दोस्तों, ये वीडियो शुरु करने से पहले एक स्वीकारोक्ति। मेरा जन्म एक ब्राहम्ण परिवार में हुआ है, हालांकि इस उपलब्धि को हासिल करने के लिए मैने अपनी तरफ से कुछ नहीं किया है, लेकिन इस उपलब्धि से मुझे बहुत जबरदस्त प्रिविलेज हासिल है। तो आज मैं अपने पूरे नाम के साथ आपके सामने हूं। मेरा नाम कपिल शर्मा है। अब सवाल ये है कि मैं आपको ये सब क्यूं बता रहा हूं। क्यूंकि मैं ब्राहम्ण हूं, लेकिन मैं जाति को नहीं मानता।
दरअसल मेरा मानना ये है कि इस देश में जात-पात जो होती थी, वो अब नहीं होती। अब ये देश एक आधुनिक देश बन गया है, और पहले किसी जमाने में जाति के नाम पर जो अत्याचार होते थे, वो अब नहीं होते। अब कोई ब्राहम्ण है तो है, उसमें उसका क्या दोष, इसलिए जो मान लीजिए नीची जाति का है तो है, उसमें कोई क्या ही कर सकता है। ये जो है ना जाति की बात, ये तो वही लोग करते हैं, जो इससे फायदा उठाना चाहते हैं। अब देखो मुझे तो रिजर्वेशन नहीं मिलता, मैं ब्राहम्ण हूं, लेकिन बेचारा हूं, मेरा शोषण हो रहा है। हालंाकि मैं जाति नहीं मानता, लेकिन देखिए ये तो संस्कृति की बात है, इसलिए भारतीय संस्कृति के हिसाब से सबको अपनी जाति के हिसाब से ही रहना चाहिए। वरना..... मैं ब्राहम्ण हूं, लेकिन मैं जाति को नहीं मानता। खैर अभी कुछ देर पहले एक स्वामी जी की वीडियो देखी
इस वीडियो में स्वामी जी कह रहे हैं कि सार्वजनिक रूप से कथा सुनाने में शास्त्र की मार्यादा ये है कि ये सब जाति को कथा सुनाने का अधिकार केवल ब्राहम्ण को है। मैं इन महान ज्ञानी बाबा के इस तर्क से बिल्कुल सहमत हूं। भई जिस जाति का काम शास्त्रों में वर्णित है, वो काम उन्हीं जातियों को करना चाहिए। जैसे ब्राहम्ण को ये अधिकार है कि वो कथा सुनाए, और किसी अन्य जाति को ये अधिकार नहीं है कि वो कथा सुनाए, या बाबा जी के अनुसार सार्वजनिक रूप से ना सुनाए। यानी कथा सुनाना, पूजा करना, हवन करना आदि पर केवल ब्राहम्णों का अधिकार है। ब्राहम्णों के अलावा कोई और जाति यदि इन कामों को करती है तो ये शास्त्र सम्मत नहीं है, और काम तो भैया कुछ भी हो, शास्त्र सम्मत होना चाहिए।
मेरी चिंता दूसरी है। मेरा सवाल ये है कि ये जो यादव जी का बाल उतारा गया, उस्तरे से, वो काम किसने किया था। कि अगर ये काम किसी ब्राहम्ण ने किया तो वो तो जातिच्युत हो गया। क्योंकि ब्राहम्ण बाल उतारने का काम नहीं कर सकता।
मैं ब्राहम्ण हूं, लेकिन मैं जाति को नहीं मानता, पर ये वाले बाबा जी ही बताएं कि क्या ये सही नहीं है? माने शास्त्रों के हिसाब से तो ब्राहम्ण बाल नहीं उतार सकता, या बाबा जी बताएं उतार सकता है या नहीं।
दूसरे बाबा जी कह रहे हैं कि कोई अपनी पहचान छुपा कर गया, तो उसकी रिपोर्ट पुलिस में करनी चाहिए, ना कि कानून को अपने हाथों में लेना चाहिए।
