नमस्कार, मैं कपिल एक बार फिर आपके सामने। लेह लद्दाख में जो हुआ, जैसा हुआ, उसे वैसा नहीं होना चाहिए था। सुना कोई सोनम वांगचुक हैं, जिन्ने अपनी मांगों के लिए कुछ धरना-फरना दे रखा था। अब आप पूछेंगे मांगे क्या थीं, और मैं कहूंगा, ये जानकर आप क्या करोगे कि मांगे क्या थीं? अरे भई जो और जितना भला, अच्छा, और बेहतर संभव था, वो सब महामानव पहले ही कर चुके थे लेह का, लद्दाख का, उसके बावजूद अगर कोई धरने पर बैठे तो वो वैसे ही राष्ट विरोधी काम हो जाता है। तो बेसिकली ये जो है व्यक्ति, जिसे एन एस ए में यानी राष्टीय सुरक्षा कानून के तहत पकड़ा है, उसने ये धरना देकर जो राष्ट विरोधी काम किया है, उसके लिए उसे सज़ा मिल रही है।
रविवार, 19 अक्टूबर 2025
महामानव वर्सेज नकली वैज्ञानिक
सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी के बाद जो शोर मचना शुरु हुआ भई, कि वो तो बड़ा साइंटिस्ट है, कि उसे तो इतने अवार्ड मिले हैं, कि वो तो समाजसेवा कर रहा है, और उन्ने तो शांति की बात की थी, ंिहंसा की बात नहीं की थी, उस पर एन एस ए कैसे लग सकता है। पर मेरा मानना है कि ये सब साइंटिस्ट वाला मामला, ये अवार्ड का मामला ये सब बेकार की बातें हैं, और ये जो सब शांति-फांति की बात करते हैं, ये असल में बस दिखावा है, अगर ये असल में शंाति चाहते होते तो ये धरना-वरना ना करते।
तो सबसे पहले तो यही बात साफ कर लेते हैं कि सोनम वांगचुक जो हैं, कोई सांइटिस्ट वाइंटिस्ट नहीं हैं, बल्कि वो दूसरों के पहले से हुए आविष्कारों की नकल करके उन्हें अपने नाम से प्रचारित करते हैं। अब आप ये सुनते ही शोर मत मचाओ। पहले मेरी पूरी बात सुन लो, मैं सबूतों के साथ आपको ये बताउंगा कि कैसे सोनम वांगचुक ने जो भी आविष्कार किए हैं, उन्हें पहले से ही खोजा जा चुका था, बल्कि जब मैं आपको बताउंगा कि इन आविष्कारों को करने वाला कौन है, तो आप चौंक जाएंगे दोस्तों।
दोस्तों सदियों के बाद हमें, कोई नॉनबायोलॉजिकल महामानव हासिल हुआ है, उनकी उपलब्धियों का तो जितना बखान किया जाए कम है। हम अकिंचन तो आज तक उनकी छाती का सही माप तक नहीं जान पाए हैं, कभी किसी जमाने में कहा जाता था कि वो छप्पन इंच की है। लेकिन इतने सालों बाद और अपनी लगातार उपलब्धियों के बाद ये तो पक्का है कि उनकी छाती का नाम अब तक साठ - बासठ तो हो ही गया होगा, जो इस पर शक करे वो देशद्रोही है।
खैर आज मैं आपको ये बताने वाला हूं कि सोनम वांगचुक ने कैसे हमारे महामानव के आइडियाज़ को चुरा कर उन्हें आविष्कार बना कर अपने नाम से प्रचारित किया है। सबसे पहले हम देखते हैं कि सोनम वांगचुक के नाम से कौन कौन से कारनामें लोगों को बताए जाते हैं। तो चलिए शुरु करते हैं।
