शनिवार, 26 जुलाई 2025

बिहार में खेला होबे......




नमस्कार मैं कपिल, एक बार फिर आपके साथ, यानी आपके सामने। इलेक्शन कमीशन उर्फ बीजेपी ने कमाल कर दिया भाई, वाह, वाह भइ वाह। अगर इलेक्शन कमीशन कोई व्यक्ति होता तो सच कह रहा हूं इस वक्त मैं उसके हाथ चूम लेता। क्या बढ़िया दाव खेला है भई वाह। 





सारी की सारी विपक्षी पार्टियां चित्त, चारों खाने चित्त। भई बड़ी चिंता हो रही थी बिहार इलैक्शन की, हालत इतने खराब थे कि पहलगाम आतकंवादी हमले के फौरन बाद जब महामानव वापस भारत आए, तो पहलगाम नहीं गए, सीधे पहुंचे बिहार और इलैक्शन रैली का आगाज़ कर दिया। देश, आतंकवादी हमला, दुनिया भर में बेइज्जती, टरम्प की रगड़ाई, सारी बातें एक तरफ, बिहार का इलैक्शन एक तरफ। ये जादूगर की जादूगरी है जनाब, इससे ज्यादा और क्या कहा जाए। 


एक ही शॉट मारा, ऐसा मारा कि चहुं ओर मच गया हाहाकार, वामपंथी, प्रगतिशील, और ये समाजवादी-फमाजवादी सब के सब धराशायी हो गए। किसी को कुछ समझ ही नहीं आ रहा कि बोलें तो बोलें क्या, करें तो करें क्या।


दोस्तों आप सब जानते हैं कि अगले कुछ ही महीनों में बिहार चुनाव होने वाले हैं, चुनाव अयोग ने इन चुनावों के कुछ तीन ही महीनों में इलैक्टोरल रोल के रिवीज़न का खेला चालू कर दिया है, अब ये इतना जबरदस्त कदम है कि महामानव निश्चिंत होकर अपने अब तक के सबसे लंबे विदेशी दौरे पर निकल लिए हैं। 


भई अब उन्हें ज़रूरत भी क्या है देश में रहने की, जब उनका सारा काम चुनाव आयोग को ही कर देना है तो बिहार आखिर जाता कहां है। ये चुनाव तो आप समझ लीजिए कि अब बस अपने ही हाथ में है, कोई कितना भी जोर लगा ले। और मुझे तो लगता है कि इसका आइडिया भी राहुल गांधी ने ही दिया है। अब आप पूछेंगे कैसे? तो भैये आपको याद होगा कि महाराष्टर में अपनी हार के बाद राहुल गांधी ने सीधे-सीधे चुनाव आयोग पर गंभीर आरोप लगा दिए थे, और वो भी सबूतों के साथ। बताइए, चुनाव आयोग जैसी पवित्र संस्था पर आरोप और वो भी तथ्यों के साथ, ऐसा पहले कभी ना हुआ होगा। चुनाव अयोग से जवाब देते नहीं बन पड़ रहा था, महामानव की पूरी टीम चुनाव आयोग की तरफ से राहुल गांधी को घेरने में लगी हुई थी, लेकिन विवाद है कि थमने का नाम ही नहीं ले रहा।


बल्कि चुनाव आयोग घिरता नज़र आ रहा था। अब इसके बाद बिहार में दोबारा महाराष्टर और हरियाणा जैसा काम नहीं किया जा सकता था, तो फिर क्या करें। जी हां, इसीलिए बिहार में ये नया खेला चालू किया गया। अब बोल, क्या कर लोगे। एक महीने में सवा लाख स्वयंसेवक बिहार के इलैक्टोरल रोल को पूरी तरह ठीक कर देंगे। क्या समझे। दिन हैं तीस, स्वयंसेवक हैं सवा लाख, बाकी सरकारी कर्मचारी आदि तो हैं ही, अब मांगे राहुल गांधी जवाब, सब कुछ होगा, तुम्हारी नज़रों के सामने होगा, और हम भी देखें कि तुम क्या कर लेते हो। 






चुनाव आयोग उर्फ भाजपा ने दावा किया है कि वो 25 जून से 25 जुलाई के बीच, यानी सिफ तीस दिनों में पूरे बिहार की 13 करोड़ जनता का एस आई आर करवा देंगे। इसी तीस दिन की अवधि में प्रशिक्षण भी दिया जाएगा, तीन बार घर-घर पहुंचा भी जाएगा और फिर सबको इस बारे में बता भी दिया जाएगा। ऐसे असंभव कामों को कैसे अंजाम देना है ये चुनाव आयोग उर्फ भाजपा अच्छी तरह जानते हैं। 



जैसे महाराष्टर में राहुल गांधी ने एक तथ्य पेश किया कि चुनाव के दिन, चुनाव का समय खत्म होन के बाद 600 मतदाताओं ने वोट किया, अब सवाल ये है कि अगर एक मतदाता को वोट करने में 1 मिनट का भी समय लगता है तो 600 मतदाताओं को कुल 10 घंटे लगते हैं। लेकिन चुनाव आयोग के अनुसार ये जादू से संभव है, जो जादू की छड़ी चुनाव आयोग के पास है, उससे वो तीस दिनों में धरती की परिक्रमा करके, सात समंदर पार करके, नीली आंखो वाली राजकुमारी के महल की सातवीं मंजिल पर बने बाग से सुनहरा फूल लेकर आ सकता है, चुनाव आयोग के पास जो जादुई चीजें हैं, उनमें उड़ने वाला घोड़ा, भूत की चोटी और अलादिन वाला चिराग भी शामिल है। ऐसे में योगेन्द्र यादव समेत तमाम लोग, जिनका काम ही भाजपा उर्फ चुनाव आयोग पर बेवजह शक करना, और महामानव के एकछतरी राज की राह में रोड़ा अटकाना है, शक कर रहे हैं, सवाल कर रहे हैं, और लगातार जनता के दिमाग में सवाल पैदा कर रहे हैं उन्हें सावधान रहना चाहिए। दोस्तों सवाल पूछने से लोकतंत्र नहीं बचता बल्कि लोकतंत्र वही सबसे अच्छा होता है जिसमंे किसी को सवाल ना पूछने दिया जाए। 





दरअसल अब लोकतंत्र का सवाल आ गया है तो पहले इसका ही जवाब ले लिया जाए। मेरा मानना है कि ये चुनाव, वोट आदि लोकतंत्र नहीं हैं। चुनाव आयोग ही लोकतंत्र है। चुनाव आयोग ये जो कर रहा है, उससे लोकतंत्र का ही भला होगा। बड़े - बड़े विद्वान कहते हैं कि जनता की भागीदारी ही लोकतंत्र का आधार है। ग़लत कहते हैं विद्वान, जनता की भागीदारी लोकतंत्र नहीं है। चुनाव आयोग की घोषणा लोकतंत्र है। ये जो आपने बचपन में परिभाषा पढ़ी है लोकतंत्र की, कि जनता का, जनता के लिए, जनता द्वारा शासन लोकतंत्र है, बिल्कुल ग़लत परिभाषा है। दरअसल ये लोकतंत्र की नहीं, बल्कि डेमोक्रेसी की परिभाषा है, जो पश्चिम के संस्कार हैं, वहां डेमोक्रेसी की ये वाली परिभाषा चलती है। यहां भारत में लोकतंत्र की सही परिभाषा ये है कि चुनाव आयोग की, चुनाव अयोग के लिए, चुनाव आयोग द्वारा की गई घोषणा या कार्य ही लोकतंत्र है। इसमें जनता का, न्यायपूर्ण प्रक्रिया, निष्पक्षता, पारदर्शिता आदि की कोई जगह ही नहीं है, क्योंकि इनकी जरूरत नहीं है। बताइए, भारतीय जनता पार्टी कह रही है कि चुनाव आयोग सही कर रहा है, चुनाव आयोग कह रहा है कि वो सही कह और कर रहा है, तब बाकी सारे विपक्षी दल इस बात पर क्यों अड़े हुए हैं कि चुनाव में जनता की भागीदारी सुनिश्चित की जाए। मेरी तो भाजपा उर्फ चुनाव आयोग से ये अपील है कि पहले तो इन सब सवाल करने वालों को, अर्बन नक्सलों को, तथाकथित प्रगतिशीलों को, वामपंथियों को जेल भेज दिया जाए, उसके बाद बिहार में चुनाव की घोषणा की जाए। फिर एक दिन अचानक घोषणा की जाए कि चुनाव आयोग को बिहार की जनता के मन की बात पता चल गई है और चुनाव आयोग ही ये फैसला कर दे कि चुनाव में जीता कौन। आखिर करना तो आपको यही है।


इन वामपंथियों की जितनी बातें आप सुनेंगे, आपकी चिंता उतनी ही बढ़ती जाएगी।






सीधी से बात है भई जो इन वामपंथियों की समझ नहीं आ रही। अच्छा बताइए तो, जनता का काम क्या होता है। मने किसी देश में जनता का रोल यानी भूमिका क्या होती है। 

1.  मजदूरी करना, खेती करना, और भी जितनी मेहनत होती है वो करना

2. जयकारे लगाना, महामानव के नाम के नारे लगाना,

3. कांवड लाना और 

4. वोट डालना

अब इसमें सबसे महत्वूर्ण काम है वोट डालना, जिसकी सारी जिम्मेदारी चुनाव आयोग की है। तो अब चुनाव आयोग ने डिसाइड किया है कि ये तय भी वही करेगा कि कौन इस देश का नागरिक है, और कौन नहीं। सीधी सिम्पल सी बात है जो आपको समझ नहीं आ रही। देखिए भाजपा उर्फ चुनाव आयोग ने सीधा-सीधी ये किया है कि जब उन्हें ये शंका होगी कि जनता उन्हें नहीं चुनने वाली, तो वो खुद ही ये तय कर लेंगे कि किस जनता को चुनाव का अधिकार देना है और किसको नहीं। यानी अब चुनाव आयोग उर्फ भाजपा अपनी जनता का चुनाव करेगी, सिर्फ उसे ही वोट डालने का अधिकार होगा, जिसके लिए ये पक्का होगा कि वो भाजपा को वोट करेगा। बाकी लोग जाओ भाड़ में और विपक्ष जाए चूल्हे में। बड़े आए लोकतंत्र की दुहाई देने वाले। चुनाव आयोग उर्फ भाजपा ने अब ये कर दिया है कि जो वोटर है, पहले वो ये साबित करे कि वो इस देश का नागरिक है। 


और इसके लिए उसे पासपोर्ट, बर्थ सर्टिफिकेट, सरकारी नौकरी या पेंशन की आई डी, जाति प्रमाणपत्र, देना होगा।

अरे हां, आधार बैंक अकाउंट के लिए चलेगा, वोट के लिए नहीं, डाइविंग लाइसेंस के लिए आधार चलेगा, वोट के लिए नहीं, नौकरी के लिए आधार चलेगा, वोट के लिए नहीं। कुल मिलाकर हर काम में आधार जरूरी है, वोटिंग छोड़ कर। समझे क्या। बचवा समझे थे कि आधार बनवा लिए हैं, अब मजा से सरकार चुनेंगे, भले हो भाजपा उर्फ चुनाव आयोग का, आधार को, और खुद वोटर आई डी को ही अमान्य कर दिया है। बढ़िया किए हैं जी, ये लोग वोटर आई डी ले के और जिस किसी को मन किया वोट कर देता है, पिछली बार भी तेजस्वी यादव के पार्टी को लगभग जितवा ही दिया था। इस जनता पर भरोसा नहीं किया जा सकता, इसलिए, वोटर आई डी को ही अमान्य कर दीजिए, और स्वयंसेवकों को काम पर लगा दीजिए कि वो पहचान करे कि कौन लोग, चुनाव आयोग को वोट करेगा, मेरा मतलब, जिसे चुनाव अयोग चाहे उसे वोट करेगा, और जौन नहीं करेगा, उसे वोट ही नही ंदेने दिया जाएगा। बढ़िया। 


बल्कि हम तो कहें, देश भर में जो राष्टीय स्वयंसेवक हैं, उन्हें ही स्वयंसेवक का काम पर लगा दिया जाए, ताकि शक-शुबह की कोई गुंजाइश ही ना रहे, और सारा काम भली तरह से निपट जाए। महामानव जब तक लौट कर आएंगे अपनी इस वाली विदेश यात्रा से तब तक चुनाव आयोग उनके लिए सही तरह के चुनाव का इंतजाम कर चुका होगा। 

तो बोलो चुनाव आयोग उर्फ भाजपा की.......