अब इसमें भी हम बाबा जी का फुल टू फुल समर्थन करते हैं। पहले तो पहचान हो कि भीड़ में ये जो लोग दिख रहे हैं, कि वो ब्राहम्ण हैं भी कि नहीं। देखो भाई ये धर्म, जाति समाज, और वेद शास्त्रों की बात है, इसलिए किसी के ब्राहम्ण होने का प्रमाण ये नहीं हो सकता कि वो खुद ऐसा कह रहा है। या उसके आधार कार्ड में ये लिखा है कि वो ब्राहम्ण है, क्योंकि एक तो सरकार ने आज तक कोई जाति आधारित मर्दुमशुमारी यानी जनगणना नहीं करवाई है। दूसरे आधार कार्ड में जाति तो नहीं ही लिखी होती। और नाम के आगे सरनेम, या जातिसूचक नाम जो लिखा जाता है, वो तो खुद की ढोलक होती है। इसलिए लगे हाथ बाबा जी ही बताएं कि शरीर के कौन से हिस्से का कौन सा चिन्ह हो तो पता चलेगा कि कोई ब्राहम्ण है या क्षत्रिय है, या वैश्य है या शूद्र है। भई तमाम आदि - अनादि के ज्ञान का भंडार वो वेद और शास्त्र जिसे बाबाजी मानते हैं, उनमें पक्का ये कहीं ना कहीं लिखा होगा कि ब्राहम्ण होगा तो उसकी पहचान कैसे होगी। मैं स्वयं सिद्ध ब्राहम्णों के पक्ष में नहीं हूं, मुझको पक्का होना कि कोई कह रहा है कि वो ब्राहम्ण है तो उसको ब्राहम्ण होना।
तीसरे कानून का क्या है जी, भारत के संविधान में कहीं लिखा ही नहीं है कि ब्राहम्ण कौन काम कर सकता है, और यादवों के लिए कौन से काम आरक्षित हैं। बताइए, ऐसा बेकार सा संविधान जो बाबा जी के शास्त्रों के हिसाब से लिखा ही नहीं गया। ये अम्बेडकरी संविधान सबको समान बनाने पर तुला हुआ है। और बाबा जी कह रहे हैं कि अगर कोई अपनी पहचान छुपा कर गया तो उसमें उसका दोष है। दरअसल भारतीय दंड संहिता जो पुरानी वाली थी, और भारतीय न्याय संहिता जो नई वाली है, उन दोनो में ही इम्पर्सनेशन यानी ग़लत पहचान बताना, जिसकी धारा का नंबर है 319, 242, 319, 204, 205, और 337 इनमें से कोई भी धारा यहां कारगर नहीं होती। इन धाराओं में जाति संबंधी मामला है ही नहीं, सब कानूनी मामला है, यानी कानूनी धोखा देना, खुद को सरकारी अधिकारी बताना, कानूनी कार्यवाही में धोखा देना। अब ये तो बाबा जी ही बता पाएंगे कि ये जो कथा हो रही थी, ये कौन सी कानूनी कार्यवाही थी।
बताइए, अम्बेडकर ने ये कैसा संविधान बना दिया यार, जिसे ब्राहम्ण लोग बहुत कोशिश करने के बाद भी अपने शास्त्रों के हिसाब से ढाल नहीं पा रहे हैं।
अम्बेडकर के जीते जी भी इन लोगों ने एड़ी-चोटी का जोर लगा लिया, लेकिन अंबेडकर संविधान को ऐसा बना गए कि उसमें जातिगत भेदभाव के लिए जगह नहीं मिलती। इसीलिए तो आर एस एस ने भारतीय संविधान को मानने से ही इन्कार कर दिया था। 30 नवंबर 1949 के आर एस एस के मुखपत्र ऑर्गेनाइज़र के संपादकीय में लिखा था कि संविधान हिंदू सांस्कृतिक मूल्यों और मनुस्मृति से मेल नहीं खाता इसलिए वे इसे नहीं मानेंगे। इसलिए अपने आर एस एस के सहकार्यवाहक कह रहे हैं, और खुद भा ज पा के मंत्री कह रहे हैं कि अब संविधान बदलने का समय आ गया है। अब आप माने चाहे ना माने, ये संविधान तो भा ज पा वाले बदल कर रहेंगे, और इसकी जगह वो मनुस्मृति स्थापित करके रहेंगे। तब आएगा ब्राहम्णों का राज। हा हा हा।