दोस्तों सोनम वांगचुक ने साल 2013 - 2014 की सर्दियों में आइस स्तूप नाम के इस प्रोजेक्ट को शुरु किया था। तो मामला ये था पहले तो सोनम वांगचुक ने ये प्रचारित किया कि लेह- लद्दाख में पानी की कमी है। हुंह, बताइए, पहाड़ों में, जहां बर्फ गिरती है, ये अपने आपको साइंटिस्ट कहने वाला व्यक्ति कहता है कि वहां पानी की कमी है। अरे जहां बर्फ जमी रहती हो, वहां पानी की कमी भला कैसे हो सकती है। दूसरे उसी तथाकथित पानी की कमी को पूरा करने के लिए इन्होने, यानी सोनम वांगचुक ने एक आइस टॉवर बना दिया, कि सर्दियों में पानी का छिड़काव करके धीरे-धीरे बर्फ की परतें बनाई जाएंगी, और फिर गर्मियों में उस पानी का इस्तेमाल किया जाएगा। बेकार के इस प्रोजेक्ट के लिए इंटरनेशनल क्राउड फंडिंग कैंपेन से पैसा जमा किया गया, और लाखों रुपया जमा करके उन्होने बनाया क्या। एक बड़ा सा स्नोमैन। ऐसा स्नोमैन तो दोस्तों जब हम शिमला मनाली घूमने जाते हैं, तब बना लेते हैं। ये बना कर सोनम वांगचुक ने क्या तीर मार लिया जी। और पूरी दुनिया तो लहालोट हो गई इस पर। वहीं से शक होता है कि सोनम वांगचुक का कोई अल्टीरियर मोटिव था राष्ट के खिलाफ, वरना कोई ढंग का काम करता, या ये स्नोमैन बनाता।
पर आप को शायद ये पता नहीं है कि इससे बेहतर आविष्कार तो महामानव कर चुके हैं। हालांकि महामानव ने सिर्फ आइडिया दिया था,
हवा से ही ऑक्सीजन भी निकलेगी, पानी भी निकलेगा, और बिजली तो बनेगी ही। यानी एक आविषकार तीन फायदे। लेकिन इन तथाकथित प्रगतिशीलों ने जिन्होने सोनम वांगचुक के बेकार के आविष्कार की वाह-वाह की थी, उन्होने महामानव के आविष्कार पर क्या कहा? उसकी आलोचना शुरु कर दी, कहने लगे कि ये तो काम ही नहीं करेगा। अरे जिन्हें सीधे ईश्वर से आदेश मिलता हो, उनके आइडिया को तुम कह रहे हो, कि काम ही नहीं करेगा। और उपर से तुर्रा ये कि सोनम वांगचुक ने महामानव के इस आइडिया को अच्छा नहीं बताया, इसकी तारीफ नहीं की। बताइए, ये राष्ट विरोधी बात है कि नहीं। पर हमारे महामानव ने बुरा नहीं माना, उन्होने अपनी बड़ी छाती के बड़े दिल से सोनम वांगचुक को माफ कर दिया। मेरी चलती तो उसी समय सोनम वांगचुक को अंदर कर देता जब उन्होने ये आइस स्तूप बनाया था। कतई राष्ट विरोधी बात की थी सोनम वांगचुक ने।
इसके बाद, भी सोनम वांगचुक नहीं रुका, बर्फीली वादियों में सीमा पर तैनात जवानों के लिए एक सोलर टेंट बना दिया। सुना है, माइनस चौदह डिग्री वाली जगहों पर इस टेंट के भीतर 15 डिग्री तापमान रहता है। सोनम वांगचुक का दावा है कि ये सोलर टेंट कम लागत का, हल्का, और पर्यावरण के लिए अच्छा है। लेकिन इन दावों को कभी साबित नहीं किया जा सकता, क्योंकि सोनम वांगचुक ने जो कहा उसका विश्वास करना तो बेकार ही है, जबकि हमें पता चला कि वो राष्ट विरोधी है। लेकिन उससे भी बड़ी बात ये है कि ये आइडिया भी महामानव पहले ही दे चुके थे। जुलाई 2020 में उन्होने लद्दाख में नीमू की यात्रा की, जहां उन्होने गलवान नदी के बर्फीले पानी का जिक्र किया था, फिर अक्तूबर 2019 में अपने विश्व प्रसिद्ध रेडियो कार्यक्रम मन की बात में भी कहा था कि माइनस पचास-साठ डिग्री तापमान में जो सैनिक अपनी ड्यूटी कर रहे हैं वो अपनी बहादुरी का प्रदर्शन कर रहे हैं। और तो और फरवरी 2016 में सियाचिन में जो अवलांच आया था उसमें मरने वाले सैनिकों की मौत पर भी महामानव ने दुख जताया था। यहां ये बात ध्यान रखने वाली है दोस्तों कि सोनम वांगचुक सिर्फ माइनस चौदह डिग्री तापमान की बात कर रहे हैं, जबकि हमारे महामानव पचास-साठ डिग्री तामपान की बात करते हैं।
