तो भई, ये हमारी ज्यूडिशियरी, तो भई रोज़ ब रोज़ कमाल ही करती जा रही है, कमाल पे कमाल, कमाल पे कमाल, अभी अखबार में जजों द्वारा की गई दो टिप्पणियां पढ़ीं, खैर ये थी कि वो फैसले नहीं थे, लेकिन हमारे माई लॉर्ड, योर ऑनर क्या सोचते हैं, कैसे सोचते हैं, इसका क्लीयर इंडीकेशन यानी उस तरफ साफ इशारा था। एक तो वो जो नाइंटी डिग्री एंगल वाला पुल था, भोपाल वाला, जिसकी इतनी खबरें बन गईं थीं। उसके बारे में मध्य प्रदेश के उच्च न्यायालय के माननीय, आदरणीय जज महोदय, जो एक से ज्यादा थे ने भोपल के इस पुल के मामले में कहा कि भई किसी ना किसी की बली तो चढ़ेगी, ये हिंदी तर्जुमा मेरा है, जज साहब ने तो साहबों की भाषा अंग्रेजी में कहा था, कि समबडीज़ हेड वुड रोल”। अंग्रेजी के साथ यही दिक्कत है, कि साहब जो चाहें अपने कहे का वो मतलब निकाल सकते हैं। यानी समबडीज़ हेड वुड रोल का मतलब ये भी हो सकता है कि वो समबडी असली कलप्रिट होगा, या ये भी हो सकता है कि भई ग़लती हुई है तो किसी ना किसी के सिर तो ठीकरा फूटना ही है। मुसीबत ये है कि इस देश मे ंहमेशा से यही होता आया है, इस देश में क्या, सारी दुनिया में यही होता आया है, किसी रसूखदार को बचाने के लिए, समबडी का हेड रोल करता है, बस फिर मामला खत्म और दूसरा मामला शुरु।
जैसे इस मामले में ही पहले तो छ-सात इंजिनियरों को सस्पेंड कर दिया गया है, साथ ही उस कंपनी को भी ब्लैकलिस्टेड कर दिया है, जिसने ये ब्रिज बनाया था। दिक्कत तब हुई कि जब उस कंपनी ने अदालत में शिकायत कर दी, कि माई-बाप हमने तो उसी डिजाइन के हिसाब से ब्रिज बनाया था, जो डिजाइन हमें सरकार ने दिया था, फिर ब्रिज के डिजाइन का ठीकरा हमारे सिर क्यों फोड़ा जा रहा है। अब मुश्किल ये है कि प्राइवेट कंपनी को बली का बकरा ना बना सकने की सूरत में गाज गिरी इंजीनियरों पर, जो कि ग़लत है, भई डिजाइन से इंजीनियरों का भी क्या लेना-देना, या मैं तो कहूं सरकार का ही क्या लेना - देना, पुल बनाना था, सो बना दिया। अच्छा नहीं लगा तो दूसरा बना देंगे। इसमें क्या दिक्कत है। मैं तो कहूं कि अगर किसी को सस्पेंड करना हो, या जेल भेजना हो, तो या तो उस चौकीदार को पकड़ो, जिसे साइट पर रखा गया होगा, या फिर उन मजदूरों को भी पकड़ा जा सकता है, जिन्होने ईंट -गारा ढोया हो, या पत्थर लगाए हों। उनकी तो तादाद भी बढ़ाई जा सकती है, हेड ही रोल कराना है, और जब समबडी का ही कराना है तो मजदूर ही तो सबसे बडे समबडी हैं इस देश में, दर्जन में तेरह के भाव मिलते हैं, जब चाहा काम पर रख लिया, जब चाहा निकाल दिया, काम करते हुए दुर्घटना हो जाए, हाथ पैर टूट जाए तो निकाल बाहर करो ससुरे को, मर जाए तो भूल जाओ, और अगर इस दुर्घटना की कोई खबर बन जाए, तो दो-चार लाख देकर मामला खत्म करवा लो। तो फिर इस मामले में सरकार से जवाब मांगने की, इंजीनियरों को परेशान करने की जरूरत ही क्या है, हमें तो समझ नहीं आता। इतने मजदूर भरे पड़े हैं, उठाकर पटक दो जेल में, और कोर्ट में कह दो कि सर जांच चल रही है, बस पांच-सात साल वो मजदूर जेल में रहें, फिर या तो छूट जाएं, या मर-मरा जाएं, किसे पड़ी है। हेड ही तो रोल कराने हैं, करा दो, अनगिनत करा दो, इस देश की 80 प्रतिशत आबादी में से 60 से 70 प्रतिशत ऐसे ही समबडी हैं, जिनके हेड रोल होने से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता, दो चार दिन रोएंगे फिर इसी को अपनी किस्मत समझ कर चुप हो जाएंगे। माई लॉर्ड, बंद कीजिए मामला, समबडी का हेड रोल कर दिया जाएगा, आपके आदेश पर। धन्यवाद।
