बुधवार, 6 मई 2015

विश्वास, मीडिया और जनता






इधर सुन रहे हैं कि भारतीय मीडिया को नेपाल की जनता ने बर्खास्त कर दिया है। ”नेशन वांटस् टू नो....” चीखने वाले नेशन को बता नहीं रहे हैं, लेकिन सच्चाई ये है कि नेपाल की त्रस्त जनता ने भारतीय मीडिया से हाथ-पांव जोड़ कर पनाह मांगते हुए गुज़ारिश की है कि वो वापिस चले जाएं, और अपने ही देश की ऐसी-तैसी करें। भारतीय मीडिया ने हालांकि नेपाल में ऐसा कुछ खास गुनाह नहीं किया था, बस वही किया था जिसकी वो आदी है.....यानी जिसकी उसे आदत है। जर्बदस्ती की न्यूज़ बनाना, जो नहीं है उसे हाईलाइट करना, जो है उसे गायब कर देना, न्यूज़ के नाम पर काली मुर्गी के सफेद अंडे की, देवों के पैरों के निशान की, शंकर जी की पिंडी के दूध पीने की सेन्सेशनल, लेकिन बेअक्ल कहानियां परोसना, न्यूज़ के नाम पर ”कपिल ने किया शादी से इन्कार.....जैसे भौंडे तमाशे दिखाना। सारे प्राइम टाइम टी वी सीरियलों के टुकड़े दिखाना, भविष्य बांचने का काम करना, आदि आदि के अलावा.......पैसे लेकर न्यूज़ बनाना, न्यूज़ बनाकर ब्लैकमेल करना, रिश्वत खाना, चापलूसी करना, यौन शोषण करना, अव्वल दर्जे का जुआ चलाना, आदि आदि के अलावा......हर संवेदनशील घटना की संवेदना को इस हद तक निचोड़ना कि वो बेतुकी और असंवेदनशील लगने लगे, यू ट्यूब से वीडियो डाउनलोड करके, ”हमारे चैनल पे एक्सक्लूसिव देखिए” का शोर मचाना, बिन बात की खबर को, भोंडे और सेन्सेशनल टाइटल देकर भुनाना, आदि आदि के अलावा.....बिना किसी राजनीतिक समझ के रिपोर्टिंग करना, जहां राजनीतिक मुद्दा हो वहां अपनी अराजनीतिक, हास्यास्पद रिपोर्टिंग के ज़रिए मुद्दे को खत्म कर देना, गरीब-गुरबों की, राष्ट्रीय महत्व की खबरें ना दिखाकर, अमिताभ बच्चन के बेटे की शादी, उनकी बहू के बच्चे की खबर को राष्ट्रीय खबर बना देना, क्रिकेट जैसे फालतू के खेल को इतना महत्व देना कि किसी और खबर के लिए कोई जगह ही ना बचे आदि आदि। ये कुछ आदतें हैं भारतीय मीडिया की जो, चोर चोरी से जाए, हेरा फेरी से ना जाए वाली तर्ज़ पर भारतीय मीडिया की हैं।  
लोकतंत्र के इस स्वयंभू चौथे खंभे की हालत खुद भारतीय लोकतंत्र जैसी है, ना इसके पास कोई नैतिकता बची है और ना ही कोई मूल्य, ना कोई इसका विश्वास करता है और ना ही इसे खुद पर विश्वास है। ये मीडिया चैनल हफ्तावारी बाज़ारों की तरह अपने माल की खरीद के लिए चिल्लाते रहते हैं, अपने माल को बढ़िया, सस्ता बताते हुए ग्राहकों को लुभाने की कोशिश करते हैं, और अपने व्यवसाय को कोसते रहते हैं। जैसे ही मौका मिलता है अपनी जगह बेच कर सरक लेते हैं। नेपाल की त्रासदी में रवीश कुमार नहीं दिखे, वो होते तो.....सोचिए ज़रा। नेपाल के भूकम्प के बीच नेपाल की राजनीति का सतही तब्सरा भी होता, लोगों की हालत का आंखो देखा हाल भी सुनने को मिलता, थोड़ा नेचुरल सा, अनमेड सा, अंदाज़ होता। खैर.....
