शनिवार, 26 जुलाई 2025

बिहार में खेला होबे......




नमस्कार मैं कपिल, एक बार फिर आपके साथ, यानी आपके सामने। इलेक्शन कमीशन उर्फ बीजेपी ने कमाल कर दिया भाई, वाह, वाह भइ वाह। अगर इलेक्शन कमीशन कोई व्यक्ति होता तो सच कह रहा हूं इस वक्त मैं उसके हाथ चूम लेता। क्या बढ़िया दाव खेला है भई वाह। 





सारी की सारी विपक्षी पार्टियां चित्त, चारों खाने चित्त। भई बड़ी चिंता हो रही थी बिहार इलैक्शन की, हालत इतने खराब थे कि पहलगाम आतकंवादी हमले के फौरन बाद जब महामानव वापस भारत आए, तो पहलगाम नहीं गए, सीधे पहुंचे बिहार और इलैक्शन रैली का आगाज़ कर दिया। देश, आतंकवादी हमला, दुनिया भर में बेइज्जती, टरम्प की रगड़ाई, सारी बातें एक तरफ, बिहार का इलैक्शन एक तरफ। ये जादूगर की जादूगरी है जनाब, इससे ज्यादा और क्या कहा जाए। 


एक ही शॉट मारा, ऐसा मारा कि चहुं ओर मच गया हाहाकार, वामपंथी, प्रगतिशील, और ये समाजवादी-फमाजवादी सब के सब धराशायी हो गए। किसी को कुछ समझ ही नहीं आ रहा कि बोलें तो बोलें क्या, करें तो करें क्या।


दोस्तों आप सब जानते हैं कि अगले कुछ ही महीनों में बिहार चुनाव होने वाले हैं, चुनाव अयोग ने इन चुनावों के कुछ तीन ही महीनों में इलैक्टोरल रोल के रिवीज़न का खेला चालू कर दिया है, अब ये इतना जबरदस्त कदम है कि महामानव निश्चिंत होकर अपने अब तक के सबसे लंबे विदेशी दौरे पर निकल लिए हैं। 


भई अब उन्हें ज़रूरत भी क्या है देश में रहने की, जब उनका सारा काम चुनाव आयोग को ही कर देना है तो बिहार आखिर जाता कहां है। ये चुनाव तो आप समझ लीजिए कि अब बस अपने ही हाथ में है, कोई कितना भी जोर लगा ले। और मुझे तो लगता है कि इसका आइडिया भी राहुल गांधी ने ही दिया है। अब आप पूछेंगे कैसे? तो भैये आपको याद होगा कि महाराष्टर में अपनी हार के बाद राहुल गांधी ने सीधे-सीधे चुनाव आयोग पर गंभीर आरोप लगा दिए थे, और वो भी सबूतों के साथ। बताइए, चुनाव आयोग जैसी पवित्र संस्था पर आरोप और वो भी तथ्यों के साथ, ऐसा पहले कभी ना हुआ होगा। चुनाव अयोग से जवाब देते नहीं बन पड़ रहा था, महामानव की पूरी टीम चुनाव आयोग की तरफ से राहुल गांधी को घेरने में लगी हुई थी, लेकिन विवाद है कि थमने का नाम ही नहीं ले रहा।


बल्कि चुनाव आयोग घिरता नज़र आ रहा था। अब इसके बाद बिहार में दोबारा महाराष्टर और हरियाणा जैसा काम नहीं किया जा सकता था, तो फिर क्या करें। जी हां, इसीलिए बिहार में ये नया खेला चालू किया गया। अब बोल, क्या कर लोगे। एक महीने में सवा लाख स्वयंसेवक बिहार के इलैक्टोरल रोल को पूरी तरह ठीक कर देंगे। क्या समझे। दिन हैं तीस, स्वयंसेवक हैं सवा लाख, बाकी सरकारी कर्मचारी आदि तो हैं ही, अब मांगे राहुल गांधी जवाब, सब कुछ होगा, तुम्हारी नज़रों के सामने होगा, और हम भी देखें कि तुम क्या कर लेते हो। 






चुनाव आयोग उर्फ भाजपा ने दावा किया है कि वो 25 जून से 25 जुलाई के बीच, यानी सिफ तीस दिनों में पूरे बिहार की 13 करोड़ जनता का एस आई आर करवा देंगे। इसी तीस दिन की अवधि में प्रशिक्षण भी दिया जाएगा, तीन बार घर-घर पहुंचा भी जाएगा और फिर सबको इस बारे में बता भी दिया जाएगा। ऐसे असंभव कामों को कैसे अंजाम देना है ये चुनाव आयोग उर्फ भाजपा अच्छी तरह जानते हैं। 



