सोमवार, 11 मई 2015

जय जय जयललिता



लीजिए हुज़ूर, जयललिता की जय हो गई। हम तो पहले से कह रहे थे कि ये बड़े लोग भ्रष्टाचार कर ही नहीं सकते। बड़े लोग तो हम जैसे छोटे लोगों के लिए मिसाल कायम करते हैं, शुचिता, पवित्रता, ईमानदारी की। हम बेकार ही बार-बार इन महान, पवित्र नेताओं का नाम भ्रष्टाचार के कारनामों में घसीट कर अपनी थुक्का-फजीहत करवाते हैं। वो तो भला हो इस देश की न्यायपालिका का, न्यायलयों और न्यायाधीशों का जो हमें बार-बार इस पवित्र रास्ते से भटकने से रोक रही है। सलमान भाई के बाद अब जयललिता को जो राहत मिली है, इससे हमें यानी जनता को क्या संदेश मिलता है। यही कि इस देश की न्याय प्रक्रिया सौ टांक सच्ची है, उसे पता है कि किसे सज़ देनी है किसे नहीं। यहां कोई सबूत ना होने पर भी, किसी को इसलिए सज़ा मिल सकती है कि, राष्ट्रीय चेतना को संतुष्ट करना है, और कहीं ठीक इसीलिए सज़ा नहीं भी दी जा सकती। मुझे याद है कि राजस्थान में बलात्कार के एक मामले में माननीय न्यायाधीश ने टिप्पणी की थी कि आरोपी उच्च वर्ग के सदस्य थे, इसलिए बलात्कार पीड़िता की इस बात पर भरोसा नहीं किया जा सकता कि उन्होने ही बलात्कार किया होगा। आखिर उच्च वर्ग के लोग ऐसा कैसे कर सकते हैं, वे सत्य, न्याय, निष्ठा और ईमानदारी की जीती-जागती मूर्ति होते हैं। 
13 साल पहले मुंबई के फुटपाथ पर सोने वाले गरीब मजदूरों पर गाड़ी किसने चढ़ाई, पता नहीं हुजूर, 
1997 में लक्षमणपुर बाथे में 58 लोगों को किसने मारा, पता नहीं हुजूर, 
1999 में शंकरपुर बिगहा में 23 लोगों को किसने मारा, पता नहीं हुजूर, 
1996 में बथानी टोला में 21 लोगों को किसने मारा, पता नहीं हुजूर, 
बाबरी मस्जिद किसने ढहाई, पता नहीं हुजूर, 
गुजरात के दंगे किसने कराए, पता नहीं हुजूर, 
2002 में साबरमती एक्सप्रेस में आग किसने लगाई थी, पता नहीं हुजूर, 
1987 में हाशिमपुरा में 40 लोगों को किसने मारा, 
पता नहीं हुजूर, 
अच्छा जयललिता के पास इतनी दौलत, जायदाद आदि कहां से आई, पता नहीं हुजूर, 
अच्छा मायावती, मुलायम, लालू की दौलत का ही बता दो, कहां से आई, पता नहीं हुजूर.....
यार इन्हे तो कुछ पी पता नहीं है, तो ये कोर्ट इन सब मामलों के सभी आरोपियों को रिहा करता है। 
इसके बाद कोर्ट को ये आदेश देना चाहिए कि क्योंकि इन सभी अपराधों के कोई अपराधी नहीं हैं इसलिए इतिहास से इन सब हादसों को निकाल देना चाहिए। गुजरात दंगा, हाशिमपुरा नरसंहार, लक्ष्मणपुर बाथे, बथानी टोला, शंकरपुर बिगहा जैसे नरसंहारों की बात नहीं होनी चाहिए। साथ ही सलमान, जयललिता, मायावती, मुलायम आदि अन्य जिन नेताओं पर भ्रष्टाचार आदि के मामले हैं उन्हे भी इतिहास से गायब कर देना चाहिए, ये कभी हुए ही नहीं। भई जिन अपराधों में अपराधियों का पता नहीं चला, कैसे मान लें कि वो अपराध हुए हैं। बल्कि मैं तो कहूंगा कि जब हम इतिहास को सुधारने की बात कर रहे हैं तो साथ ही साथ भविष्य को सुधारने की बातें भी कर ही लें। जैसे आइंदा से किसी नेता पर भ्रष्टाचार का कोई मामला मुकद्मा लगेगा ही नहीं, बल्कि उन पर आरोप लगाने वाले को ही अपराधी मान लिया जाए। ये बढ़िया रहेगा, आखिर आम जनता में नेताओं का थोड़ा बहुत डर तो होना ही चाहिए, ये क्या कि कोई भी, कभी भी, किसी भी नेता पर आरोप लगा देता है, ये गलत है, और इससे विदेशों में देश की छवि खराब होती है। 
इसके अलावा कानून में ये व्यवस्था की जा सकती है कि किसी भी दलित टोले में, आदिवासी गांव या बस्ती में किसी भी तरह का नरसंहार, कानूनन अपराध नहीं माना जाएगा, इसके अलावा सड़कों पर सोने वाले, गरीब, मजदूरों आदि को मारना भी कानूनन अपराध नहीं माना जाएगा। इन कदमों से इस देश में सच में कानून का राज स्थापित होगा और इससे कानून में लोगों की आस्था बढ़ेगी। अभी वाला मामला गलत है। किसी नेता पर भ्रष्टाचार का मुकद्मा चलता है और दशकों तक मुकद्मा चलने के बाद पता चलता है कि कोई अपराध हुआ ही नहीं था। इससे एक तो अदालत का समय व्यर्थ नष्ट होता है, दूसरे अदालत को बहाने ढूंढने पड़ते हैं, जैसे पिटीशन सही समय पर नहीं दाखिल किया गया, या चश्मदीद गवाह की गवाही पर यकीन नहीं किया जा सकता, या राष्ट्र के सामूहिक अंतःकरण की संतुष्टि के लिए। तो इस तरह के जो मामले हैं, वो एक तरह से इन बड़े लोगों का मोराल डाउन करते हैं, और इन्हे वो सब करने से रोकते हैं जो ये करना चाहते हैं। 
इस देश का कानून पुराना हो चुका है और इसे आज के हिसाब से बदलने की आवश्यकता है, बल्कि इसे भविष्योन्मुखी बनाने की आवश्यकता है। इनमें कुछ सुझाव मैं दे सकता हूं।
1. किसी भी नेता पर भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं लगाया जा सकता, ये वक्त की बर्बादी के अलावा कुछ नहीं है। अगर कोई ऐसा करेगा तो वो उसकी सज़ा भुगतने के लिए तैयार रहे।
2. किसी भी नेता पर किसी भी तरह के दंगे कराने, हत्या आदि का आरोप नहीं लगाया जा सकता, ऐसा करने वाले को एन्काउंटर में मार देने का या उसकी संदिग्ध परिस्थितियों में हुई मौत के लिए कोई भी सरकारी प्रतिष्ठान या न्यायलय जिम्मेदार नहीं होगा।
3. किन्ही खास संदर्भों में, जैसे विकास के लिए, अपने दोस्तों को गिफ्ट करने के लिए, या यूं ही, देश के किसी भी हिस्से में कितनी भी जमीन जबरन हथियाई जा सकती है, अगर किसी ने विरोध किया तो पुलिस को उन पर गोली चलाने का पूरा अधिकार होगा। वैसे भी ये सब विकास विरोधी होते हैं। 
4. सेना, पुलिस, और प्रशासन के वे लोग जो नेताओं ओर पूंजीपतियों के लिए, उनके इशारे पर एनकाउंटर और रेप करते हैं, उन्हे कानूनन सुरक्षा दी जाएगी कि उन पर इस तरह के आरोप नहीं लगाए जा सकें। ये सब उनका काम है, इससे उन्हे रोकने पर उनका मोराल डाउन होने की संभावना है। अगर कोई ऐसा मोराल डाउन करने वाला काम करता हुआ पाया जाए तो उसे देशद्रोही मान कर मार दिया जाना चाहिए।
इसके अलावा अगर किसी गरीब इंसान ने, किसान ने, छात्र-मजदूर ने देश की ओर, यानी नेता, सेठ, पूंजीपति यानी देश की ओर टेढ़ी नज़र से देख भी लिया तो उसे राष्ट्रद्रोह के अपराध में बिना किसी जमानत के विकल्प के आजीवन जेल में सड़ाया जा सकता है, फांसी दी जा सकती है, या फिर एन्काउंटर किया जा सकता है। 
जयललिता का साफ छूट जाना असल में तय था, ये भारतीय कानून की विशेषता है, जैसा कि बोफोर्स मामले में हुआ, सलमान वाले मामले में हुआ, संजय दत्त वाले मामले में हुआ, वंजारा वाले मामले में हुआ, और अब जयललिता वाले मामले में हो रहा है। इसी तरह आप देखेंगे कि अभी आसाराम, साध्वी प्रज्ञा ठाकुर, और बाकी सभी लोग छूट जाएंगे, क्योंकि उनके खिलाफ आरोप सिद्ध नहीं होंगे और फिर ये सिद्ध होगा कि कोई अपराध हुआ ही नहीं था। बाकी इस देश का कानून अपना काम कर रहा है, आपको सिर्फ ये देखना है कि कानून के इस चक्के में पिसने की आपकी बारी कब आती है, तो इंतजार कीजिए....और क्या। 

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