गुरुवार, 7 मई 2015

पेशाबी पौधा



”वो ज़माने गए जब हमारे पेशाब से चिराग जलते थे” ये किसी दौर की कहावत है साहब, आजकल किसी को इसका इस्तेमाल करते नहीं सुनते। हां भाजपा के एक बड़े नेता ये कहते जरूर सुने गए हैं कि उनके पौधों का बेहतर विकास इसलिए हो रहा है क्योंकि वो अपने पौधों को पानी की जगह अपने पेशाब से सींचते हैं। ऐसा ही एक बयान महराष्ट्र के एक बड़े नेता ”पवार” ने भी दिया था, हालांकि उन्होने खेत में सिंचाई के पानी की जगह अपना पेशाब पेश करने में असमर्थता जताने वाला बयान दिया था। काश कि गडकरी ने तब ही कुछ कहा होता। इस देश की यही सबसे बड़ी समस्या है। कितने ही किसानों की सूखे की वजह से फसलें बरबाद हो गई, उफ कि गडकरी ना हुए उस समय। बताइए, बारिश ना होने की सूरत में सारे गांव वाले पहले एक खेत में फिर दूसरे खेत में, और इस तरह पूरे गांव के खेतों में पेशाब करके फसलों की सिंचाई कर सकते थे, और बेहतर फसल ले सकते थे। गडकरी ने सिंचाई का एक ऐसा अभूतपूर्व हल पेश किया है कि सिंचाई की सारी समस्या ही हल हो गई है। 
अब ग्राम पंचायत में एक पेशाब विभाग भी बनाया जा सकता है, केन्द्र सरकार पेशाब से सिंचाई की योजना को प्रोत्साहन देने के लिए एक पेशाब मंत्रालय खोल सकती है, जिसका कार्यभार गडकरी को सौंपा जा सकता है। इस मामले में गडकरी ही एकमात्र अनुभवी हैं इसलिए उन्हे ही इस मंत्रालय का मंत्री बनाया जाना चाहिए। इसके बाद पूरे देश के हर राज्य, जिले, ब्लॉक और गांव में पेशाब जमा करने, उसके उचित इस्तेमाल की व्यवस्था की जानी चाहिए। मोदी को चाहिए कि वो इसके लिए गडकरी के लिए नोबेल पुरस्कार की संस्तुति करें, उन्हे यू एन से विश्व पेशाब दिवस मनाने की भी मांग करनी चाहिए, इसके साथ अगर गडकरी का नाम जोड़ दिया जाए तो बेहतर होगा, ताकि पूरी दुनिया को मालूम पड़ जाए कि पेशाब से पौधों की सिंचाई वाला आइडिया किस महान शख्सियत का था। इस तरह सदियों-सदियों तक दुनिया याद रखेगी कि उनके बेहरत पौधों और फसलों को पेशाब से सींचने का महान आइडिया गडकरी का था। 
महान लोग ऐसे ही काम करते हैं, वे अपनी साधारण से साधारण चीज़ से महानता पैदा कर सकते हैं। भाजपा में सारे नेता महान हैं, शीर्ष नेता बचपन में मगरमच्छों का शिकार करते थे, तो उनके नीचे वाले नेता अल्पसंख्यकों का शिकार करते थे, उनसे नीचे वाले यानी गडकरी आदि शिकार-फिकार तो नहीं कर पाए लेकिन अपनी ताकत भर महान कार्य करते रहे, आज तक कर रहे हैं। 
सवाल ये है कि आखिर इन महान नेताओं को ये युग-प्रर्वतक आइडियाज़ आते कहां से हैं? मेरी अपनी थ्योरी है, सुनेंगे, हुआ ये होगा कि किसी दिन साहब गडकरी किसी पार्टी-शार्टी से लौटे होंगे, ”आजकल भाजपा नेताओं को उद्योगपति खूब जम के पार्टियां दे रहे हैं” वहां ज्यादा हो गई हो गई होगी, पेट भारी रहा होगा, ”पेट भारी होने से अक्सर गैस हो जाती है” रात में बैचेनी हुई होगी तो वो उठे होंगे। अब उठे हों तो बाथरूम जाने का होश ना रहा होगा, बाल्कनी से ही, मेरा मतलब सीधे....समझ रहे हैं ना आप.....। दूसरे दिन सुबह चाय या कॉफी जो भी वो पीते होंगे उसे पीते हुए, पेशाब की सौंधी सुगंध उन्हे आई होगी, तब याद आया होगा कि ”ओहो मैने तो कल रात बाल्कनी से बाग को सींचा था” बस तब से ये रोज़ का रूटीन बन गया होगा। 
अब गडकरी चाहते हैं कि उनकी ये खोज जो है, वो पूरी दुनिया, या कम से कम पूरा देश तो माने ही माने। अब आप मानिये मत मानिये लेकिन ये खोज है बड़ी मार्के की, गडकरी जब मूत्र मंत्रालय के मंत्री का अतिरिक्त कार्यभार संभाल लेंगे तब आप देखिएगा पूरा देश मूत्र महात्मय गा रहा होगा। मूत्र पर शोध निबंध होंगे, शोध संस्थान होंगे, मूत्र पर अनुसंधान होंगे और गडकरी का मूत्र निर्यात किया जाएगा। वैसे भी जब से सरकार ने सत्ता संभाली है, ज्यादातर बात विष्ठा और मूत्र की ही हो रही है। पहले गौ मूत्र को पवित्र माना गया, और अब गडकरी के मूत्र के बारे में वही बातें हो रही हैं, हो ना हो, टी वी चैनलों पर गडकरी और बाकी नेताओं के मूत्र से पेड़-पौधों को सींचने वाले फोटो और वीडियो भी आने वाले होंगे। ये मोदी सरकार की अपूर्व उपलब्धि में गिनी जानी चाहिए। 
इसमें एक मामला और भी है, गडकरी का ये कदम, ये खोज, ”क्या इसे आविष्कार कहा जा सकता है”, मोदी सरकार के इससे पूर्व के फैसले के बिल्कुल विपरीत पड़ती है। मोदी सरकार ने जनता से वादा किया है हर घर में, घर-घर में, शौचालय बनवा दिया जाएगा ताकि हर व्यक्ति घर की घर में शौच जा सके। अब बताइए, लोग शौच करने घर ही चले जाएंगे तो लघुशंका करने खेत में कैसे और क्यूं जाएंगे। मेरा ख्याल है अब गडकरी की इस नयी खोज के बाद मोदी सरकार ये फैसला लेगी कि घर-घर में शौचालय नहीं बनेगा, बल्कि जितने भी घरों में शौचालय हैं, उन्हे भी तुड़वा दिया जाएगा ताकि लोग खेतों में जाकर लघुशंका और बाकी शंकाओं का निवारण कर सकें, और बेहतर फसलें ले सकें। 
अब विद्या बालन टी वी एड पर यूं कहते हुए नज़र आएंगी कि, ”अब तो आप घर में शौचालय बनवाओ ही मत, वैसे भी बहु खेत में लघुशंका निवारण करेगी तो अच्छी फसल होगी।” बताइए एक पूरा कैंपेन उल्टा चलेगा। पर उसमें अभी देर है, अभी तो अनुसंधान करके ये पता लगाना होगा कि ये जो विशेषता है वो सिर्फ गडकरी के मूत्र में है, भाजपा के महान नेताओं के मूत्र में है, या फिर साधारण मानव के साधारण मूत्र से भी पेड़-पौधे और फसलें बेहतर हो सकती हैं। जब तक सरकार ये फैसला करे, तब तक सांस रोक कर बैठिए, मोदी जी देश सेवा के लिए मूत्र विर्सजन का आवाह्न कर सकते हैं।

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