अबे जय बोलो बे....सारे मिल कर....


अच्छा मिजाज़ आपका थोड़ा परेशान लगता है तो फिर चुनाव पर ग़ालिब का ये शेर सुनिए


जब जान लइहैं ओ कि तुम्हे वोट ना देबू

तब छीन लेंगे तुमसे वोट देने का अधिकार बाबू


हम जान रहे हैं कि ज़बान थोड़ा चेंज हो गया है ग़ालिब चचा का, लेकिन सेर तो बिहार के बारे में है, तो वइसा ही लिखे हैं ना जी.....बुरा न मानिएगा।


नमस्ते

स्कूल बंद - यू पी चालू छोटा फैंटा - बात बड़ी





भाजपा ने डबल इंजन के नारे से शुरु किया था, आज दो - तीन और कई राज्यों में तो सरकारें चार इंजनों पर चल रही हैं। लेकिन पायलट महामानव ही हैं हमारे। महामानव विज़नरी लीडर हैं, और इसलिए सारे देश में जहा भी भाजपा की सरकार हैं, वहां के लीडर डिप्टी विज़नरी हैं। अब देखना है कि इस देश का क्या होने वाला है, मुझे तो सोच कर ही झुरझुरी आती है।



नमस्कार दोस्तों, मैं कपिल शर्मा, एक बार फिर से आपके सामने हूं। सुना यूपी सरकार यानी अजय सिंह बिष्ट की सरकार पांच हजार स्कूलों को बंद करने जा रही है। खुद यू पी सरकार यानी अजय सिंह बिष्ट जी का कहना है कि वो दरअसल इन स्कूलों को बंद नहीं कर रहे, बल्कि अन्य स्कूलों में मर्ज कर रहे हैं, यानी मिला रहे हैं, यानी बंद कर रहे हैं। हमारा गणित इसमें ये है कि मान लीजिए पहले थे, दस हजार स्कूल, इनमें से पांच हजार को, बाकी पांच हजार में मर्ज कर दिया, तो बचे कितने....अब इस सवाल के कई जवाब हो सकते हैं। जिन लोगों की पढ़ाई, एक्स्टरा टू ए बी वाली पद्धति से हुई है, उनके लिए ये ज़रा टेढ़ा सवाल हो सकता है, क्योंकि बुद्धि का बैल, उस भैंस से ज्यादा समझदान नहीं होता, जिसके आगे अक्सर बीन बजाई जाती है। हमसे कोई पूछे अक्ल बड़ी या भैंस तो भैये हमें ना अकल बड़ी लगती है ना भैंस हमें तो अपने महामानव ज्यादा बड़े लगते हैं, अक्ल से भी और भैंस से भी। हालांकि भैंस और बैल को इन विवादों में लाना कुछ अच्छी बात नहीं होती, और यकीन मानिए हम इन मासूम जानवरों को अजय सिंह बिष्ट जी के स्कूलबंदी अभियान के विचारों में लाते भी नहीं, लेकिन क्या करें मजबूरी है। 

यूं अजय सिंह बिष्ट की खुद की पढ़ाई-लिखाई के बारे में जो न कहा जाए, वही बहुत है, क्योंकि कहने को तो ये भी कहा जा सकता है कि खुद महामानव की स्कूली शिक्षा के बारे में जो न कहा जाए, वहीं बहुत, बल्कि बहुत ज्यादा हो जाएगा। खुद को योगी कहने वाले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अजय सिंह बिष्ट उर्फ आदित्यनाथ अपनी डिग्री दिखाएं तो जनता को पता चले कि उन्होने किस एंटायर सबजेक्ट में डिग्री हासिल की है, क्योंकि अगर ये काम भी दिल्ली यूनिवर्सिटी पर छोड़ दिया गया तो हो सकता है कि कहीं से 1982 की कम्प्यूटर जेनरेटिड एंटायर पोलिटिकल साइंस की पी एचडी की डिग्री निकल आए। ऐसा कहना भी पाप है। ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूं कि महामानव खुद से जो भी कहें, डी यू ने उनकी एंटायर पोलिटिकल साइंस की डिग्री निकाल दी, हां दिखाने को मना कर रहे हैं कि भई ये निजता का उल्लंघन है, बाकि आप चाहे किसी की भी डिग्री मांग लो, विश्वगुरु, महामानव की डिग्री डी यू नहीं दिखाने वाला। अब इसके सिवा आपके पास चारा क्या रह जाता है कि आप उनकी डिग्री के लिए खुद महामानव के बयानो का भरोसा करें। और महामानव खुद समय और परिस्थिति के अनुसार अपनी शिक्षा-दिक्षा के बारे में बयान बदलते रहे हैं। 


महामानव की डिग्रियों पर सवाल उठाने वाले मंदबुद्धि लोग यानी देश की जनता ये नहीं समझती कि जो महामानव होता है, उसे डिग्री लेने के लिए यूनिवर्सिटी नहीं जाना पड़ता, खुद डिग्री चलकर उनके पास आ जाती है। और ऐसे जिसके पास भी डिग्री चलकर आती है, उसे खुद भी पता नहीं होता कि आखिर उसने किस साल कौन से स्कूल या यूनिवर्सिटी से कौन से विषय में किस डिविजन में कौन सी डिग्री हासिल की थी। 

खैर बात हो रही थी यू पी में पांच हजार स्कूलों को बंद करने की, यानी उनके दूसरे स्कूलों में विलय की, जिसे अंग्रेजी में मर्जर कहा जाता है। ये अजय सिंह बिष्ट उर्फ आदित्यनाथ, बेकार ही लोगों को समझाने निकले हैं कि इन स्कूलों को बंद नहीं किया जा रहा है, बल्कि इनका मर्जर किया जा रहा है। इसी बात को महामानव यूं चुटकियों में समझा देते, जैसे उन्होने वैज्ञानिकों को बादलों में हवाईजहाज के छुपने पर राडार से बचने का उपाय समझाया था। 

अब यू पी सरकार का ये फैसला हमें तो जनाब बहुत अच्छा लगा, एंेवेई पढ़ाई-शढ़ाई पर पैसे खर्च हो रहे हैं बेकार के, इन्हीं पैसों से कितने शौचालय बन जाने हैं, कितने कांवड़ियों पर हेलीकॉप्टर से फूलों की बारिश की जा सकती है, और बताइए, जब बुलडोजर से घरों को तोड़ा जाता है तो उसमें कितना खर्चा होता है, अब ये जो सकूल बंद किए जा रहे हैं, इनसे उन बुलडोजरों का खर्चा भी निकल जाया करेगा, आम के आम और गुठलियों के दाम। वैसे भी शिक्षा का खर्च इतना बढ़ता जा रहा है कि इस ग़रीब देश के लिए मुश्किल होता जा रहा है। ग़रीबों के देश में ग़रीबों के बच्चों को पढ़ने का अधिकार देना कहां की समझदारी है भई। कल को पढ़-लिख कर इन्हीं लोगों ने तुमसे सवाल पूछ लेना है, ये ग़रीब ऐसे ही नाशुकरे होते हैं जी, इन्हें इतना भर कर दो कि मुफ्त का राशन देकर कहो कि भैये जो तुम्हें मुफ्त का राशन दे रहा है, तुम्हारा फर्ज है कि तुम उसे ही वोट दो। 

ये वोट की बहुत विकट समस्या है यार, वोट क्योंकि ग़रीबों को देना होता है, इसलिए हर साल - छः महीने में इनकी इतनी चिरौरी करनी पड़ती है। हालांकि चुनाव आयोग ने उसका भी समाधान निकाला है, जिसकी अभी बिहार में फील्ड टेस्टिंग चल रही है। इस बार चुनाव आयोग ने ऐसा तीर छोड़ा है जिसकी काट संभव नहीं है, अब होगा यूं कि ग़रीबों से कहा जाएगा कि बेटा पहले ये साबित करो कि तुम वोट देने लायक हो। इनसे ऐसे ऐसे डॉक्यूमेंट मांगे जाएंगे कि ये तो क्या इनके पुरखे भी साबित नही ंकर पाएंगे कुछ। बस इनका वोट काट दिया जाएगा, फिर मजे से जो मर्जी करेंगे। बाकी लोग जाएं भाड़ में। 


एल्लो, फिर से भटक गया। हां तो बात हो रही थी, अजय सिंह बिष्ट जी के यूपी में पांच हजार स्कूलों को बंद करने के फैसले की। फैसला बहुत बढ़िया है जैसा कि मैने बताया ही है। यू पी में, बल्कि यूं कहें कि देश में बहुत ग़रीबी है, पैसों की विकट समस्या है, प्रधानमंत्री को हर दूसरे दिन किसी ना किसी देश की, सैर करनी होती है, जिसमे बहुत खर्चा होता है, ये खर्चा कहां से आएगा। बस स्कूलांे का बंद करने से जो पैसा बचेगा उससे प्रधानमंत्री की विदेश यात्राओं का खर्च निकाला जाएगा। 


ये जो विदेशों में मासूम बच्चे पढ़ रहे हैं, इनकी इन विदेशी शिक्षाओं को खर्च बताइए कैसे निकलेगा। आप लोग बेकार ही सरकारी स्कूलों के बंद होने की दुहाई दे रहे हैं, इस देश का भविष्य असल में विदेशों में पढ़ रहा है। उसे विदेशों की महंगी शिक्षा पर बहुत खर्च करना पड़ता है, दोस्तों ये आपके त्याग के दिन हैं, आप मुझे एक बात बताइए, क्या आप नहीं चाहते कि आपका देश तरक्की करे, आगे बढ़े। अगर आपका जवाब हां है तो फिर आपको यू पी में अजय सिंह बिष्ट के पांच हजार स्कूलों को बंद करने के अजय सिंह बिष्ट के फैसले पर खुश होना चाहिए। इन स्कूलों को बंद करके हमारे महामानव की केबिनेट के बच्चे विदेशों की महंगी यूनिवर्सिटियों में पढ़ेंगे, बताइए, क्या आप अपने इन नेताओं के बच्चों और इन मासूम बच्चों के भविष्य के लिए इतना त्याग भी नही ंकर सकते। आप देशद्रोही हैं, जो अपने लिए इन स्कूलों की मांग कर रहे हैं। 

बताइए, हमारे महामानव ने आपके लिए क्या नहीं किया, अस्सी करोड़ लोगों को मुफ्त में राशन दिया, उज्जवला गैस दी, कि बेटा इस मुफ्त के राशन को पका कर खाओ, खाने के बाद जब तुम निपटने जाओ तो उसके लिए भी हर घर शौचालय का प्रबंध किया। इससे ज्यादा कोई क्या खाकर तुम्हारे लिए करेगा, अहसान फरामोशों, इसके बावजूद तुम पढ़ाई करने की जिद पर अड़े हुए हो। तुम कहते हो कि स्कूलों को बंद ना किया जाए, अरे पढ़-लिख कर तुमको क्या करना है? रहोगे तुम इसी मुल्क में, ईंटे ढोना तुम्हारी नियति है, किसानी करना, मजदूरी करना तुम्हारी नियति है, और तुम्हें फिर भी पढ़ने की जिद है। मेरी मानो मेरे यारों, पढ़ाई - लिखाई में कुछ नहीं रखा, तुम ऐसा करो कि कांवड़ लेकर आओ, देखो कांवड़ियों के लिए अजय सिंह बिष्ट जी ने कितनी सुंदर व्यवस्था कर रखी है। कांवड़ लेकर आने के लिए कोई डिग्री नहीं चाहिए, न स्कूल का सर्टिफिकेट चाहिए, बस कांवड़ लेकर आने की आस्था चाहिए, तो स्कूल जाकर क्या करना है कांवड़ लेकर आओ।


बताइए इस गाने को लिखने वाले और गाने वाले के खिलाफ एफ आई आर हो गई है, ये आदमी जिसका नाम डॉ रजनीश गंगवार है, स्कूल के बच्चों को कह रहे हैं कि तुम कांवड़ लेने मत जाना, पढ़ाई - लिखाई करना। अब आज के दौर में स्कूल में, बताइए, स्कूल में बच्चों को ये कहना कि तुम कांवड़ लेकर मत जाना, बल्कि ज्ञान का दीप जलाना जैसी बातें बताने जैसा अपराध ये व्यक्ति कर रहा है, वो तो भला हो, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का, कि इस बात का फौरन संज्ञान लिया और फौरन इस व्यक्ति क के खिलाफ एफ आई आर दर्ज करवा दी। 

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद उत्तर प्रदेश में पांच हजार स्कूलों के बंद किए जाने के फैसले का समर्थन करती है, इसलिए कि विद्यार्थियों के लिए सबसे जरूरी चीज़ है, कांवड़ लाना, बाकी शिक्षा-फिक्षा जैसी बेकार की चीजों से अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ज़रा दूर ही रहती है। हम तो अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से ये अपील करेंगे कि वो यू पी में स्कूलों को बंद करने के फैसले के समर्थन में एक आयोजन करे, और साथ ही उन विद्यार्थियों के लिए कुछ वजीफे का इंतजाम करे जो अपनी पढ़ाई छोड़ कर कांवड़ लाने के महती कार्य को सम्पन्न करें। इसके लिए अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कुछ सक्रिय सदस्य अपनी तरफ से पहल कर सकते हैं, जैसे जे एन यू जैसे वामपंथ के गढ़ में जो अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के सदस्य छात्र संघ चुनावों में जीते हैं, वे फौरन अपनी पढ़ाई छोड़ कर कांवड़ लेने निकल सकते हैं, अभी तो मौका भी है और दस्तूर यानी रिवाज भी है। साथ ही अजय सिंह बिष्ट और हो सकता है खुद महामानव उनके इस कदम की सराहना करें, उन्हें फूल माला पहनाएं और साथ ही, जे एन यू जैसे विश्वविद्यालय की वाइस चांसलर भी हो सकता है कि इस महती कार्य में उनकी मदद करें और पढ़ाई छोड़ने के लिए उन्हें प्रोत्साहित करें, ऐसी हमारी कामना है। 


दोस्तों अब समय आ गया है कि हम इन वामपंथियों द्वारा बहकाई गई जनता को सही और सच्चा रास्ता दिखाएं, उन्हें ये समझाएं कि ये पांच हजार स्कूलों के बंद होने से उनका फायदा होने वाला है, उन्हें किसी तरह बस ये समझा दिया जाए कि शिक्षा जैसी चीजें ग़रीबों के बस की बात नहीं है तो हमारा काम बन जाएगा। जैसे चुनाव आयोग बी एल ओ को घर - घर भेज रहा है, हमें भी अपने आर एस एस के स्वयंसेवकों और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के सदस्यों को घर - घर भेजकर ग़रीबों को, दलितों को, आदिवासियों को ये यकीन दिलाना है  िकवे पढ़ना-लिखना छोड़ दें, ताकि यू पी ही नहीं, आने वाले दिनों में भाजपा सरकारें सारे देश में सरकारी स्कूलों को बंद कर सकें। बस एक बार शिक्षा बंद हो जाए तो ये सब अपने पुराने वाले ढर्रे पर लौट जाएंगे, अभी बागेश्वर बाबा, और अनिरुद्धाचार्य जैसे बाबा इसी काम में लगे हुए हैं, लेकिन उनका समर्थन करने के लिए कई ऐसे बाबा बनाने होंगे, जो ढोंग को, अंधविश्वास को बढ़ावा दें, बस फिर हमारा काम बन जाएगा। 


आपसे अपील है कि आप योगी आदित्यनाथ उर्फ अजय सिंह बिष्ट के इस स्कूल बंदी अभियान का समर्थन करें, बाकी जैसी महामानव की मर्जी।



अरे हां, ग़ालिब की भी इस बारे में खासी अच्छी राय थी, वे दरअसल बाबा का समर्थन करते थे, इस मामले में, सुनिए वो क्या कह गए हैं।


इस्कूल तो हमें ग़ालिब फिजू़ल लगता है

दिल से तो हमें कांवड ही कूल लगता है

डिग्री तो डी यू बाद में बना ही देगा ग़ालिब

इसीलिए तो सबसे प्यारा कमल का फूल लगता है




तो कांवड़ को कूल मानिए, इस्कूल को फिजूल मानिए, और स्कूल बंदी का समर्थन कीजिए।


बाकी जो है वो हैये है।

नमस्कार


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भूल भुलैया - महामानव की बिहार यात्रा

 



नमस्कार, कपिल शर्मा एक बार फिर से आपके सामने, बहुत तेजी से आना जाना हो जा रहा है जनाब। लेकिन क्या करें मजबूरी है। एक तरफ बिहार ने पूरे देश की नाक में दम किया हुआ है, 

जगदीप धनकड़ एक भाजपा के सदस्य रहे। 
जगदीप धनकड़ जी ने राज्य-सभा का संचालन भाजपा के प्रतिबद्ध सदस्य के तौर पर किया।
दूसरी तरफ कांवड़ियों का कहर सड़कों पर ऐसे बरस रहा है जैसे आसमान से बारिश की जगह खारिश बरस रही हो। 


हमारी, क्योंकि मैं दिल्ली में रहता हूं तो दिल्ली की, यानी हमारी चीफ मिनिस्टर के जन्मदिन पर एक्सप्रेस में पूरे एक पेज का विज्ञापन नुमा प्रचारफोटू आया है, जिसमें उन्हें विज़नरी लीडर बताया गया है और मैं ये सोच कर हैरान हूं कि जिस लीडर को नाम घोषित होने तक ये नहीं पता था कि उनके भाग्य से मुख्यमंत्री की कुर्सी का छींका फूटा है, उनके विज़न का ढिंढोरा कौन पीट रहा है। 


पर पिछले 11 सालों में भाजपा ने ये नियम बना लिया है कि जिस भी राज्य में वो जैसे भी चुनाव जीते, मुख्यमंत्री वही बनता है जिसका अपना कोई जनाधार नहीं होता, इससे सेंटर की पकड़ राज्य पर मजबूत हो जाती है। इसका थ्योरी को टेस्ट यूं किया जा सकता है कि आप बिना किसी से पूछे, बिना गूगल बाबा की मदद से ये बता दें कि हाल ही में भाजपा जिन राज्यों में जीती है उनके मुख्यमंत्रियों के नाम क्या हैं। मेरा दावा है कि एक या दो नाम आप पक्का ग़लत बताएंगे, अजी आप छोड़िए, जिन राज्यों के वे मुख्यमंत्री हैं, वहां की जनता तक को नहीं पता होता कि उनका मुख्यमंत्री कौन है। खैर ये पुराना मामला है। नया मामला है महामानव की मोतीहारी महायात्रा का, देख लीजिए मैने इस एक जुमले में अनुप्रास अलंकार का मजा ले लिया। जिनको हिंदी व्याकरण की जानकारी ना हो, उनके लिए खुलासा कर दूं कि अनुप्रास अलंकार वहां होता है जहां एक ही वर्ण की आवृति यानी दुहराव से खूबसूरती आती है। जैसे महामानव की मोतीहारी महारैली में ”म” वर्ण की आवृति हुई तो आपको सुंदर लगा होगा। ये सुंदरता महामानव की है, जिसे अनुप्रास अलंकार की सुंदरता मान लिया गया है। 
टेक्स्ट ग्राफिक्स ”म वर्ण की आवृति से अनुप्रास की छटा - मोदी महा मानव मोतीहारी महारैली में ”म” वर्ण की आवृति से अनुप्रास होता है।”
तो शुरु से शुरु करते हैं। एक तथाकथित पत्रकार हैं, जो इन दिनों बिहार के दौरे पर हैं, लगातार अपनी खोजी पत्रकारिता से चुनाव आयोग उर्फ भारतीय जनता पार्टी के विशेष गहन पुनरीक्षण जैसे पवित्र काम में बाधा डाल रहे हैं। जहां एक तरफ बिहार के कर्मठ बूथ लेवल ऑफिसर भाजपा के पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर बिहार में भाजपा के लिए जमीन तैयार कर रहे हैं, वहीं इस पवित्र कार्य में अपनी बेकार की पत्रकारिता का राग अलाप रहे हैं। मैं उनके इस कार्य की खुल कर भर्त्सना करता हूं, उन्हें क्या हक़ है कि वो बिहार की जनता के पास जाकर उनसे इस किस्म के सवाल पूछें। बताइए। 


बिचारे बी एल ओ एक ऑफिस में बैठ कर हजारों लाखों लोगों के फॉर्म भर रहे हैं, उन पर खुद ही साइन कर रहे हैं, ताकि बिहार के भोले-भाले मतदाताओं को दिक्कत ना हों, और इन पत्रकार महोदय को चुनाव आयोग उर्फ भाजपा द्वारा निर्देशित, जिलाधिकारियों और उनके मातहत काम करने वाले बी एल ओ की एक कर्मठता नहीं दिखाई देती। उनका पूरा ज़ोर इस बात है कि किसी मतदाता का फॉर्म बी एल ओ क्यों भर रहे हैं, उन पर फर्जी साइन क्यों कर रहे हैं। बात यहां तक भी रहती तो ठीक था, लेकिन इन पत्रकार महोदय की हिम्मत देखिए ये अपना कैमरा लेकर उस कमरे में घुस गए और वहां की वीडियो बना ली। इतना बड़ा अपराध, और इसे अपराध भी क्या कहिए, ये तो सीधा पाप है, उन्होने ऐसा काम किया है कि जिसकी माफी नहीं दी जा सकती। वो तो चुनाव आयोग उर्फ भाजपा उन्हें माफ भी कर देती, लेकिन ऐसे कामों का वीडियो बनाने की मंजूरी तो नहीं दी जा सकती, ये सुप्रीम कोर्ट की ज़बान में चीप पब्लिसिटी स्टंट है, जो ये पत्रकार महोदय कर रहे हैं। इसलिए इनके खिलाफ एफ आई आर दर्ज की गई है, मेरा तो मानना है कि इन पर एन आई ए, या ई डी का छापा पड़ना चाहिए, इन्हें भी उमर खालिद की तरह बिना किसी टायल के पांच-सात साल के लिए बिना जमानत के जेल भेज देना चाहिए। एक अच्छे लोकतंत्र में ऐसे उदाहरणों के बिना काम नहीं चलता, अगर ऐसा नहीं किया गया तो मुझे डर है कि कहीं कोई और पत्रकार भी ऐसे ही घिनौना आचरण करने लगे और चुनाव आयोग उर्फ भाजपा के कर्मकांडों को उजागर करने लगे तो बताइए, लोकतंत्र का फिर क्या होगा। 
पत्रकारों का एक सीधा-सादा काम होता है, कि वे देश के नामचीन पत्रकारों जैसे अंजना ओम मोदी माफ कीजिएगा कश्यप हुईं, रुबिका लियाकत हुई, नविका कुमार हुई, सुधीर तिहाड़ी माफ कीजिएगा चौधरी हुए, सुशांत सिन्हा हुए, अमन चोपड़ा हुए, दीपक चौरसिया हुए, रजत शर्मा हुए, अमिश देवगन हुए, की तरह अपना एक टीवी कार्यक्रम बनाए, स्टूडियो को सजाएं, और वहां बैठे हुए आयं-बायं-शायं बकें। अगर आप ऐसे कार्यक्रमों में एक परफॉर्मर की तरह रहें, खूब चीखें-चिल्लाएं, गालियां दें, तो मज़े ही मजे़, अगर लाइव लड़ाई करवा सकें तो कहना ही क्या। भई वाह। मज़ा ही आ जाता है। पत्रकारों को यही करना चाहिए, ये क्या कि माइक और कैमरा लेकर घूम रहे हैं, लोगों के पास जा रहे हैं, मुद्दों की बातें कर रहे हैं। ये जो पत्रकार हैं, अजीत अंजुम इन्होने पत्रकारिता का नाम बदनाम कर दिया है, बताइए, वे राहुल गांधी से सवाल नहीं कर रहे, वे तेजस्वी को धूल में नहीं मिला रहे, वो सोनिया गांधी का अपमान नही ंकर रहे, वे सावरकर को वीर नहीं बता रहे, और सबसे बड़ी बात, अपनी रिर्पोटिंग में अब तक उन्होने चुनाव आयोग उर्फ भाजपा के बिहार में हो रहे सर्वे को सुपर नहीं बताया, उसकी तारीफ नहीं की, और भाजपा को पूरी तरह जीत के काबिल नहीं बताया। बताइए, जिस देश में ऐसे पत्रकार हो, वहां लोकतंत्र की क्या हैसियत रह जाएगी। मैं आपसे अपील करता हूं कि आप अजीत अंजुम के चैनल पर जाकर उन्हें समझाएं, सीधे कह नहीं सकता, गरियाएं कि वे फालतू के काम छोड़ दें और अंजना, नविका, रुबिका, अमिश, रजत और दीपक जैसी पत्रकारिता करें, वरना उन्हें यू ए पी ए के तहत सीधे अंदर डाल दिया जाएगा और फिर उन्हें सालों जमानत तक नहीं मिलेगी। महामानव की जय। 
दूसरा मामला है, दिल्ली की विज़नरी लीडर मुख्यमंत्री यानी चीफ मिनिस्टर रेखा जी गुप्ता का। रेखा जी गुप्ता का विज़न बिल्कुल साफ है, था और रहेगा। वो इस मायने में, कि चुनाव प्रचार में उन्होने जो जो वायदे किए थे, एक तो एक एक करके सबके सब पूरे होते जा रहे हैं। आज ही के एक्सप्रेस में खबर देखी कि यमुना का पानी पिछले महीने के मुकाबले ज्यादा प्रदूषित हो गया है। रेखा जी गुप्ता के साथ, केन्द्र सरकार के खास एजेंट, हमारे बिना चुने हुए दिल्ली के मालिक, महामहिम गर्वनर वी के सक्सेना जी, जिन्हें दिल्ली की हुकूमत सौंपकर भाजपा ने लोकतंत्र की एक खास मिसाल पेश की है, दोनो ने डबल इंजन की सरकार के पायलट के बतौर ये साफ कर दिया था, कि क्योंकि पिछली सरकार ने यमुना की सफाई नहीं की है, और वे इसके लिए कटिबद्ध हैं, इसलिए वे दिलोजान से यमुना की सफाई में जुट गए हैं, 


लेकिन ये यमुना खुद जो है वो जनता की तरह अड़ियल निकली, ना गर्वनर का हुकुम मानती है, ना भाजपा की विज़नरी चीफ मिनिस्टर का, आज रिपोर्ट आई कि ये तो और ज्यादा गंदी हो गई। 


अब हो गई तो हो गई, अब रेखा जी गुप्ता और महामहिम गर्वनर साहब कोई खुद तो झाडू-खटका लेकर यमुना की सफाई करेंगे नहीं। मेरा मानना है कि दरअसल ये यमुना भाजपा विरोधी हो गई है, यानी सनातन विरोधी हो गई है, जो भाजपा की खास मुख्यमंत्री का और उनके खास गर्वनर का हुकुम नहीं मान रही। यकीन कीजिए दोस्तों, मैं अगर यमुना की जगह होता तो गर्वनर का आदेश होते ही साफ हो जाता, और यूं लोकतंत्र को टका सा जवाब दे देता। 
रेखा जी गुप्ता ने ही चुनावों के दौरान कहा था कि दिल्ली में कोई झुग्गी नहीं टूटेगी, 


लेकिन बाद में कहा कि कोर्ट के आदेश से झुग्गी टूटेंगी तो टूटेंगी, इसमें कोई कुछ नही ंकर सकता।


 साथियों इसी को विज़न कहा जाता है, और ऐसे बयान देने को ही विज़नरी कहा जाता है, हमारी यानी दिल्ली की महान मुख्यमंत्री विज़नरी मुख्यमंत्री रेखा जी गुप्ता के विज़न के क्या कहने, ऐसे ही विज़नरी महामानव हैं, उन्होने भी दिल्ली चुनावों के दौरान कहा था कि लोग झूठ बोल रहे हैं कि भाजपा आएगी तो झुग्गियां तोड़ेगी, उन्होने वादा किया था कि कोई झुग्गी नहीं टूटेगी, विज़न बहुत साफ था, कह दो कि नहीं टूटेगी, और फिर तोड़ दो। इसी साफ विज़न के चलते भाजपा के नेताओं को असल में विज़नरी कहा जाता है, जिनका विज़न साफ हो, नीयत साफ होने की गारंटी कोई नहीं। 
तीसरी बात जो रेखा जी गुप्ता ने मुख्यमंत्री होने के बाद कही, सबके सामने कही, जिससे लोकतंत्र की मर्यादा सीना तान कर खड़ी हो गई। उनसे पूछा गया कि अगर कुणाल कामरा दिल्ली में अपना शो करने आए, तो रेखा जी गुप्ता का कहना था कि वो अपने रिस्क पर आए।


 वाह, वाह, वाह!!! तीन बार वाह का मतलब है कि मैं तो रीझ गया मुख्यमंत्री के ऐसे बयान पर, ऐसे ही मुख्यमंत्री को सच में विज़नरी कहने का दिल चाहता है। जिस देश की राजधानी में किसी को अपने रिस्क पर आना पड़े, उसे सबसे सुरक्षित जगह कहा जा सकता है। मुझे पूरा यकीन है कि दिल्ली को सबसे सेफ बनाने में यही एक तरीका कारगर हो सकता है। सब अपने रिस्क पर आएं, अपने रिस्क पर रहें, किसी मुख्यमंत्री की, रक्षा मंत्री की, गृह मंत्री की कोई जिम्मेदारी नहीं, पुलिस अब आराम से अपना सड़क पर रिश्वत लेने का, रिजक कमाने का, लोगों की झुग्गियां तोड़ने का, और इन्हीं विज़नरी नेताओं को सुरक्षा मुहैया कराने का काम आराम से कर सकती है। जब लोगों को अपने ही रिस्क पर रहना है तो फिर सेफ्टी का इश्यू ही खत्म हो गया। और आपने गौर नहीं किया शायद, अमेरिका ने अपने नागरिकों को भारत यात्रा से मना किया है, कि ये सेफ नहीं है। हमारी यानी दिल्ली की विज़नरी मुख्यमंत्री रेखा जी गुप्ता ने इस तरह एक तीर से दो शिकार किए हैं, एक तो उन्होने अमेरिका की ताईद कर दी, उन्होने कहा कि भारत मत जाओ, रेखा जी गुप्ता ने कहा कि दिल्ली आना है तो अपने रिस्क पर आओ, मतलब हमारी कोई जिम्मेवारी नहीं है। अब मुझे लगता है कि महामानव भी यही कह दें कि भैये जिसे भी भारत आना है अपने रिस्क पर आए। बस यही विज़न चाहिए देश में, अपने रिस्क पर रहो, अपने रिस्क पर जिओ, अपने रिस्क पर आत्मदाह कर लो। बल्कि उड़ीसा मे ंतो इसे साबित भी कर दिखाया गया। एक लड़की जो माफ कीजिएगा, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की सक्रिय सदस्य थी, उसने अपने ही कॉलेज के प्रोफेसर के यौन शोषण की शिकायत की, लेकिन उड़ीसा का वुमेन सेल हरियाणा के वूमेन सेल वाली रेणु भाटिया जी की तरह मुस्तैद नहीं था, या था, खैर जो भी हो, उस बच्ची ने हार मान कर आत्मदाह कर लिया, कॉलेज में ही। हमारी रेखा जी गुप्ता वाला ”अपने रिस्क पर” वाला मंत्र सिद्ध नही ंकर पाई। भाई कुणाल कामरा, अपने रिस्क पर ही जिंदा हैं, अपने ही रिस्क पर चुटकुले सुनाते हैं, उन्हें भी पकड़ने की कई कोशिशें की गई हैं, की जा रही हैं, लेकिन अभी तक अपने ही रिस्क पर बचे हुए हैं। मैं कहूं ये अपने रिस्क वाला विज़न बहुत ही कारगर है साहब, जो भी करो, अपने रिस्क पर। वोट दो, अपने रिस्क पर, नौकरी करो, अपने रिस्क पर, कहीं आओ जाओ, अपने रिस्क पर। सरकार की कोई जिम्मेदारी नहीं है, ना आपकी सुरक्षा की, ना आपकी सुविधा की। जय हो महामानव की, जय हो विज़नरी लीडर, रेख जी गुप्ता जी की। 


अब आते हैं अपने कलाम के आखिरी चैप्टर पर। महामानव की मोतीहारी की रैली। अब देखिए, महामानव सिर्फ दो जगहों की यात्रा करते हैं, एक तो विदेश की, जहां अक्सर उन्हें अवार्ड मिलते हैं, अब तक शायद सत्ताइस हो चुके हैं। दूसरे उन जगहों की जहां चुनाव हों, और उन्हें अपने चुनावी जुमले सुनाने हों, केंन्द्रीय मदद की बोली लगानी हो, और वोटों का जुगाड़ करना हो। बाकी पूरा देश अपील कर चुका लेकिन महामानव मणिपुर नहीं गए, अब ये हम पहले ही बता चुके हैं कि महामानव को जिताने का काम के चु आ अपने हाथों में ले चुका है, राहुल गांधी का कहना है कि महाराष्टर और हरियाणा में महामानव को जिताने का काम खुद के चु आ ने किया, कुछ लोग अब इसमें मध्य प्रदेश को भी जोड़ रहे हैं। हम बहुत तो नहीं जानते सिवाय इसके कि हमें कुछ-कुछ इन बातों पर यकीन होता जा रहा है, बाकी चुनाव आयोग उर्फ भाजपा ने बिहार में गोटियां सेट कर ही दी हैं, और इसमें कोई दो राय नहीं हैं कि बिहार चुनाव भी महामानव जीत ही जाएंगे। तब सवाल ये उठता है कि महामानव ने ये चुनावी रैली क्यों की, आखिर उन्हें बिहार जाने की, वहां इत्ती बड़ी-बड़ी घोषणाएं करने की ज़रूरत क्या पड़ गई। तो इसका जवाब भी यही है कि महामानव विज़नरी लीडर हैं, उन्हें पता है कि भाजपा उर्फ चुनाव आयोग की ये कार्यवाही सबके निशाने पर है, और जीतना तो महामानव को है ही, तो चुनावों के बाद चुनाव आयोग पर यदि कोई उंगली उठे तो महामानव की इस महारैली को सामने लाया जा सके। इसके लिए भी सारी तैयारियां की जा चुकी हैं, दिल्ली के स्टूडियो, मेरा मतलब पत्रकार स्टूडियोज़, बिहार की गद्दीनशीनी के बड़े - बड़े जुमले बना चुके हैं, अब बस चुनाव की फॉर्मेलिटी का इंतजार है। जैसे ही चुनाव होगा, महामानव की जीत का बिगुल बज जाएगा। और इस तरह लोकतंत्र की अच्छी पुंगी बजाई जाएगी। 
बाकी आपको चचा ग़ालिब का एक शेर सुनाते हैं, जो उन्होेेने अपने समय में आज के समय के लोकतंत्र पर लिखा था, और क्या खूब लिखा था....
वो कहते हैं
ये सार्वभौमिक मताधिकार की वजह से ग़रीबों का ध्यान रखना पड़ता है, वरना अब तक तो सरकार ने फैसला कर देना था। खैर, अब हो जाएगा, बिहार में चल रहा है, सारे देश में चलेगा। 

हरेक शै मेरे यार बेवफा निकली
डेमोक्रेसी भी देखो ना बद्दुआ निकली
मर के भी चैन ना मिला तेरी कसम
कब्र में भी अपनी तो कराह निकली

ग़ालिब को अक्सर डेमोक्रेसी की बिमारी परेशान करती थी। आपको भी करती होगी। हमें नहीं करती जनाब, हम तो सच्चे वाले देशप्रेमी हैं, सनातनी। आपका आप जानें। 

सुनिए, इसे भी लाइक और शेयर कीजिए, और कमेंटस् भी आते रहें तो बेहतर है।

बाकी सब खैर से। नमस्कार। 


इस्तीफा का रहस्य - हम कुछ नहीं बोलेंगे।



नमस्कार, मैं कपिल एक बार फिर आपके सामने। देखिए जबसे जगदीप धनकड़ जी ने इस्तीफा दिया है, हर तरफ सिर्फ उनकी सेहत, इस्तीफे, उसतीफे, और उनके कामों की बातचीत हो रही है। लेकिन मैं मैं इस मामले पर यानी जगदीप धनकड़ जी के बारे में कुछ नहीं बोलूंगा। पिछले दिनों मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ था, जब उन्होंने संविधान की प्रस्तावना में पंथनिरपेक्ष, समाजवाद और अखंडता शब्दों को नासूर बताया था, जबकि उपराष्टरपति बनने के लिए उन्होने इसी संविधान की शपथ ली थी। 



देश का कोई साधारण नागरिक ऐसा कहता तो पक्का उसके खिलाफ खुद कोर्ट ने ही स्वतः संज्ञान ले लिया होता, लेकिन संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों की बात अलग होती है वो कुछ भी कह सकते हैं, फिर चाहे वो संविधान के खिलाफ ही हो, उन के खिलाफ कोई बात नहीं की जा सकती। खैर जो भी हो, मैं जगदीप धनखड़ जी या उनके इस्तीफे के बारे में कुछ नहीं कहूंगा। भई तबीयत खराब हो तो इंसान दे ही देता है इस्तीफा, इसमें इतनी बड़ी क्या बात है। तबीयत खराब होने के कई रीज़न हो सकते हैं, देखिए जिसकी खराब हो तबीयत वो दे देता है इस्तीफा, धनकड़ जी ने दे दिया। चाहे कुछ भी हुआ हो, हम धनकड़ जी के बारे में कुछ नहीं बोलेंगे। 



धनकड़ जी ने उपराष्टरपति रहते हुए ऐसे-ऐसे कमाल के काम किए थे कि जिनकी मिसाल खोजें तो बहुत मुश्किल होगी। सदियों में ऐसा उपराष्टरपति होता है जनाब, जो संसद को विपक्ष विहीन कर दे। ऐसा तो महामानव तक आज तक नही ंकर पाए। सदन से सीधे एक सौ इकतालीस सदस्यों को बाहर करने जैसा कारनामा करना कोई हंसी-ठ्ठ्ठा नहीं था। ऐसे कारनामें आपको भारतीय लोकतंत्र के इतिहास मे ंतो देखने को नहीं ही मिलेंगे। एक नया इतिहास ही लिख दिया गया था, विपक्ष की ऐसी ऐसी की तैसी किसी और उपराष्टरपति ने नहीं की थी, जैसी धनकड़ ने की थी। खैर अब तो उन्होने तबीयत खराब होने की वजह से इस्तीफा दे दिया है, अब चाहे जो भी, कुछ भी कहना चाहे कहे। हम तो धनकड़ जी या उनके इस्तीफे के बारे में कुछ नहीं बोलेंगे।

राणा की पुतली फिरी नहीं तब तक चेतक मुड़ जाता था। 

यूं ही एक मशहूर कविता की पंक्ति याद आ गई। आप जानते ही हैं कि कुछ याद आता है तो मैं आपको सुना ही देता हूं। खैर साहब। 

विपक्ष ने कभी जगदीप धनकड़ को चैन नहीं लेने दिया। जब जगदीप धनकड़ ने 2019 में पश्चिम बंगाल का गर्वनर पद संभाला था, तो ममता बनर्जी ने उनके खिलाफ कई शिकायती पत्र लिखे थे। जगदीप धनकड़ जी ने पहली बार बंगाल में ये दिखाया था कि एक गर्वनर को किस तरह काम करना चाहिए। उन्होने सही मायनों में वहां केन्द्र का प्रतिनिधित्व किया था, ममता बनर्जी के खिलाफ टिवट्र पर ऐसा मोर्चा खोला कि ममता बनर्जी ने उन्हें अनफॉलो कर दिया। औरा की बात है भई। मैं दावा करता हूं कि आप और कोई ऐसी मिसाल खोज कर नहीं ला सकते जब गर्वनर को सी एम ने ट्विटर पर अनफॉलो कर दिया हो। ममता की बंगाल में चुनी हुई सरकार है, लेकिन धनकड़ जी ने अपने गर्वनरकाल में दिखा दिया था कि गर्वनर के आगे चुनी हुई सरकार की क्या हैसियत है। ममता दीदी को हर रोज़ किसी ना किसी मामले में सफाई देनी पड़ती थी। अरे फाइल चलाना, फाइल पास करना तो गर्वनर के हाथ में होता है, ऐसे में किसी भी राज्य की चुनी हुई सरकार क्या कर लेगी जब जगदीप धनकड़ जैसा गर्वनर उसके सामने होगा। सुना है राज्य के मुख्य सचिव को, अन्य अफसरों को छोटी-छोटी बातों पर तलब कर लेते थे, एक तरह से अनौपचारिक वैकल्पिक अधिकारिक राज्य तंत्र ही खोल बैठे थे। और विद्वानों का कहना है कि गैर-भाजपा शासित प्रदेशों में अब जो भी गर्वनर काम कर रहे हैं, उन्हें इसका तरीका जगदीप धनकड़ जी से ही पता लगा था। खैर जगदीप धनकड़ जी ने जैसा भी काम किया हो, जैसी भी मिसाल सामने रखी हो, अब तो उन्होने स्वास्थय कारणों से इस्तीफा दे दिया है, और हम जगदीप धनकड़ या उनके इस्तीफे के बारे में कुछ नहीं बोलेंगे। 


वैसे 30 जुलाई 2019 को वो गर्वनर बने और 30 जुलाई 2022 से पहले ही उन्होने ये पद छोड़ दिया, छोड़ क्या दिया, अब इतने टेलेंटिड व्यक्ति को सिर्फ एक राज्य के मुख्यमंत्री को परेशान करने के लिए तो छोड़ा नहीं जा सकता था। इसलिए मोदी जी ने उन्हे सीधे उपराष्टपति बना दिया, कहते हैं, उनके इसी टेलेंट ने, जो उन्होने बंगाल में दिखाया था, उन्हें मोदी जी का चहेता बना दिया था। अब मोदी जी उनके चहेते थे, या वो मोदी जी के चहेते थे, ये कहना हमारे लिए तो भई ज़रा मुश्किल ही है। 


लेकिन लोग कहते हैं कि मोदी जी को वो कितना मानते थे, ये उनकी मोदी जी के साथ वाली तस्वीरों से साफ झलकता है। 



हालांकि इन तस्वीरों को देख कर आपको भ्रम हो सकता है कि भई पद में मोदी जी बड़े हैं या धनकड़ साहब बड़े थे, लेकिन सच कहें तो अपनी हर बात से, हर वाक्य से, हर स्टेटमेंट से, हमेशा धनकड़ जी ने यही जताया कि उनके लिए मोदी जी, किसी पद से बड़े हैं। आपको सच कहता हूं, एक बार मोदी जी को महामानव मान लेने के बाद धनकड़ जी ने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा। बस नीचे ही देखते रहे।




पर इन फोटो से, वीडियो से आप जो मर्जी नतीजे निकालें, हम कुछ नहीं बोलेंगे, ना जगदीप धनकड़ जी के बारे में, ना उनके खराब स्वास्थय के बारे में, और ना ही उनके इस्तीफे के बारे में। 

उपराष्टपति बनने के बाद धनकड़ जी ने संविधान, देश, राष्टर, सबकुछ अपनी भक्ति में ही लीन कर दिया था। ऐसा भी लोग ही कहते हैं। लोगों का कहना है कि वो देश के उपराष्टपति होने के बावजूद, भाजपा के सदस्य के तौर पर, भाजपा के वफादार सदस्य के तौर पर ही कामकाज चलाते रहे। इतना कि एक बार तो संसद में एक महिला सांसद को कहना पड़ा कि भई आप जिस पद पर बैठे हैं उसकी गरिमा के हिसाब से काम कीजिए।


संसद में जिन लोगों ने जगदीप धनकड़ जी का व्यवहार देखा या झेला, उनका कहना है कि वो जिस टोन में विपक्ष के सदस्यों से बात करते थे, वो किसी संवैधानिक पद पर बैठे हुए व्यक्ति की नहीं हो सकती। 


हो सकता है ऐसा हो, हमें क्या पता, हम कोई संसद मे ंतो बैठे नहीं थे। इसलिए सही बात तो यही है कि हम जगदीप धड़कन, या उनके खराब स्वास्थय के कारण दिए गए इस्तीफे के बारे में कुछ नहीं बोलेंगे। 


वैसे धनकड़ जी के भाजपा के वफादार सदस्य होने की बात कुछ हजम नहीं होती, भई अपने पूरे राजनीतिक जीवन में वे जनता दल में भी रहे, जिससे वे चुनाव भी जीते, सुना कांग्रेस में भी रहे कुछ समय, और उसके बाद वे मोदी जी से प्रभावित होकर भाजपा में शािमल हुए। वो कई चुनाव लड़े जिनमें कुछ जीते और कुछ हारे भी, पर ये हारजीत तो मान लीजिए चलती ही रहती है। इसलिए, जगदीप धनकड़ जी या उनके खराब स्वास्थय के कारण दिए गए अचानक इस्तीफे के बारे में हम कुछ नहीं बोलेंगे। 

कुछ लोगों ने मार, दे पोस्ट पर पोस्ट, सोशल मीडिया पर वबाल काटा हुआ है कि भाजपा ने ज़ोर-जबरदस्ती से उनसे इस्तीफा दिलवाया है, हम ऐसा क्यों कहें। सुना कि संसद में विपक्ष द्वारा राज्य सभा में जो प्रस्ताव पेश किया, उसे धनकड़ ने स्वीकार कर लिया। उनकी इसी बात से मोदी जी नाराज़ हो गए, और सुनने मे ंतो ये भी आया है कि उन्हें बताया गया कि या तो भैये इस्तीफ दो, और अभी दो, वरना तुम्हारे खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया जाएगा। और मजबूरन जगदीप धनकड़ को इस्तीफा देना पड़ा, क्या करते, मना करते तो निकाले जाते। खैर ये सरकार है, सरकार, सरकार की तरफ चलती है, इसमें कोई क्या कर सकता है। बोलने वाले तमाम तरह की अटकलें लगा रहे हैं, कुछ लोग तो कयास लगा रहे हैं कि भई अगला उपराष्टपति कौन होगा। होगा कौन, जो मोदी जी के कहे पर चलेगा, बात मानेगा, वही होना चाहिए, हमारा तो ये कहना है। अलबत्ता, जगदीप धनकड़ के बारे में, स्वास्थय कारणों से उन्होने जो इस्तीफा दिया है, इस बारे मे ंहम कुछ नहीं बोलेंगे। 


मजाक की बात ये है कि विपक्ष कह रहा है कि भई, कोई तीन साल उपराष्टपति रहा, कैसा भी रहा हो, यानी जैसा भी रहा हो, उसके लिए एक विदाई समारोह, यानी फेयरवेल तो बनता है। और मोदी जी ने एक संदेश में ही उन्हें निपटा दिया है। ऐसा कैसे चलेगा, और दोस्त लोग इस पर भी पिल पड़े, लोग कह रहे हैं कि धनकड़ जी जाते-जाते मोदी जी के लिए मुसीबतें खड़ी कर गए हैं, और वो तो मोदी जी को धनकड़ जी के पाला बदलने की भनक लग गई थी, इसलिए उन्हें हकाल दिया, मेरा मतलब है उनसे इस्तीफा ले लिया। लेकिन दोस्तों, ये सब कहने वाले कह रहे हैं, क्योंकि मैं तो आपसे कह ही चुका हूं कि चाहे जो भी हुआ हो, हम धनकड़ जी या उनके स्वास्थय कारणों से दिए गए इस्तीफे के बारे में कुछ ना कहेंगे।


भई आज तो हमने कुछ ना कहा, तो ग़ालिब भी आखिर क्या ही कहेंगे, लेकिन रवायत तो निभानी ही होगी, तो ग़ालिब ने अचानक दिए इस्तीफों पर एक शेर कहा था, लीजिए आप भी सुन लीजिए।


सुबह तलक खबर न थी, जिसकी ग़ालिब

शाम को वो इस्तीफा देके निकल लिया


हालांकि ये शेर ग़ालिब ने ग़ालिबन इस्तीफों के बारे में ही लिखा था, लेकिन इस इस्तीफे पर तो ये यूं ही फिट बैठ गया। ख़ैर साहब ग़ालिब, ग़ालिब थे, वो किसी के भी बारे में कुछ भी कह सकते थे। लेकिन हम धनकड़ जी के स्वास्थय कारणों से दिए गए इस्तीफे के बारे में कुछ ना बोलेंगे।


अगली बार मिलेंग तो कुछ जरूर बोलेंगे, तब तक के लिए विदा। नमस्कार


गुरुवार, 17 जुलाई 2025

महामानव की स्पेस टेकनालॉजी - फू फू फुस्सससससस



 नमस्कार, मैं कपिल एक बार फिर आपके साथ यानी आपके सामने हूं। देश में बहुत कुछ हो रहा है, और इसलिए ऐसे मौके पर मेरा चुप बैठे रहना शोभा नहीं देता। चौमासा, यानी बारिश के मौसम में हमें इस बात पर गौर करना चाहिए कि ये देश कहां जा रहा है। लेकिन मेरे दोस्त कहते हैं कि पहले इस बात पर ग़ौर करना चाहिए कि जहां भी ये देश जा रहा है, वहां किस रास्ते से जा रहा है, क्यांेकि अक्सर बारिश के मौसम में देश के हर रास्ते गड्डों में बदल जाते हैं। ऐसे में देश कहां जा रहा है से ज्यादा बेहतर ये सोचना होता है कि देश गड्डों वाले रास्ते से ना जाए। लेकिन अगर सारे देश की सड़कें गड्डों से भरी हों तो अक्सर देश के सामने कहीं जाने के लिए गड़डों से होकर जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता। वैसे भी कहा जाता है कि विकास के रास्ते में मुसीबत रूपी गड्डे या गड्डों रूपी मुसीबतें आती ही रहती हैं। हमें इन गड्डों या मुसीबतों से घबराना नहीं चाहिए और महामानव के आदेश पर देश को विकास की गड्डों भरी रोड पर चलाते रहना चाहिए। 


 देश में सड़कें बनाने की जिम्मेदारी शायद गडकरी जी की है, अब गडकरी जी के सरनेम के पहले दो शब्द और गड्डे के पहले दो शब्द आपस में मिलते-जुलते से हैं इसलिए कभी-कभी ये कनफ्यूज़न होना लाज़िमी है कि सड़कों पर गड्डे इसलिए होते हैं क्योंकि इनका नाम गडकरी है, या फिर इनका नाम गडकरी इसलिए रखा गया ताकि सड़कों पर गड्डे होते रहें। हो सकता है कि इनका नाम असल में नितिन गड्डाकरी हो, जिसका रद्दोबदल गडकरी हो गया हो। खैर ये गहन जांच का विषय है और हम अभी इस गहन जांच के मूड में नहीं हैं। महामानव विदेश यात्राओं से लौट चुके हैं, और शायद अब अन्य विदेश यात्राओं की योजना बना रहे हों, कुछ देश अभी बाकी हैं, जहां उन्हें जाना है, उन देशों में जहां गड्डे नहीं होते, या कम से कम इतने नहीं होते जितने अपने देश में होते हैं। हमारे देश में किसी जमाने में गड्डों की समस्या थी, अब नहीं है, क्योंकि एक्स्टरा टू ए बी वाले हमारे महामानव विश्वगुरु पी एम ने देश की सड़कें स्पेस टेकनालॉजी से बनवाना शुरु कर दिया है। जब से भारत की रोडस् स्पेस टेकनालॉजी से बनना शुरु हुई, पूरे ब्रहमांड की आंखें खुली की खुली रह गईं। ऐसी सड़कें बनी हैं स्पेस टेकनालॉजी से कि क्या कहिए, अब तो हो सकता है कि महामानव को जी सेवन, जी एट, और टी फोर्टी में न्यौता ही इसलिए मिल जाए कि वहां के, यानी वेस्ट के लोग ये जानना चाहते हैं कि आखिर ये कौन से स्पेस की कौन सी टेक्नालॉजी है जिससे अभी भारत की सड़कें बन रही हैं जिनमें और चाहे कुछ भी हो जाए, गड्डे नहीं हो रहे। हालांकि कुछ ऐसे भी नादान हैं जिन्हें इस टेकनालॉजी की नॉलेज नहीं है। 


अब जो टरक वाला है, जिसका टरक रोड के अंदर घुस गया है, वो महामानव को फॉलो नहीं करता, तो उसे पता ही नहीं था कि ये रोड स्पेस टेक्नालॉजी से बनी है, बस उसने जानबूझकर अपने टक से सड़क में गड्डा कर दिया। पूरी दुनिया में आपको बसें, कारें, टरक सड़कों पर चलते दिखते हैं, हमारे यहां यही स्पेस टेकनालॉजी वाली सड़क पर दिखते हैं, चलते इसलिए नहीं हैं कि स्पेस टेकनालॉजी में चलने की ज़रूरत नहीं बचती। चलना किसलिए है, भविष्य की दिशा स्पेस की दिशा है, सारी दुनिया स्पेस की रेस में लगी है, महामानव ने हमारे देश को अभी से स्पेस टेकनालॉजी का बना दिया है। और अभी तो सिर्फ सड़कें स्पेस टेकनालॉजी से बनी हैं, अभी तो सारे देश का पूरा इन्फ्रास्टरकचर स्पेस टेकनालॉजी से चलेगा। हमारे ब्रहमांडगुरु, जब विश्वगुरु बनने की रोड पर थे, वो एक छोटे से लेकिन बहुत महत्वपूर्ण राज्य के मुख्यमंत्री थे, और स्वघोषित देश गुरु थे, यही वो दौर था, जब उन्होने नाले की गैस से चाय बनते देखी थी,


ये वही दौर था जब हमारे वर्तमान ब्रहमांड गुरु ने किसी को नाले की गैस टक के बड़े वाले टायर में भरकर उसे एक जगह से दूसरी जगह ले जाते देखा था। आप महामानव की इन उपलब्धियों पर ग़ौर नहीं करते, और फिर विपक्षी ताने मारते हैं कि देश में कोई नया आविष्कार नहीं हो रहा। अरे महामानव के मुहं से निकली एक एक बात एक एक नया आविष्कार है, और आविष्कार नहीं है तो खोज तो मान लीजिए है ही है, अब इस पर विपक्षियों और तथाकथित प्रगतिशीलों की तरह कोई विवाद मत खड़ा कीजिए। वे नॉनबायोलॉजिकल हैं, 


गजब के इंजीनियर हैं, 


शानदार इतिहासकार हैं, 



 महान गणितज्ञ हैं टू ए बी वाला वीडियो 




महामानव पहले ही हमें बता चुके हैं कि पुल टूटना एक्ट ऑफ फ्रॉड होता है, लेकिन मेरा ख्याल है ऐसे एक्ट ऑफ फ्रॉड सिर्फ उन राज्यों में होते हैं, जहां भाजपा की सरकार नहीं होती, या जिन सरकारों पर महामानव का वरदहस्त नहीं होता। बाकी राज्यों में ये दुघर्टनाएं होती हैं, जिन पर अक्सर सरकारों का कंटोल नहीं होता। और इस पुल वाली घटना से महामानव को जोड़ना तो कतई नाइंसाफी है।



कितनी सही बात कही है। दुघर्टनाओं को भला कौन रोक सका है, रोड होंगी तो गड्डे होंगे ही होंगे, और अभी तो रुको। 



बस आप बताइए कि कहां, क्या कमी है, ये महामानव के मंत्री आपको उठवा लेंगे, उठवा के क्या करेंगे आपको पता नहीं है, हमें भी पता नहीं है, इसलिए एक देश के एक अच्छे नागरिक बनिए, अभी तो सुप्रीम कोर्ट ने भी कह दिया है कि भैये, ये फ्रीडम ऑफ स्पीच के चक्कर में मत रहिए, आपको अपनी जिम्मेदारी पता होनी चाहिए, नागरिक होने की, वरना सरकार बताएगी, पुलिस उठाएगी, और अदालत ऐसी की तैसी कर देगी, तो फ्रीडम ऑफ स्पीच, या लोकतंत्र जैसी फालतू बातों पर ध्यान मत दीजिए, अपनी खैरियत चाहते हैं, तो किसी तरह जी लेने ध्यान दीजिए। और सरकार, अदालत आदि का सम्मान कीजिए, उनकी पूजा कीजिए, सवाल पूछने की गलती से भी गलती मत कीजिएगा क्योंकि सरकार को सब पता रहता है। याद रखिए भाइयो भैनो, महामानव की महाटीम के महान मंत्रियों को हमेशा पता रहता है कि साल के कौन से महीनों में कौन से हादसे होते हैं, जिन्हें होने से कोई रोक नहीं सकता।


ये जो परमात्मा से सीधा कनेक्शन है नॉन बायोलॉजिकल महामानव का, उसी का नतीजा है कि इन्हें पता चल जाता है कि एक्सीडेंट तो होते रहेंगे, बच्चे तो मरते रहेंगे, गडडे तो होते रहेंगे, इन हादसों को कोई रोक नहीं सकता। हां महामानव चाहे ंतो रोक सकते हैं, लेकिन महामानव क्यों चाहेंगे भला? तुमने ऐसा कौन काम किया है कि महामानव इन हादसों को रोक सकें। अरे इससे याद आया, एक नये वाले हैं बागेश्वर बाबा, जिनके हाथ ही उनके मोबाइल हैं, और उससे वो सीधे ईश्वर से संपर्क साधते हैं, हालांकि हादसों के बारे में वो भी नहीं बताते, सिर्फ व्यक्तिगत बातचीत करते हैं, जैसे बच्चा कब पैदा होगा, नौकरी कब लगेगी टाइप सवालों के ही जवाब सीधे ईश्वर से पूछते हैं, हालांकि उन्होने सरकार को ये ऑफर दिया था कि वे उनकी सेवाएं ले, लेकिन जिस देश में खुद प्रधानमंत्री का परमात्मा से सीधे कनेक्शन हो, वो इन छुटभैये बाबाओं की सेवा क्यों लेने लगे। भई हम कुछ ना बोलेंगे, हमारे यहां रोड यानी रास्ते बिल्कुल ठीक हैं, बरसात होती है तो गडडे हो जाते हैं, गडडे हो जाते हैं तो पानी भर जाता है, पानी भर जाता है तो थोड़ी बहुत परेशानी होती है। लेकिन हम कभी शिकायत नहीं करते। बताइए, हमारे महामानव के सिर पर दुनिया भर का भार है, चिंताएं हैं, उनके मुख्यमंत्रियों के सिर पर तमाम तरह की जिम्मेदारियां हैं, और वो तुम्हारी इन छोटी-मोटी समस्याओं पर ध्यान देंगे। लानत है जी तुम पर। थोड़ा सा टैक्स क्या देते हो, तुम समझते हो कि सरकार तुम्हारे उपर ध्यान देगी। अरे तुम्हारी तनख्वाह जितनी होती है। महीने की नहीं बे, साल की, उतने मे ंतो महामानव का आधे समय का खाना होता है, और तुम्हें लगता है कि तुम टैक्स देते हो तो तुमने सरकार को खरीद लिया है। चुप रहो, शांत रहो, ज्यादा चूं-चपड़ मत करो। हमारे एक दोस्त कहने लगे कि भाई, ज़रा बारिश होती है कि लाइट कट जाती है। हमने फौरन मुहं पकड़ लिया। बताओ, इस बात का शुक्रगुज़ार होने की जगह कि लाइट आती है, वो इंसान इस बात की शिकायत कर रहा है कि लाइट कट जाती है। ये प्रगतिशीलों की यही सबसे बड़ी समस्या है, जब देखो शिकायत करेंगे, लोग मर रहे हैं, लड़कियों का बलात्कार हो रहा है, अरबों के घोटाले हो रहे हैं, महंगाई बढ़ रही है, इनकी शिकायतें कभी खत्म नहीं होती। और हम हैं कि लगातार कह रहे हैं कि पॉजीटिव पे ध्यान दो। डंका बज रहा है, महामानव को लगातार हर देश बुला-बुला कर अवार्ड दे रहा है। ये सब कोई सस्ता सौदा नहीं होता, सहना पड़ता है। समझे, बाकी कम को ज्यादा समझो और से चेतावनी..... 

 अच्छा, ग़ालिब इस बारे में सचमुच ओरिजनल कह गए हैं भाई 

 हमको मालूम है जन्नत की हक़ीकत लेकिन 

दिल के खुश रखने को ग़ालिब ये ख्याल अच्छा है 

 हमारे वाले ग़ालिब ने इसे यूं कहा है कि 

रोड तो जन्नत में भी ऐसी नहीं होती ग़ालिब 

कि अब्र बरसे और उसमें गडडे भी ना हों 

 तो जब जन्नत की सड़कों पर भी बरसात में गड्डे हो जाते हों तो तुम यहां सड़कों पर गडड़ों की शिकायत क्यों करते हो। खैर, महामानव के गुणगान करो, शिकायतें मत करो और अच्छे नागरिकों की तरह इस को भी लाइक करो और शेयर करो। ठीक है जनाब, फिर मिलें

सोमवार, 14 जुलाई 2025

समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता और अखंडता।

नमस्कार, लीजिए जनाब, मैं कपिल शर्मा एक बार फिर आपके सामने हूं। ये लो जी, दो दिन के लिए थोड़ा चुप क्या हुआ मैं, ये वामपंथियों, तथाकथित प्रगतिशीलों ने एक नया ही राग छेड़ दिया। महान संघ के महान सहकार्यवाहक दत्तात्रेय होसबले जी ने क्या ही सुंदर विचार दिया देश को, उन्होने कहा कि क्योंकि मूल संविधान में सोशलिस्ट यानी समाजवादी और सेक्युलर यानी पंथनिरपेक्ष शब्द नहीं थे, और इन्हें इमरजेंसी में जोड़ा गया था, इसलिए इन दोनो शब्दों को संविधान से हटाने पर विचार होना चाहिए। 



मेरा कहना है कि जब इमरजेंसी के दौरान किए गए संविधान संशोधनों को पलटने की बात हो ही रही है तो क्यों ना उस समय संविधान में जोड़े गए शब्द अखंडता को भी हटा ही दिया जाए। दरअसल मेरा मानना है कि होसबले जी शायद जल्दी में, या हड़बड़ी में अखंडता शब्द को अपने भाषण में शामिल करना भूल गए होंगे। वरना अखंडता शब्द को भी अपनी इस सूची में जरूर शामिल करते।



अपने जन्म के समय से ही संघ यानी राष्टीय स्वयंसेवक संघ बहुत ईमानदारी से समाजवाद, पंथनिरपेक्षता और अखंडता का विरोध करता आ रहा है। इन कथित प्रगतिशीलों को संघ की ये ईमानदारी नहीं दिखाई देती, 1925 से लेकर 2025 तक आर एस एस के स्वयंसेवकों ने हमेशा समानता, बंधुत्व और सर्वधर्मसमभाव का विरोध किया है। लेकिन सौ सालों की इस ईमानदारी को सलाम करने की बजाय आज, राहुल गांधी, अखिलेश यादव, वामपंथी पार्टियां इनके पीछे पड़ गए हैं। दरअसल ये सभी वामपंथी, प्रगतिशील, जैसे राहुल गांधी आदि पाश्चात्य विचारों के प्रभाव में इस कदर घिरे हुए हैं, कि वो सनातन परंपरा को नहीं जानते, हम सनातनी समाजवाद, समता, लोकतंत्र, आदि फालतू बातों में यकीन नहीं करते, हमने अपने जन्म के समय ही, गुप्त रूप से ये क़सम खाई थी, कि हम सनातन को स्थापित करके रहेंगे, वो तो हमारा बस नहीं चला, इसलिए हम चुप रहे, लेकिन इतने प्रयासों के बाद, आज जब हम सत्ता में आए हैं तो हमारे दिलों में जो भी खटकर्म है, हम उसे पूरा करके रहेंगे। हम भारत को बरबाद करके रहेंगे। 

 आज जब संघ की स्थापना के सौ साल पूरे होने में सिर्फ तीन महीने ही बाकी रह गए हैं, तब आर एस एस को अपनी स्थापना के सिद्धांतों की याद आ रही है तो इसमें आश्चर्य ही क्या है। संघ अपने जन्म के समय से ही संघ समाजवाद, पंथनिरपेक्षता और अखंडता से नफरत करता आया है। बल्कि अखंडता से दुश्मनी तो इस कदर रही कि वी ऑर आवर नेशनहुड डिफाइन्ड में माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर ने लिखा कि हिंदुस्तान हिंदुओं का राष्टर है। 



माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर की फोटो यानी अन्य धर्मों के लिए इसमें कोई जगह नहीं है। भारत में सिर्फ हिंदुओं को रहने दिया जाएगा, बाकी धर्मावलंबी अगर रहना चाहें तो उन्हें हिंदुओं के रहमो-करम पर दोयम दर्जे का नागरिक बन के रहना होगा। इसके लिए हमने पहले ही ज़मीन तैयार कर रखी है, हम ब्राहम्णों को सर्वोच्च दर्जा देते हैं, और बहुसंख्यक दलितों, आदिवासियों को वैसे ही दोयम दर्जे के इंसानों की दृष्टि से देखते हैं, कभी-कभी तो हम उन्हें इंसा नतक नहीं मानते, इसलिए अगर हिंदु और उसमें भी ब्राहम्णों के अलावा किसी और को पवित्र भारत भू पर रहना हो तो उसे दोयम दर्जे की हालत में ही रहना होगा। 

 अब जैसे समाजवाद को ही ले लीजिए। ये क्या मतलब हुआ कि सबको समान समझा जाए, क्यों समझा जाए सबको समान, ये तमाम प्रगतिशील, कांग्रेसी, वामपंथी और समाजवादी तो चाहते हैं कि ब्राहम्णों को उनके उच्चासनों से नीचे ले आया जाए, ब्राहम्णवाद की राह का असली रोड़ा यही समाजवाद है। इस समाजवाद की वजह से इस देश में दलित, आदिवासी, अन्य पिछड़ी जातियां, खुद को ब्राहम्णों के समकक्ष समझ रही हैं। महान सनातन परंपरा का यही सबसे बड़ा अपमान है कि इन सभी को समकक्ष इंसान माना जाए, जबकि परंपरा ये है ब्राहम्ण सबसे उंचे स्थान पर रहें। 



 इसीलिए हमारे माननीय, उपराष्टरपति श्री जगदीप धनकड़ जी को कहना पड़ा कि ये समाजवाद और पंथनिरपेक्षता और अखंडता, संविधान के नासूर हैं। बताइए, उनको कितनी तकलीफ हुई होगी, जब उन्हें मजबूरी में उसी संविधान की शपथ लेनी पड़ी होगी जिसमें ये नासूर हैं, और इसीलिए रह - रहकर उनकी कथनी और करनी में ये दर्द छलक-छलक पड़ता है। बताइए, किस देश में ऐसा होता है कि उप-राष्टपति खुद ही उस संविधान को नासूर कह दे जिसकी उसने शपथ ली हो, ऐसा उज्जवल चरित्र, ऐसे महान विचार, सिर्फ भाजपा और संघ द्वारा प्रशिक्षित महान विभूतियों में ही मिल सकते हैं। कहते हैं जैसा व्यक्ति सोचता है, वो खुद वैसा ही दिखने भी लगता है, श्री जगदीप धनखड़ जी बिल्कुल वैसे दिखते हैं जैसे उनके विचार हैं। उतने ही तेजोमय, उतने ही सनातनी, उतने ही समाजवाद और पंथनिरपेक्ष विरोधी। जगदीप धनकड़ के ऐसे महान विचार गाहे-बगाहे सुनाई देते रहे हैं, और उनके इन विचारों को अंतिम गति, अब जाकर मिली है। उपराष्टपति पद का ऐसा सदुपयोग आज तक किसी और को नहंी सूझा होगा। 

