बुधवार, 6 मई 2015

चाय



”निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन जाने के दो रास्ते हैं” बाइक रोकते हुए वो बोला, ”एक तो नीले गुम्बद से भोगल की तरफ जाते हुए बीच में कटता है....”
”....माने यहीं से...” वो बोली
” हां हां.....बस यहां से आगे की तरफ जाएंगे तो जो गोलचक्कर पड़ता है....वहां से सीधा जाना है.....और....एक पुल है.....नईं...पहले एक मॉन्यूमेंट है....वो....खान-ए-खाना टॉम्ब.....”
”बारापुला की तरफ जो रास्ता कट रहा है....” ऑटो वाले ने कहा।
”हां....वहीं”
”थैंक यू...”
ऑटो स्टार्ट हुआ और चला गया....उसने कमीज़ की उपर वाली जेब से सिगरेट निकाली....सुलगाई और फिर बाइक आगे बढ़ा दी। उसे बाइक चलाते हुए सिगरेट पीना अच्छा लगता है, अभी एक मीटिंग से आया था और आगे दूसरी मीटिंग में जा रहा था। मौसम बहुत अच्छा था, बदन पर हवा लग रही थी और बाइक ऐसे चल रही थी जैसे वो हवा पर सवार हो, उसके चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई। वो अपनी जिंदगी में मस्त था। 
बहुत कम लोगों को अपनी इच्छा का काम मिलता है। जबसे वो दिल्ली आया था तबसे उसे कभी काम की, अपनी इच्छा के काम की कमी नहीं हुई थी, या यूं हो सकता है कि वो जो भी करता था उसी में अपनी खुशी ढूंढ लेता था। कम्पनी के मालिकान उसके काम से खुश थे, वो कम्पनी से, अपनी सैलरी से, और अपनी जिंदगी से खुश था। 
थोड़ा आगे बढ़ा तो देखा कि सड़क के किनारे भीड़ जमा है। अमूमन ऐसी भीड़ देखकर वो रुकता नहीं है। ये दिल्ली का कल्चर है, कोई दुर्घटना हो जाए तो कोई रुकता नहीं है, हालांकि हर दुर्घटना पर भीड़ जमा होती ही है। वो कुछ कर तो सकता नहीं, और यंू ही चाटिल लोगों को देखना उसके शौक में शुमार नहीं है, लेकिन फिर उसे हरे रंग का कुर्ता दिखाई दिया और वो ऑटो वाला......उसने पीछे की तरफ देखा और बाइक को डिवाइडर की तरफ लगा कर रोक दिया। गौर से देखा तो लगा कि ये वही ऑटो है जिसमें बैठी लड़की ने उससे निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन का पता पूछा था। बहुत सावधानी से बाइक को सड़क के किनारे की तरफ किया और फिर बाइक को स्टैंड पर लगा कर वो भी भीड़ में शामिल हो गया। जाने कैसे ऑटो एक तरफ पलट गया था। ड्राइवर को थोड़ी-बहुत खराश आई थी लेकिन, लड़की की हालत खराब थी। उसका उपरला होंठ कट गया था और उससे खून बह रहा था जिसे वो अपने रूमाल से रोकने की नाकाम कोशिश कर रही थी। 
वो चाहता तो नहीं था, पर जाने क्यों थोड़ा आगे बढ़ आया, जैसे.....जैसे वो लड़की को जानता हो। लड़की ने उसकी तरफ देखा और अनजाने की उसके चेहरे पर भी पहचान लेने जैसा भाव आया। बाकी लोगांे ने उसे देखा और उनके चेहरे पर भी कुछ ऐसा भाव आया जैसे.......जैसे ”चलो भई तमाशा खत्म हुआ....”लड़की के कपड़ों का आगे वाला हिस्सा पूरी तरफ खून से लथपथ था, जैसे......जैसे किसी ने बाल्टी भरके खून उसके कपड़ों पर डाल दिया हो। लेकिन बहुत ही बहादुर लड़की थी, अब भी खुद को संभाले हुए थी.....
