अभी कुछ ही दिन पहले कुंभ खत्म हुआ है। कुंभ ऐसा मौका होता है जिसमें माना जाता है कि यदि आप संगम में नहा लिए तो अमर हो जाते हैं, और अगर शरीर अमर ना भी हुआ तो कम से कम आत्मा अमर हो जाती है, यूं गीता में कहा गया है कि आत्मा यूं भी अमर ही है, चाहे कुंभ के दौरान नहाए या ना नहाए, और अगर गहराई के साथ सोचा जाए तो गीता में ही कहा गया है कि आत्मा ना गीली होती है ना सूखती है, ना जलती है ना गलती है, इसी को आगे बढ़ाते हुए गीता के इसी श्लोक का सबटेकस्ट है कि शरीर तो मिट्टी हो जाना है, और आत्मा को कुछ हो नहीं सकता, तो हे अर्जुन, जी भर के पाप कर, पुण्य मूर्खों, गरीबों और दलितों के लिए छोड़ दे लेकिन हमारी बातचीत का मुख्य बिंदु कुछ और है। बात ये है कि महाकुंभ के कथित पावन अवसर पर जब सारी हिंदु कूढ़ मानसिकता गंगा में डुबकी लगाने के चक्कर में होती है, तब इन्ही की एक प्रजाती जिसे नगा कहते हैं, सिर्फ पैर का अंगूठा गंगा के पानी में डाल कर पूर्ण स्नान का फल भोगते हैं। यूं साधू एक पावन जानवर होता है, वो ना भी नहाए तो पवित्र ही रहता है, गंधाए तो भी पवित्र रहता है और तमाम तरह के कुकर्म करे तो भी साक्षात ईश्वर उसे स्वर्ग ले जाता है, तब साधु क्यों गंगा नहाता है ये रिसर्च का विषय है। इन नगा साधुओं की याद मुझे क्यों आई? इसलिए कि कल ही अखबार में पढ़ा कि इसी तरह पादांगुष्ठ स्नान करके अमर होने की तरह अंगूठा कटा कर शहीद होने वालों की सूची में एक महान नाम और जुड़ गया है।
जिन महानुभावों को अब तक पता ना चला हो कि मैं किनकी बात कर रहा हूं, वो जड़ामूल कांग्रेस की अध्यक्ष और पश्चिम बंग की सी एम का नाम उचार सकते हैं, ममता बनर्जी। कुछ लोग होते हैं कि लगती कम है हल्ला ज्यादा मचाते हैं, ममता उसकी एक जिंदा यानी जीवित मिसाल हैं, पुलिस वालों ने कहा कि हे ममते, यहां छात्र लोग अपने एक साथी की तुम्हारे सिपाहियों द्वारा की गई हत्या के विरोध में प्रदर्शन कर रहे हैं, तुम गाड़ी से मत उतरो, तुम उस गेट से भवन के अंदर जाओ, जिससे सभी वी आई पी यानी सी एम जाते हैं लेकिन ममता नहीं मानी, वो जानबूझ कर पैदल उस रास्ते से गईं जिस पर छात्र लोग प्रदर्शन कर रहे थे, उनके साथ एक और मंत्री भी थे, अब ऐसे में छात्र लोगों में किसी ने धक्का दे दिया, तो ममता लगी गुहार लगाने कि, मुझे मारने की कोशिश, मेरे मंत्री को मारने की साजिश, हाय रे मैं तो शहीद हुई, हाय रे मेरा नाम रखो शहीदों में...... और यही ममता थीं ना जिन्होने सुदीप्तो की शहादत पर कहा था कि ये तो मामूली घटना थी। हे राज्यपाल महामूर्ति ज़रा न्याय कीजिए, कौन लोकतांत्रिक मुख्यमंत्री अपने शरीर पर किसी गरीब छात्र की छुअन को हत्या की साजिश बताता है और अपने राज्य में मरने वाले किसी छात्र की हत्या को आम घटना बताता है।
भारत का लोकतंत्र कितना महान हो गया है। अब जड़ामूल कांग्रेस की ममता दीदी की फोटो को कोई माला तो पहनाओ रे......दीदी के अंगूठे से खून निकला, दीदी शहीद हो गई रे......असल में इन सभी अतिवादियों की तस्वीरों को एक साथ माला पहनानी चाहिए। रक्त पिपासु, फासीवादी मोदी और ममता, दोनो ही के प्रति छात्रों का विरोध और दोनो ही की छात्रों, गरीबों, पर अतियां, खुद को महान, अतिमहान बताने की प्रवृतियां और खुद ही खुद को माला पहनाने का चाव, दोनो को ही शहीद मान लिया जाए और दोनो को एक दूसरे से माला पहनवा दी जाए। दोनो धन्य हों। अभी खुद को शहीद बताना पड़ रहा है तब एक दूसरे को शहीद कह-कहा लिया जाएगा।
जैसे ही ममता ने शहादत का हल्ला मचाया मोदी ने उनकी प्रशंसा कर दी। और महामहिम राज्यपाल ने भी कह दिया कि भाई ये प्रदर्शन तो अशोभनीय ही था, लोकतंत्र पर धब्बा था, अफसोस कि महामहिम को सुदीप्तो की हत्या लोकतंत्र पर धब्बा ना लगी। क्या कहा.....संविधान का समानता का अधिकार, अजी क्या बात करते हैं आप, समानता होती है समान लोगों में, ज़रा सोचिए ममता के नाजुक कानों में छात्रों के नारों का घोष, ममता की तानाशाही पर छात्रों का आक्रोश, कितनी आहत हुई होंगी ममता दी...दी, ओफफफ्, अगर इसे भी शहादत ना कहा तो अमां क्या बच्चे की जान लोगे।
और सुदीप्तो जैसे छात्रों का क्या है, मरते ही रहते हैं सुसरे, गया क्यों था विरोध करने, घर बैठता आराम से, या बहुत राजनीति करने का शौक चर्राया था तो जड़ामूल की राजनीति करता। खैर सुदीप्तो की बात ज्यादा नहीं करनी चाहिए, इससे दीदी की शहादत पर धब्बा लगने का खतरा है, पर शहीद तो वो हैं ना......अब देखिए, मान लीजिए, न मानेंगे तो पश्चिम बंगाल में बैन कर दिए जाएंगे, जेल में डाल दिए जाएंगे, तो कहिए जिंदा शहीद जड़ामूल की ममता दीदी की.......अजी साहब न बोलिए पता लगेगा जब दीदी पुलिस से लाठीचार्ज करवाएगी। हमारा काम था समझााना हमने समझा दिया।

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