भाग-2
उस चोर ने (जिसका नाम सिट्टू था, मुझे बाद में पता चला) मुझे बाहर से झोले में से निकाला और अपने पास रख लिया, पहले तो मुझे लगा कि शायद वो मुझे छुपा के रख लेगा । लेकिन उसे तो पैसे चाहिए थे, इसलिए उसने तो मुझे फौरन बेच दिया, वो एक छोटी सी बस्ती की छोटी सी दुकान थी। और उतना ही छोटा उन लोगों का मोल-भाव था....दुकानदार ने सिट्टू से कहा, ‘‘और सिट्टू क्या माल ले आया‘‘, सिट्टू बोला, ‘‘अरे लाला मोटे वाला लोटा ले आया हूँ, जल्दी से 40-50 निकाल‘‘...और उसने बड़ी शान से मुझे उस दुकानदार के सामने रख दिया। दुकानदार ने मुझे ध्यान से देखा परखा और फिर चुपचाप से तीस रूपये सिट्टू को दिये, फिर उसने अपनी बेटी को आवाज़ दी, ‘‘रेखा‘‘, और वो आयी, वो आयी तो मेरे दिल की धड़कन रूक सी गयी, उसने मुझे उठाया, घुमा कर देखा, उसके बाप ने उसे फिर अंदर जाने का इशारा किया, और जो ग्राहक आये थे उन्हें सम्भालने लगा ।
रेखा मुझे अपने साथ अंदर ले गयी, अंदर वाले कमरे की खिड़की के पास, वहाँ खड़ा था सिट्टू , ‘‘ये तू लाया है‘‘ रेखा ने पूछा, ‘‘और क्या‘‘ सिट्टू ने गर्व से कहा । ‘‘हँुह, तुझे कितनी बार कहा है कोई बड़ा हाथ मार वरना तू एसे ही चिन्दीचोरी करता रहेगा और मेरा बाप मुझे किसी ख़सम के हाथों थमा देगा‘‘, ‘‘क्या बात करती है, कुछ दिन रूक जा, मैं सब इंतज़ाम कर लूँगा‘‘, ‘‘ये सोच लियो कि जब तक मुझे खूब सारे पैसे दिखायी नही देंगे मैं कहीं नहीं जाउँगी‘‘, ‘‘पर मैं तुझसे ही प्यार करता हूँ‘‘, ‘‘हाँ हाँ और इस प्यार को तू अभी ठेके पे बोतल में डाल कर पियेगा, देख बे, मेरे साथ भागना है तो इंतज़ाम कर, वरना भाग यहाँ से मुझे बहुत काम है‘‘, ‘‘अरे सुन...‘‘, और रेखा ने खिड़की बंद कर दी, पता नहीं क्यूँ पर मैं तो उस पर फिदा हो गया, तौबा कसम से क्या लड़की थाी, मैं तो कहता हूॅँ कि अगर लड़कियाँ ऐसी ही हो जाये ंतो इस दुनिया का आगा-पीछा सब कुछ बदल जायेगा। अरे भई कमाल की लड़की थी, बेटी थी तो अपनी शर्तों पर, प्रेमिका थी तो अपनी शर्तोें पर, तुम्हें रहना है रहो नहीं रहना भाड़ में जाओ, उसका रंग साँवला था, सफे़द दाँत, और छोटे बाल, जो उसने अपने बाप से लड़कर कटवाये थे, उसके हाथ खुरदुरे थे और मुझे उसके हाथों का स्पर्श बहुत अच्छा लगता था। जब वो सुबह-सुबह आटा गॅूँथने के लिये मुझे इस्तेमाल करती थी तो मुझमें एक किस्म की गरमाहट सी आ जाती थी। मैं पूरा दिन शाम के उन लम्हों के सपनें देखता था, जब वो आटा गूँथेगी । वहीं रहते हुए मुझे उसकी और सिट्टू की ‘बोल्ड लव स्टोरी‘ के बारे में पता चला, उनकी बातचीत के टुकड़ों से मुझे पता चली ये कहानी ऐसी थी कि आप भी उसे सुनकर चौंक पड़ेंगे......