”स्कूटर चल रहा है.....” उसने थ्रीव्हीलर वाले से पूछा। थ्रीव्हीलर वाले ने एक नज़र अपने थ्रीव्हीलर को देखा फिर कुछ सोच कर कंधे उचका दिए।
”मुझे लगता है कि......कि तुम्हें डॉक्टर के पास ले जाना पड़ेगा.....”
लड़की ने कुछ कहने की कोशिश में अपने चेहरे से रुमाल हटाया तो खून बह निकला.....उसने कुछ कहे बिना वापस अपने होठों पर रुमाल लगा लिया और इस्बात में सिर हिलाया। उसने लड़की का बैग गिरे हुए ऑटो में से उठा लिया और उसकी कोहनी को पकड़ कर अपनी बाइक की तरफ इशारा किया। लड़की उसके साथ चल दी। 
उसके ऑफिस के पास ही एक क्लीनिक था। वो खुद कभी उसे क्लीनिक में नहीं गया था, लेकिन उसके ऑफिस के कुछ लोगों के हिसाब से अच्छा क्लीनिक था। प्राइवेट था, डॉक्टर ने लड़की को एक नज़र देखा, और नर्स को इशारा किया, जो लड़की को एक छोटे से पार्टीशन के पीछे ले गई। वहां उसे लड़की की सिसकियां सुनाई दे रही थीं।
”क्या हुआ....” डॉक्टर ने पूछा
”पता नहीं.....ऑटो में जा रही थी....यहीं पास में एक्सीडेंट हो गया......” उसने कहा
”और तुम.....” 
”मैं तो वहां से गुज़र रहा था बस.....वहां भीड़ लगी हुई थी....कोई कुछ कर तो रहा नहीं था....तो मुझे लगा....इतना खून बह रहा था कि.....”
”हममम्.....” डॉक्टर उठा और खुद भी पार्टीशन के पीछे चला गया। ”यहां आओ....”डॉक्टर ने पार्टीशन के पीछे से ही आवाज़ दी।
वो भी उठ कर पार्टीशन के पीछे गया। वहां एक बेड जैसा लगा था, जिस पर सफेद चादर बिछी थी। पास में कुछ डॉक्टरी मशीने पड़ी हुई थी और एक स्टील के टेढ़े से बर्तन में खून सनी रुई के बहुत सारे फाहे पड़े हुए थे। 
”टांके लगाने पड़ेंगे....” डॉक्टर ने उसे देखते हुए कहा।
उसने लड़की की तरफ देखा। लड़की ने सिर हिलाया। 
”ठीक है” उसने कहा।
खून रुक चुका था और लड़की का उपरला होंठ साफ कटा नज़र आ रहा था। 
”बाकी सब ठीक हो जाएगा.....लेकिन निशान रह जाएगा।”
लड़की ने फिर सिर हिलाया। 
”ठीक है” उसने फिर कहा।
”दर्द हो रहा है” डॉक्टर ने इस बार लड़की से पूछा।
लड़की ने फिर इस्बात में सिर हिलाया। 
”ठीक है.....मैं कुछ पेन किलर दे दूंगा......” डॉक्टर ने उसकी तरफ इशारा किया, वो इशारे का मतलब तो नहीं समझा लेकिन बाहर आ गया। 
नर्स ने उसे एक पर्ची थमा दी। 1150 रुपये की पर्ची थी। ये तो अच्छा था कि आज उसके पास पैसे थे। उसने पर्ची को मोड़ कर अपने पर्स में रखा और 1200 रुपये निकाल कर नर्स को दिए। नर्स ने उसे पचास का नोट वापस कर दिया। वो थोड़ी देर बाहर बैठा रहा। कुछ देर बाद डॉक्टर और लड़की भी पार्टीशन से बाहर आ गए। लड़की के मुंह पर पट्टी बंधी थी।
”चोट तेज़ लगी है, चेहरे पर सूजन आएगी......लेकिन दो तीन दिन में खत्म हो जाएगी। बाकी कुछ दिन......एक हफ्ता तो लिक्विड डाइट ही लेनी होगी.....ये कुछ दवाइयां दे रहा हूं......इनसे काम हो जाना चाहिए। एक हफ्ते बाद पट्टी उतरवाने और टांके कटवाने आ जाना.....”
