सर जी, ये देश वीर जवानों का, अलबेलों का मस्तानों का नहीं है। ये देश दरअसल फकीरों का देश है। फकीरी इस देश को बहुत भाती है। इस देश में सदा से, सदियों से फकीरों को ही बोलबाला रहा है। जो फकीर हुआ, वही मशहूर हुआ, वही धन्य हुआ, क्या जनता, क्या राजा सबने उसका गुण-गाया। फकीरी का जहूरा ये कि राजे-महाराजे और बादशाह तक फकीरी के लिए झूमते गुनगुनाते रहे। ऐसा नहीं है कि बाकी दुनिया में फकीरों को सम्मान नहीं मिला। मिला, ज़रूर मिला, लेकिन वैसा और उतना नहीं मिला, जितना इस देश में मिला। इस देश में तो जितने फकीर हुए, उनमें से ज्यादातर ने सुना राज-पाट छोड़ कर फकीरी पकड़ी और ऐसी पकड़ी कि एक की जगह सैंकड़ो राज्यों के राजा उन पर बलिहारी हो गए। फकीरी की इसी परंपरा की पराकाष्ठा इस दौर में इस घोषणा से हुई
यूं तो फकीरी की मौज जीवन के हर पहलू में देखी जा सकती है, पर सबसे बड़ा कमाल ये है कि वो मशहूर झोला आज तक न दिखाई दिया जिसे उठा कर चलने की बात की गई थी, ये तथाकथित झोला, जिस पर उतनी भी बात ना हुई जितनी का वो हक़दार था, उस पर तवज्जो जाना जरूरी है। विद्वान लोग अब तक कयास लगा रहे हैं कि आखिर इस फकीर के उस झोले का नाप क्या होगा, जिसे ये इतनी शिद्दत से, इतने पैशन से उठा कर जाने की बात कर रहा है। फकीर के अपने लक्षणों को देखते हुए, लोग फकीर से कम और उस झोले से ज्यादा परेशान हैं, जिसे उठाकर चलने की बात की जा रही है। कहते हैं झोला है या भानूमति का पिटारा, पर आप मेरा यक़ीन मानिए, भानूमति के पिटारे का रहस्य इस रहस्य के सामने कुछ नहीं है कि आखिर ये जगतप्रसिद्ध झोला कहां है, कैसा है, और इस झोले में क्या है।
सच कहूं तो अपने को ये वाले फकीर बहुत भाते हैं। वो क्या फकीरी हुई कि लिए कटोरा फिर रहे हैं, जंगल-जंगल, बस्ती-बस्ती, लौ लगा ली कहीं, और अब जी रहे हैं तो उसी की याद में, जीने की फिकर नहीं कि मरने का डर नहीं। फकीरी हो तो यार ऐसी हो, कि लोग देखें और रश्क करें कि यार, काश हमें भी ऐसी फकीरी नसीब होती।
यहां कवि दरअसल सवाल नहीं पूछ रहा है। वो हजारों लाखों लोगों के उस दर्द को अभिव्यक्ति दे रहा है जो इसी फकीरी के जुगाड़ में लगे हुए हैं, और फकीरी है कि उनसे भाग रही है दूर, वो अपनी तौर पर पूरा जुगाड़ लगाते हैं, लेकिन कोई जुगाड़ काम ही नहीं करता। इधर जो फकीर है, वो दुनिया के मज़े लेता घूमता रहता है, किसी ने सही कहा है
फकीरी कर दुनिया में गाफ़िल, जिम्मेदारी में मौज क्या
मौज मान ले कुछ हो गई तो, ऐशो-इशरत ये कहां?
फकीरी का अपना ही मज़ा होता है, ना बीवी की चिंता ना घरबार की फिकर, बस इंसान जब चाहे घर से भाग जाता है, जिसे वो बाद में घर छोड़ना भी कह सकता है। घर से भागते हुए घर का माल-मत्ता समेट लेने से फकीरी की तरफ जाने की राह में जो मुश्किलें आती हैं, उन्हें आसान किया जा सकता है। हालांकि फकीरी के सबसे उंचे सोपान पर बैठ कर उस माल-मत्ते की बात भूल जाती है, याद रहती है तो सिफ फकीरी।
घर छोड़ने या आम ज़बान में कहें तो घर से भागने के बाद आमतौर पर इंसान दर-दर की ठोकरें खाता है, लेकिन कुछ किस्मत वाले ऐसे भी होते हैं, जो अमरीका के कई शहरों की सैर करते हैं, और जमाने भर की ऐश करते हैं।
मोदी मैं अमरीका के इतने शहर घूम चुका था।
कमाल ये है कि ह्वेनसंाग और फाह्यान, साथ में इब्ने बतूता को भी मिला लें और मार्को पोलो को भी तो भी इत्ती बड़ी सैर नहीं होती, जैसी फकीर ने की है। सुनते हैं फकीर के इस विश्व भ्रमण पर हजारों करोड़ रुपए ही खर्च हुआ है। बताइए कौन फकीर इत्ती इफरात से दुनिया की सैर पर इत्ता पैसा खर्च करता है यार।
और फकीरी में अगर ऐसे ऐश करने को मिलें तो क्यों ना भला फकीरी का इतना आकर्षण हो भाई। जानते हैं, कभी - कभी मेरे दिल में ख्याल आता है, कि जिंदगी ऐसी फकीरी में गुज़रने पाती तो ऐश हो भी सकती थी। ये जो बेकार की मारामारी है, करोड़ों के हवाई जाहज में बैठ के सो भी सकती थी। मगर ये हो ना सका, मगर ये हो ना सका और अब ये आलम है, कि जी एस टी भर के भी जेबें हमारी खाली हैं, चल रही है ई एम आई पे जिंदगी अपनी हम तो अच्छे दिनों के सवाली हैं। कभी -कभी मेरे दिल में ख्याल आता है। इस अनचाहे फकीर के कटोरे में वो हवाई जहाज है जिसकी कुल क़ीमत आठ हज़ार करोड़ रुपये है, ऐसा लगता है कि हवाई जहाज खुद-ब-खुद उड़ता होगा, उसकी खिड़कियों के शीशे अपने आप उपर नीचे होते होंगे, और उसके पंखों से कोमल फूलों की मधुर सुगंध आती होगी।
फकीर की इस फकीराना अदा पर ही मीर ने कहा था,
फकीराना आए साइन कर चले
मोंटे ब्लांक से हम ये क्या कर चले
चलने के लिए इत्ती महंगी कार हो, पहनने के लिए इत्ते ढेर कपड़े हों, हर मौके पर पहनने और फिर कभी ना पहनने के लिए टोपियां हों तो ऐसी फकीरी पर तो कौन ना मर जाए ऐ खुदा। पर क्या करें, हमारे दिन अच्छे नहीं आए कि हम भी फकीर बन सकते, हम भी अमेरीका के 25-30 शहर घूम सकते, कि हम भी काजू के आटे की रोटी का स्वाद चख सकते। सच कहें हमने तो आज तक ना काजू का आटा देखा ना हजारों रुपये किलो वाली मशरूम ही देखी है। ऐसे मज़े सिर्फ फकीरों को ही उपलब्ध होते हैं सुना है।
फकीर तुम बढ़े चलो
फकीर तुम बढ़े चलो
मोंट ब्लांक पेन से लिखो
मेबैक चश्में से देखो
नज़र कभी झुके नहीं
कदम कभी रुके नहीं
फकीर तुम बढ़े चलो
फकीर तुम बढ़े चलो
खैर साहब, जैसा कि हर कथा के अंत में कहा जाता है, आपके लिए भी हमारे पास दुआ है। हालांकि ऐसी फकीरत पाने के लिए बहुत साधना करनी पड़ती है, बीवी को छोड़ना पड़ता है, घर से भागना पड़ता है, लेकिन आप जैसे पापियों के लिए, जिन्होने ये पूरा वीडियो देखा और पूरी कथा सुनी है, हमारी दुआ है कि जैसे इनके दिन फिरे, और ये फकीर बनें, वैसे ही आपको भी जल्द ऐसा फकीर बनना नसीब हो।
आखिर में, चचा ग़ालिब का ये शेर आपकी नज़रे-इनायत चाहते हैं।
ये ना थी हमारी किस्मत, के मैं भी गरीब होता
गर घर से भाग जाता, तो मैं भी फकीर होता
मैं घर से भाग जाता, शाखा में बैठ जाता,
तो ऐसा फकीर बनना, मुझे भी नसीब होता
चचा जिंदगी भर ग़रीबी में गुज़ारा किए, हालांकि सुना जब पैसे आए तो शराब खरीद लाए कि कभी कमी ना पड़े। पर भैये हर किसी का अपना अपना ढब होता है। आप तो फकीरी के गुणों को गिनिए और सुनिए, फकीरी के ऐसे उदाहरण कुछ हों आपके पास तो बताने से मत चूकिएगा।
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