देखिए, संविधान चाहे जो भी कहता रहे, समानता-फमानता की फर्जी बातें करता रहे। ये जो दलित हैं, उन्हें तो अपनी औकात पता रहनी चाहिए, ये संविधान ने और फिर वोट के अधिकार ने इन्हें बहुत सर पर चढ़ा लिया है। हमारे यहां रोज़ ये जो दलित हैं, इन्हें इनकी सही जगह बताई जाती है। हर रोज खबर आती है कि कहीं किसी दलित के हाथ काट लिए, कहीं उसका सिर काट लिया, कहीं उसे खम्बे से बांध कर पीट दिया, कहीं उसके हाथ-पैर काट दिए, उसकी बेटी के साथ ज़िना किया, कहीं दलितों की शोभा यात्रा को रोक लिया, और फिर उन्हीं दलितों को गिरफ्तार कर लिया। हर हफ्ते दो हफ्ते में एक दो दलित बच्चियों का बलात्कार करके उन्हें मार के खेत में टांग देने की खबर भी आती ही रहती है। तो दलितों को अपनी सही जगह मालूम रहती है।
बाबा जी से पूछें ज़रा ये सब भी शास्त्र सम्मत है क्या? और बाबा जी, ये जो बाबा बन के चुनाव लड़ रहे हैं, ये शास्त्र सम्मत है क्या? ये जो मठों के महंत हैं, जो मुख्यमंत्री बने हुए हैं, ये धर्म की ध्वजा को नुक्सान नहीं पहंुचा रहे हैं क्या? और एक छोटा सा सवाल और है बाबा जी, सुना रामायण के रचियता, वाल्मीकी, खुद भी ब्राहम्ण नहीं थे, तो रामायण जो उन्होने लिखी, वो तो सिर्फ अपने परिवार के लिए नहीं ही लिखी होगी। तो क्या उस रामायण का पाठ शास्त्र सम्मत होगा बाबा जी?
असल में इतने सैंकड़ों सालों बाद भारत की गद्दी पर जो हिंदू राजा बैठा, तो ब्राहम्णों ने अपनी गाड़ियों पर ”प्राउड टू बी ब्राहम्ण” या ”प्राउड टू बी हिंदू” लिखवाना शुरु किया। अब ये जो उपलब्धि है ब्राहम्ण होना, जिस पर उन्हें गर्व है, वो गर्व किस चीज़ का है, ये समझ नहीं आता। ब्राहम्ण होने के लिए कोई परीक्षा होती, तो आज खुद को ब्राहम्ण कहने वाले 80 प्रतिशत को उसमें फेल हो जाना था। पर फिर भी दलितों का दमन करने में जो मज़ा है, उसका कोई जोड़ नहीं। और समय-समय पर ये काम करते ही रहते हैं, जिसमें पुलिस प्रशासन पूरी मुस्तैदी से अपना पूरा योगदान देता है।
पर ये जो फुले, पेरियार, अंबेडकर, शाहू जी महाराज, और अन्य दलित अधिकारों के प्रण्ेाता रहे, उन्होने सब गड़बड़ कर दिया।
अब ये दलित मनुस्मृति मानने से मना कर दे रहे हैं, बताइए, इनकी इतनी हिम्मत। ये लोग इतने शक्तिशाली हो गए हैं कि जब इन यादव जी का थोड़ा सा अपमान किया गया, वो भी सिर्फ इन्हें सबक सिखाने के लिए, इनके बाल मूंड दिए गए, इनके उपर पेशाब का छिड़काव किया गया, तो इनकी इतनी हिम्मत हो गई, कि इन्होने इसके खिलाफ आवाज़ उठाई। बताइए, एक तो इन पर ये अहसान किया गया, कि इन्हें बस थोड़ा सा अपमान करके बक्श दिया गया, जान से नहीं मारा गया, और इस अहसान का बदला ये इस तरह चुका रहे हैं कि पुलिस में रिपोर्ट कर दिया।