तो इससे आपको ये पता चल ही गया होगा कि सोलर टेंट बनाने का आइडिया तो असल में महामानव का ही था, बस सोनम वांगचुक ने उस आइडिया को चुरा लिया और टेंट बना कर उसे अपने नाम कर लिया। हमारे महामानव आइडियाज़ की खान हैं, वो आइडिया देते हैं, और सोनम वांगचुक जैसे लोग उन्हें अपने नाम से बताते हैं।
दोस्तों, सोनम वांगचुक जैसे लोग इस देश को बदनाम करने पर उतारु हैं, आखिर सोनम वांगचुक ने अपने हर आविष्कार को महामानव से मिली प्रेरणा ना बता कर जो अपराध किया है, उसके लिए ये राष्ट, लेह-लद्दाख के गर्वनर, हमारे डिप्टी महामानव कभी माफ नहीं करेंगे।
अब आते हैं, सोनम वांगचुक के समाजसेवा वाले काम पर, आखिर उन्होने समाज सेवा के नाम पर लद्दाख में एक स्कूल ही तो खोल रखा है, जहां उन बच्चों पर ध्यान दिया जाता है, जिन्हे आप अपने सिस्टम के एजुकेशन स्टीम में फेल मानते हो। पर आप ध्यान दीजिए दोस्तों ये ऐसे स्टूडेंटस् की प्रेरणा सोनम वांगचुक को आखिर कहां से मिली होगी। जी हां, दोस्तों आपने सही सोचा, इससे पहले की सोनम वांगचुक इस बारे में कुछ करते, महामानव ने परीक्षा पर चर्चा नाम का कार्यक्रम चलाया, उससे भी ज्यादा उन्होने टू ए बी वाले फार्मुले से ऐसे स्कूल की ज़रूरत की तरफ इशारा किया था, जहां कम समझ वाले बच्चों को पढ़ाया जाता हो। महामानव के पूरे जीवन में कम समझ वाले स्टूडेंट के इशारे फैले हुए हैं। सोनम वांगचुक ने उन्हीं से प्रेरणा लेकर ये स्कूल खोला और इसके बावजूद इस सकूल का नाम महामानव के नाम पर नहीं रखा। ये तो सरासर राष्ट विरोधी बात है।
और लास्ट बट नॉट द लीस्ट, एक बार कुछ बातें, इस पर भी कर ली जाएं कि ये सोनम वांगचुक आदमी कैसा है। देखिए, साइंटिस्ट बनने के बाद आदमी अमरीका जाने और बसने के ख्वाब देखता है, तो जो वहां जाकर, कुछ बनता है, हम उसे सेलीब्रेट करते हैं, क्योंकि हम ये मानते हैं कि जो चला गया, उसे अपने राष्ट से प्यार होगा, लेकिन ये आदमी जिसका नाम सोनम वांगचुक है, जो खुद को साइंटिस्ट बताता है, अमरीका जाकर नहीं बसता, दिल्ली, मुंबई, बैंगलौर में अंपायर बनाने के सपने नहीं देखता, ये लद्दाख में रहता है, मुझे तो तभी इसकी नीयत पर शक हो गया था। जिस देश में रहने में महामानव तक को शर्म आती हो, उस देश को छोड़ कर ये आदमी नहीं जा रहा है, यहां कुछ तो गड़बड़ है।
फिर आखिर ये आदमी कहां गया, पाकिस्तान। हमारा दुश्मन मुल्क। बताइए, हमारे दुश्मन मुल्क में जाने की जरूरत क्या थी। मैं बताता हूं आपको, इस आदमी के सिर पर अपनी प्रसिद्धी का नशा चढ़ गया है। जब इसने देखा कि महामानव बिन बुलाए पाकिस्तान चले गए हैं, तो इसने सोचा कि ये भी पाकिस्तान जा सकता है। हालांकि इसे वीज़ा दिया गया था, और ये किसी क्लाइमेट कान्फ्रेस में हिस्सेदारी के लिए पाकिस्तान गया था। लेकिन मेरे दोस्तों असली सवाल तो यही है कि ये पाकिस्तान गया था। पाकिस्तान जाने वाला हर व्यक्ति, महामानव को छोड़ कर, राष्ट विरोधी है। माफ कीजिएगा, सिर्फ महामानव ही नहीं, बल्कि महामानव की पार्टी वाले हर व्यक्ति को छोड़ कर, पाकिस्तान से संबंध रखने वाला हर व्यक्ति राष्ट विरोधी माना जाएगा।