नेपाल के लोगों ने भारतीय मीडिया के भोंडेपन को बहुत जल्दी पहचान लिया, हम अभी तक असमंजस में हैं। कभी यही मीडिया हमें प्यारा लगता है, कभी यही मीडिया हमें निष्पक्ष लगता है। इतने दिनों की धोखेबाज़ी के बावजूद हम आज तक नहीं समझे कि भाइयों, ये मीडिया, भारतीय मीडिया, आपका मीडिया नहीं है। ये मीडिया बिका हुआ नहीं है, बल्कि ये मीडिया बिकना चाहता है, टुकड़े-टुकड़े ये मीडिया बिकता है। इसके मालिक, वो पूंजीपति जो इस देश की हर शै को बेच देने पर अमादा हैं, इस मीडिया को लगातार बेच रहे हैं। बड़े-बड़े सेठों की तिजोरी में बंद ये मीडिया कैसे निष्पक्ष हो सकता है, और क्यों होगा? नेपाल की त्रासदी हो, या उत्तराखंड की, इस मीडिया को बिकना है, बिकने के लिए ये अपने माल को आकर्षक पैकेज में पेश करना चाहता है, इसके लिए इसे बेशर्मी की किसी भी हद तक जाना पड़े ये जाता है। जानबूझ कर खुद ही स्टिंग करता है, मलबे के ढेर में मर रहे लोगों से पूछता है कि उन्हे कैसा महसूस हो रहा है, स्टूडियो में खूबसूरत एंकर से बुलवाता है कि, ”कहीं मत जाइएगा भूकम्प की ऐसी ही दिल दहला देने वाली तस्वीरें लेकर हम फिर आएंगे, एक कॉमर्शियल ब्रेक के बाद”
नेपाल के लोग बेचारे और क्या करते, यही कर सकते थे कि इन्हें कहें, कि बहुत बना लिया हमारा तमाशा, अब जाओ, जाओ और अपने ही देश के लोगों का तमाशा बनाओ, उन्हे आदत है, मुझे यकीन है कि अगर अब भी ये लोग नहीं सुधरे, वापस नहीं आए तो आगे नेपाली जनता इन्हे मारेगी। 


तो भारतीय मीडिया से मेरी अपील यही है कि हमारी, माने देश की ज्यादा बेइज्जती ना करवाएं और चुपचाप वापस आ जाएं। न्यूज़ चैनल पर चलाने के लिए बाबा जी की भविष्यवाणी और सास-बहू सीरियलों का बहुत मसाला अभी है, चिंता ना करें, बाकी खबरे यू ट्यूब से ही डाउनलोड करके दे दें, वो तुमसे ज्यादा ऑथेंटिक होती हैं। बाकी अगर खबर बनानी है, चलानी है तो विश्वास की चलाओ यार, कुमार विश्वास की, उसमें मसाला है, मस्ती है, मजा है। चाहो तो लड़की का पुराना फोटो भी दिखा दो, अभी कोई केस तो है नहीं कि कोई कह सके कि पीड़िता का फोटो नहीं दिखाया जा सकता। कुमार विश्वास से ना सही तो ऐसे ही सड़क पर टहलती कुछ लड़कियों से पूछा जा सकता है कि उनका इस मामले पर क्या विचार है, और फिर, ”देखा आपने, इनका कहना है कि .....” के बाद फिर से कुछ बेकार के जुमले, फिर किसी को पकड़ लीजिए। 
ना लड़की मीडिया को कुछ कह रही है, ना विश्वास कह रहे हैं और केजरीवाल ने तो कह दिया है कि वो इस मामले में कुछ नहीं बोलेंगे। हालांकि बोलने के लिए उनके पास कुछ बचा भी नहीं है। सत्ता में आने से पहले गज भर लंबे दावे करने के बाद वो पहले ही कह चुके हैं कि वो उन सभी वादों को पूरा नहीं कर सकते। और ये कहकर वो साबित कर चुके हैं कि उनमें और किसी भी और सामान्य राजनीतिक पार्टी में कोई फर्क नहीं है, बाकी रही-सही कसर, विश्वास कुमार ने, तोमर ने और बस्सी ने पूरी कर दी। अब आ आ पा अपने पूरे जलाल पर है, कहीं इंजीनियरों को मार रहे हैं, कहीं सैक्स स्कैंडल में फंसे हैं, कहीं असंवेदनशीलता की पराकाष्ठा पर पहुंचे हुए हैं, कहीं टीवी पर रोआ-राटा मचा रखा है, अब बस भ्रष्टाचार का कोई मामला आना बाकी है, और जैसे इनके करम दिखाई दे रहे हैं उसमें देर सिर्फ इसलिए लग रही है कि पार्टी को सत्ता में आए अभी दिन ही कितने हुए हैं। 
विश्वास कुमार के लच्छन पहले से ही जनता को दिखाई दे रहे थे, उनका पूरा कविकर्म कोई लड़की मिल जाए, की सद्च्छिा पर टिका हुआ है। उनका हास्य, महिलाओं का अपमान होता है, उनकी कविता महिलाओं का संसर्ग, यहां से वो पहुंचे आ आ पा की राजनीति में, अब आप मुझे बताइए कि ऐसे व्यक्ति से किसी भी तरह की गंभीर राजनीति की उम्मीद करके गलती किसने की, आ आ पा ने, आप ने या विश्वास कुमार ने.....? 
मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है कि विश्वास कुमार ने किसी स्वयंसेविका के साथ संबंध बनाए होंगे, और ये भी हो सकता है कि वो पकड़े भी गए हों। लेकिन अब जो मामला हो रहा है वो समझ नहीं आ रहा। मीडिया स्वयंभू चरित्रवान, मूल्यवान बिचौलिया बना विश्वास कुमार के अविश्वास की दुहाई दे रहा है, और बाकी राजनीतिक पार्टियां अपनी रोटियां सेंकने में व्यस्त हैं। 
समझ तो ये भी नहीं आ रहा कि कोई महिला, चाहे उसने संबंध बनाए हों या ना बनाए हों, महिला अधिकारों की संस्था को पत्र देकर ये क्यूं कहेगी कि मेरा कोई संबंध नहीं था, लेकिन कुमार विश्वास ये कहें कि कोई संबंध नहीं था, और ना सिर्फ वो कहें बल्कि उनकी पत्नि भी ये बयान दे। इधर विश्वास कुमार ऐसा कोई भी बयान देने को तैयार नहीं हैं, एक तो लड़की की मांग, उपर से विश्वास कुमार की ज़िद। अरे भई अगर कोई लड़की कह रही है कि मेरा कोई संबंध आपसे नहीं है आप ये कह दीजिए, तो आपको ऐतराज़ क्या है। लेकिन ”कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है” जैसी अमर कविता के रचियता ये कैसे कह दें। समझ नहीं आता कि मामला क्या है। उपर से मीडिया, मसाला मीडिया, मस्त मीडिया, लगी हुई है, कैमरा क्लोज़ विश्वास कुमार, एंकर की आवाज़ ”आप नेता कुमार विश्वास चुप्पी साधे हुए हैं, क्या है इस चुप्पी का राज़ देखते रहिए ”हमारा चैनल”” स्क्रीन पर किसी लड़की धुधली तस्वीर, फिर कुछ लड़कियों के बीच, जिन्होने आप की स्वराज वाली टोपी पहन रखी है एक स्मोगी चेहरे की तस्वीर, एंकर की आवाज़ ”क्या आप नेता कुमार विश्वास के आप की वालंटियर के साथ अवैध संबंध थे, देखते रहिए ”हमारा चैनल”” और जनता.....।
जनता मुहं बाए देख रही है, तमाशा, ऐसा तमाशा जिसका जनता से असल में कुछ लेना-देना नहीं है। एक तरह भाजपा ने तुरुप का पत्ता हथिया लिया है, कुमार विश्वास की इस हरकत या ना-हरकत के पीछे भाजपा पड़ गई है, याद रखिएगा, ये वही पार्टी है जिसके नेता दिन-रात महिलाओं की बेइज्जती करते हैं, जिसके योगियों को रेप के आरोप में सज़ा हो चुकी है, जिसके नेताओं के अपने किस्से चटखारे लेकर संसद के गलियारों में सुनाए जाते रहे हैं। या कांग्रेस जो ऐसे ना जाने कितने किस्सों को अपने पेट में दबाए, हंसती रही है। याद ना हो तो सिर्फ नारायण दत्त तिवारी को याद कर लीजिए। गरज़ ये हम्माम में सभी नंगे हैं, नये नंगों की नंगई अब सामने आ रही है, और खुद नंगे ही नंगों का तमाशा बना रहे हैं, और कैमरा लेकर उनके पीछे नंगों की जमात पड़ी हुई है। भारतीय जनता ये तमाशा देखे जा रही है.....देखे जा रही है.....बस देखे जा रही है।

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