जैसे महाराष्टर में राहुल गांधी ने एक तथ्य पेश किया कि चुनाव के दिन, चुनाव का समय खत्म होन के बाद 600 मतदाताओं ने वोट किया, अब सवाल ये है कि अगर एक मतदाता को वोट करने में 1 मिनट का भी समय लगता है तो 600 मतदाताओं को कुल 10 घंटे लगते हैं। लेकिन चुनाव आयोग के अनुसार ये जादू से संभव है, जो जादू की छड़ी चुनाव आयोग के पास है, उससे वो तीस दिनों में धरती की परिक्रमा करके, सात समंदर पार करके, नीली आंखो वाली राजकुमारी के महल की सातवीं मंजिल पर बने बाग से सुनहरा फूल लेकर आ सकता है, चुनाव आयोग के पास जो जादुई चीजें हैं, उनमें उड़ने वाला घोड़ा, भूत की चोटी और अलादिन वाला चिराग भी शामिल है। ऐसे में योगेन्द्र यादव समेत तमाम लोग, जिनका काम ही भाजपा उर्फ चुनाव आयोग पर बेवजह शक करना, और महामानव के एकछतरी राज की राह में रोड़ा अटकाना है, शक कर रहे हैं, सवाल कर रहे हैं, और लगातार जनता के दिमाग में सवाल पैदा कर रहे हैं उन्हें सावधान रहना चाहिए। दोस्तों सवाल पूछने से लोकतंत्र नहीं बचता बल्कि लोकतंत्र वही सबसे अच्छा होता है जिसमंे किसी को सवाल ना पूछने दिया जाए। 





दरअसल अब लोकतंत्र का सवाल आ गया है तो पहले इसका ही जवाब ले लिया जाए। मेरा मानना है कि ये चुनाव, वोट आदि लोकतंत्र नहीं हैं। चुनाव आयोग ही लोकतंत्र है। चुनाव आयोग ये जो कर रहा है, उससे लोकतंत्र का ही भला होगा। बड़े - बड़े विद्वान कहते हैं कि जनता की भागीदारी ही लोकतंत्र का आधार है। ग़लत कहते हैं विद्वान, जनता की भागीदारी लोकतंत्र नहीं है। चुनाव आयोग की घोषणा लोकतंत्र है। ये जो आपने बचपन में परिभाषा पढ़ी है लोकतंत्र की, कि जनता का, जनता के लिए, जनता द्वारा शासन लोकतंत्र है, बिल्कुल ग़लत परिभाषा है। दरअसल ये लोकतंत्र की नहीं, बल्कि डेमोक्रेसी की परिभाषा है, जो पश्चिम के संस्कार हैं, वहां डेमोक्रेसी की ये वाली परिभाषा चलती है। यहां भारत में लोकतंत्र की सही परिभाषा ये है कि चुनाव आयोग की, चुनाव अयोग के लिए, चुनाव आयोग द्वारा की गई घोषणा या कार्य ही लोकतंत्र है। इसमें जनता का, न्यायपूर्ण प्रक्रिया, निष्पक्षता, पारदर्शिता आदि की कोई जगह ही नहीं है, क्योंकि इनकी जरूरत नहीं है। बताइए, भारतीय जनता पार्टी कह रही है कि चुनाव आयोग सही कर रहा है, चुनाव आयोग कह रहा है कि वो सही कह और कर रहा है, तब बाकी सारे विपक्षी दल इस बात पर क्यों अड़े हुए हैं कि चुनाव में जनता की भागीदारी सुनिश्चित की जाए। मेरी तो भाजपा उर्फ चुनाव आयोग से ये अपील है कि पहले तो इन सब सवाल करने वालों को, अर्बन नक्सलों को, तथाकथित प्रगतिशीलों को, वामपंथियों को जेल भेज दिया जाए, उसके बाद बिहार में चुनाव की घोषणा की जाए। फिर एक दिन अचानक घोषणा की जाए कि चुनाव आयोग को बिहार की जनता के मन की बात पता चल गई है और चुनाव आयोग ही ये फैसला कर दे कि चुनाव में जीता कौन। आखिर करना तो आपको यही है।