उनकी बातचीत और बाप बेटी के बीच समय-समय पर चलने वाली तकरार से रेखा की जो कहानी मैं जान पाया, वो ये थी कि रेखा की माँ, जिसे उसका बाप ‘वो बदचलन‘ कहता था‘ किसी एक वक्त में, ज़ाहिर है रेखा को पैदा करने के बाद मर गई थी, और उसके बाप ने दूसरी शादी नहीं की थी (मोटा, भद्दा, सूरत से ही नालायक लगता था, सोच के अचरज होता था कि उसकी पहली शादी कैसे हो गयी)। रेखा बिना माँ के बड़ी हुई थी और जल्दी ही समझ गयी थी कि लड़की की उम्र से कोई फ़र्क नहीं पड़ता, कोई भी मर्द, चाहे वो बाहर का हो या रिशतेदार उसका फ़ायदा उठायेगा अगर मौका मिलेगा तो। लेकिन वो ऐसी लड़की नहीं थी कि रोती, छुपती, या भाग जाती, बहुत छोटे में ही उसने ये तरीका अपना लिया कि अगर कोई रिशतेदार या और कोई भी उसके साथ, उसे सहलाने, पुचकारने, या प्यार करने के बहाने, हाथ चालाकी करने की कोशिश करता तो वो अपने पास लोहे की एक सलाई रखती थी जिसे उसकी जाँघ में घुसेड़ देती और फिर ज़ोर से चिल्लाने लगती। धीरे-धीरे लोगों ने डर के मारे उस के घर आना ही बंद कर दिया। एक उसका बाप था, जो किसी भी तरह उसकी शादी करके उसे निकाल देना चाहता था लेकिन उसके इरादे कुछ अलग थे। वो पढ़ी-लिखी तो नहीं थी पर पैसे गिनना जानती थी, और उसने कुछ पैसे जमा भी किये हुए थे, उसे पता था कि अगर उसे अपने भरोसे रहना है तो उसके लिए आमदनी का कोई ज़रिया तलाशना होगा (ये मेरा सोचना था)। इसके अलावा उसने सोचा होगा कि एक अकेली लड़की इस समाज में तो सुरक्षित रह नहीं सकती, इसलिये कोई भी, कैसा भी, एक मर्द तो चाहिए ही, उसके लिए सिट्टू था। उसका प्लान ये था कि सिट्टू कहीं बड़ा हाथ मारे, और उसको दो-ढ़ाई लाख रूपये लाकर दे, और वो कहीं भागकर शादी कर लें । ऐसी ही किसी बस्ती में जाकर वो अपने बाप की तरह दुकान खोल ले और फिर वो सुख से रहे। कमाल की बात ये है कि इस सुख मंे सिट्टू कभी शामिल नहीं देखा, उसका मानना था कि एक बार सिट्टू से शादी हो जाये और उसकी दुकान खुल जाये तो फिर सिट्टू जिये या मरे उसे कोई फ़र्क नहीं पड़ता, और ये ठीक भी था।
इस सारी इक्वेशन में आपकी मिडिल क्लास मोरेलिटी को प्रोग्रेविनेस की चटाँक भर चुस्की के साथ बड़ा हाथ मारना, या चोरी करना अख़रा होगा, कमाल ये है कि चोरी, छीना-झपटी, इन चीज़ों को सभी बुरा मानते हैं, फिर भी अगर कोई चीज़ बाज़ार भाव से सस्ती मिल जाये तो मोरेलिटी को बिना कोई तकलीफ़ दिये वो चीज़ बेझिझक खरीद ली जाती है। आपके ही दोस्त आपको चोरी के कैमरे (डिजिटल) या मोबाइल फोन के सेफ़ इस्तेमाल के तरीके बताते मिल जायेंगे और तब हमें कोई फ़र्क नहीं पड़ता। लेकिन ‘रेखा ने ऐसा सोचा‘ ये आपकी मोरल तबीयत पर थोड़ा ग़रां गुज़रा होगा। ख़ैर मुझे क्या, मेरा तो ये कहना है कि मैं तो उस लड़की पर क्लीन बोल्ड आउट था। वो अपनी ज़िंदगी अपने हाथ में लेने के लिए कुछ भी करती मुझे इसमें कतई कोई ऐतराज़ नहीं होता, रत्ती भर भी नहीं।
और आखिर एक दिन सिट्टू बड़ी बेसब्री से आकर खिड़की के नीचे खड़ा हो गया, रेखा ने जब खिड़की खोली तो मुझे उसका चेहरा देखते ही पता चल गया कि उसने बड़ा हाथ मार लिया है, उसने फुसफुसाते हुए कहा कि उसके पास 1.5 लाख रूपये हैं और वो उसे बड़े पाइप के पास मिले (यहाँ आपको ये याद रखना होगा कि मैं जब से इस घर में आया था, बाहर नहीं निकला था, और इसलिए मुझे नहीं पता कि ये बड़ा पाइप क्या था, कहाँ था, पर मुझे अंदाज़ा हो गया था कि ये कोई ऐसी जगह होगी जहाँ कोई आता-जाता न हो)। थोड़ी देर बाद वो घर से निकली और कई पतली गलियों से होती हुई बस्ती की तरफ चल दी, मुझे उसने क्या कहकर अपने साथ रखा था मुझे नहीं पता, बड़ा पाइप असल में पानी का वो पाइप था जिससे बड़ी कॉलोनियों तक पानी पहुँचाया जाता था। सिट्टू वहीं बैठा सिगरेट फूॅँक रहा था, वो उठ गया, रेखा उसके पास पहुँची