सोमवार, 14 जुलाई 2025

समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता और अखंडता।

नमस्कार, लीजिए जनाब, मैं कपिल शर्मा एक बार फिर आपके सामने हूं। ये लो जी, दो दिन के लिए थोड़ा चुप क्या हुआ मैं, ये वामपंथियों, तथाकथित प्रगतिशीलों ने एक नया ही राग छेड़ दिया। महान संघ के महान सहकार्यवाहक दत्तात्रेय होसबले जी ने क्या ही सुंदर विचार दिया देश को, उन्होने कहा कि क्योंकि मूल संविधान में सोशलिस्ट यानी समाजवादी और सेक्युलर यानी पंथनिरपेक्ष शब्द नहीं थे, और इन्हें इमरजेंसी में जोड़ा गया था, इसलिए इन दोनो शब्दों को संविधान से हटाने पर विचार होना चाहिए। 



मेरा कहना है कि जब इमरजेंसी के दौरान किए गए संविधान संशोधनों को पलटने की बात हो ही रही है तो क्यों ना उस समय संविधान में जोड़े गए शब्द अखंडता को भी हटा ही दिया जाए। दरअसल मेरा मानना है कि होसबले जी शायद जल्दी में, या हड़बड़ी में अखंडता शब्द को अपने भाषण में शामिल करना भूल गए होंगे। वरना अखंडता शब्द को भी अपनी इस सूची में जरूर शामिल करते।



अपने जन्म के समय से ही संघ यानी राष्टीय स्वयंसेवक संघ बहुत ईमानदारी से समाजवाद, पंथनिरपेक्षता और अखंडता का विरोध करता आ रहा है। इन कथित प्रगतिशीलों को संघ की ये ईमानदारी नहीं दिखाई देती, 1925 से लेकर 2025 तक आर एस एस के स्वयंसेवकों ने हमेशा समानता, बंधुत्व और सर्वधर्मसमभाव का विरोध किया है। लेकिन सौ सालों की इस ईमानदारी को सलाम करने की बजाय आज, राहुल गांधी, अखिलेश यादव, वामपंथी पार्टियां इनके पीछे पड़ गए हैं। दरअसल ये सभी वामपंथी, प्रगतिशील, जैसे राहुल गांधी आदि पाश्चात्य विचारों के प्रभाव में इस कदर घिरे हुए हैं, कि वो सनातन परंपरा को नहीं जानते, हम सनातनी समाजवाद, समता, लोकतंत्र, आदि फालतू बातों में यकीन नहीं करते, हमने अपने जन्म के समय ही, गुप्त रूप से ये क़सम खाई थी, कि हम सनातन को स्थापित करके रहेंगे, वो तो हमारा बस नहीं चला, इसलिए हम चुप रहे, लेकिन इतने प्रयासों के बाद, आज जब हम सत्ता में आए हैं तो हमारे दिलों में जो भी खटकर्म है, हम उसे पूरा करके रहेंगे। हम भारत को बरबाद करके रहेंगे। 

 आज जब संघ की स्थापना के सौ साल पूरे होने में सिर्फ तीन महीने ही बाकी रह गए हैं, तब आर एस एस को अपनी स्थापना के सिद्धांतों की याद आ रही है तो इसमें आश्चर्य ही क्या है। संघ अपने जन्म के समय से ही संघ समाजवाद, पंथनिरपेक्षता और अखंडता से नफरत करता आया है। बल्कि अखंडता से दुश्मनी तो इस कदर रही कि वी ऑर आवर नेशनहुड डिफाइन्ड में माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर ने लिखा कि हिंदुस्तान हिंदुओं का राष्टर है। 



माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर की फोटो यानी अन्य धर्मों के लिए इसमें कोई जगह नहीं है। भारत में सिर्फ हिंदुओं को रहने दिया जाएगा, बाकी धर्मावलंबी अगर रहना चाहें तो उन्हें हिंदुओं के रहमो-करम पर दोयम दर्जे का नागरिक बन के रहना होगा। इसके लिए हमने पहले ही ज़मीन तैयार कर रखी है, हम ब्राहम्णों को सर्वोच्च दर्जा देते हैं, और बहुसंख्यक दलितों, आदिवासियों को वैसे ही दोयम दर्जे के इंसानों की दृष्टि से देखते हैं, कभी-कभी तो हम उन्हें इंसा नतक नहीं मानते, इसलिए अगर हिंदु और उसमें भी ब्राहम्णों के अलावा किसी और को पवित्र भारत भू पर रहना हो तो उसे दोयम दर्जे की हालत में ही रहना होगा। 

 अब जैसे समाजवाद को ही ले लीजिए। ये क्या मतलब हुआ कि सबको समान समझा जाए, क्यों समझा जाए सबको समान, ये तमाम प्रगतिशील, कांग्रेसी, वामपंथी और समाजवादी तो चाहते हैं कि ब्राहम्णों को उनके उच्चासनों से नीचे ले आया जाए, ब्राहम्णवाद की राह का असली रोड़ा यही समाजवाद है। इस समाजवाद की वजह से इस देश में दलित, आदिवासी, अन्य पिछड़ी जातियां, खुद को ब्राहम्णों के समकक्ष समझ रही हैं। महान सनातन परंपरा का यही सबसे बड़ा अपमान है कि इन सभी को समकक्ष इंसान माना जाए, जबकि परंपरा ये है ब्राहम्ण सबसे उंचे स्थान पर रहें। 



 इसीलिए हमारे माननीय, उपराष्टरपति श्री जगदीप धनकड़ जी को कहना पड़ा कि ये समाजवाद और पंथनिरपेक्षता और अखंडता, संविधान के नासूर हैं। बताइए, उनको कितनी तकलीफ हुई होगी, जब उन्हें मजबूरी में उसी संविधान की शपथ लेनी पड़ी होगी जिसमें ये नासूर हैं, और इसीलिए रह - रहकर उनकी कथनी और करनी में ये दर्द छलक-छलक पड़ता है। बताइए, किस देश में ऐसा होता है कि उप-राष्टपति खुद ही उस संविधान को नासूर कह दे जिसकी उसने शपथ ली हो, ऐसा उज्जवल चरित्र, ऐसे महान विचार, सिर्फ भाजपा और संघ द्वारा प्रशिक्षित महान विभूतियों में ही मिल सकते हैं। कहते हैं जैसा व्यक्ति सोचता है, वो खुद वैसा ही दिखने भी लगता है, श्री जगदीप धनखड़ जी बिल्कुल वैसे दिखते हैं जैसे उनके विचार हैं। उतने ही तेजोमय, उतने ही सनातनी, उतने ही समाजवाद और पंथनिरपेक्ष विरोधी। जगदीप धनकड़ के ऐसे महान विचार गाहे-बगाहे सुनाई देते रहे हैं, और उनके इन विचारों को अंतिम गति, अब जाकर मिली है। उपराष्टपति पद का ऐसा सदुपयोग आज तक किसी और को नहंी सूझा होगा। 

 बाकी भाजपा के अन्य मंत्रियों का तो कहना ही क्या। सुनते हैं कि भाजपा के खुद के संविधान में भी समाजवाद और पंथनिरपेक्षता का सिद्धांत है। 



 ज़रा पता करके बताइए, क्या ये सही है? उफफफ् अगर ऐसा है तो क्या गजब है, कि जिस पार्टी के पहले ही पन्ने पर लिखा हुआ हो कि पार्टी विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान तथा समाजवाद, पंथनिरपेक्षता और लोकतंत्र के सिद्धांतों के प्रति सच्ची, गौर कीजिएगा, सच्ची आस्था और निष्ठा रखेगी। और सिर्फ इतना ही नहीं दोस्तों, आगे तो और भी गजब है, इसमें लिखा है कि भारत की प्रभुसत्ता, एकता और अखंडता को कायम रखेगी। 

 नहीं, नहीं, नहीं, नहीं, नहीं, मैं ये नहीं मान सकता। आखिर भाजपा को किस मजबूरी में अपनी पार्टी के संविधान में समाजवाद, पंथनिरपेक्षता और अखंडता जैसे शब्द जोड़ने पड़े। याद रखिए दोस्तों, ये वही शब्द हैं, जिन्हें भारत के संविधान से हटाने की बात हो रही है, जिन्हे माननीय उपराष्टपति ने नासूर कहा है, जिन्हें सनातन के विरुद्ध बताया जा रहा है। मैं आप सबसे अपील करता हूं, कि एक सच्चे भाजपा वीर, या अगर आप उससे ज्यादा बड़े वाले हों, तो एक सच्चे संघी, भक्त होने के नाते, आज ही भाजपा को खत्म करने का आवाह्न करें, और ये कसम खाएं कि आप ऐसी किसी पार्टी का सदस्य नहीं होंगे जिसके संविधान के पहले की पन्ने में समाजवाद, पंथनिरपेक्षता और अखंडता शब्द आया हो। 


