सोमवार, 6 अक्टूबर 2025

महामानव और आम खाने की कला

 



तो साहब पिछले दिनों इस देश में, इस भारत भू पर, इस विश्व में कुछ आश्चर्यचकित घटित हुआ। एक नॉनबायोलॉजिकल व्यक्ति के 75 साल पूरे हुए। 75 साल, 75 साल बहुत ज्यादा नहीं होते तो बहुत कम भी नहीं होते। सवाल ये है कि नॉनबायोलॉजिकल एंटिटी के लिए बायोलॉजिकल समय की गणना कैसे की जाती होगी, या ये भी अवतारों का ही कोई चमत्कार होता होगा, वरना जिन्हें सीधे ईश्वर ने भेजा हो, वो क्यों 70-75 के फेर में पड़ने लगे। हमारे महामानव तो शायद निन्यानवे के फेर में भी नहीं पड़ते। 


फिर भी, माने फिर भी, देखा जाए तो इस तरह अपने नॉनबायोलोजिकल जीवन के 75 वर्ष पूरे करने पर कुछ तो बढ़िया कहने की बात बनती ही है, सो सब महामानव के अनुयायियों ने कह भी दी और उन्होने मान भी ली होगी, ये हम जानते हैं, क्योंकि हमने देखा है। अब 75 सालों में महामानव ने क्या - क्या काम किए, किन -किन को अनुग्रहीत किया, किन को ठिकाने लगाया, ये सब भी दुनिया के सामने ही है। 



पर इन सबसे परे हट कर, उनकी कुछ महत्वपूर्ण उपलब्धियों पर हमने नज़र नहीं डाली तो हम ये मौका चूक जाएंगे, इसलिए हम महामानव के जीवन की कुछ खास उपलब्धियों पर आपकी नज़रे इनायत चाहते हैं। 


इस खास बातचीत के बाद पहली बार दुनिया को पता चला कि आम काटने के अलावा चूस कर भी खाया जा सकता है। मेरा ख्याल है इससे पहले महामानव ने कभी इस रहस्य को उजागर नहीं किया था कि आम चूस कर भी खाया जा सकता है, हालांकि मुझे तो ये भी समझ नहीं आया कि ये खिलाड़ी कुमार, आम खाते हुए सिंक के पास क्यों खड़े होते हैं, हो सकता है कि इन्हें आम हजम ना होता हो, जैसे कभी-कभी किसी को घी हजम नहीं होता, लेकिन उसके बावजूद आम खाने के लिए सिंक पर खड़े क्यों होना है। महामानव की तरह खेत में जाकर भी आम चूसा जा सकता था। खैर, कहने का मतलब है कि महामानव के जीवन में इस तरह के मुश्किल सवालों का सिलसिला लगातार बना रहा है, लेकिन महामानव सदा ही हंसते हुए ऐसे धारदार सवालों का सामना करते रहे हैं। 


मेरा तो ये मानना है कि दुनिया के सबसे अद्भुत और लोकप्रिय रेडियो धारावाहिक मन की बात का एक एपीसोड इसी बात पर केंद्रित होना चाहिए कि आम चूस कर खाने के क्या लाभ होते हैं, इसके शारीरिक, मानसिक, ऐतिहासिक, भौगोलिक और मनोवैज्ञानिक लाभों के बारे में दुनिया को भी पता चलाना चाहिए और पूरी दुनिया में इस तरह के ज्ञान को फैला कर हमें फौरन विश्वगुरु का दर्जा अब हथिया ही लेना चाहिए। क्योंकि मुझे डर है कि आम चूस कर खाने की कला अगर पश्चिम में पहुंच गई, तो वो लोग इसे इस पर नाजायज़ अधिकार कर लेंगे और आम चूस कर खाने की ये कला इस महान भारत भू से हमेशा के लिए लुप्त हो जाएगी। 

हालांकि इसके लिए ये भी किया जा सकता है कि महामानव के नाम से आम चूस कर खाने की कला का पेटंेट करवा लिया जाए। और इस तरह एक तीर से दो शिकार हो सकेंगे, पहला तो ये कि महामानव के नाम का एक पेटेंट हो जाएगा, नोबेल ना मिला तो क्या, पेटेंट की अपनी औकात होती है, एक बार महामानव का नाम इतिहास में दर्ज हो जाए, चाहे पेटेंट के ज़रिए ही हो, बस यही हमारी कामना और इच्छा है। इस इच्छा को सद्इच्छा माना जाए। 

दोस्तों, महामानव ने बचपन से ही कठिनाइयों का सामना किया है, उनके हर कदम पर उन्हें मुश्किल सवालों से परेशान किया गया है।