तो उसने एक बैग खोला और उसमें से एक सौ की और एक पचास की गड्डी निकाली, और एक सोने की चैन निकाली, रेखा ने पैसे लेकर अपने झोले में डाल लिये, लेकिन जब उसने चैन के लिये हाथ बढ़ाया तो सिट्टू ने कहा ‘‘मैं पहना दूॅँ‘‘ ,एक बार तो लगा रेखा उसे मना कर देगी, लेकिन कुछ सोच कर उसने हाँ कर दी, सिट्टू ने अपने पंजों पर उचक कर उसे वो चैन पहना दी, लेकिन फिर उसका चेहरा पकड़ लिया और उसे चूमने लगा, रेखा ने उसे रोका नहीं, थोड़ी देर तक वो अपने पंजों पर खड़ा हुआ रेखा को चूमता रहा, फिर उसकी साँस चढ़ गयी, शायद थक गया था, उसने दोनों हाथांे से पकड़ कर रेखा को नीचे की तरफ खींचा और अपना एक हाथ उसकी गिरहबान में डाल दिया । रेखा ने थोड़ी देर इसका भी कोई विरोध नहीं किया, बल्कि यूँ कहें कि इसका कोई नोटिस ही नहीं लिया, लेकिन फिर उसका हाथ झटक दिया और बोली, ‘‘आज ही निकलना है, रात 11 बजे, जब मेरा बाप दुकान बंद करके सो जाता है, तब मैं निकलूँगी, मुझे परली तरफ मिल जाइयो, समझा‘‘, ‘‘हम्म्म..हाँ..11बजे थोड़ी देर रूक न ‘‘, ‘‘आज रात के बाद तेरे साथ ही रूकना है फिर, हैं न‘‘...जब रेखा घर वापस आ रही थी तो मैं ये सोच रहा था कि मैं जो उस लड़की पर क्लीन बोल्ड हॅँू , क्या मुझे जलन नहीं हुई, जवाब तो मेरे पास है, नहीं हुई, लेकिन ये नहीं पता कि क्यूँ , हो सकता है हम लोटों की जात में जलन होती ही न हो, या ये भी हो सकता है कि मुझे लगा हो, लगा हो क्या...मुझे पता हो, कि रेखा ने जो किया वो एक प्लान के तहत था, मुझे तो इस बात की खुशी थी कि वो मुझे अपने साथ ले जाने वाली थी उस रात।
उस रात जब उसका बाप दुकान बंद करके घर में आकर लेट गया तो वो उठी और उसने अपना कपड़े वाला झोला उठा लिया। मैं डर रहा था कि कहीं मुझे ले जाना न भूल जाये, और आखिरकार उसने मुझे उठाकर अपने झोले में डाल लिया, मेरे अलावा उसके झोले में थे कुछ कपड़े, सिट्टू वाले पैसे, उसके बाप ने जो ज़ेवर बनवाये थे, वो उसने उठा लिये क्योंकि वो तो उसी के थे, और सबसे ऊपर उसने मुझे रख लिया । और हम, यानी मैं और रेखा घर से निकले और रेलवे स्टेशन की तरफ चल पड़े, अब वो क्या सपनें देखती, मैं ही सपने देख रहा था (अब तो यकीन कर ही लीजिये कि लोटे को भी सपनें आते ही है), मेरे सपनों में भविष्य के वो दिन आ रहे थे कि कैसे, रेखा मुझे बड़े प्यार से उठाकर मेरी मदद से आटा गॅँूथ रही है, या वो मुझमें पानी पी रही है । आहा, क्या सपनें थे, वाह-वाह, लेकिन अचानक ही मुझे लगा कि मैं हवा मंे उड़ रहा हमॅँ,सपनें देखते हुए कोई भी हवा में उड़ सकता है, आप भी कभी न कभी हवा में उड़े होंगे, और आप से किसी ने कहा होगा कि ज़्यादा हवा में मत उड़ो।
लेकिन वो अनुभव कुछ और ही था, मेरा मन ही नहीं शरीर भी उड़ता हुआ लग रहा था । आपको तो कभी सपनों में उड़ते हुए कहीं एसा अनुभव नहीं हुआ होगा, क्यों ?..मुझे लगा कुछ गड़बड़ है गड़बड़, तो मैंने अपने सपने को पॉज़ दिया, और बड़ी मेहनत करके आँख (अब तक आपने कल्पना कर ली होगी कि लोटे की आँख कहाँ होती होगी) खोली, तो मैंने देखा कि मैं सच में हवा में उड़ रहा हँू, जाने क्या हुआ था, लेकिन मेरा सपना ऑटो में बैठा हुआ सड़क पर तेजी से दौड़ा जा रहा था, और मैं ऐसे शॉक हुआ कि मेरे तो मुँह से आवाज़ नहीं निकली ,और मैं सड़क से जा टकराया, तब मैं बहुत चीखा-चिल्लाया, बहुत तड़पा-छटपटाया, लेकिन कुछ कर नहीं पाया.......और लगता है रेखा ने मेरी आवाज़ भी नहीं सुनी, क्योंकि न तो स्कूटर रूका और न ही कोई मुझे उठाने आया........और आपको याद होेगा कि मेरे पैर तो थे नहीं कि मैं खुद ही भागकर ऑटो पकड़ पाता ।
मैं लुढ़कता हुआ किनारे बनी हुई गंदी नाली में जा गिरा, और वहीं पडा़-पड़ा अपने हालात पर आँसू बहाता रहा..........

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें