पिछले दिनों अखबार की एक खबर पर मेरी नज़र अटक गई। खबर क्या थी, कतई लोकतंत्र का जलवा दिख रहा था। हुआ यूं कि एक प्राइवेट चिड़ियाघर बनाया था, एक राजा टाइप आदमी ने अपने राजकुमार टाइप बेटे के लिए, बेटा क्या है, कतई आने वाली नस्लों के लिए एक मिसाल है। अब जो मैं कह रहा हूं वो फैक्ट नहीं हैं, मेरा इमेजिनेशन है। क्या हुआ होगा, बेटे ने कहा होगा - पप्पा, मुझे अपना चिड़ियाघर बनाना है, जिसमें बहुत सारे जानवर हों, जिसमें जंगल हो.....
पप्पा ने कहा होगा - हां हां क्यों नहीं बेटा, ये पूरा देश तेरे सामने है, जो जमीन चाहिए चुन ले, मैं तेरे लिए दुनिया का सबसे बड़ा चिड़ियाघर बनाउंगा.....हा हा हा।
बस फिर क्या था। गुजरात के जामनगर के पास एक तीन हजार एकड़ जमीन चुन ली गई और राजा के बेटे ने अपने निजी चिड़ियाघर की तामीर की। फरवरी 2024 में इस निजी चिड़ियाघर की स्थापना हुई, जिसमें आम पब्लिक नहीं जा सकती, मतलब शायद जा सकती हो, लेकिन ऐसे ही नहीं जा सकती, जैसे सार्वजनिक चिड़ियाघर में जा सकती है, इसके लिए खास विज़िट बुक करनी होती है। तो हुआ यूं कि 2024 फरवरी से 2025 अगस्त तक इस चिड़ियाघर में पूरी दुनिया से कई जानवर मंगाए गए, तो अब वनतारा में 43 प्रजातियों के 2000 जानवर हैं। इनमें हाथी बहुत सारे हैं, चीते, सफेद बाघ, लीमूर, और तरह -तरह के ऐसे जानवर भी हैं जो विलुप्त प्राय प्रजाति के हैं, और अगर आपके घर वो मिल भी गए, तो आप पर भारी जुर्माना हो सकता है। पर राजा के लिए विशेष प्रावधान होता है, उन्होने तमाम सुविधाएं हासिल कीं, तमाम अनुमतियां हासिल कीं और अपना चिड़ियाघर बना दिया।
यहां तक सब ठीक था, लेकिन खेल इसके बाद शुरु हुआ। राजकुमार कहीं भ्रमण पर थे, कि उन्हें मुर्गियां दिखाई दीं, ठीक राजकुमाराना अंदाज में उन्होने सारी मुर्गियां खरीद लीं, ये नहीं पता कि कि इसके बाद उन मुर्गियों का उन्होने क्या किया। खैर राजकुमार ने मुर्गियां खरीदीं, वरना वो ये भी कर सकते थे कि बिना दाम दिए मुर्गियां ले लेते, लेकिन ऐसा उन्होने नहीं किया और पुलिस और जनता ने चैन की सांस ली। लेकिन फिर उन्होने क्या किया, उन्होने एक हथिनी को, जो काफी सालों से कहीं मंदिर में रहती थी, उसे पकड़ मंगाया।
आपको समझना चाहिए राजाओं की, राजकुमारों की फितरत यही होती है। जिस चीज़ पर उनका दिल आ जाए, वो उसे उठा मंगवाते हैं, अब करते रहो चीख - पुकार, सुना इन हथिनी की देखभाल इतने सालों से करने वालों ने भी बहुत चीख- पुकार मचाई कि भाई ऐसा क्यों कर रहे हो। लेकिन राजकुमार को यूं लगा कि ये सब नाटक कर रहे हैं, राजकुमार ने कहा कि उन्हें सबसे ज्यादा जानवरों से प्यार है, यानी उनसे ज्यादा जानवरों से कोई प्यार नही ंकर सकता, इसलिए इस हथिनी को, या किसी भी जानवर को जिसे वो चाहें, पकड़ मंगाना चाहिए।
