शुक्रवार, 8 मई 2015

ज़रुरत


उसने एक बार फिर से अपनी पैंट की जेब में हाथ डाल कर 50 रु. के नोट को मसला। उसने घर के राशन के खर्च में से ये 50 रु. बचाए थे। वो अक्सर ऐसा करता था, घर का कोई काम हो तो पैसे बचा लेता था, जैसे एक किलो की जगह 750 ग्राम दाल ले ली तो पांच-सात रुपये उसमें बचा लिए, और ऐसे ही कुछ और चीजों पर पैसे बच गए।  उसे पैसे की ज़रूरत नहीं थी, और ज़रूरत थी भी, कॉलेज में उसके लगभग हर दोस्त को घर से जेबखर्च मिलता था, उसे नहीं मिलता था। कॉलेज घर के पास ही था, और उसके बाप का कहना था कि पैदल चलने से सेहत ठीक रहती है, और बाहर के खाने से बेहतर घर का खाना होता है, इसलिए जेबखर्च की कोई जरूरत नहीं है। उसे ये समझ नहीं आता था कि 10 बजे सोकर उठने वाले उसके बाप को कैसे पता कि पैदल चलने से सेहत ठीक रहती है। 
कॉलेज में उसकी इमेज ठीक-ठाक थी, कुछ खास दोस्त थे, कुछ लड़कियां भी दोस्त थीं, जिनके सपने वो रातों को लिया करता था। लेकिन उसके घर का माहौल कुछ ऐसा था कि वहां हर चीज़ सबके साझे में थी। सबके सामने पढ़ना, टी वी देखना, खेलना, खाना खाना और सबके साथ आंगन में खाट बिछाकर सो जाना, इसलिए सपने देखने के अलावा वो कुछ कर नहीं पाता था। हालांकि औरत-मर्द के जिस्मानी संबंध के बारे में जितनी थ्यॉराटिकल नॉलेज किसी को हो सकती थी, वो उसे थी, बस प्रैक्टिकल पर हाथ कमज़ोर था। इसकी एक वजह ये भी हो सकती है कि उसका ध्यान ईश्वर, पूजा, योग ध्यान समाधि में भी था और उसे लगता था कि किसी भी तरह का यौनिक विचार, या वैचारिक यौन उसके लिए ठीक नहीं है। 
उसने एक बार फिर से अपनी पैंट की जेब में हाथ डाल कर 50 रु. के नोट को मसला। पचास रुपये बड़ी रकम थी, सिगरेट की पूरी डिब्बी की कीमत 7 रुपये थी, और उसकी एक डिब्बी तीन दिन चल जाती थी, वो ज्यादा सिगरेट नहीं पीता था, पर पीता था। दिन में दो या तीन, वैसे भी सुबह नौ बजे घर से निकलने तक और शाम का चार बजे घर में घुसने के बाद सिगरेट पीने की तो छोडिए वो तेज़ सांस लेने की भी नहीं सोच सकता था। उसके घर में कुछ चीजों की मनाही थी, जैसे ज़ोर से हंसना, ये सिर्फ बहनों के लिए ही नहीं, उसके लिए भी वर्जित था, पेंटिंग, किताबें पढ़ना, वो सिर्फ स्कूल या कॉलेज की किताबें पढ़ सकता था, किसी भी किस्म का गाना-बजाना, टी वी देखना, टी वी केवल तभी देखा जा सकता था, जब मां का कोई रिश्तेदार आया हो, या पिताजी जल्दी घर आ गए हों, बच्चों के लिए इसके अलावा टी वी देखना वर्जित था, पतंग उड़ाना, कंचे खेलना, एक बार घर में घुसने के बाद कहीं बाहर आना जाना, गरज़ की हर वो काम मना था जो वो करना चाहता था। उसका कोई दोस्त आज तक उसके घर नहीं आया था, वो खुद दोस्तों के घर कभी गया तो उसकी सबसे बड़ी चिंता ये रहती थी कि वो सही समय पर, यानी चार बजे तक घर वापिस पहुंच जाए। उसके बाद चिंता होती थी कि कहीं दोस्त के घर जाने और वापिस आने में कोई ऐसी बस ना मिले जिसमें स्टाफ ना चलता हो, क्योंकि टिकट के पैसे नहीं होते थे। ऐसे में वो कई ऐसे काम कर चुका था जिनके बारे में सोचकर उसे खुद ताज्जुब होता था। जैसे आज़ादपुर से भीकाजी कामा प्लेस तक पैदल आना। 
एक बार उसे स्कूल से घर आने में देर हो गई थी, उसकी मां ने उसे इस गलती की सज़ा ये दी थी कि उसे धूप में खड़ा कर दिया था, जहां एक घंटे खड़े रहने के बाद वो बेहोश होकर गिर गया था और उसके बाप ने उसे इसलिए मारा था कि उसके गिरने की वजह से एक गमला टूट गया था। 
उसे अपने बाप या मां से डर नहीं लगता था, उसकी चिंता ये थी कि अगर घर में ऐसा कुछ होता था तो उसका सीधा असर उसकी बहनो पर पड़ता था और वो जो घर के लगभग हर काम में मां का हाथ बंटाती थीं, हर बात पर पिटती थीं या ताना खाती थीं।