अब बताइए, महामानव से ये पूछना कि क्या वो पर्स रखते हैं? क्या ये ही इंसानियत है इन महान पत्रकारों की कि इस तरह के मुश्किल सवाल पूछें वो महामानव से? हमारे देश का मीडिया और कितना नीचे गिरेगा, महामानव से इस तरह के सवाल पूछ कर इन्होने महामानव के पद की गरिमा का ख्याल भी नहीं रखा, इनसे ज्यादा बेहतर सवाल तो हमारे हॉलीवुड के महान खिलाड़ी कुमार और सो सून जोशी ने पूछे थे।


महामानव को आम चूसने की कला से फकीरी तक ले आना, ये सफर एक कलाकार ही तय कर सकता था, जो इन्होने किया। लेकिन इन कलाकारों ने इन पत्रकारों को वो रास्ता भी महामानव ने ही दिखाया कि एक महामानव से किस तरह के सवाल किए जाने चाहिएं, इन पत्रकारों को थोड़ी भी शर्म होगी, तो वो आइंदा महामानव से इसी तरह के सवाल पूछेंगे और मर्यादा का ध्यान रखेंगे। लेकिन माइंड यू, इन कलाकारों के इस छुपे हुए टेलेंट को दुनिया के सामने भी महामानव ही लाए हैं, वरना आज तक किसी को सपना भी नहीं आया था कि इन कलाकारों को कोई इंटरव्यू लेने के काम पर भी लगा सकता है।


तो जैसा कि मैं कह ही रहा था कि महामानव ने अपने जीवन में तमाम तरह के कठिन सवालों का सामना किया, और उनके सही और सटीक जवाब दिए, हंसते हुए दिए, लेकिन आसान सवालों के जवाब नहीं दिए। 


बात इतनी सी है, कि महामानव उन सवालों के जवाब नहीं देते जिनके जवाब सारी दुनिया को पता हों, वे सिर्फ उन्हीं सवालों के जवाब देते हैं, जिनसे उनका नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज हो सके, ये ज़रूरी भी है, कि महामानव सदियों में एक पैदा होता है, तिस पर वो नॉनबायोलोजिकल हो, और उसे ईश्वर ने खुद भेजा हो तो वो करेला और नीम चढ़ा हो जाता है। इसलिए जिन सवालों के जवाब महामानव नहीं देते उसकी जगह वो दोस्ती को तरजीह देते हैं।


आप हमेशा देखेंगे कि महामानव ने अपने जीवन में सबसे ज्यादा महत्व दोस्ती को ही दिया है। 


जो भी महामानव का दोस्त रहा, उसने आसमान की बुलंदियों को छुआ है, और हमें यकीन है कि महामानव ने उन्हें भी आम चूस कर खाने की कला सिख दी होगी। अब उनके सभी दोस्त, जिन्हें महामानव ने चूसने की सुविधा दी है, वो सबकुछ चूस ले रहे हैं, और आम चूसने की इस कला में आम को अब बाकी चीजों से रीप्लेस कर दिया गया है, महामानव के दोस्त, पानी, रेल, तेल, पैसा, यानी सबकुछ चूस ले रहे हैं। इस देश की इस आम चूसने की कला का उपयोग अब सबकुछ को चूसने में किया जा रहा है, और इसीलिए मेरे दोस्तों ये एक ऐसी कला है जिसका सदुपयोग महामानव ने शुरु किया और इसलिए चूसने की इस कला का पेटेंट करवा लेना ज़रूरी है। 

तो महामानव के 75 साल पूरे करने की खुशी में, आम चूस की खाने की कला को भारत के जन-जन तक पहुंचाना हमारा कर्तव्य होना चाहिए और महामानव के जन्मदिन का उत्सव मनाने की जो जो तैयारियां हो रही हैं, उनमें आम चूसने की कला का सार्वजनिक प्रदर्शन, चूसने की कला पर सेमिनार, आम चूसने से संबंधित गीत, नारे आदि भी किए जा सकते हैं। मेरे कहने का मतलब ये है कि महामानव की इस महान उपलब्धि को यूं ही लुप्त नहीं होने दिया जा सकता, तो आप सबसे मेरा अनुरोध है कि अपनी कमर कस लें और आने वाले दिनों में आम चूसने या कुछ भी चूसने की कला का भरपूर इस्तेमाल किया जाए। ताकि नॉनबायोलॉजिक अवतार को कुछ तो संतोष हो कि वो दुनिया को कुछ दे चुके हैं।


बाकी सब खैर है

चचा ग़ालिब को भी आमों का बहुत शौक था, तो उन्होने चूसने की इस कला पर एक शेर कहा है, आपकी नज़र है, 


अब चूस ले, सब चूस ले, कुछ रह ना जाए हाथ में

कि आम हो या आदमी तू चूस बात बात में

हर बात चूसने से हो, हर बात चूसने की हो

बेफिकर होकर चूस तू, क्या रखा है जज्बात में


चचा के आम और महामानव के आमों में अमूमन फर्क होता है, वो आम पेड़ पर लगते थे, ये आम सड़क पर मिलते हैं।

तो एक बार फिर 75 की जय हो, बाकी खैर मनाइए।

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