लेकिन मुश्किल ये हुई कि ये समुदाय, जिसने उस हथिनी को पाला-पनासा था, उसकी चीख-पुकार, आग्रह आदि पर अखबारों की नज़र गई, कुछ टी वी चैनलों ने भी दिखाया, और खासतौर पर सोशल मीडिया में भर के इस पूरे प्रकरण पर कई-कई रिपोर्टस आ गईं।
सिर्फ अखबार और न्यूज़ चैनलों की बात होती तो राजा खुद निपट लेते, क्योंकि भला राजा की बात कौन टाल सकता है, खुद महामानव भी सुना राजा के इशारे पर चलते हैं, कई जलकुकड़े, प्रगतिशील, वामी तो ये भी कहते सुने गए हैं कि असली मामला तो राजा साहब ही तय करते हैं, महामानव तो सिर्फ साइन करते हैं, लेकिन हम इन जलकुकड़ों की बातों पर यकीन नहीं करते, आप भी मत कीजिए। आप तो ये कहानी सुनिए। तो हुआ यूं कि सोशल-मीडिया साइटस् पर चैनलों पर प्लेटफार्मस् पर, इस मामले पर जो पूरी जनता की भावना थी, वो दिखाई देने लगी उस समुदाय के पक्ष में जिनसे हाथी छीन लिया गया था। तो राजा साहब ने खूब कोशिश की कि इस मामले को हाथी के भले का मामला बनाया जाए, लेकिन उसका कुछ खास फर्क नहीं पड़ा। क्योंकि राजा सब कुछ चला लें, यहां तक कि देश की सरकार और न्यायालयों तक को अपने इशारों पर चला लें, लेकिन जनता को तो अपने इशारों पर चला नहीं सकते।
अब राजकुमार और राजा साहब को चिंता हुई कि कल को ऐसा कोई मामला हुआ जिसमें जनता उनके खिलाफ हो, और मामला बढ़ गया तो उनके खिलाफ जा सकता है। क्योंकि माइंड यू, वो भले ही राजा हैं, और ये भी सही है कि देश में उनकी ही सरकार चल रही है, लेकिन अब भी दिखावा लोकतंत्र का ही है, और दिखावे के लिए ही कानून के राज की चादर ओढ़नी ही पड़ती है। जनता का ये भरम तो बना ही रहना चाहिए कि देश की असली मालिक वही है, वरना, नेपाल तो आप सबने देखा ही है.....हमारे एक कवि थे, विद्रोही, कहते थे, कपिल भाई जनता जब मारती है तो गुस्से से नहीं मारती, सोच के मारती है, और गुस्से में चाहे कहीं भी लगे, सोच के वहीं मारा जाता है जहां असल हो। खैर साहब आप अपने विद्रोही को जाने दो, इस तरफ ध्यान दो।
राजा को जब चिंता हो, तो सरकारें हिल जाती हैं, देश थम जाता है, कायनात सांस रोक लेती है। राजकुमार तो अपनी मुर्गियों और बकरियों में मगन था, लेकिन राजा के दायें हाथ ही पहली उंगली फड़क उठी थी। राजा ने फौरन भविष्य में किसी भी तरह की शिकायत से निपटने की एक योजना बनाई, और उसे आगे अरसाल किया। राजा के आदेश का पालन करने से कौन मना कर सकता था भला। इस देश में, सिर्फ एक ही ऐसी संस्था है जिसके आदेश का पालन ना करने पर आपको सीधा जेल हो सकती है, हो सकता है कि इस वीडियो के बाद मुझे भी जेल जाना पड़े, पर क्या करें आदत से मजबूर हैं। अब मुसीबत ये थी कि कोई शिकायत हो तो उस पर फैसला आए, बिना शिकायत कोर्ट फैसला कैसे सुनाए। मुसीबत इससे भी गहरी थी, कि अगर कोई बेवजह ही नकली शिकायत बनाई जाए, तो हो सकता है कि जनता उस शिकायत की ही सच्चाई को उजागर कर दे, तो भी मामला उल्टा जा सकता था। तो इसके लिए रास्ता कोई दूसरा अपनाना पड़ेगा।
अब आया दूसरा रास्ता, दूसरा रास्ता ये बना कि बिना किसी शिकायत के खुद कोर्ट ने जो सबका माई-बाप है, उस कोर्ट ने खुद से इस मामले पर विचार किया, यानी स्वतःसंज्ञान लिया, जिसे लैटिन में सुओ मोट्टो कहते हैं। ध्यान रखने वाली बात ये है कि देश में एस आई आर चल रही थी, जिसका पूरा विपक्ष विरोध कर रहा था, सबसे उंची वाली कोर्ट ने उस पर स्वतः संज्ञान नहीं लिया, मणिपुर की हिंसा पर सबसे उंची वाली कोर्ट ने स्वतः संज्ञान नहीं लिया, बल्कि इस मामले में, खुद उस निजी चिड़ियाघर पर स्वतः संज्ञान लिया, कि भैया हम जांच करेंगे कि ये चिड़ियाघर कैसे चल रहा है, कहां से जानवर लाए गए हैं, और इसमें कोई घोटाला तो नहीं है। एक बार फिर बता दूं ऐसी कोई शिकायत नहीं हुई थी, बल्कि कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लिया गया था। अब किसकी मां ने सवा सेर सौंठ खाई कि सबसे उंची वाली कोर्ट से ये पूछे कि भैया मेरे, ओ सॉरी, माई-बाप जिसे इंग्लिश में माई लॉर्ड या योर ऑनर भी कहा जाता है, ये आपने सुओ मोट्टो लिया क्यूं, किसी की शामत आई है जो सबसे बड़ी वाली कोर्ट से ये पूछ लेगा। अबे जाओ।
अब होता है असली खेल शुरु, सबसे उंची वाली कोर्ट के स्वतः संज्ञान लेने के फौरन बाद एक विशेष जांच समिति यानी एस आई टी बना दी गई, इसमें तीन जज, दो नौकरशाहों को जमा किया गया, और उन्होने अपना काम शुरु कर दिया। इस टीम में कोई पर्यावरणविद नहीं था, कोई जानवरों का विशेषज्ञ नहीं था, कोई ऐसा व्यक्ति नहीं था, जो जानवरों का डॉक्टर आदि हो, बस वो लोग थे, जो फैसला कर सकते थे। जजों और नौकरशाहो के शाही मिश्रण से बनी इस विशेष जांच टीम ने आनन-फानन यानी तुरत-फुरत अपनी जांच शुरु की, और सोलह दिन से भी कम समय में सारे जानवरों के आने की जांच कर ली, पूरा चिड़ियाघर घूम लिया, जानवरों से बातचीत करके उनकी सेहत आदि के बारे में भी पता लगा लिया और फट से अपनी रिपोर्ट तैयार कर दी।
शानदार रिपोर्ट है, आपके पास समय हो तो आप पढ़ लीजिएगा, मैं तो आपको इस शानदार रिपोर्ट के बारे में यही बता सकता हूं कि टीम ने कहा है कि सब कुछ चंगा है, बल्कि दुनिया में सबसे बेहतर है, सारे जानवर खुश हैं, तंदुरुस्त हैं, भला हो कि ये नहीं लिखा कि किसी जानवर ने इस टीम का हाथ पकड़ कर ये कह दिया हो कि भाई लोग हमारी तो मौज हो गई, इस चिड़ियाघर में आने के बाद। खैर कुल मिलाकर इस टीम को बुरा या ग़ैरकानूनी तो कुछ मिलना नहीं था, ना ही मिला, बल्कि जो भी मिला सब श्रेष्ठतम मिला, अंग्रेजी में बेस्टम बेस्ट। लेकिन असली मामला इस रिपोर्ट का तो था नहीं, असली मामला है इस रिपोर्ट के साथ नत्थी सबसे बड़ी वाली कोर्ट के फैसले का, जिसके अनुसार, अब से, इस राजा और राजकुमार के इस चिड़ियाघर के खिलाफ कोई शिकायत नही ंकर सकता, अगर करेगा, तो उस शिकायत को एंटरटेन नहीं किया जाएगा। मेरा ख्याल है ये भी नहीं लिखा है कि राजा या राजकुमार के इस चिड़ियाघर के बारे में कोई शिकायत करने वाले, या उसके बारे में लिखने वाले, या सोचने वाले को भी देशद्रोही, आतंकवादी, या मानवता का दुश्मन करार दिया जाएगा और मौके पर ही गोली मारने के आदेश दे दिए जाएंगे। पर ये तो हमारे लोकतंत्र की शान है कि सोलह दिन में एक 3000 एकड़ में फैले चिड़ियाघर की जांच भी हो गई, और उस पर आइंदा भविष्य में किसी भी शिकायत पर बैन भी लग गया।
अब राजकुमार फ्री हैं, कहीं से भी किसी भी जानवर को पकड़ लेने के लिए, किसी भी जानवर को अपने चिड़ियाघर में ले आने के लिए, उन्हें जैसा मर्जी टीट करने के लिए। भई राजा का अधिकार हुआ ये तो, आप साधारण जन उसमें हस्तक्षेप क्यों करना चाहते हो भला। देशद्रोही हो आप, जो राजा के खिलाफ बोलेगा, उसे देशद्रोही ही तो माना जाएगा भुला।
हो सकता है आंइदा कुछ दिनों बाद राजकुमार का दिल चाहे कि वो जानवरों के साथ आदमियों को भी चिड़ियाघर में रखना चाहता है, तो वो ऐसा भी कर लेगा, आप क्या कर लोगे, क्योंकि सबसे बड़ी वाली अदालत ने कह दिया है कि भैया कोई शिकायत आप नही ंकर सकते। इस बीच पिछले पांच सालों से कुछ लोग जेलों में पड़े हैं, जिनकी बेल की सुनवाई इसी बड़ी अदालत ने इसलिए नहीं की, कि उसे कुछ समय चाहिए था। सही बात है, इस लोकतांत्रिक देश की अदालत के पास राजकुमार के चिड़ियाघर के लिए स्वतःसंज्ञान था, इंसानों के लिए, खासतौर पर सोचने वाले इंसानों के लिए समय नहीं है।
चलिए, जिसकी जितनी लिखी है उतना ही जिएगा, जब तक इंसान मरें ना, तब तक वैसे भी किसी को क्या समझ में आता है, स्टेन स्वामी एक स्टा के लिए तड़पते रहे, स्वतःसंज्ञान ना हुआ, 90 प्रतिशत विकलांग प्रोफेसर के लिए कोई स्वतः संज्ञान न हुआ, राजकुमार का भला हो, जिसके चिड़ियाघर को इतना स्वतःसंज्ञान मिला। हमें आगे भी सबसे बड़ी वाले कोर्ट से इसी तरह के इंसाफ की उम्मीद है। क्योंकि उम्मीद पे दुनिया कायम है।
चचा हमारे, ग़ालिब जो थे, कह गए हैं, कि
तू आदम है इसलिए मारा ही जाएगा
कुत्ता होता राजा का तो केक खाता
सड़ेगा जेल में बिना टरायल के
क्योंकि तुझ से चुप नहीं रहा जाता
अब क्या कहें, ग़ालिब के जमाने तक माई लॉर्ड और योर ऑनर कहलाने वाले ब्लू कॉलर जज आ चुके थे देश में, उन्ही को देख कर शायद चचा ग़ालिब ने ये शेर लिखा होगा। उनका तो पता था कि ग़रीब इंडियनों का खून पिएंगे, अब का पता नहीं। बाकी आपकी खैर रहे, ना हो तो वहीं चले जाइए, निजी चिड़ियाघर में, हो सकता है बच जाएं। वरना क्या पता कब राजा या राजकुमार की नज़र आप पर भी पड़ जाए।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें