहिष्णुता के और असहमति के दमन के खिलाफ, अपनी बात रखते हुए केरल हाउस पर बीफ ढूंढने के लिए पुलिस की रेड के बारे में बात रखते हुए कहा कि, ”मोदी अब पुलिस वालों को मेटल डिटेक्टर की जगह बीफ डिटेक्टर देने वाले हैं, इसलिए अपने-अपने टिफिन बचा कर रखें।” इसके बाद हमने गाना गाया, ”ये क्यों हो रहा है, जो ना होना था, हमारे दौर में....”

इस गाने के खत्म होते ही नंदिता जी जो पास ही बैठी थीं, फौरन उठीं और हमसे कहा कि आप एजेंडा पर ही रहें, इससे अलग ना हों। हमें लगा कि वे शायद ये कह रही हैं कि अब हम दो गीतों के बाद वक्ताओं को समय दें। क्योंकि ये तो हम सोच ही नहीं सकते थे कि हमें इन गीतों को गाने से मना किया जाएगा। खैर हम पूरी टीम अपनी जगह आकर बैठने लगे। तभी एक महिला और दो पुरुष मेरे करीब आकर चिल्लाने लगे कि, ”तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई ये सब बोलने की.....” मेरा जवाब था, ”कि मैने कुछ गलत तो नहीं कहा, जो भी कहा सच कहा” उनका कहना था कि, ैसच हो कि नहीं, ये हम नहीं बोलने देंगे।” और मैं लगातार यही कहता रहा कि जो सच है वो तो मैं कहूंगा और उसे कहने से मुझे कोई नहीं रोक सकता। दूसरे मैने कहा कि मैं एक सांस्कृतिक टीम लेकर आया हूं, इसलिए हम तो वही गाने गाएंगे जो हम गाते हैं, वही बात करेंगे जो हम करते हैं। 

इस बहस को अभी थोड़ी ही देर हुई थी कि आभा जी भी वहां आ गई, उन्होने मुझे कहा कि अगर यहां ये मुद्दा बन गया, तो वो असल मुद्दे जिनके लिए इस कार्यक्रम को आयोजन किया गया है, वो रह जाएंगे और इन लोगों का मकसद भी यही है। उनकी बात समझते हुए, और दूसरे उन्होने ही संगवारी को आमंत्रित किया था। मैने अंतिम तौर पर अपनी बात रखी कि मैंने जो कहा वो सच था, और सच मैं कहूंगा ही, लेकिन अब मैं आपसे ”जो लड़ने पर आमादा थे” कोई बात नहीं करूंगा क्योंकि बात तो आप करना चाहते ही नहीं हैं। 

तभी वहां नंदिता जी भी आ गईं, और उन्होनेे भी यही कहा कि डूटा के इस आयोजन में भाजपा के लोग भी हैं, इसलिए हम नाम नहीं ले सकते थे। लड़ाई को आमादा चिल्लाने वाले एक आदमी से उन्होने ये भी कहा कि इसीलिए हमें रोक दिया गया है, इसलिए इस तरह तमाशा ना करें, आयोजन को मुद्दे पर रहने दें। लेकिन नंदिता जी की इस बात को उस आदमी पर कोई असर नहीं पड़ा, और वो एक चबूतरे पर चढ़ कर मेरे खिलाफ धमकियां जारी करता रहा। मैने अपनी टीम की ओर देखा, और उन्हे शांति से बैठकर आयोजन में शामिल रहने को कहा। मेरी टीम बैठ गई थी। इधर पीछे की तरफ वो आदमी रह-रह कर मेरे लिए धमकियां जारी कर रहा था। मैं शांति से बैठा हुआ था, और मेरी टीम मुझे देख रही थी। मैं वहां जिन लोगों के आमंत्रण पर गया था, उन्होने मुझसे इस विवाद को खत्म करने की गुजारिश की थी, इसलिए मैने इसके बाद बात तक नहीं की, और चुपचाप धमकियां और गालियां सुनता रहा। 

नंदिता जी ने माइक से कहा कि, "ये हाल है आपका कि आप असहमति के दो लफ्ज़ नहीं सुन सकते। और हम यहां ये आयोजन ही इस अधिकार के लिए कर रहे हैं कि हमें कम से कम बोलने की आज़ादी तो दी जाए।" 

खैर वो आदमी लगातार कुछ ना कुछ बकता रहा। और हम कुछ देर बाद वहां से चले आए। कार्यक्रम में हम शिरकत कर ही चुके थे, और वहां बैठने का कोई और मकसद नहीं था। 