”लेकिन....” उसने कहना चाहा....अचानक उसे याद आया कि वो तो निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन का पता पूछ रही थी। 
”क्या हुआ” डॉक्टर अपने छपे हुए लैटरहेड पर कुछ लिख रहा था। 
लड़की ने उसकी तरफ देखा तो उसे लगा कि वो उसे कुछ कह रही है शायद......शायद कह रही है कि चुप रहो। 
”कुछ नहीं....” डॉक्टर ने नर्स की तरफ देखा। नर्स ने इशारा किया और डॉक्टर ने लैटरहेड उसके हवाले कर दिया। 
वो लड़की का सामान लेकर बाहर आ गया। थोड़ी देर अनिश्चित सा खड़ा रहा फिर लड़की को लेकर अपने ऑफिस आ गया। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे। अब तक उसने जो किया था वो भी जाने क्या सोच कर किया था। लेकिन अब......
”अब....” उसने लड़की से पूछा।
लड़की ने उसकी तरफ देखा। वो बोल नहीं सकती थी, सूजन उसके चेहरे पर साफ दिखने लगी थी, और उसकी आंखों में आंसू भी थे। 
”आप.....चाहें तो मैं आपको रेलवे स्टेशन छोड़ सकता हूं।”
लड़की ने फिर उसकी तरफ देखा, आंखों में अब भी आंसू थे। वो असमंजस में पड़ गया। आखिर वो कर ही क्या सकता था, वो खुद अकेला रहता था, एक कमरा, ज्वाइंट टॉयलेट, और किचेन, हल्का थोड़ा सामान। आखिर वो इस अनजानी लड़की को कहां रखता, कोई लड़का होता तो उसे फिर भी अपने पास रखा जा सकता था। उसने एक गहरी सांस ली.....
”चलिए.....” वो बोला।
लड़की उठ कर खड़ी हो गई। वो लड़की और उसके एक बैग के साथ ऑफिस से बाहर आ गया। 
”मैं पास ही रहता हॅू, अकेला रहता हूं......अगर आपको कोई एतराज़ ना हो तो आप मेरे साथ रह सकती हैं.......अगर....अगर आपको कोई एतराज़ ना हो तो.....या अगर आप चाहें तो मुझे बता दें......मैं आपको कहीं.....मेरा मतलब किसी होटल में......”
लड़की ने इन्कार में सिर हिलाया।
”तो फिर मेरे ही घर चलिए.....” उसने कहा और मोटरसाइकिल की तरफ बढ़ गया। 
उसका कमरा दूसरी मंजिल पर था। मालिक मकान बहुत ही व्यस्त आदमी था। उसने अपनी बड़ी जमीन पर इस तरह घर बनाए थे कि ज्यादातर घरों के किराए से ही ना सिर्फ जिंदगी चला रहा था बल्कि और घर खरीद रहा था। यानी वो जब अपने घर पहुंचा तो नीचे तांक-झांक करने वाला कोई नहीं था। उसने ताला खोला और अंदर आकर लाइट जला दी। अभी दो ही दिन पहले कमरे की सफाई की थी, इसलिए कमरा कुछ सलीके वाला लग रहा था। 
लड़की भी सकुचाते हुए अंदर आ गई। उसने लड़की का बैग एक तरफ रख दिया। ”आप.....आप बेड पर बैठ जाइए....मैं....यहां....नीचे बैठ जाउंगा।” उसे पहली बार लगा कि घर में छोटे-मोटे फर्नीचर का क्या महत्व हो सकता है। 
लड़की बेड पर बैठ गई तो उसे याद आया पानी.....वो झटके से उठा और रसोई में जाकर मटके में से एक गिलास पानी निकाल लाया। मटका भी उसने कुछ 10-12 दिन पहले ही खरीदा था। 
लड़की ने पानी लिया और थोड़ी मुश्किल के साथ पी लिया। 
