नमस्कार, मैं कपिल एक बार फिर आपके साथ यानी आपके सामने हूं। देश में बहुत कुछ हो रहा है, और इसलिए ऐसे मौके पर मेरा चुप बैठे रहना शोभा नहीं देता। चौमासा, यानी बारिश के मौसम में हमें इस बात पर गौर करना चाहिए कि ये देश कहां जा रहा है। लेकिन मेरे दोस्त कहते हैं कि पहले इस बात पर ग़ौर करना चाहिए कि जहां भी ये देश जा रहा है, वहां किस रास्ते से जा रहा है, क्यांेकि अक्सर बारिश के मौसम में देश के हर रास्ते गड्डों में बदल जाते हैं। ऐसे में देश कहां जा रहा है से ज्यादा बेहतर ये सोचना होता है कि देश गड्डों वाले रास्ते से ना जाए। लेकिन अगर सारे देश की सड़कें गड्डों से भरी हों तो अक्सर देश के सामने कहीं जाने के लिए गड़डों से होकर जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता। वैसे भी कहा जाता है कि विकास के रास्ते में मुसीबत रूपी गड्डे या गड्डों रूपी मुसीबतें आती ही रहती हैं। हमें इन गड्डों या मुसीबतों से घबराना नहीं चाहिए और महामानव के आदेश पर देश को विकास की गड्डों भरी रोड पर चलाते रहना चाहिए।
देश में सड़कें बनाने की जिम्मेदारी शायद गडकरी जी की है, अब गडकरी जी के सरनेम के पहले दो शब्द और गड्डे के पहले दो शब्द आपस में मिलते-जुलते से हैं इसलिए कभी-कभी ये कनफ्यूज़न होना लाज़िमी है कि सड़कों पर गड्डे इसलिए होते हैं क्योंकि इनका नाम गडकरी है, या फिर इनका नाम गडकरी इसलिए रखा गया ताकि सड़कों पर गड्डे होते रहें। हो सकता है कि इनका नाम असल में नितिन गड्डाकरी हो, जिसका रद्दोबदल गडकरी हो गया हो। खैर ये गहन जांच का विषय है और हम अभी इस गहन जांच के मूड में नहीं हैं। महामानव विदेश यात्राओं से लौट चुके हैं, और शायद अब अन्य विदेश यात्राओं की योजना बना रहे हों, कुछ देश अभी बाकी हैं, जहां उन्हें जाना है, उन देशों में जहां गड्डे नहीं होते, या कम से कम इतने नहीं होते जितने अपने देश में होते हैं। हमारे देश में किसी जमाने में गड्डों की समस्या थी, अब नहीं है, क्योंकि एक्स्टरा टू ए बी वाले हमारे महामानव विश्वगुरु पी एम ने देश की सड़कें स्पेस टेकनालॉजी से बनवाना शुरु कर दिया है। जब से भारत की रोडस् स्पेस टेकनालॉजी से बनना शुरु हुई, पूरे ब्रहमांड की आंखें खुली की खुली रह गईं। ऐसी सड़कें बनी हैं स्पेस टेकनालॉजी से कि क्या कहिए, अब तो हो सकता है कि महामानव को जी सेवन, जी एट, और टी फोर्टी में न्यौता ही इसलिए मिल जाए कि वहां के, यानी वेस्ट के लोग ये जानना चाहते हैं कि आखिर ये कौन से स्पेस की कौन सी टेक्नालॉजी है जिससे अभी भारत की सड़कें बन रही हैं जिनमें और चाहे कुछ भी हो जाए, गड्डे नहीं हो रहे। हालांकि कुछ ऐसे भी नादान हैं जिन्हें इस टेकनालॉजी की नॉलेज नहीं है।