उसे अपने दोस्तों के घर पर बच्चों के साथ मां-बाप के प्रेमपूर्ण व्यवहार से आश्चर्य होता था, और उसे लगता था कि ऐसा सिर्फ दिखावे के लिए हो रहा है। जैसा उसके घर में होता था, जब कोई रिश्तेदार आता था, तो उसके रहने तक घर में एक तरह की स्तब्धता रहती थी, लेकिन उस दौरान भी उसे काफी चौकन्ना रहना पड़ता था, क्योंकि वो बेशक भूल जाए, उसके मां-बाप को उसकी हर गलती याद रहती थी, और कभी-कभी तो उसे एक ही गलती के लिए दो या तीन बार सज़ा भी मिल जाया करती थी, कभी-कभी किसी नयी गलती की सज़ा में पुरानी गलती की सज़ा को भी जोड़ दिया जाता था। 
कमाल ये था कि यही सब काम थे जो उसे सबसे ज्यादा पसंद थे, जो घर में वर्जित थे, वो बाहर करता था, गीत-संगीत, कविता-कहानी, बल्कि कई काम तो वो करता ही इसलिए था क्योंकि घर मंे उनकी मनाही थी, जैसे जोर से हंसना। उसे जोर से हंसना बहुत पसंद था। वो छोटी से छोटी बात पर भी ठहाका लगाकर हंसता था। इसके लिए वो बहाने के तौर पर तर्क देता था कि अगर हंसना ही है तो जोर से हंसा जाए, वरना हंसने का बहाना क्यों करें। 
कॉलेज की उसकी दुनिया घर की दुनिया से बिल्कुल अलग थी, वहां वो जिंदादिल, हंसमुख, कलाकार और यारों का यार इंसान था। कॉलेज में वो कई प्रतियोगिताओं में हिस्सेदारी करता था, इनाम जीतता था, लेकिन घर नहीं ले जाता था, कहीं फेंक देता था या किसी दोस्त को दे देता था। घर में ऐसी चीजों की मनाही थी। वो कभी अपने घर का जिक्र अपने दोस्तों के सामने नहीं करता था, जब उसके दोस्त अपने घर की किसी बात का जिक्र करते थे तो कभी अपने घर का हवाला नहीं देता था। उसे अपने दोस्तों के परिवारों, घरों के बारे में लगभग वो सब पता ािा जो आमतौर पर ऐसी दोस्ती में पता होता है, लेकिन उसके दोस्तों को उसके बारे में कोई जानकारी नहीं थी। कॉलेज के बाद वो अपने दोस्तों के साथ बस स्टैंड तक जाता था, वहीं एक छोले-कुलचे वाला था, जिसकी रेहड़ी पर सभी दोस्त छोले कुल्चे खाते थे, लेकिन वो अक्सर मन नहीं कर रहा, या इच्छा नहीं है, पेट खराब है जैसे बहाने करके टाल देता था, क्योकि उसके पास पैसे ही नहीं होते थे। फिर दोस्तों के साथ बस का इंतजार करता था और जब सब चले जाते थे तो पैदल अपने घर की तरफ चल देता था। 
इस उम्र में, जिसका जिक्र मैं कर रहा हूं, आदमी की जरूरतें बहुत ज्यादा नहीं होती, बहुत कम भी नहीं होती। इंसान का हर काम, हर सोच इस तरफ माइल रहती है कि दोस्तों के सामने हंसी ना उड़े, मज़ाक ना बने, और उसके लिए वो सबकुछ करता है। क्योंकि ये उम्र, राजनीति, नैतिक, और इंसानी तकाज़ों के सही या गलत के हिसाब से नहीं चलती। ये मिले, हंसे, और बात की के हिसाब से चलती है। उसने एक बार फिर से अपनी पैंट की जेब में हाथ डाल कर 50 रु. के नोट को मसला। 
पिछले कई दिनो से दोस्तों ने उसे मज़ाक का निशाना बनाया हुआ था कि वो उन्हे चाय नहीं पिलाता, छोले कुल्चे नहीं खाता, यानी पैसे खर्च नहीं करता। कुछ दोस्तों ने तो दबी जुबान में उसे कंजूस भी कह दिया था। आज वो छोले-कुल्चे भी खाएगा और अपने दोस्तों को चाय भी पिलाएगा। कम से कम उसकी हंसी नहीं उड़ेगी। वो नहीं चाहता था कि घर का अवसाद, उदासी, नाराजगी और अकेलापन उसकी बाहर की दुनिया में भी उसे घेर ले, उसे इंसान बना रहने के लिए अपने दोस्तों की जरूरत थी। पचास का ये नोट, जो उसने राशन के पैसों से चुराया था, उसके इंसान होने की जरूरत को पूरा कर सकता था। वो जानता था कि चोरी करना सही नहीं है, लेकिन नैतिकता के इस तकाज़े से ज्यादा उसकी ज़रूरत अपने इंसान को बनाए रखने की थी, जिसे सिर्फ वही जानता था। घर में जोर से हंसना मना था, वो कॉलेज जाने के लिए तैयार खड़ा था, हल्के से मुस्कुरा दिया। 
उसने एक बार फिर से अपनी पैंट की जेब में हाथ डाल कर 50 रु. के नोट को मसला। 

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