शनिवार, 27 अप्रैल 2013

पत्थरों के खेल न्यारें





पत्थरों के खेल न्यारें

एक उपर एक चढ़ते
अनगढ़ी दीवार गढ़ते
दो बनाते पार दुनिया
कुछ छुपाते, सब दिखाते
पत्थरों के खेल न्यारें

चमकते हैं, दमकते हैं
हर बदन पर महकते हैं
खून आलूदा कभी हैं
आग में भी दहकते हैं
पत्थरों के खेल न्यारें

कभी दिल के संग मिलते
फूल के साये मे पलते
तोड़ते हैं कभी शीशा
बर्तनों में कभी ढ़लते
पत्थरों के खेल न्यारें


मन्दिरों में, मस्जिदों में
और सभी पूजाघरों में
पत्थरों पर सिर टिका है
चाहे पूजा हो या सिजदा
पत्थरों के खेल न्यारे

हर सड़क पर लगे हैं ये
हर महल में सजे हैं ये
हाथ में इतिहास के ये
हर कदम पर जमे हैं ये
पत्थरों के खेल न्यारे

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