भारत के संविधान में ये शब्द तो मान लीजिए इंदिरा गांधी ने जोड़े, लेकिन आखिर भाजपा के संविधान में ये शब्द किसने जोड़े, मैं बहुत आहत हूं दोस्तों, भाजपा जैसी पार्टी जो सनातन वाली पार्टी है, एक ऐसी पार्टी जो संविधान के प्रति निष्ठावान रहने की कसम खाने वाले उपराष्टपति तक को, संविधान में लिखित शब्दों को नासूर कहने की प्रेरणा दे, वो पार्टी आखिर कैसे अपने पार्टी संविधान में इन नासूर शब्दों का इस्तेमाल, माफ कीजिएगा, प्रयोग कर सकती है। 

हेमंत बिस्व सरमा और शिवराजसिंह चौहान की फोटो मैं हेमंत बिस्व सरमा जैसे महान मुख्यमंत्री और यशस्वी भूतपूर्व मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान से ये अपील करता हूं कि भारत के संविधान से समाजवाद और पंथनिरपेक्ष शब्द के साथ ही अखंडता शब्द को हटाने की वकालत करें, क्योंकि ये शब्द भी 42वें संशोधन में ही जोड़ा गया था। साथ ही वे आज ही भाजपा के संविधान से भी इन शब्दों को हटा दें, या मेरा तो कहना है कि जिन नासूर शब्दों वाले संविधान वाली ये पार्टी है, उस पार्टी से ही इस्तीफा दे दें, और अपने लिए एक नई पार्टी का निर्माण करें, जो भारत के संविधान के उलट, समाजवाद, ही नहीं समता, समानता, धर्मनिरपेक्षता जैसे घातक सिद्धांतों का पालन ना करती हो। एक ऐसी पार्टी बनाएं, जो साफ कहे कि वो समानता, समाजवाद, पंथनिरपेक्षता, सर्वधर्मसमभाव, देश की अखंडता, और लोकतंत्र जैसे पाश्चात्य विचारों पर यकीन नहीं करती। ये क्या बात हुई कि जिन शब्दों को जगदीप धनकड़ नासूर कहें वो खुद पार्टी संविधान में शामिल हों।

 देखो भई, हालांकि मैं आहत हूं, लेकिन मैं इस देश का एक साधारण नागरिक हूं, एक जिम्मेदार नागरिक हूं, और इसलिए मैं ऐसी भाषा नहीं बोल सकता, जैसी उपराष्टपति संविधान में प्रयुक्त शब्दों के लिए बोल रहे हैं। अपनी संघ की टेनिंग के चलते, प्रधानमंत्री, जो स्वयंसेवक रहे हैं्र, और उनके सभी संघी मित्र जिस तरह के काम करते हैं, जिस तरह की भाषा बोलते हैं, वो सभ्य समाज में बोली जाने वाली भाषा तो है नहीं, तो मैं तो प्रधानमंत्री तक वाली भाषा नहीं बोल सकता, क्योंकि उनको मां के मरने के बाद समझ में आया कि उनका बायोलॉजिकल जनम नहीं हुआ। अब महामानव ठहरे महामानव वो ये कह सकते हैं, वो तो स्वयंसिद्ध नॉनबायोलॉजिकल हैं, लेकिन मुझे तो मेरी मां ने जन्म दिया, कुछ भी अशिष्ट बोला तो अब भी कान पकड़ लेती है। 