अब मैं आपको बस ये बता कर अपनी बात पूरी करूंगा कि जब भी महामानव, या डिप्टी महामानव या सरकार का अन्य कोई व्यक्ति, यानी पदाधिकारी किसी पर राष्टविरोधी होने का आरोप आदि लगाए तो मान लेना चाहिए। सरकार की सलाहियत आपसे कहीं बहुत ज्यादा है। आपको क्या पता कि सोनम वांगचुक ने क्या किया है, क्या नहीं किया है? सरकार को सब पता रहता है। आपको कुछ नहीं पता है। अगर सोनम वांगचुक राष्टविरोधी नहीं होता तो धरने पर क्यों बैठा होता। हां हां, मैं जानता हूं कि वो शांति की बात कर रहा था।
अगर ऐसा ही भला मानस था सोनम वांगचुक तो बताइए, आराम से घर नहीं बैठा जा सकता था उससे, क्यों पड़ा पॉलिटिक्स में, वो भी धरना-फरना करने लगा, अरे पढ़-लिख गए तो इसका ये मतलब तो नहीं कि हर कोई राजनीति ही करने लगे, जिसका काम भैया उसी को साजे। इनको लगता है कि दो चार किताबें पढ़ लीं, दुनिया में मशहूर हो गए तो जो चाहे करेंगे। तो इनकी ये गलतफहमी तो खतम करनी ही थी।
अब अंत में बस आपको कुछ चीजें़ याद दिलानी थीं, ताकि आइंदा अगर आप किसी को वैज्ञानिक, साहित्यकार, यानी लिखाड़ी, आविष्कारक, ज्ञानी, संत, फकीर, खूब पढ़ा-लिखा, रक्षा विशेषज्ञ, वर्ल्ड लीडर, थिंकर, एस्टानॉट, इकॉनॉमिस्ट, बिजनेसमैन, मैथमैटिशियन आदि आदि बताना चाहें तो पहले एक नज़र हमारे, सर्वज्ञ, नॉनबायोलॉजिकल, विश्वगुरु महामानव पर डालिएगा, और फिर कोई बात करने की जुर्रत कीजिएगा। और एक आखिरी बात, किसी ने कुछ किया तो महमानव की प्रेरणा से, कोई कुछ कर रहा है तो महामानव की प्रेरणा से, और आइंदा भविष्य में भी कोई कुछ भी करेगा तो महामानव की प्रेरणा से। इस बात को गांठ बांध लीजिए, वरना एन एस ए में सीधे अंदर जाइएगा, और फिर कोर्ट-कोर्ट खेलिएगा, और पब्लिक प्रॉसिक्यूटर कहेगा कि ”माई लॉर्ड, ये जबरन अपनी विपदा को बढ़ा-चढ़ा कर दिखा रहे हैं”।
चलिए, अब आपको मैं सुनाता हूं एक शेर, वो शेर जो चचा ने हमारे, यानी चचा ग़ालिब ने जम्हूरियत की शक्ल पर लिखा था।
मुलाहिजा फरमाइए
वो कौन सा चक्कर है, वो कौन सी बला है
जम्हूरियत कहते हैं, जिसको समझने वाले
अपने यहां भी होती, तो हम भी देख लेते
ग़ालिब हमारे घर तो छाया ना इसकी पहुंची
कन्फ्यूज़ थे चचा अपने, चाहते थे बादशाहत में भी जम्हूरियत का साया दिखाई दे, हम उनकी मौत के इत्ते सालों बाद भी इंतजार कर रहे हैं, हमारे भी मुल्क में आएगी तो हमें भी दिखाई देगी।
पर कौन जाने इन एन एस ए वालों को, इनसे बचके रहना भैया। अब चुप होकर बैठो, वो आप ही को ढूंढ रहे हैं, पत्ता खड़का कि बंदा भड़का। अपनी खैर मनाइए।
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