 बाकी भाजपा के अन्य मंत्रियों का तो कहना ही क्या। सुनते हैं कि भाजपा के खुद के संविधान में भी समाजवाद और पंथनिरपेक्षता का सिद्धांत है। 



 ज़रा पता करके बताइए, क्या ये सही है? उफफफ् अगर ऐसा है तो क्या गजब है, कि जिस पार्टी के पहले ही पन्ने पर लिखा हुआ हो कि पार्टी विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान तथा समाजवाद, पंथनिरपेक्षता और लोकतंत्र के सिद्धांतों के प्रति सच्ची, गौर कीजिएगा, सच्ची आस्था और निष्ठा रखेगी। और सिर्फ इतना ही नहीं दोस्तों, आगे तो और भी गजब है, इसमें लिखा है कि भारत की प्रभुसत्ता, एकता और अखंडता को कायम रखेगी। 

 नहीं, नहीं, नहीं, नहीं, नहीं, मैं ये नहीं मान सकता। आखिर भाजपा को किस मजबूरी में अपनी पार्टी के संविधान में समाजवाद, पंथनिरपेक्षता और अखंडता जैसे शब्द जोड़ने पड़े। याद रखिए दोस्तों, ये वही शब्द हैं, जिन्हें भारत के संविधान से हटाने की बात हो रही है, जिन्हे माननीय उपराष्टपति ने नासूर कहा है, जिन्हें सनातन के विरुद्ध बताया जा रहा है। मैं आप सबसे अपील करता हूं, कि एक सच्चे भाजपा वीर, या अगर आप उससे ज्यादा बड़े वाले हों, तो एक सच्चे संघी, भक्त होने के नाते, आज ही भाजपा को खत्म करने का आवाह्न करें, और ये कसम खाएं कि आप ऐसी किसी पार्टी का सदस्य नहीं होंगे जिसके संविधान के पहले की पन्ने में समाजवाद, पंथनिरपेक्षता और अखंडता शब्द आया हो। 


भारत के संविधान में ये शब्द तो मान लीजिए इंदिरा गांधी ने जोड़े, लेकिन आखिर भाजपा के संविधान में ये शब्द किसने जोड़े, मैं बहुत आहत हूं दोस्तों, भाजपा जैसी पार्टी जो सनातन वाली पार्टी है, एक ऐसी पार्टी जो संविधान के प्रति निष्ठावान रहने की कसम खाने वाले उपराष्टपति तक को, संविधान में लिखित शब्दों को नासूर कहने की प्रेरणा दे, वो पार्टी आखिर कैसे अपने पार्टी संविधान में इन नासूर शब्दों का इस्तेमाल, माफ कीजिएगा, प्रयोग कर सकती है। 

हेमंत बिस्व सरमा और शिवराजसिंह चौहान की फोटो मैं हेमंत बिस्व सरमा जैसे महान मुख्यमंत्री और यशस्वी भूतपूर्व मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान से ये अपील करता हूं कि भारत के संविधान से समाजवाद और पंथनिरपेक्ष शब्द के साथ ही अखंडता शब्द को हटाने की वकालत करें, क्योंकि ये शब्द भी 42वें संशोधन में ही जोड़ा गया था। साथ ही वे आज ही भाजपा के संविधान से भी इन शब्दों को हटा दें, या मेरा तो कहना है कि जिन नासूर शब्दों वाले संविधान वाली ये पार्टी है, उस पार्टी से ही इस्तीफा दे दें, और अपने लिए एक नई पार्टी का निर्माण करें, जो भारत के संविधान के उलट, समाजवाद, ही नहीं समता, समानता, धर्मनिरपेक्षता जैसे घातक सिद्धांतों का पालन ना करती हो। एक ऐसी पार्टी बनाएं, जो साफ कहे कि वो समानता, समाजवाद, पंथनिरपेक्षता, सर्वधर्मसमभाव, देश की अखंडता, और लोकतंत्र जैसे पाश्चात्य विचारों पर यकीन नहीं करती। ये क्या बात हुई कि जिन शब्दों को जगदीप धनकड़ नासूर कहें वो खुद पार्टी संविधान में शामिल हों।

 देखो भई, हालांकि मैं आहत हूं, लेकिन मैं इस देश का एक साधारण नागरिक हूं, एक जिम्मेदार नागरिक हूं, और इसलिए मैं ऐसी भाषा नहीं बोल सकता, जैसी उपराष्टपति संविधान में प्रयुक्त शब्दों के लिए बोल रहे हैं। अपनी संघ की टेनिंग के चलते, प्रधानमंत्री, जो स्वयंसेवक रहे हैं्र, और उनके सभी संघी मित्र जिस तरह के काम करते हैं, जिस तरह की भाषा बोलते हैं, वो सभ्य समाज में बोली जाने वाली भाषा तो है नहीं, तो मैं तो प्रधानमंत्री तक वाली भाषा नहीं बोल सकता, क्योंकि उनको मां के मरने के बाद समझ में आया कि उनका बायोलॉजिकल जनम नहीं हुआ। अब महामानव ठहरे महामानव वो ये कह सकते हैं, वो तो स्वयंसिद्ध नॉनबायोलॉजिकल हैं, लेकिन मुझे तो मेरी मां ने जन्म दिया, कुछ भी अशिष्ट बोला तो अब भी कान पकड़ लेती है। 



 हालांकि भाजपा के जितने लोग संवैधानिक पदों पर बैठे हैं, वो पहले ही कह चुके हैं कि वो पहले संघी, दूसरे भाजपाई, और फिर तीसरे नंबर पर कहीं जाकर अपने संवैधानिक पद के प्रति जिम्मेदारी निभाते हैं, लेकिन फिर भी बताते चलें, कि भारत के संविधान को सिर्फ तब तक मानना चाहिए जब तक उससे कुछ हल होता हो, कुछ हासिल होता हो, वरना उसे बदलने की पूरी कुचेष्टा करनी चाहिए। बताइए इतना ईमानदारी से कौन बताता है कि वो देश से पहले पार्टी बचाएंगे, देश से पहले पार्टी के प्रति वफादार हैं। सच बताएं आपको, ये वामपंथी जो एक विदेशी विचार के पीछे लगे हुए हैं, ये भारत का कोई भला नही ंकर सकते हैं, ये लोग मजदूरों को, आदिवासियों को, किसानों को, दलितों को समान अधिकार देना चाहते हैं, इस देश का मालिक बनाना चाहते हैं। लेकिन आर एस एस, हिंदू महासभा, और अब भाजपा, सत्ता में आ गए हैं, अब इनके कथित प्रगतिशीलों के इन समतावादी, समाजवादी मंसूबों पर पानी फेंक दिया जाएगा। पहले जमीन की जांच की जाएगी, जैसे आर एस एस से संविधान पर हमले का संकेत दिया जाएगा, फिर उसे वैद्यता देने के लिए उपराष्टपति उससे भी बड़ा हमला करेंगे, फिर तीसरे दर्जे का मोर्चा संभालेंगे, छोटे सिपाही, एक वर्तमान और एक भूतपूर्व मुख्यमंत्री, इन हमलों को सीधा मुख्यालय से कोऑर्डिनेट किया जाएगा। और अंत में सीधा हमला किया जाएगा, अगर ये तीर चल गया, तो फिर सीधे संविधान को निशाने पर लिया जाएगा, चारों तरफ मनुस्मृति आदि की स्थापना की तैयारी की जाएगी, और जैसे ही मौका लगेगा, मनुस्मृति को स्थापित कर दिया जाएगा। हिंदु राज की स्थापना होगी, ब्राहम्णों को सर्वोच्च स्थान मिलेगा, और बाकियों को नागरिकता से भी वंचित कर दिया जाएगा। और तब दोस्तों सच में, यानी सच्ची वाला रामराज स्थापित होगा।

 बाकी आप सब तैयार रहिए, अभी उपराष्टपति की ओर से सिर्फ पहला इशारा मिला है, जिसमें समाजवाद और पंथनिरपेक्षता को नासूर कहा गया है, शायद अब वे जल्द ही, अखंडता, प्रभुसत्ता जैसे शब्दों को भी नासूर कह कर हटाने की वकालत करें। उपराष्टपति का पद एक संवैधानिक पद है, यानी संविधान से ये पद बना है, अब आपकी मुसीबत ये है कि जो संवैधानिक पद है, वही अगर संविधान को या उसमें जो शब्द लिखे हैं उन्हें नासूर कहे तो आप उसे क्या कहेंगे। भई जो भी कहना है आप ही कहिए, मैं ऐसा कोई खतरा नहीं उठा सकता। प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, या भाजपा में शामिल कोई भी व्यक्ति, कुछ भी कह दे, गाली दे, लोगों को गोली मारने की धमकी दे, ना पुलिस, ना जज, ना कोई और ताक़त उसे कुछ कह सकती है, लेकिन हम और आप अगर ये भी कह दें कि जनता को प्रतिरोध करना चाहिए तो उमर खालिद की तरह पांच साल बिना किसी सुनवाई के जेल में बंद किया जा सकता है। अरे यही लोकतंत्र है इस देश का, पर मामला ये है कि अभी दिखावे के लिए अदालत और सुनवाई करनी पड़ती है, जैसे ही माननीय जगदीप धनखड़ जी और उनके सहयोगियों, सह कार्यवाहकों और प्रधानमंत्री के मन की बात पूरी हो जाएगी, तो ये पुलिस, अदालत का झंझट की खत्म हो जाएगा, जो भी आलोचना करने की सोचेगा भी, उसे सीधा.........समझे। यानी तब असली रामराज आएगा। तो मैं तो डरता हूं, पहले ही बताया है आपको, तो बस चुप रहूंगा। आप भी चुप रहिएगा। बाकी आपकी मर्जी है।

 चचा ग़ालिब इस मामले में, यानी संविधान के मामले में भी बहुत अच्छा सा शेर कह गए हैं, मुलाहिजा फरमाइए। 

 क्यों करते हो हंगामा, दो लफ्ज बदलने पर
 सरकार हमारी है, आईन बदल देंगे। 

 ग़ालिब के ये शेर उनके नॉर्मल दीवान में नहीं मिलते, ये उनके खास दीवान के शेर है, जो उनके खास दीवानों को ही हासिल हैं। बाकी खैरियत मनाएं और विश्वगुरु के दौर में जान की खैर मनाएं। और भाइयों और भैनों, लाइक करना, सब्सक्राइब करना, शेयर करना, आपका फर्ज है, कमेंट की छूट है कर सकें तो करें, ना कर सकें तो भी करें।

महामानव-डोलांड और पुतिन का तेल

 तो भाई दुनिया में बहुत कुछ हो रहा है, लेकिन इन जलकुकड़े, प्रगतिशीलों को महामानव के सिवा और कुछ नहीं दिखाई देता। मुझे तो लगता है कि इसी प्रे...