 हालांकि भाजपा के जितने लोग संवैधानिक पदों पर बैठे हैं, वो पहले ही कह चुके हैं कि वो पहले संघी, दूसरे भाजपाई, और फिर तीसरे नंबर पर कहीं जाकर अपने संवैधानिक पद के प्रति जिम्मेदारी निभाते हैं, लेकिन फिर भी बताते चलें, कि भारत के संविधान को सिर्फ तब तक मानना चाहिए जब तक उससे कुछ हल होता हो, कुछ हासिल होता हो, वरना उसे बदलने की पूरी कुचेष्टा करनी चाहिए। बताइए इतना ईमानदारी से कौन बताता है कि वो देश से पहले पार्टी बचाएंगे, देश से पहले पार्टी के प्रति वफादार हैं। सच बताएं आपको, ये वामपंथी जो एक विदेशी विचार के पीछे लगे हुए हैं, ये भारत का कोई भला नही ंकर सकते हैं, ये लोग मजदूरों को, आदिवासियों को, किसानों को, दलितों को समान अधिकार देना चाहते हैं, इस देश का मालिक बनाना चाहते हैं। लेकिन आर एस एस, हिंदू महासभा, और अब भाजपा, सत्ता में आ गए हैं, अब इनके कथित प्रगतिशीलों के इन समतावादी, समाजवादी मंसूबों पर पानी फेंक दिया जाएगा। पहले जमीन की जांच की जाएगी, जैसे आर एस एस से संविधान पर हमले का संकेत दिया जाएगा, फिर उसे वैद्यता देने के लिए उपराष्टपति उससे भी बड़ा हमला करेंगे, फिर तीसरे दर्जे का मोर्चा संभालेंगे, छोटे सिपाही, एक वर्तमान और एक भूतपूर्व मुख्यमंत्री, इन हमलों को सीधा मुख्यालय से कोऑर्डिनेट किया जाएगा। और अंत में सीधा हमला किया जाएगा, अगर ये तीर चल गया, तो फिर सीधे संविधान को निशाने पर लिया जाएगा, चारों तरफ मनुस्मृति आदि की स्थापना की तैयारी की जाएगी, और जैसे ही मौका लगेगा, मनुस्मृति को स्थापित कर दिया जाएगा। हिंदु राज की स्थापना होगी, ब्राहम्णों को सर्वोच्च स्थान मिलेगा, और बाकियों को नागरिकता से भी वंचित कर दिया जाएगा। और तब दोस्तों सच में, यानी सच्ची वाला रामराज स्थापित होगा।

 बाकी आप सब तैयार रहिए, अभी उपराष्टपति की ओर से सिर्फ पहला इशारा मिला है, जिसमें समाजवाद और पंथनिरपेक्षता को नासूर कहा गया है, शायद अब वे जल्द ही, अखंडता, प्रभुसत्ता जैसे शब्दों को भी नासूर कह कर हटाने की वकालत करें। उपराष्टपति का पद एक संवैधानिक पद है, यानी संविधान से ये पद बना है, अब आपकी मुसीबत ये है कि जो संवैधानिक पद है, वही अगर संविधान को या उसमें जो शब्द लिखे हैं उन्हें नासूर कहे तो आप उसे क्या कहेंगे। भई जो भी कहना है आप ही कहिए, मैं ऐसा कोई खतरा नहीं उठा सकता। प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, या भाजपा में शामिल कोई भी व्यक्ति, कुछ भी कह दे, गाली दे, लोगों को गोली मारने की धमकी दे, ना पुलिस, ना जज, ना कोई और ताक़त उसे कुछ कह सकती है, लेकिन हम और आप अगर ये भी कह दें कि जनता को प्रतिरोध करना चाहिए तो उमर खालिद की तरह पांच साल बिना किसी सुनवाई के जेल में बंद किया जा सकता है। अरे यही लोकतंत्र है इस देश का, पर मामला ये है कि अभी दिखावे के लिए अदालत और सुनवाई करनी पड़ती है, जैसे ही माननीय जगदीप धनखड़ जी और उनके सहयोगियों, सह कार्यवाहकों और प्रधानमंत्री के मन की बात पूरी हो जाएगी, तो ये पुलिस, अदालत का झंझट की खत्म हो जाएगा, जो भी आलोचना करने की सोचेगा भी, उसे सीधा.........समझे। यानी तब असली रामराज आएगा। तो मैं तो डरता हूं, पहले ही बताया है आपको, तो बस चुप रहूंगा। आप भी चुप रहिएगा। बाकी आपकी मर्जी है।

 चचा ग़ालिब इस मामले में, यानी संविधान के मामले में भी बहुत अच्छा सा शेर कह गए हैं, मुलाहिजा फरमाइए। 

 क्यों करते हो हंगामा, दो लफ्ज बदलने पर
 सरकार हमारी है, आईन बदल देंगे। 

 ग़ालिब के ये शेर उनके नॉर्मल दीवान में नहीं मिलते, ये उनके खास दीवान के शेर है, जो उनके खास दीवानों को ही हासिल हैं। बाकी खैरियत मनाएं और विश्वगुरु के दौर में जान की खैर मनाएं। और भाइयों और भैनों, लाइक करना, सब्सक्राइब करना, शेयर करना, आपका फर्ज है, कमेंट की छूट है कर सकें तो करें, ना कर सकें तो भी करें।

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