इस पूरे प्रकरण से जो दो चीजें साफ होती हैं। पहली तो ये कि असहिष्णुता और डर का जो माहौल बनाया जा रहा है, वो इस कदर है कि शिक्षण संस्थानों तक में किसी को कुछ भी बोलने की आज़ादी नहीं है। ये असहमति के गला घोंटने की राजनीति है जो आपको खड़े तक होने का, मुंह तक खोलने का मौका नहीं देना चाहती। दिल्ली विश्वविद्यालय के मुख्य द्वार पर इस तरह के लंपट और बदमाश, लोग चिल्ला-चिल्ला कर धमकियां जारी कर रहे हैं, और पुलिस वहां खड़ी हुई देख रही है। सब मुंह बाए देख रहे हैं। उस बदमाश को, गुंडे को चुप कराने की कोशिश कर रहे हैं। 

हालांकि नंदिता जी ने उसे चुप रहने को कहा, लेकिन मेरा कहना है कि ऐसे कार्यक्रम में जहां आप एक तानाशाह वीसी के जाने की खुशी जताते हुए अपने अधिकारों की लड़ाई को तेज़ करने बात कर रहे हैं, क्या देश के तानाशाह, देश में फासीवाद, देश में भय और नफरत के माहौल के खिलाफ बोलने वाले को सिर्फ इसलिए मना कर देंगे कि कहीं उसी फासीवादी पार्टी के लोग कार्यक्रम छोड़ कर ना चले जाएं। 

दूसरे ये कि इस देश का माहौल इस कदर हो गया है, कि अब आपको मुहं खोलने के लिए भी जान जोखिम में डालना होगी। इस कदर वहशत है, इस कदर डर है, कि कोई कहीं गाना गाएगा, नाटक करेगा, लिखेगा, बोलेगा तो उसे मारने की धमकी दी जाएगी और मार डाला जाएगा। इसलिए अगर इंसान की तरह जीने की शर्त ये है कि संघर्ष किया जाए, या मर जाया जाए, तो हम जीने के लिए, संघर्ष के लिए  तैयार हैं।  

वापस आते हुए, मैने अपनी टीम से पूछा कि आज की इस घटना से उन्होने क्या सीखा। टीम की एक सदस्य ने कहा, ”वो लोग कितना डरे हुए हैं, कि आपके सच बताने तक पर ऐसे भड़क रहे हैं। ये उनके डर को दिखाता है, ये बताता है कि वो लोग जनता से इतना डरे हुए हैं कि वो बात करने से कांप जाते हैं।” संगवारी हर संघर्ष में जनता के साथ है, जनता के साथ रहेगा, और हर तरह के फासीवादी खतरे, फिरकापरस्ती, शोषण और अत्याचार के खिलाफ लगातार काम करता रहेगा। गीत गाता रहेगा, नाटक करता रहेगा। 
इंकलाब जिंदाबाद

3 टिप्‍पणियां:

  1. इस घटना से एक चीज़ ओर सीखी कि जैसे वो शख्स लगातार धमकियाँ दे रहा था,तब धेर्य से काम लेने में ही समझदारी है।क्योंकि एक बात तो तय है की जब जब शोषण के खिलाफ आवाज़ उठेगी उसे दबाने की कोशिश की जायेगी।पर संगवारी अपनी आवाज़ उठाता रहेगा और ऐसे लोगो के खिलाफ अपनी मौजूदगी दर्ज़ कराता रहेगा।

    जवाब देंहटाएं
  2. इस घटना से एक चीज़ ओर सीखी कि जैसे वो शख्स लगातार धमकियाँ दे रहा था,तब धेर्य से काम लेने में ही समझदारी है।क्योंकि एक बात तो तय है की जब जब शोषण के खिलाफ आवाज़ उठेगी उसे दबाने की कोशिश की जायेगी।पर संगवारी अपनी आवाज़ उठाता रहेगा और ऐसे लोगो के खिलाफ अपनी मौजूदगी दर्ज़ कराता रहेगा।

    जवाब देंहटाएं
  3. Sangwari humesha awaaz utha ta rahega shoshan ke khilaaf.... Inqalaab zindabad

    जवाब देंहटाएं

महामानव-डोलांड और पुतिन का तेल

 तो भाई दुनिया में बहुत कुछ हो रहा है, लेकिन इन जलकुकड़े, प्रगतिशीलों को महामानव के सिवा और कुछ नहीं दिखाई देता। मुझे तो लगता है कि इसी प्रे...