लेकिन दूसरी खबर इससे भी ज्यादा दिलचस्प है, और वो तो देश की सबसे उंची अदालत से जुड़ी हुई है। मामला ये है कि हर साल पंजाब, हरियाणा के खेतों में पराली जलाई जाती है, पराली जलाने से दिल्ली में प्रदूषण होता है। अब दिल्ली में प्रदूषण होता है जो जाहिर है बहुत परेशानी होती है, बिमारियां होती हैं। हमारे माननीय जज साहब ने कहा कि कुछ लोगों को जेल में डालने से ही सही संदेश जाएगा, और क्यों ना इसे आपराधिक प्रावधान बना दिया जाए। अब क्योंकि सुप्रीम कोर्ट में भारत की कोई भी भाषा इस्तेमाल नहीं होती, सिर्फ साहबों की भाषा यानी अंग्रेजी इस्तेमाल होती है, इसलिए सुप्रीम कोर्ट की अपनी भाषा में कहा जाए तो ये कहा गया कि, ” श्ॅील कवदष्ज ूम बवदेपकमत तमपदजतवकनबपदह ;चमदंस चतवअपेपवदेद्धघ् प् िलवन ींअम ं चतवअपेपवद वित बतपउपदंस चतवेमबनजपवदए प िेवउम चमवचसम ंतम ेमदज इमीपदक इंतेए पज ूपसस ेमदक जीम तपहीज उमेेंहमएश् किसानों को जेल में डालने से जाहिर है पराली जलाने वाले लोगों में सही संदेश जाएगा, हो सकता है वो पराली जलाना बंद कर दें।
ऐसे मामलों में कभी-कभी सुप्रीम कोर्ट जिंदाबाद कहने का जी कर जाता है मेरा। मुद्दा प्रदूषण - समाधान किसानों को जेल में डालो। वाह भई वाह, दिल जीत लिया। मुसीबत ये है कि दिल्ली का प्रदूषण सिर्फ पराली जलाने से तो होता नहीं है, दिल्ली में प्रदूषण का एक बड़ा कारण फैक्टरियां हैं, जिनमें से कुछ कानूनी तो कुछ ग़ैर-कानूनी भी हैं। साथ ही दिल्ली में टैफिक इतना है कि कुछ ना हो तो भी प्रदूषण होता है। लेकिन मैं जज साहब की इस बात से सौ टका सहमत हूं। जब भी दिल्ली का प्रदूषण बढ़े किसानों को पकड़ कर जेल में डाल दो। प्रदूषण बढ़ने - घटने की चिंता करने से क्या होगा, ये दिखना चाहिए कि इस पर काम हो रहा है। जैसे ही कोई पूछे कि भई ये दिल्ली में प्रदूषण बढ़ रहा है, तो जवाब तो होना चाहिए कि इस साल 300 या 400 किसानों को जेल में डाला है, अगली बार से प्रदूषण कम होगा। वाह, वाह भई वाह। यमुना में प्रदूषण हो रहा है, यानी बढ़ रहा है, कम नहीं हो रहा। पकड़ो तीन चार सौ किसानों को जेल में डाल दो। प्रदूषण कम ना हो, कम से कम ये तो लगेगा कि प्रदूषण पर काम हो रहा है। ये किसान ही असल में सारे फसाद की जड़ हैं, माननीय जज साहब को याद होगा कि यही किसान थे जिन्होने एक साल से भी ज्यादा समय तक दिल्ली को घेरे रखा था। कितनी प्रॉब्लम हुई थी दिल्लीवालों को, हमें तभी ये कर देना चाहिए था। उठाकर चार-पांच सौ किसानों को जेल में डाल देना चाहिए था, सब समस्याओं का हल वहीं पर मिल जाता।
देखिए, फैक्टरियों का क्या है, उनसे तो देश का विकास होता है, उनसे पार्टियों को चंदा मिलता है, और सिर्फ सत्ताधारी पार्टी को नहीं, बल्कि हर पार्टी को चंदा मिलता है, इसलिए वो प्रदूषण करें, कोई दिक्कत नहीं है, हां दिखाने के लिए कुछ जुर्माना उन पर लगाया जा सकता है, लेकिन उन पर कोई कानूनी कार्यवाही, ना बाबा ना। हां अगर कुछ किसानों को जेल में डाला जाए, तो कम से कम प्रदूषण फैलाने वाली इन फैक्टरियों पर से सबका ध्यान तो हटेगा। बस यही हमें चाहिए, कम से कम ये हो कि इन प्रदूषण का मुख्य जिम्मेदार किसानों को मान लिया जाए, और फिर उन्हें जेल में डाला जाए। सच बताउं सरकार, यही किसान हैं जो नदियों को प्रदूषित कर रहे हैं, यही किसान हैं जो जंगलों को काट रहे हैं, यही किसान हैं जो अपनी जमीन फैक्टरियों के लिए, खदानों के लिए नहीं देते, और यही किसान हैं जिनकी वजह से देश में ग़रीबी दिखाई देती है। कुल मिलाकर ये किसान ही इस देश के प्रदूषण, पिछड़ेपन, और बाकी सारी समस्याओं की जड़ हैं।
बल्कि सच कहूं मान्यवर, आप ऐसा कीजिए कि पराली जलाने को कोई बहुत ही संगीन अपराध का दर्जा दे दीजिए, प्रदूषण पर नहीं, बल्कि पराली जलाने पर विचार किया जाना चाहिए, दरअसल ये किसान पराली जलाते ही इसलिए हैं कि प्रदूषण हो, तो ये तो एक तरह से अक्षम्य अपराध हुआ, इसके लिए इन किसानों को मौत की सजा दी जाए, मैं सच कह रहा हूं श्रीमान, जेल डालने से ये लोग सुधरने वाले नहीं लगते, सुना इनके दादे-परदादे, हर सरकार से जेल, मार, प्रताड़ना, अत्याचार सहते ही आए हैं, आज तक ये सुधरे नहीं। ये राजे - महाराजे जो थे, हमारे देश के घणे दयालु थे सरकार, इन किसानों को मारते थे, इनकी जमीने-फमीने छीन लेते थे, लेकिन जान से मारना बहुत कम करते थे, बस कभी-कभी मन में आ जाए तो किसी किसान की खाल खिंचवा ली, या ऐसे ही मार दिया टाइप मामला बस होता था। फिर आ गए अंग्रेज, उन्होने इन किसानों की जिंदगी और हराम कर दी, इन्हें अपने ही खेत से बेदखल कर दिया, और जबरन इनके उपर जमींदार बैठा दिए, और वो भी बहुत जालिम होकर भी, बहुत दायलु टाइप रहे। बहुत कम मौकों पर वो किसानों को जान से मारते थे, बेदखल करना, बलात्कार करना, यूं ही अपने कारिंदों से पिटवाने टाइप के छोटे-मोटे अत्याचार ही इन पर किए जाते थे। इसलिए इनका दिल इतना बढ़ गया है। उपर से आजादी जब मिली देश को, तो इन्हें लगने लगा कि अब सरकार इनकी है, कानून इनके लिए काम करेगा। ये इसीलिए फूल रहे हैं सरकार, आप तो फौरन कोई ऐसा आदेश निकाल दो, या सरकार को निर्देश दे दो, जो इनसे वैसे ही बहुत परेशान है, कि पराली जलाने वाले किसानों को फांसी दे दी जाएगी। देखना, दो दिन में ही सुधर जाएंगे ये। ये भी किया जा सकता है कि जो पराली जलाएगा, उसके पूरे परिवार को मार दिया जाएगा, उसके घर को आग लगा दी जाएगी। मैं बता रहा हूं आपको, इससे कम में ये नहीं मानने वाले। अरे ये सदियों से मार खा-खा कर बहुत ढीठ हो गए हैं, फौज बुला कर इनके उपर गोलियंा चलवा दीजिए। फिर सब मंगल हो जाएगा। लेकिन सच कहूं मालिक, फौज में भी इन्हीं के बेटे और भाई हैं, लेकिन उसकी आप चिंता मत कीजिए, आप आदेश कीजिए, सब ठीक करवा दिया जाएगा। एक बार इन किसानों को मारना शुरु कर दिया हमने, तो देश में फिर सब तरफ विकास ही विकास होगा, हर तरफ शांति ही शांति होगी।
चचा ग़ालिब इस मौके पर लपक कर एक शेर कह गए
जब समबडी को जेल में डाला ही जाएगा
तब ही तो मालिक चैन की बंसी बजाएगा
हेड रोल भी समबडी के होंगे ग़ालिब
कंटी में मेरे तभी डेवलपमेंट भी आएगा
ज्यादा दिमाग चलाने की कोशिश मत कीजिए, चचा ग़ालिब मरने के बाद अपने कलाम में अंग्रेजी का इस्तेमाल भी करने लगे थे।
बाकी सब खैर है, एक बार इन किसानों से निपट लें, तो चैन से बात करेंगे। ठीक है।
नमस्ते।
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