इन वामपंथियों की जितनी बातें आप सुनेंगे, आपकी चिंता उतनी ही बढ़ती जाएगी।






सीधी से बात है भई जो इन वामपंथियों की समझ नहीं आ रही। अच्छा बताइए तो, जनता का काम क्या होता है। मने किसी देश में जनता का रोल यानी भूमिका क्या होती है। 

1.  मजदूरी करना, खेती करना, और भी जितनी मेहनत होती है वो करना

2. जयकारे लगाना, महामानव के नाम के नारे लगाना,

3. कांवड लाना और 

4. वोट डालना

अब इसमें सबसे महत्वूर्ण काम है वोट डालना, जिसकी सारी जिम्मेदारी चुनाव आयोग की है। तो अब चुनाव आयोग ने डिसाइड किया है कि ये तय भी वही करेगा कि कौन इस देश का नागरिक है, और कौन नहीं। सीधी सिम्पल सी बात है जो आपको समझ नहीं आ रही। देखिए भाजपा उर्फ चुनाव आयोग ने सीधा-सीधी ये किया है कि जब उन्हें ये शंका होगी कि जनता उन्हें नहीं चुनने वाली, तो वो खुद ही ये तय कर लेंगे कि किस जनता को चुनाव का अधिकार देना है और किसको नहीं। यानी अब चुनाव आयोग उर्फ भाजपा अपनी जनता का चुनाव करेगी, सिर्फ उसे ही वोट डालने का अधिकार होगा, जिसके लिए ये पक्का होगा कि वो भाजपा को वोट करेगा। बाकी लोग जाओ भाड़ में और विपक्ष जाए चूल्हे में। बड़े आए लोकतंत्र की दुहाई देने वाले। चुनाव आयोग उर्फ भाजपा ने अब ये कर दिया है कि जो वोटर है, पहले वो ये साबित करे कि वो इस देश का नागरिक है। 


और इसके लिए उसे पासपोर्ट, बर्थ सर्टिफिकेट, सरकारी नौकरी या पेंशन की आई डी, जाति प्रमाणपत्र, देना होगा।

अरे हां, आधार बैंक अकाउंट के लिए चलेगा, वोट के लिए नहीं, डाइविंग लाइसेंस के लिए आधार चलेगा, वोट के लिए नहीं, नौकरी के लिए आधार चलेगा, वोट के लिए नहीं। कुल मिलाकर हर काम में आधार जरूरी है, वोटिंग छोड़ कर। समझे क्या। बचवा समझे थे कि आधार बनवा लिए हैं, अब मजा से सरकार चुनेंगे, भले हो भाजपा उर्फ चुनाव आयोग का, आधार को, और खुद वोटर आई डी को ही अमान्य कर दिया है। बढ़िया किए हैं जी, ये लोग वोटर आई डी ले के और जिस किसी को मन किया वोट कर देता है, पिछली बार भी तेजस्वी यादव के पार्टी को लगभग जितवा ही दिया था। इस जनता पर भरोसा नहीं किया जा सकता, इसलिए, वोटर आई डी को ही अमान्य कर दीजिए, और स्वयंसेवकों को काम पर लगा दीजिए कि वो पहचान करे कि कौन लोग, चुनाव आयोग को वोट करेगा, मेरा मतलब, जिसे चुनाव अयोग चाहे उसे वोट करेगा, और जौन नहीं करेगा, उसे वोट ही नही ंदेने दिया जाएगा। बढ़िया। 


बल्कि हम तो कहें, देश भर में जो राष्टीय स्वयंसेवक हैं, उन्हें ही स्वयंसेवक का काम पर लगा दिया जाए, ताकि शक-शुबह की कोई गुंजाइश ही ना रहे, और सारा काम भली तरह से निपट जाए। महामानव जब तक लौट कर आएंगे अपनी इस वाली विदेश यात्रा से तब तक चुनाव आयोग उनके लिए सही तरह के चुनाव का इंतजाम कर चुका होगा। 

तो बोलो चुनाव आयोग उर्फ भाजपा की.......

अबे जय बोलो बे....सारे मिल कर....


अच्छा मिजाज़ आपका थोड़ा परेशान लगता है तो फिर चुनाव पर ग़ालिब का ये शेर सुनिए


जब जान लइहैं ओ कि तुम्हे वोट ना देबू

तब छीन लेंगे तुमसे वोट देने का अधिकार बाबू


हम जान रहे हैं कि ज़बान थोड़ा चेंज हो गया है ग़ालिब चचा का, लेकिन सेर तो बिहार के बारे में है, तो वइसा ही लिखे हैं ना जी.....बुरा न मानिएगा।


नमस्ते

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