नमस्कार, मैं कपिल एक बार फिर आपके सामने। जनाब पिछले कुछ दिनों से लगातार खबरें आ रही हैं कि नोबेल पुरस्कार बांटे जा रहे हैं। अब आप हम माने या ना माने, नोबेल की कुछ तो वकत है यारों दुनिया में, जिसे मिलता है वो नोबेल मिलते ही महान हो जाता है, यानी महान लोगों की गिनती में आ जाता है। महामानव मित्र डोलांड ने तो पिछले एक साल से शोर मचाया हुआ है कि उसे नोबेल मिलना चाहिए, मिलना ही चाहिए। तो आखिर हम किस चीज़ के इंतजार में चुप बैठे हैं। दोस्तों हज़ारों सालों में पहली बार ये संयोग बैठा है कि हमारी इस पुण्य-पावन धरा पर एक विश्वगुरु, ब्रहमांडज्ञानी, अजैविक महामानव सिंहासन पर विराजमान है। क्या हम इतना भी नहीं कर सकते कि उनके लिए एक अदद् नोबेल की मांग का विज्ञापन चला सकें।
लेकिन इसके लिए सिर्फ चीखने चिल्लाने से काम नहीं बनेगा, जैसा कि डोलांड के समर्थक कर रहे हैं। हमें एक ठोस आधार पर महामानव के लिए ”महामानव के लिए नोबेल” अभियान चलाना होगा। तो चलिए एक ग्राउंडवर्क तैयार करते हैं कि महामानव को किन आविष्कारों, खोजों, कामों आदि के लिए नोबेल दिया जा सकता है।
इतिहास
हमारे ब्रहमांड गुरु ने सबसे पहले दुनिया को ये अविश्वस्नीय जानकारी दी थी कि सिकंदर जब दुनिया फतह करने निकला था तो उस समय वो बिहार तक पहुंच गया था। जहां उसे आखिरकार हार मिली और उसे वापस लौटना पड़ा।
मोदी का वीडियो
आज तक हमें इतिहासकार यही समझाते रहे कि सिंकदर तो बियास नदी से ही लौट गया था। पहली बार इतिहास में ऐसी भूल को महामानव ने ठीक किया और दुनिया का बताया कि सिकंदर दरअसल पूरा भारत फतह करके बिहार पहुंचा था।
अब इतिहास की ऐसी नई और अनूठी खोज के आधार पर क्या महामानव के लिए इतिहास में नोबेल की मांग नहीं की जा सकती। उठो मेरे देश के वीरों और महामानव के लिए इतिहास में नोबेल पुरस्कार के लिए अभियान चला दो।
शांति के लिए
नोबेल की दुनिया में शायद यही एक ऐसा पुरस्कार है, जिसकी नपाई नहीं होती। पिछले एक साल से महामानव का डीयर फें्रड डोलांड इसी के चक्कर में लगा हुआ है। वो खुद, उसके लग्गु-भग्गु और खुद व्हाइट हाउस, यानी वो घर जिसमें वो रहता है, और अगर आपको समझ मे ंना आए तो, ये वो घर है जहां पाकिस्तान के आसिफ मुनीर को खाने पर बुलाया था, महामानव को नहीं बुलाया था। पर हमारे महामानव तो इस वक्त दुनिया में नोबेल पीस प्राइज़ के सबसे तगड़े उम्मीदवार हैं।
जो अपने भृकुटि के एक इशारे पर वॉर रुकवा दे, उसे भी अगर आप पीस प्राइज़ के लायक ना समझो तो फिर भैया हमें समझ नहीं आवे कि तुम ये शंाति का नोबेल दोगे किसे, और किस लिए दोगे। मेरे दोस्तो, मेरे साथियों, ये मौका बार-बार नहीं आएगा, अभी से झोला-डंडा उठा लो, झंडे की चिंता मत करो, सिर्फ डंडा लेकर नोबल तो हम लेके रहेंगे अभियान में कूद पड़ो और महामानव के लिए नोबेल पीस प्राइज़ का शोर मचाओ, वॉर रुकवा दी पापा का इतना शोर मचाओ की आसमान कांप जाए ओर धरती गूंज उठे, ताकि नोबेल वालों को उस शोर को शांत कराने के लिए ही सही, महामानव को नोबेल शांति पुरस्कार देना पड़े।
भौतिकी
बरसों से भौतिकी यानी फिजिक्स का नोबेल पुरस्कार जाने कैसे - कैसे लोगों को दिया जाता रहा है, इस बार, हमारे पास एक महामानव है, जिन्होने भौतिकी के इस सिद्धांत को टेक्नालॉजी के तरीके से दुनिया के सामने रखा।
हालांकि आप ये कह सकते हैं कि ये पुरस्कार तो असल में उस व्यक्ति को मिलना चाहिए जो चाय बना रहा था। लेकिन अफसोस की वो व्यक्ति अभी तक सामने नहीं आया है। मुझे तो ये लगता है मित्रों कि नाले की गैस से यूं चाय बनाने वाले हमारे महामानव खुद थे। बस हम्बल बहुत हैं, कभी खुद से खुद की बढ़ाई नहीं करते।
मुझे ईश्वर ने भेजा है।
इसी हम्बलनेस के चलते उन्होने अपनी इस उपलब्धि यानी नाले की गैस से चाय बनाने वाले आविष्कार को किसी और का आविष्कार बताया है। पर हमें ये करना चाहिए मितरों कि भौतिकी यानी फिजिक्स में इस बार ”नोबेल तो हम लेके रहेंगे” अभियान के तहत महामानव की इस खोज का दुनिया के सामने लाना चाहिए और उनके लिए भौतिकी के नोबल की मांग करनी चाहिए।