अब इस देश में ब्राहम्णों के लिए बहुत मुश्किल समय आ गया है। ये दलित रोज़ ब रोज़ ब्राहम्णों का अपमान कर रहे हैं। संसद में पहंुच जा रहे हैं, जज बन जा रहे हैं, और चिंता ये है कि आने वाले समय में अगर सच में जाति जनगणना हो गई, तो देश के ज्यादातर संसाधनों पर ये अपना हक़ मांगने लगेंगे। हो सकता है कि इसके बाद कोई सवर्ण प्रधानमंत्री ही ना बन पाए। सवर्णों को खासतौर पर ब्राहम्णों के लिए खतरे की घंटी बज चुकी है, भाजपा ने बहुत कोशिश की, लेकिन अब तो वो भी घिरती नज़र आ रही है। बाबा जी, अब आप ही बताइए, क्या किया जाए। शास्त्र क्या कहते हैं। वेद क्या कहते हैं। अब तो कतई कलयुग आ गया, क्या ब्राहम्णों को दलितों के साथ, शूद्रों, और आदिवासियों के समकक्ष समझा जाएगा। हाय, हाय, ये क्या हो गया है, हाय हाय ये क्या हो रहा है।
एक कवि हुए गोरख पांडे, कह गए कि
उसको रोटी-कपड़ा चाहिए
बस इतना ही नहीं
उसे न्याय भी चाहिए
इस पर से उसको सचमुच आजादी चाहिए
उसको फांसी दे दो
वो कहता है कि उसे हमेशा काम चाहिए
सिर्फ काम ही नहीं
काम का फल भी चाहिए
काम और फल पर बेरोक दखल भी चाहिए
उसको फांसी दे दो।
वो कहता है कोरा भाषण नहीं चाहिए
झूठे वादे हिंसक शासन नहीं चाहिए
भूखे नंगे लोगों की जलती छाती पर
नकली जंनतंत्री सिंहासन नहीं चाहिए
उसको फांसी दे दो
वो कहता ह ैअब वो सबके साथ चलेगा
वो शोषण पर टिकी व्यवस्था को बदलेगा
किसी विदेशी ताक़त से वो मिला हुआ है।
उसकी इस गद्दारी का फल तुरत मिलेगा
आओ देशभक्त जल्लादों
पूंजी के विश्वस्त पियादों
उसको फांसी दे दो।
ये जो जाति जणगणना की बात है, ये जो लोग इस देश में सबकी समान भागीदारी चाहते हैं, वे सब दरअसल ब्राहम्णों के सनातन अधिकार को खत्म कर देना चाहते हैं, वे समानता वाली व्यवस्था चाहते हैं, वो तो ये चाहते हैं कि ये देश, ऋषि मुनियों का ये देश, अपनी दलितों पर अत्याचार की सनातन व्यवस्था को छोड़ दे, आप ये समझ लो कि अगर राहुल गांधी की जिद पर जाति जनगणना हो गई, तो दोस्तों ये दलित फिर इस देश में अपना हिस्सा मांगेगे, और लिए बिना बाज नहीं आएंगे। असल में बाबा जी की, सारे ब्राहम्ण समाज की, और सर्वणों की यही सबसे बड़ी चिंता है।
ग़ालिब मुझे इसीलिए पसंद हैं। खुद मिर्ज़ा थे, लेकिन इस मौके के लिए भी उन्होने एक शेर लिख मारा......
सुनिए ज़रा ध्यान से
बरहमन कौन है ये कैसे पता चलता है
ग़ालिब को संस्कृत नहीं आती थी इसलिए ब्राहम्ण को बरहमन कहते थे।
बरहमन कौन है ये कैसे पता चलता है
ज़रा सा ऐंठ कर चलते हैं, उन्हें मुगालता है।
बाकी जात को बेशक मत मानिए, पर अपनी जाति पर गर्व करते रहिए। यही सच्चा असली और शुद्ध देसी घी वाली प्रगतिशीलता है। जातिवाद से मुकाबला तभी हो सकता है, जब नीची जातियां सवर्ण जातियों की प्रभुता को स्वीकार कर लें। अगर आपको भी अपनी जाति पर गर्व है, और आप भी ये मानते हैं कि भारत में जातिवाद नहीं है, तो आप भी प्रगतिशीलता की उच्चावस्था को स्वीकार कर चुके हैं। बाकी जो है वो हैये है।
नमस्कार।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें