शनिवार, 26 जुलाई 2025

भूल भुलैया - महामानव की बिहार यात्रा

 



नमस्कार, कपिल शर्मा एक बार फिर से आपके सामने, बहुत तेजी से आना जाना हो जा रहा है जनाब। लेकिन क्या करें मजबूरी है। एक तरफ बिहार ने पूरे देश की नाक में दम किया हुआ है, 

जगदीप धनकड़ एक भाजपा के सदस्य रहे। 
जगदीप धनकड़ जी ने राज्य-सभा का संचालन भाजपा के प्रतिबद्ध सदस्य के तौर पर किया।
दूसरी तरफ कांवड़ियों का कहर सड़कों पर ऐसे बरस रहा है जैसे आसमान से बारिश की जगह खारिश बरस रही हो। 


हमारी, क्योंकि मैं दिल्ली में रहता हूं तो दिल्ली की, यानी हमारी चीफ मिनिस्टर के जन्मदिन पर एक्सप्रेस में पूरे एक पेज का विज्ञापन नुमा प्रचारफोटू आया है, जिसमें उन्हें विज़नरी लीडर बताया गया है और मैं ये सोच कर हैरान हूं कि जिस लीडर को नाम घोषित होने तक ये नहीं पता था कि उनके भाग्य से मुख्यमंत्री की कुर्सी का छींका फूटा है, उनके विज़न का ढिंढोरा कौन पीट रहा है। 


पर पिछले 11 सालों में भाजपा ने ये नियम बना लिया है कि जिस भी राज्य में वो जैसे भी चुनाव जीते, मुख्यमंत्री वही बनता है जिसका अपना कोई जनाधार नहीं होता, इससे सेंटर की पकड़ राज्य पर मजबूत हो जाती है। इसका थ्योरी को टेस्ट यूं किया जा सकता है कि आप बिना किसी से पूछे, बिना गूगल बाबा की मदद से ये बता दें कि हाल ही में भाजपा जिन राज्यों में जीती है उनके मुख्यमंत्रियों के नाम क्या हैं। मेरा दावा है कि एक या दो नाम आप पक्का ग़लत बताएंगे, अजी आप छोड़िए, जिन राज्यों के वे मुख्यमंत्री हैं, वहां की जनता तक को नहीं पता होता कि उनका मुख्यमंत्री कौन है। खैर ये पुराना मामला है। नया मामला है महामानव की मोतीहारी महायात्रा का, देख लीजिए मैने इस एक जुमले में अनुप्रास अलंकार का मजा ले लिया। जिनको हिंदी व्याकरण की जानकारी ना हो, उनके लिए खुलासा कर दूं कि अनुप्रास अलंकार वहां होता है जहां एक ही वर्ण की आवृति यानी दुहराव से खूबसूरती आती है। जैसे महामानव की मोतीहारी महारैली में ”म” वर्ण की आवृति हुई तो आपको सुंदर लगा होगा। ये सुंदरता महामानव की है, जिसे अनुप्रास अलंकार की सुंदरता मान लिया गया है। 
टेक्स्ट ग्राफिक्स ”म वर्ण की आवृति से अनुप्रास की छटा - मोदी महा मानव मोतीहारी महारैली में ”म” वर्ण की आवृति से अनुप्रास होता है।”
तो शुरु से शुरु करते हैं। एक तथाकथित पत्रकार हैं, जो इन दिनों बिहार के दौरे पर हैं, लगातार अपनी खोजी पत्रकारिता से चुनाव आयोग उर्फ भारतीय जनता पार्टी के विशेष गहन पुनरीक्षण जैसे पवित्र काम में बाधा डाल रहे हैं। जहां एक तरफ बिहार के कर्मठ बूथ लेवल ऑफिसर भाजपा के पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर बिहार में भाजपा के लिए जमीन तैयार कर रहे हैं, वहीं इस पवित्र कार्य में अपनी बेकार की पत्रकारिता का राग अलाप रहे हैं। मैं उनके इस कार्य की खुल कर भर्त्सना करता हूं, उन्हें क्या हक़ है कि वो बिहार की जनता के पास जाकर उनसे इस किस्म के सवाल पूछें। बताइए। 


बिचारे बी एल ओ एक ऑफिस में बैठ कर हजारों लाखों लोगों के फॉर्म भर रहे हैं, उन पर खुद ही साइन कर रहे हैं, ताकि बिहार के भोले-भाले मतदाताओं को दिक्कत ना हों, और इन पत्रकार महोदय को चुनाव आयोग उर्फ भाजपा द्वारा निर्देशित, जिलाधिकारियों और उनके मातहत काम करने वाले बी एल ओ की एक कर्मठता नहीं दिखाई देती। उनका पूरा ज़ोर इस बात है कि किसी मतदाता का फॉर्म बी एल ओ क्यों भर रहे हैं, उन पर फर्जी साइन क्यों कर रहे हैं। बात यहां तक भी रहती तो ठीक था, लेकिन इन पत्रकार महोदय की हिम्मत देखिए ये अपना कैमरा लेकर उस कमरे में घुस गए और वहां की वीडियो बना ली। इतना बड़ा अपराध, और इसे अपराध भी क्या कहिए, ये तो सीधा पाप है, उन्होने ऐसा काम किया है कि जिसकी माफी नहीं दी जा सकती। वो तो चुनाव आयोग उर्फ भाजपा उन्हें माफ भी कर देती, लेकिन ऐसे कामों का वीडियो बनाने की मंजूरी तो नहीं दी जा सकती, ये सुप्रीम कोर्ट की ज़बान में चीप पब्लिसिटी स्टंट है, जो ये पत्रकार महोदय कर रहे हैं। इसलिए इनके खिलाफ एफ आई आर दर्ज की गई है, मेरा तो मानना है कि इन पर एन आई ए, या ई डी का छापा पड़ना चाहिए, इन्हें भी उमर खालिद की तरह बिना किसी टायल के पांच-सात साल के लिए बिना जमानत के जेल भेज देना चाहिए। एक अच्छे लोकतंत्र में ऐसे उदाहरणों के बिना काम नहीं चलता, अगर ऐसा नहीं किया गया तो मुझे डर है कि कहीं कोई और पत्रकार भी ऐसे ही घिनौना आचरण करने लगे और चुनाव आयोग उर्फ भाजपा के कर्मकांडों को उजागर करने लगे तो बताइए, लोकतंत्र का फिर क्या होगा। 
पत्रकारों का एक सीधा-सादा काम होता है, कि वे देश के नामचीन पत्रकारों जैसे अंजना ओम मोदी माफ कीजिएगा कश्यप हुईं, रुबिका लियाकत हुई, नविका कुमार हुई, सुधीर तिहाड़ी माफ कीजिएगा चौधरी हुए, सुशांत सिन्हा हुए, अमन चोपड़ा हुए, दीपक चौरसिया हुए, रजत शर्मा हुए, अमिश देवगन हुए, की तरह अपना एक टीवी कार्यक्रम बनाए, स्टूडियो को सजाएं, और वहां बैठे हुए आयं-बायं-शायं बकें। अगर आप ऐसे कार्यक्रमों में एक परफॉर्मर की तरह रहें, खूब चीखें-चिल्लाएं, गालियां दें, तो मज़े ही मजे़, अगर लाइव लड़ाई करवा सकें तो कहना ही क्या। भई वाह। मज़ा ही आ जाता है। पत्रकारों को यही करना चाहिए, ये क्या कि माइक और कैमरा लेकर घूम रहे हैं, लोगों के पास जा रहे हैं, मुद्दों की बातें कर रहे हैं। ये जो पत्रकार हैं, अजीत अंजुम इन्होने पत्रकारिता का नाम बदनाम कर दिया है, बताइए, वे राहुल गांधी से सवाल नहीं कर रहे, वे तेजस्वी को धूल में नहीं मिला रहे, वो सोनिया गांधी का अपमान नही ंकर रहे, वे सावरकर को वीर नहीं बता रहे, और सबसे बड़ी बात, अपनी रिर्पोटिंग में अब तक उन्होने चुनाव आयोग उर्फ भाजपा के बिहार में हो रहे सर्वे को सुपर नहीं बताया, उसकी तारीफ नहीं की, और भाजपा को पूरी तरह जीत के काबिल नहीं बताया। बताइए, जिस देश में ऐसे पत्रकार हो, वहां लोकतंत्र की क्या हैसियत रह जाएगी। मैं आपसे अपील करता हूं कि आप अजीत अंजुम के चैनल पर जाकर उन्हें समझाएं, सीधे कह नहीं सकता, गरियाएं कि वे फालतू के काम छोड़ दें और अंजना, नविका, रुबिका, अमिश, रजत और दीपक जैसी पत्रकारिता करें, वरना उन्हें यू ए पी ए के तहत सीधे अंदर डाल दिया जाएगा और फिर उन्हें सालों जमानत तक नहीं मिलेगी। महामानव की जय। 
दूसरा मामला है, दिल्ली की विज़नरी लीडर मुख्यमंत्री यानी चीफ मिनिस्टर रेखा जी गुप्ता का। रेखा जी गुप्ता का विज़न बिल्कुल साफ है, था और रहेगा। वो इस मायने में, कि चुनाव प्रचार में उन्होने जो जो वायदे किए थे, एक तो एक एक करके सबके सब पूरे होते जा रहे हैं। आज ही के एक्सप्रेस में खबर देखी कि यमुना का पानी पिछले महीने के मुकाबले ज्यादा प्रदूषित हो गया है। रेखा जी गुप्ता के साथ, केन्द्र सरकार के खास एजेंट, हमारे बिना चुने हुए दिल्ली के मालिक, महामहिम गर्वनर वी के सक्सेना जी, जिन्हें दिल्ली की हुकूमत सौंपकर भाजपा ने लोकतंत्र की एक खास मिसाल पेश की है, दोनो ने डबल इंजन की सरकार के पायलट के बतौर ये साफ कर दिया था, कि क्योंकि पिछली सरकार ने यमुना की सफाई नहीं की है, और वे इसके लिए कटिबद्ध हैं, इसलिए वे दिलोजान से यमुना की सफाई में जुट गए हैं, 


लेकिन ये यमुना खुद जो है वो जनता की तरह अड़ियल निकली, ना गर्वनर का हुकुम मानती है, ना भाजपा की विज़नरी चीफ मिनिस्टर का, आज रिपोर्ट आई कि ये तो और ज्यादा गंदी हो गई। 


अब हो गई तो हो गई, अब रेखा जी गुप्ता और महामहिम गर्वनर साहब कोई खुद तो झाडू-खटका लेकर यमुना की सफाई करेंगे नहीं। मेरा मानना है कि दरअसल ये यमुना भाजपा विरोधी हो गई है, यानी सनातन विरोधी हो गई है, जो भाजपा की खास मुख्यमंत्री का और उनके खास गर्वनर का हुकुम नहीं मान रही। यकीन कीजिए दोस्तों, मैं अगर यमुना की जगह होता तो गर्वनर का आदेश होते ही साफ हो जाता, और यूं लोकतंत्र को टका सा जवाब दे देता। 
रेखा जी गुप्ता ने ही चुनावों के दौरान कहा था कि दिल्ली में कोई झुग्गी नहीं टूटेगी, 


लेकिन बाद में कहा कि कोर्ट के आदेश से झुग्गी टूटेंगी तो टूटेंगी, इसमें कोई कुछ नही ंकर सकता।


 साथियों इसी को विज़न कहा जाता है, और ऐसे बयान देने को ही विज़नरी कहा जाता है, हमारी यानी दिल्ली की महान मुख्यमंत्री विज़नरी मुख्यमंत्री रेखा जी गुप्ता के विज़न के क्या कहने, ऐसे ही विज़नरी महामानव हैं, उन्होने भी दिल्ली चुनावों के दौरान कहा था कि लोग झूठ बोल रहे हैं कि भाजपा आएगी तो झुग्गियां तोड़ेगी, उन्होने वादा किया था कि कोई झुग्गी नहीं टूटेगी, विज़न बहुत साफ था, कह दो कि नहीं टूटेगी, और फिर तोड़ दो। इसी साफ विज़न के चलते भाजपा के नेताओं को असल में विज़नरी कहा जाता है, जिनका विज़न साफ हो, नीयत साफ होने की गारंटी कोई नहीं। 
तीसरी बात जो रेखा जी गुप्ता ने मुख्यमंत्री होने के बाद कही, सबके सामने कही, जिससे लोकतंत्र की मर्यादा सीना तान कर खड़ी हो गई। उनसे पूछा गया कि अगर कुणाल कामरा दिल्ली में अपना शो करने आए, तो रेखा जी गुप्ता का कहना था कि वो अपने रिस्क पर आए।


 वाह, वाह, वाह!!! तीन बार वाह का मतलब है कि मैं तो रीझ गया मुख्यमंत्री के ऐसे बयान पर, ऐसे ही मुख्यमंत्री को सच में विज़नरी कहने का दिल चाहता है। जिस देश की राजधानी में किसी को अपने रिस्क पर आना पड़े, उसे सबसे सुरक्षित जगह कहा जा सकता है। मुझे पूरा यकीन है कि दिल्ली को सबसे सेफ बनाने में यही एक तरीका कारगर हो सकता है। सब अपने रिस्क पर आएं, अपने रिस्क पर रहें, किसी मुख्यमंत्री की, रक्षा मंत्री की, गृह मंत्री की कोई जिम्मेदारी नहीं, पुलिस अब आराम से अपना सड़क पर रिश्वत लेने का, रिजक कमाने का, लोगों की झुग्गियां तोड़ने का, और इन्हीं विज़नरी नेताओं को सुरक्षा मुहैया कराने का काम आराम से कर सकती है। जब लोगों को अपने ही रिस्क पर रहना है तो फिर सेफ्टी का इश्यू ही खत्म हो गया। और आपने गौर नहीं किया शायद, अमेरिका ने अपने नागरिकों को भारत यात्रा से मना किया है, कि ये सेफ नहीं है। हमारी यानी दिल्ली की विज़नरी मुख्यमंत्री रेखा जी गुप्ता ने इस तरह एक तीर से दो शिकार किए हैं, एक तो उन्होने अमेरिका की ताईद कर दी, उन्होने कहा कि भारत मत जाओ, रेखा जी गुप्ता ने कहा कि दिल्ली आना है तो अपने रिस्क पर आओ, मतलब हमारी कोई जिम्मेवारी नहीं है। अब मुझे लगता है कि महामानव भी यही कह दें कि भैये जिसे भी भारत आना है अपने रिस्क पर आए। बस यही विज़न चाहिए देश में, अपने रिस्क पर रहो, अपने रिस्क पर जिओ, अपने रिस्क पर आत्मदाह कर लो। बल्कि उड़ीसा मे ंतो इसे साबित भी कर दिखाया गया। एक लड़की जो माफ कीजिएगा, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की सक्रिय सदस्य थी, उसने अपने ही कॉलेज के प्रोफेसर के यौन शोषण की शिकायत की, लेकिन उड़ीसा का वुमेन सेल हरियाणा के वूमेन सेल वाली रेणु भाटिया जी की तरह मुस्तैद नहीं था, या था, खैर जो भी हो, उस बच्ची ने हार मान कर आत्मदाह कर लिया, कॉलेज में ही। हमारी रेखा जी गुप्ता वाला ”अपने रिस्क पर” वाला मंत्र सिद्ध नही ंकर पाई। भाई कुणाल कामरा, अपने रिस्क पर ही जिंदा हैं, अपने ही रिस्क पर चुटकुले सुनाते हैं, उन्हें भी पकड़ने की कई कोशिशें की गई हैं, की जा रही हैं, लेकिन अभी तक अपने ही रिस्क पर बचे हुए हैं। मैं कहूं ये अपने रिस्क वाला विज़न बहुत ही कारगर है साहब, जो भी करो, अपने रिस्क पर। वोट दो, अपने रिस्क पर, नौकरी करो, अपने रिस्क पर, कहीं आओ जाओ, अपने रिस्क पर। सरकार की कोई जिम्मेदारी नहीं है, ना आपकी सुरक्षा की, ना आपकी सुविधा की। जय हो महामानव की, जय हो विज़नरी लीडर, रेख जी गुप्ता जी की। 


अब आते हैं अपने कलाम के आखिरी चैप्टर पर। महामानव की मोतीहारी की रैली। अब देखिए, महामानव सिर्फ दो जगहों की यात्रा करते हैं, एक तो विदेश की, जहां अक्सर उन्हें अवार्ड मिलते हैं, अब तक शायद सत्ताइस हो चुके हैं। दूसरे उन जगहों की जहां चुनाव हों, और उन्हें अपने चुनावी जुमले सुनाने हों, केंन्द्रीय मदद की बोली लगानी हो, और वोटों का जुगाड़ करना हो। बाकी पूरा देश अपील कर चुका लेकिन महामानव मणिपुर नहीं गए, अब ये हम पहले ही बता चुके हैं कि महामानव को जिताने का काम के चु आ अपने हाथों में ले चुका है, राहुल गांधी का कहना है कि महाराष्टर और हरियाणा में महामानव को जिताने का काम खुद के चु आ ने किया, कुछ लोग अब इसमें मध्य प्रदेश को भी जोड़ रहे हैं। हम बहुत तो नहीं जानते सिवाय इसके कि हमें कुछ-कुछ इन बातों पर यकीन होता जा रहा है, बाकी चुनाव आयोग उर्फ भाजपा ने बिहार में गोटियां सेट कर ही दी हैं, और इसमें कोई दो राय नहीं हैं कि बिहार चुनाव भी महामानव जीत ही जाएंगे। तब सवाल ये उठता है कि महामानव ने ये चुनावी रैली क्यों की, आखिर उन्हें बिहार जाने की, वहां इत्ती बड़ी-बड़ी घोषणाएं करने की ज़रूरत क्या पड़ गई। तो इसका जवाब भी यही है कि महामानव विज़नरी लीडर हैं, उन्हें पता है कि भाजपा उर्फ चुनाव आयोग की ये कार्यवाही सबके निशाने पर है, और जीतना तो महामानव को है ही, तो चुनावों के बाद चुनाव आयोग पर यदि कोई उंगली उठे तो महामानव की इस महारैली को सामने लाया जा सके। इसके लिए भी सारी तैयारियां की जा चुकी हैं, दिल्ली के स्टूडियो, मेरा मतलब पत्रकार स्टूडियोज़, बिहार की गद्दीनशीनी के बड़े - बड़े जुमले बना चुके हैं, अब बस चुनाव की फॉर्मेलिटी का इंतजार है। जैसे ही चुनाव होगा, महामानव की जीत का बिगुल बज जाएगा। और इस तरह लोकतंत्र की अच्छी पुंगी बजाई जाएगी। 
बाकी आपको चचा ग़ालिब का एक शेर सुनाते हैं, जो उन्होेेने अपने समय में आज के समय के लोकतंत्र पर लिखा था, और क्या खूब लिखा था....
वो कहते हैं
ये सार्वभौमिक मताधिकार की वजह से ग़रीबों का ध्यान रखना पड़ता है, वरना अब तक तो सरकार ने फैसला कर देना था। खैर, अब हो जाएगा, बिहार में चल रहा है, सारे देश में चलेगा। 

हरेक शै मेरे यार बेवफा निकली
डेमोक्रेसी भी देखो ना बद्दुआ निकली
मर के भी चैन ना मिला तेरी कसम
कब्र में भी अपनी तो कराह निकली

ग़ालिब को अक्सर डेमोक्रेसी की बिमारी परेशान करती थी। आपको भी करती होगी। हमें नहीं करती जनाब, हम तो सच्चे वाले देशप्रेमी हैं, सनातनी। आपका आप जानें। 

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बाकी सब खैर से। नमस्कार। 


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