”आप कुछ खाएंगी.....मेरा मतलब है कुछ जूस वगैरहा.....माने रात का खाना तो बाद में हो जाएगा....यहीं पास में ढ़ाबा है.....तो.....आपके लिए भी कुछ ना कुछ हो जाएगा।” वो थोड़ा असहज था। उसके कमरे में पहली बार कोई लड़की आई थी। 
वो बैठ गया.....लड़की बेड पर थोड़ा सा पसर गई थी।
”आप ऐसा कीजिए कि....हाथ मुंह धो लीजिए.....फिर थोड़ा आराम कर लीजिए।” उसने कहा। ”बाथरूम यहां है....” इस रूम की ये सुविधा उसे सबसे ज्यादा पसंद थी। बाथरूम अटैच्ड था। 
लड़की ने अपने बैग में से कुछ कपड़े निकाले और बाथरूम में चली गई। 
”बताओ.....मैं इसका नाम तक नहीं जानता....और....पता नहीं कौन है।” वो पानी का गिलास उठाकर किचन में चला गया। ”चाय बनानी चाहिए” लेकिन उसके लिए दूध लाना पड़ेगा। गर्मियों में दूध खराब हो जाता है, इसलिए वो दूध खत्म करके ऑफिस जाता है। 
”मैं ज़रा दूध लेने बाहर जा रहा हूं.....आपकी दवाइयां भी लेता आउंगा...” बाथरूम से कोई जवाब नहीं आया। वो बाहर निकला, तो एक पल के ठिठका.....दरवाजा बाहर से बंद करना चाहिए या नहीं.....थोड़ी देर सोचने के बाद उसने दरवाजे को खुला छोड़ने का फैसला किया और चला गया।
वो पास वाली दुकान से एक सिगरेट का पैकेट, दूध, ब्रेड-अंडे और बिस्किट लाया। दरवाजा खोला तो देखा कि वो सो रही थी। शायद डॉक्टर की दवा का असर था। उसने अपने लिए चाय बनाई और एक चादर बिछा कर वो फर्श पर ही लेट गया। थोड़ी देर तक वो एक किताब पढ़ता रहा, फिर उसे भी नींद आ गई। 
जब उसकी आंख खुली तो बाहर अंधेरा था। पता नहीं वो कितनी देर तक सोता रहा था। उसने मोबाइल पर टाइम देखा, सवा बारह हो रहे थे। सोती हुई लड़की हमवार आवाज़ उसे सुनाई दे रही थी। वो उठा और दबे पांव रसोई में चला गया, उसे भूख नहीं लगी थी, सिर्फ ये था कि रात का खाना नहीं खाया था। उसने बची हुई चाय गर्म की और चार बिस्कुटों को दो ब्रेड के बीच में रख कर वहीं खड़े होकर अपना वो बिस्किट सैंडविच और चाय खत्म की और फिर बाहर आकर लेट गया। लड़की आराम से सो रही थी, उसे जगाने का क्या फायदा था, यही सोच कर वो फिर सो गया। 
सुबह जब उसकी आंख खुली तो लड़की अपने कपड़े तह कर रही थी। वो उठा तो लड़की ने उसकी तरफ देखा। लड़की के बाल गीले थे, यानी वो नहा भी चुकी थी। 
”आप.....आप चाय पिएंगी.....।” उसे सुबह उठने के बाद चाय की तलब लगती थी। 
लड़की ने सिर हिला दिया। वो रसोई में गया और रात के बर्तन मांज कर उसने चाय चढ़ा दी। अभी कोई खास समय नहीं हुआ था, उसने रसोई से बाहर देखा, बाल्कनी में पेपर पड़ा हुआ था। वो बाहर गया और अपना पेपर उठा लाया। लड़की ने कपड़े तह करके बैग में रख लिए थे और अब अपने गीले बालों को सुखा रही थी। बैग उसने बेड पर ऐसे रखा था जैसे वो वहां से जाने को तैयार हो। 
”आप रात में सो रही थीं, तो मैने डिस्टर्ब करना ठीक नहीं समझा....इसलिए डिनर के लिए नहीं उठाया.....मैं अभी आमलेट बना देता हूं.....नाश्ता के लिए....” लड़की ने अपने गीले बाल अपनी चुन्नी से बांधे और उठ कर रसोई में चली गई। 