अब जो टरक वाला है, जिसका टरक रोड के अंदर घुस गया है, वो महामानव को फॉलो नहीं करता, तो उसे पता ही नहीं था कि ये रोड स्पेस टेक्नालॉजी से बनी है, बस उसने जानबूझकर अपने टक से सड़क में गड्डा कर दिया। पूरी दुनिया में आपको बसें, कारें, टरक सड़कों पर चलते दिखते हैं, हमारे यहां यही स्पेस टेकनालॉजी वाली सड़क पर दिखते हैं, चलते इसलिए नहीं हैं कि स्पेस टेकनालॉजी में चलने की ज़रूरत नहीं बचती। चलना किसलिए है, भविष्य की दिशा स्पेस की दिशा है, सारी दुनिया स्पेस की रेस में लगी है, महामानव ने हमारे देश को अभी से स्पेस टेकनालॉजी का बना दिया है। और अभी तो सिर्फ सड़कें स्पेस टेकनालॉजी से बनी हैं, अभी तो सारे देश का पूरा इन्फ्रास्टरकचर स्पेस टेकनालॉजी से चलेगा। हमारे ब्रहमांडगुरु, जब विश्वगुरु बनने की रोड पर थे, वो एक छोटे से लेकिन बहुत महत्वपूर्ण राज्य के मुख्यमंत्री थे, और स्वघोषित देश गुरु थे, यही वो दौर था, जब उन्होने नाले की गैस से चाय बनते देखी थी,
ये वही दौर था जब हमारे वर्तमान ब्रहमांड गुरु ने किसी को नाले की गैस टक के बड़े वाले टायर में भरकर उसे एक जगह से दूसरी जगह ले जाते देखा था। आप महामानव की इन उपलब्धियों पर ग़ौर नहीं करते, और फिर विपक्षी ताने मारते हैं कि देश में कोई नया आविष्कार नहीं हो रहा। अरे महामानव के मुहं से निकली एक एक बात एक एक नया आविष्कार है, और आविष्कार नहीं है तो खोज तो मान लीजिए है ही है, अब इस पर विपक्षियों और तथाकथित प्रगतिशीलों की तरह कोई विवाद मत खड़ा कीजिए। वे नॉनबायोलॉजिकल हैं,
गजब के इंजीनियर हैं,
शानदार इतिहासकार हैं,
महान गणितज्ञ हैं टू ए बी वाला वीडियो
महामानव पहले ही हमें बता चुके हैं कि पुल टूटना एक्ट ऑफ फ्रॉड होता है, लेकिन मेरा ख्याल है ऐसे एक्ट ऑफ फ्रॉड सिर्फ उन राज्यों में होते हैं, जहां भाजपा की सरकार नहीं होती, या जिन सरकारों पर महामानव का वरदहस्त नहीं होता। बाकी राज्यों में ये दुघर्टनाएं होती हैं, जिन पर अक्सर सरकारों का कंटोल नहीं होता। और इस पुल वाली घटना से महामानव को जोड़ना तो कतई नाइंसाफी है।
कितनी सही बात कही है। दुघर्टनाओं को भला कौन रोक सका है, रोड होंगी तो गड्डे होंगे ही होंगे, और अभी तो रुको।
बस आप बताइए कि कहां, क्या कमी है, ये महामानव के मंत्री आपको उठवा लेंगे, उठवा के क्या करेंगे आपको पता नहीं है, हमें भी पता नहीं है, इसलिए एक देश के एक अच्छे नागरिक बनिए, अभी तो सुप्रीम कोर्ट ने भी कह दिया है कि भैये, ये फ्रीडम ऑफ स्पीच के चक्कर में मत रहिए, आपको अपनी जिम्मेदारी पता होनी चाहिए, नागरिक होने की, वरना सरकार बताएगी, पुलिस उठाएगी, और अदालत ऐसी की तैसी कर देगी, तो फ्रीडम ऑफ स्पीच, या लोकतंत्र जैसी फालतू बातों पर ध्यान मत दीजिए, अपनी खैरियत चाहते हैं, तो किसी तरह जी लेने ध्यान दीजिए। और सरकार, अदालत आदि का सम्मान कीजिए, उनकी पूजा कीजिए, सवाल पूछने की गलती से भी गलती मत कीजिएगा क्योंकि सरकार को सब पता रहता है। याद रखिए भाइयो भैनो, महामानव की महाटीम के महान मंत्रियों को हमेशा पता रहता है कि साल के कौन से महीनों में कौन से हादसे होते हैं, जिन्हें होने से कोई रोक नहीं सकता।
ये जो परमात्मा से सीधा कनेक्शन है नॉन बायोलॉजिकल महामानव का, उसी का नतीजा है कि इन्हें पता चल जाता है कि एक्सीडेंट तो होते रहेंगे, बच्चे तो मरते रहेंगे, गडडे तो होते रहेंगे, इन हादसों को कोई रोक नहीं सकता। हां महामानव चाहे ंतो रोक सकते हैं, लेकिन महामानव क्यों चाहेंगे भला? तुमने ऐसा कौन काम किया है कि महामानव इन हादसों को रोक सकें। अरे इससे याद आया, एक नये वाले हैं बागेश्वर बाबा, जिनके हाथ ही उनके मोबाइल हैं, और उससे वो सीधे ईश्वर से संपर्क साधते हैं, हालांकि हादसों के बारे में वो भी नहीं बताते, सिर्फ व्यक्तिगत बातचीत करते हैं, जैसे बच्चा कब पैदा होगा, नौकरी कब लगेगी टाइप सवालों के ही जवाब सीधे ईश्वर से पूछते हैं, हालांकि उन्होने सरकार को ये ऑफर दिया था कि वे उनकी सेवाएं ले, लेकिन जिस देश में खुद प्रधानमंत्री का परमात्मा से सीधे कनेक्शन हो, वो इन छुटभैये बाबाओं की सेवा क्यों लेने लगे। भई हम कुछ ना बोलेंगे, हमारे यहां रोड यानी रास्ते बिल्कुल ठीक हैं, बरसात होती है तो गडडे हो जाते हैं, गडडे हो जाते हैं तो पानी भर जाता है, पानी भर जाता है तो थोड़ी बहुत परेशानी होती है। लेकिन हम कभी शिकायत नहीं करते। बताइए, हमारे महामानव के सिर पर दुनिया भर का भार है, चिंताएं हैं, उनके मुख्यमंत्रियों के सिर पर तमाम तरह की जिम्मेदारियां हैं, और वो तुम्हारी इन छोटी-मोटी समस्याओं पर ध्यान देंगे। लानत है जी तुम पर। थोड़ा सा टैक्स क्या देते हो, तुम समझते हो कि सरकार तुम्हारे उपर ध्यान देगी। अरे तुम्हारी तनख्वाह जितनी होती है। महीने की नहीं बे, साल की, उतने मे ंतो महामानव का आधे समय का खाना होता है, और तुम्हें लगता है कि तुम टैक्स देते हो तो तुमने सरकार को खरीद लिया है। चुप रहो, शांत रहो, ज्यादा चूं-चपड़ मत करो। हमारे एक दोस्त कहने लगे कि भाई, ज़रा बारिश होती है कि लाइट कट जाती है। हमने फौरन मुहं पकड़ लिया। बताओ, इस बात का शुक्रगुज़ार होने की जगह कि लाइट आती है, वो इंसान इस बात की शिकायत कर रहा है कि लाइट कट जाती है। ये प्रगतिशीलों की यही सबसे बड़ी समस्या है, जब देखो शिकायत करेंगे, लोग मर रहे हैं, लड़कियों का बलात्कार हो रहा है, अरबों के घोटाले हो रहे हैं, महंगाई बढ़ रही है, इनकी शिकायतें कभी खत्म नहीं होती। और हम हैं कि लगातार कह रहे हैं कि पॉजीटिव पे ध्यान दो। डंका बज रहा है, महामानव को लगातार हर देश बुला-बुला कर अवार्ड दे रहा है। ये सब कोई सस्ता सौदा नहीं होता, सहना पड़ता है। समझे, बाकी कम को ज्यादा समझो और इसे चेतावनी.....
अच्छा, ग़ालिब इस बारे में सचमुच ओरिजनल कह गए हैं भाई
हमको मालूम है जन्नत की हक़ीकत लेकिन
दिल के खुश रखने को ग़ालिब ये ख्याल अच्छा है
हमारे वाले ग़ालिब ने इसे यूं कहा है कि
रोड तो जन्नत में भी ऐसी नहीं होती ग़ालिब
कि अब्र बरसे और उसमें गडडे भी ना हों
तो जब जन्नत की सड़कों पर भी बरसात में गड्डे हो जाते हों तो तुम यहां सड़कों पर गडड़ों की शिकायत क्यों करते हो। खैर, महामानव के गुणगान करो, शिकायतें मत करो और अच्छे नागरिकों की तरह इस को भी लाइक करो और शेयर करो। ठीक है जनाब, फिर मिलें
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