साहित्य
यूं तो साहित्य का नोबेल पुरस्कार हर बार पुरी दुनिया को चौंकाता रहता है। लेकिन मुझे लगता है कि इस बार का साहित्य का नोबल हमारे महामानव को ही मिलना चाहिए।
महामानव ने इस जगतप्रसिद्ध इंटरव्यू के बाद भी लिखना नहीं छोड़ा, वे कविताएं भी लिखते हैं, नाटक करते हैं, नौटंकी तो उन्हें इतनी पसंद है कि कहीं भी चालू हो जाते हैं। लेकिन खासे लिखाड़ी हैं महामानव। अब तक उनकी ग्यारह या उससे भी ज्यादा किताबें विश्वप्रसिद्ध हो चुकी हैं, मुझे पूरा यकीन है कि विश्व प्रसिद्ध रेडियो कार्यक्रम मन की बात की पटकथा भी वे खुद ही लिखते होंगे, आखिर उनके मन की बात भला और कौन लिख सकेगा। एक इत्ते बड़े देश के इत्ते बड़े प्रधानमंत्री की इत्ती बड़ी जिम्मेदारी, उपर से विश्वगुरु होने का भार, उपर से ईश्वर से मिलने वाले आदेशों का पालन, और इसके बाद भी इतना लिख लेना, उन्हें इस चराचर जगत में तो विशिष्ट लेखक बनाता ही है, मेरा ख्याल है सृष्टि में आज तक किसी ने ऐसा और ऐसा नहीं लिखा होगा। आपने उनकी लिखी कोई किताब देखी हो, पढ़ी हो, तो किसी और को भी बताइएगा, पर सबसे पहले तो अपना कर्तव्य पूरा कीजिए और इस बार साहित्य में उन्हें नोबल के लिए एड़ी - चोटी का जोर लगा दीजिए। ”नोबल तो हम लेके रहेंगे” अभियान के बैनर में उनकी हर किताब का नाम और फोटो होनी चाहिए। उनकी एक-आध कविता भी हो जाए तो कोई हर्ज नहीं।
तो ये तो हो गए महामानव के बड़े कांड, मेरा मतलब है बड़े कारनामें, पर सच कहूं तो महामानव के छोटे-मोटे कारनामें, यानी खोजें भी उन्हें नोबेल दिलाने की क्षमता रखती हैं।
समाजविज्ञान के क्षेत्र में उनकी सबसे महत्वपूर्ण खोज थी कि किसी को कपड़ों से कैसे पहचाना जा सकता है।
आध्यात्म के क्षेत्र में उनकी सबसे महत्वपूर्ण खोज थी जब उन्होने नानक, कबीर और गोरखनाथ की एक साथ चर्चा करवा दी थी।
मैथमैटिक्स में उनके एक्स्टा टू ए बी से तो आज पूरी दुनिया वाकिफ है।
गणित का ये सूत्र आज तक दोस्तों कोई नहीं पकड़ पाया जिसे महमानव ने कितनी सरलता से दुनिया के सामने रख दिया।
भई मेरा तो ये मानना है कि ”नोबेल तो हम लेके रहेंगे” कैंपेन में महमानव के बड़े और छोटे सभी कारनामों को शामिल किया जाए, और पूरी दुनिया में महामानव को नोबेल देने के लिए इतना शोर मचाया जाए कि आखिरकार तंग आकर ही सही, नोबेल कमेटी को मजबूर होकर महामानव को नोबेल देना ही पड़ जाए।
ळमारे महामानव ने हर विषय में कुछ ना कुछ नई खोज की है, कोई ना कोई आविष्कार किया है। ये तमाम दुनिया के प्रगतिशीलों की, पढ़े-लिखों की, समझदारों की चाल है कि उनकी इस उपलब्धि को कोई पहचान नहीं रहा है, ओर उनका गुणगान नही ंकर रहा है। हम नोबेल कमेटी से मांग करते हैं कि तुरंत महामानव को किसी एक विषय में नोबेल दिया जाए, और अगर पहले नोबेल दिया जा चुका है तो एक नोबेल के लिए, महामानव हेतु एक नई कैटेगरी बनाई जाए और महामानव को नोबेल दिया जाए।
अब रवायत के मुताबिक चचा ग़ालिब का गुमशुदा शेर आपकी पेशे खिदमत है
मुझे दुनिया में सबसे अच्छा मान ले सनम
तू मेरा हुनर देख, मेरे कारनामें देख
अभी जवान है मेरे सपनो की उम्र
तू मेरा कुर्ता देख, मेरे पैजामे देख
ये लिखते हुए ग़ालिब को बुरा लगा था, क्योंकि कारनामें के साथ पैजामें का मिज़ाज मिल नहीं रहा था। पर हमने ये शेर उठा लिया, क्योंकि मिसरों का मिज़ाज मिले ना मिले बंदे का मिज़ाज मिलना चाहिए।
तो तीन काम आपके जिम्में
पहला, हो सकता है मैं महामानव के कुछ नोबलोचित कारनामों को भूल गया हूं, मुझे ज़रूर बताइए। ताकि नोबल तो हम लेके रहेंगे अभियान में उन कारनामों को भी जोड़ा जा सके।
दूसरा, दुनिया भर में ये ”नोबल तो हम लेके रहेंगे” अभियान का प्रचार करने के लिए अपनी सहमति कमेंट में दीजिए।
तीसरा, अपने सभी दोस्तों और रिश्तेदारों को ये वीडियो भेजिए, ताकि ”नोबल तो हम लेके रहेंगे” अभियान को पूरी दुनिया में फैलाया जा सके।
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