नमस्कार, मैं कपिल एक बार फिर आपके सामने। देखिए जबसे जगदीप धनकड़ जी ने इस्तीफा दिया है, हर तरफ सिर्फ उनकी सेहत, इस्तीफे, उसतीफे, और उनके कामों की बातचीत हो रही है। लेकिन मैं मैं इस मामले पर यानी जगदीप धनकड़ जी के बारे में कुछ नहीं बोलूंगा। पिछले दिनों मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ था, जब उन्होंने संविधान की प्रस्तावना में पंथनिरपेक्ष, समाजवाद और अखंडता शब्दों को नासूर बताया था, जबकि उपराष्टरपति बनने के लिए उन्होने इसी संविधान की शपथ ली थी।
देश का कोई साधारण नागरिक ऐसा कहता तो पक्का उसके खिलाफ खुद कोर्ट ने ही स्वतः संज्ञान ले लिया होता, लेकिन संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों की बात अलग होती है वो कुछ भी कह सकते हैं, फिर चाहे वो संविधान के खिलाफ ही हो, उन के खिलाफ कोई बात नहीं की जा सकती। खैर जो भी हो, मैं जगदीप धनखड़ जी या उनके इस्तीफे के बारे में कुछ नहीं कहूंगा। भई तबीयत खराब हो तो इंसान दे ही देता है इस्तीफा, इसमें इतनी बड़ी क्या बात है। तबीयत खराब होने के कई रीज़न हो सकते हैं, देखिए जिसकी खराब हो तबीयत वो दे देता है इस्तीफा, धनकड़ जी ने दे दिया। चाहे कुछ भी हुआ हो, हम धनकड़ जी के बारे में कुछ नहीं बोलेंगे।
धनकड़ जी ने उपराष्टरपति रहते हुए ऐसे-ऐसे कमाल के काम किए थे कि जिनकी मिसाल खोजें तो बहुत मुश्किल होगी। सदियों में ऐसा उपराष्टरपति होता है जनाब, जो संसद को विपक्ष विहीन कर दे। ऐसा तो महामानव तक आज तक नही ंकर पाए। सदन से सीधे एक सौ इकतालीस सदस्यों को बाहर करने जैसा कारनामा करना कोई हंसी-ठ्ठ्ठा नहीं था। ऐसे कारनामें आपको भारतीय लोकतंत्र के इतिहास मे ंतो देखने को नहीं ही मिलेंगे। एक नया इतिहास ही लिख दिया गया था, विपक्ष की ऐसी ऐसी की तैसी किसी और उपराष्टरपति ने नहीं की थी, जैसी धनकड़ ने की थी। खैर अब तो उन्होने तबीयत खराब होने की वजह से इस्तीफा दे दिया है, अब चाहे जो भी, कुछ भी कहना चाहे कहे। हम तो धनकड़ जी या उनके इस्तीफे के बारे में कुछ नहीं बोलेंगे।
राणा की पुतली फिरी नहीं तब तक चेतक मुड़ जाता था।
यूं ही एक मशहूर कविता की पंक्ति याद आ गई। आप जानते ही हैं कि कुछ याद आता है तो मैं आपको सुना ही देता हूं। खैर साहब।
विपक्ष ने कभी जगदीप धनकड़ को चैन नहीं लेने दिया। जब जगदीप धनकड़ ने 2019 में पश्चिम बंगाल का गर्वनर पद संभाला था, तो ममता बनर्जी ने उनके खिलाफ कई शिकायती पत्र लिखे थे। जगदीप धनकड़ जी ने पहली बार बंगाल में ये दिखाया था कि एक गर्वनर को किस तरह काम करना चाहिए। उन्होने सही मायनों में वहां केन्द्र का प्रतिनिधित्व किया था, ममता बनर्जी के खिलाफ टिवट्र पर ऐसा मोर्चा खोला कि ममता बनर्जी ने उन्हें अनफॉलो कर दिया। औरा की बात है भई। मैं दावा करता हूं कि आप और कोई ऐसी मिसाल खोज कर नहीं ला सकते जब गर्वनर को सी एम ने ट्विटर पर अनफॉलो कर दिया हो। ममता की बंगाल में चुनी हुई सरकार है, लेकिन धनकड़ जी ने अपने गर्वनरकाल में दिखा दिया था कि गर्वनर के आगे चुनी हुई सरकार की क्या हैसियत है। ममता दीदी को हर रोज़ किसी ना किसी मामले में सफाई देनी पड़ती थी। अरे फाइल चलाना, फाइल पास करना तो गर्वनर के हाथ में होता है, ऐसे में किसी भी राज्य की चुनी हुई सरकार क्या कर लेगी जब जगदीप धनकड़ जैसा गर्वनर उसके सामने होगा। सुना है राज्य के मुख्य सचिव को, अन्य अफसरों को छोटी-छोटी बातों पर तलब कर लेते थे, एक तरह से अनौपचारिक वैकल्पिक अधिकारिक राज्य तंत्र ही खोल बैठे थे। और विद्वानों का कहना है कि गैर-भाजपा शासित प्रदेशों में अब जो भी गर्वनर काम कर रहे हैं, उन्हें इसका तरीका जगदीप धनकड़ जी से ही पता लगा था। खैर जगदीप धनकड़ जी ने जैसा भी काम किया हो, जैसी भी मिसाल सामने रखी हो, अब तो उन्होने स्वास्थय कारणों से इस्तीफा दे दिया है, और हम जगदीप धनकड़ या उनके इस्तीफे के बारे में कुछ नहीं बोलेंगे।
वैसे 30 जुलाई 2019 को वो गर्वनर बने और 30 जुलाई 2022 से पहले ही उन्होने ये पद छोड़ दिया, छोड़ क्या दिया, अब इतने टेलेंटिड व्यक्ति को सिर्फ एक राज्य के मुख्यमंत्री को परेशान करने के लिए तो छोड़ा नहीं जा सकता था। इसलिए मोदी जी ने उन्हे सीधे उपराष्टपति बना दिया, कहते हैं, उनके इसी टेलेंट ने, जो उन्होने बंगाल में दिखाया था, उन्हें मोदी जी का चहेता बना दिया था। अब मोदी जी उनके चहेते थे, या वो मोदी जी के चहेते थे, ये कहना हमारे लिए तो भई ज़रा मुश्किल ही है।
लेकिन लोग कहते हैं कि मोदी जी को वो कितना मानते थे, ये उनकी मोदी जी के साथ वाली तस्वीरों से साफ झलकता है।
हालांकि इन तस्वीरों को देख कर आपको भ्रम हो सकता है कि भई पद में मोदी जी बड़े हैं या धनकड़ साहब बड़े थे, लेकिन सच कहें तो अपनी हर बात से, हर वाक्य से, हर स्टेटमेंट से, हमेशा धनकड़ जी ने यही जताया कि उनके लिए मोदी जी, किसी पद से बड़े हैं। आपको सच कहता हूं, एक बार मोदी जी को महामानव मान लेने के बाद धनकड़ जी ने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा। बस नीचे ही देखते रहे।
पर इन फोटो से, वीडियो से आप जो मर्जी नतीजे निकालें, हम कुछ नहीं बोलेंगे, ना जगदीप धनकड़ जी के बारे में, ना उनके खराब स्वास्थय के बारे में, और ना ही उनके इस्तीफे के बारे में।
उपराष्टपति बनने के बाद धनकड़ जी ने संविधान, देश, राष्टर, सबकुछ अपनी भक्ति में ही लीन कर दिया था। ऐसा भी लोग ही कहते हैं। लोगों का कहना है कि वो देश के उपराष्टपति होने के बावजूद, भाजपा के सदस्य के तौर पर, भाजपा के वफादार सदस्य के तौर पर ही कामकाज चलाते रहे। इतना कि एक बार तो संसद में एक महिला सांसद को कहना पड़ा कि भई आप जिस पद पर बैठे हैं उसकी गरिमा के हिसाब से काम कीजिए।
संसद में जिन लोगों ने जगदीप धनकड़ जी का व्यवहार देखा या झेला, उनका कहना है कि वो जिस टोन में विपक्ष के सदस्यों से बात करते थे, वो किसी संवैधानिक पद पर बैठे हुए व्यक्ति की नहीं हो सकती।
हो सकता है ऐसा हो, हमें क्या पता, हम कोई संसद मे ंतो बैठे नहीं थे। इसलिए सही बात तो यही है कि हम जगदीप धड़कन, या उनके खराब स्वास्थय के कारण दिए गए इस्तीफे के बारे में कुछ नहीं बोलेंगे।
वैसे धनकड़ जी के भाजपा के वफादार सदस्य होने की बात कुछ हजम नहीं होती, भई अपने पूरे राजनीतिक जीवन में वे जनता दल में भी रहे, जिससे वे चुनाव भी जीते, सुना कांग्रेस में भी रहे कुछ समय, और उसके बाद वे मोदी जी से प्रभावित होकर भाजपा में शािमल हुए। वो कई चुनाव लड़े जिनमें कुछ जीते और कुछ हारे भी, पर ये हारजीत तो मान लीजिए चलती ही रहती है। इसलिए, जगदीप धनकड़ जी या उनके खराब स्वास्थय के कारण दिए गए अचानक इस्तीफे के बारे में हम कुछ नहीं बोलेंगे।
कुछ लोगों ने मार, दे पोस्ट पर पोस्ट, सोशल मीडिया पर वबाल काटा हुआ है कि भाजपा ने ज़ोर-जबरदस्ती से उनसे इस्तीफा दिलवाया है, हम ऐसा क्यों कहें। सुना कि संसद में विपक्ष द्वारा राज्य सभा में जो प्रस्ताव पेश किया, उसे धनकड़ ने स्वीकार कर लिया। उनकी इसी बात से मोदी जी नाराज़ हो गए, और सुनने मे ंतो ये भी आया है कि उन्हें बताया गया कि या तो भैये इस्तीफ दो, और अभी दो, वरना तुम्हारे खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया जाएगा। और मजबूरन जगदीप धनकड़ को इस्तीफा देना पड़ा, क्या करते, मना करते तो निकाले जाते। खैर ये सरकार है, सरकार, सरकार की तरफ चलती है, इसमें कोई क्या कर सकता है। बोलने वाले तमाम तरह की अटकलें लगा रहे हैं, कुछ लोग तो कयास लगा रहे हैं कि भई अगला उपराष्टपति कौन होगा। होगा कौन, जो मोदी जी के कहे पर चलेगा, बात मानेगा, वही होना चाहिए, हमारा तो ये कहना है। अलबत्ता, जगदीप धनकड़ के बारे में, स्वास्थय कारणों से उन्होने जो इस्तीफा दिया है, इस बारे मे ंहम कुछ नहीं बोलेंगे।
मजाक की बात ये है कि विपक्ष कह रहा है कि भई, कोई तीन साल उपराष्टपति रहा, कैसा भी रहा हो, यानी जैसा भी रहा हो, उसके लिए एक विदाई समारोह, यानी फेयरवेल तो बनता है। और मोदी जी ने एक संदेश में ही उन्हें निपटा दिया है। ऐसा कैसे चलेगा, और दोस्त लोग इस पर भी पिल पड़े, लोग कह रहे हैं कि धनकड़ जी जाते-जाते मोदी जी के लिए मुसीबतें खड़ी कर गए हैं, और वो तो मोदी जी को धनकड़ जी के पाला बदलने की भनक लग गई थी, इसलिए उन्हें हकाल दिया, मेरा मतलब है उनसे इस्तीफा ले लिया। लेकिन दोस्तों, ये सब कहने वाले कह रहे हैं, क्योंकि मैं तो आपसे कह ही चुका हूं कि चाहे जो भी हुआ हो, हम धनकड़ जी या उनके स्वास्थय कारणों से दिए गए इस्तीफे के बारे में कुछ ना कहेंगे।
भई आज तो हमने कुछ ना कहा, तो ग़ालिब भी आखिर क्या ही कहेंगे, लेकिन रवायत तो निभानी ही होगी, तो ग़ालिब ने अचानक दिए इस्तीफों पर एक शेर कहा था, लीजिए आप भी सुन लीजिए।
सुबह तलक खबर न थी, जिसकी ग़ालिब
शाम को वो इस्तीफा देके निकल लिया
हालांकि ये शेर ग़ालिब ने ग़ालिबन इस्तीफों के बारे में ही लिखा था, लेकिन इस इस्तीफे पर तो ये यूं ही फिट बैठ गया। ख़ैर साहब ग़ालिब, ग़ालिब थे, वो किसी के भी बारे में कुछ भी कह सकते थे। लेकिन हम धनकड़ जी के स्वास्थय कारणों से दिए गए इस्तीफे के बारे में कुछ ना बोलेंगे।
अगली बार मिलेंग तो कुछ जरूर बोलेंगे, तब तक के लिए विदा। नमस्कार
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