वो हड़बड़ा कर उठा। 
”आप बैठिए.....मैं बनाता हूं ना”
लड़की ने अस्पष्ट सा कुछ कहा, जिसका मतलब शायद ये था कि वो खुद भी बनाना जानती है और बना लेगी। वो एक पल के लिए हिचका, फिर बिना कुछ सोचे पेपर लिए बाथरूम में चला गया। 
उसे बाथरूम में थोड़ी देर लगती है। जब वो निकला तो उसकी चाय बेड के पास रखी थी। 
”आप....” उसने लड़की की तरफ देखा, फिर झेंप गया, लड़की की नाक के नीचे होंठ पर सर्जीकल टेप लगा हुआ था और मुुंह सूजा हुआ था। उसने एक दो सिप चाय के लिए.....कमाल चाय थी। उसने बहुत कोशिश की लेकिन आज तक वो अच्छी चाय नहीं बना पाया था। वो कुछ सोच कर उठा और बाहर चला गया। नीचे जाकर उसने दुकान से दो जूस के पैकेट खरीदे और कुछ स्ट्रा लीं, और वापिस आ गया। 
उसने रसोई में जाकर जूस को एक गिलास में डाला और स्ट्रा के साथ लड़की को दिया। लड़की कृतज्ञतापूर्वक मुस्कुराई और गिलास ले लिया।
”कल आप ट्रेन पकड़ने के लिए स्टेशन जा रही थीं.....कहां के लिए.....?”
लड़की फिर कुछ अस्पष्ट सा बोली जिससे उसे यही समझ आया कि वो किसी ”.....बाद” जा रही थी। 
”वहां फैमिली रहती है आपकी...?” उसने पूछा
लड़की ने हां में सिर हिलाया।
”आप चाहें तो मैं उन्हे फोन कर दूं....” पता नहीं क्यों उसे कल इस बात का ख्याल ही नहीं आया था। लेकिन लड़की ने भी तो ऐसा कुछ नहीं कहा था। 
लड़की ने जूस का गिलास नीचे रख दिया और एकटक उसकी तरफ देखा। वैसे ये भी कमाल था कि इस दौर में जहां रिक्शा चलाने वालों के पास तक मोबाइल होता है, उसके पास मोबाइल नहीं था। 
उसने अपना मोबाइल निकाला लड़की की तरफ बढ़ा दिया। लड़की मोबाइल हाथ में लेकर कुछ सोचती रही, फिर एक नंबर डायल किया, फिर कुछ देर मोबाइल हाथ में लेकर सोचा और फिर एक कागज़ का पुर्जा निकाल कर उस पर कुछ लिखा और पुर्जा और मोबाइल दोनो उसकी तरफ बढ़ा दिए।
पुर्जे पर लिखा था ”शम्मी आंटी”
उसने मोबाइल लिया और कॉल कनेक्ट की। जाहिर था कि ये शम्मी आंटी का फोन था और उसे उनसे बात करनी थी।
”कौन”
”जी....मैं दिल्ली से बोल रहा हूं.....आप शम्मी आंटी बोल रही हैं।” तब उसे याद आया कि उसे तो लड़की का नाम तक नहीं पता था आखिर वो बताता क्या....?
”आपका नाम क्या है....” उसने फोन कान से हटाकर पूछा.....लड़की ने फिर कुछ बोलने की कोशिश की, उसने कागज़ का पुर्जा लड़की की तरफ बढ़ा दिया। लड़की ने उस पर अपना नाम लिखा और फिर उसकी तरफ बढ़ा दिया। ”हिना” उस लड़की का नाम था। 
”जी हां....शम्मी बोल रही हूं।” औरत की आवाज़ में आशंका थी।
”वो....बात ये है कि हिना जी कल निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन जा रही थीं कि उनका एक्सीडेंट हो गया......नहीं, नहीं....बिल्कुल ठीक हैं.....बस उपरले होंठ पर चोट है..... जी हां.....डॉक्टर को दिखा दिया है......हां....थोड़ी सूजन है चेहरे पर इसलिए बात नहीं कर  पा रही हैं.....जी....जी....पर.....”
उसने फोन हिना की तरफ बढ़ा दिया, शम्मी आंटी उससे बात करने की ज़िद कर रही थीं। हिना ने फोन लिया लेकिन वो थोड़ा बहुत अस्पष्ट से तरीके से बात करने के अलावा कुछ नहीं कर पाई। उसने फोन फिर से उसे थमा दिया।
”जी....”
शम्मी आंटी ने सवालों की बौछार कर दी। वो कौन है, कहां रहता है, हिना को कैसे जानता है, चोट कितनी लगी है, डॉक्टर ने क्या कहा.....आदि आदि। जो एक बात नहीं कही, वो ये कि वो दिल्ली आ रही हैं। उसे थोड़ा अचरज तो हुआ, लेकिन वो चुप रहा। उसके ऑफिस जाने का समय हो रहा था। 
हिना को सबकुछ समझा कर, और उसके लिए दलिया बनाकर वो ऑफिस चला गया। ऑफिस में काम कुछ खास नहीं था और उसका मन भी नहीं लग रहा था। तो लंच के बाद वो वापिस घर चला आया। 
हिना सो रही थी, शायद दवाई का असर था। उसके चेहरे की सूजन थोड़ी कम थी। उसने कुछ बात करने की कोशिश की तो पता चला कि वो लखनउ की है, और दिल्ली किसी इंटरव्यू के लिए आई थी। किसी रिश्तेदार ने यहां का पता दिया था। हिना के मां-पिता मर चुके थे और पिछले तीन साल से वो अपने मामा के यहां रह रही थी। अब पढ़ाई खत्म करने के बाद किसी रिश्तेदार के ज़रिए नौकरी करके अपने पैरों पर खड़ा होने की ज़रूरत उसे दिल्ली ले आई थी। 
शाम हो चुकी थी और उसे कुछ भूख भी लगी थी। वो चाय बनाने के लिए उठा तो उसने हिना से भी चाय के लिए भी पूछा। हिना ने चाय पीने से तो इन्कार किया लेकिन चाय बनाने के लिए उठ गई, वो लगातार मना करता रहा, लेकिन हिना नहीं मानी, फिर उसे लगा कि अपने हाथ की खराब चाय पीने से बेहतर है कि हिना के हाथों की अच्छी चाय पी ली जाए। वो नीचे जाकर उसके लिए जूस ले आया, उसने अच्छी चाय पी और हिना ने जूस पिया। फिर वो बातें करते रहे, वो अपने बारे में बताता रहा और हिना सुनती रही। बीच में उसने उठ कर हिना के लिए दलिया बना दिया। 
हिना उसके साथ तीन दिन तक रही, और उनमें कुछ ज्यादा बातें नहीं हुईं, पहले तो इसलिए कि वो कुछ बोल नहीं सकती थी, और फिर शायद इसलिए कि ज़रूरत ही नहीं थी। जब वो गई तो उसकी बहुत शुक्रगुज़ार थी, उसने हिना के लिए अपने ऑफिस के ट्रैवल एजेंट से कहकर टिकट रिजर्व करवा दिया था। शम्मी आंटी को उसके आने की खबर भी दे दी थी, और हिना को बता दिया था कि अगर उसे दिल्ली में अपनी नौकरी के बारे में या किसी और चीज़ के बार में जानने की जरूरत हो तो वो उसे फोन कर सकती है। वो हिना को छोड़ने निजामुद्दीन गया और उसने एहतियात से हिना को सीट पर बैठा दिया। थोड़ी देर तक वहीं बैठ कर वो प्लेटफार्म पर आ गया। जब ट्रेन चल पड़ी तो वो बाहर निकल गया और थोड़ी देर तक वहीं टहलता रहा। फिर घर आ गया। रसोई में जाकर अपने लिए चाय बनाई, खराब चाय, और उसे चुसकता हुआ बेड पर आ गया। 

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