रविवार, 29 जून 2025

यादव कथावाचक और जाति व्यवस्था



दोस्तों, ये वीडियो शुरु करने से पहले एक स्वीकारोक्ति। मेरा जन्म एक ब्राहम्ण परिवार में हुआ है, हालांकि इस उपलब्धि को हासिल करने के लिए मैने अपनी तरफ से कुछ नहीं किया है, लेकिन इस उपलब्धि से मुझे बहुत जबरदस्त प्रिविलेज हासिल है। तो आज मैं अपने पूरे नाम के साथ आपके सामने हूं। मेरा नाम कपिल शर्मा है। अब सवाल ये है कि मैं आपको ये सब क्यूं बता रहा हूं। क्यूंकि मैं ब्राहम्ण हूं, लेकिन मैं जाति को नहीं मानता। 



दरअसल मेरा मानना ये है कि इस देश में जात-पात जो होती थी, वो अब नहीं होती। अब ये देश एक आधुनिक देश बन गया है, और पहले किसी जमाने में जाति के नाम पर जो अत्याचार होते थे, वो अब नहीं होते। अब कोई ब्राहम्ण है तो है, उसमें उसका क्या दोष, इसलिए जो मान लीजिए नीची जाति का है तो है, उसमें कोई क्या ही कर सकता है। ये जो है ना जाति की बात, ये तो वही लोग करते हैं, जो इससे फायदा उठाना चाहते हैं। अब देखो मुझे तो रिजर्वेशन नहीं मिलता, मैं ब्राहम्ण हूं, लेकिन बेचारा हूं, मेरा शोषण हो रहा है। हालंाकि मैं जाति नहीं मानता, लेकिन देखिए ये तो संस्कृति की बात है, इसलिए भारतीय संस्कृति के हिसाब से सबको अपनी जाति के हिसाब से ही रहना चाहिए। वरना..... मैं ब्राहम्ण हूं, लेकिन मैं जाति को नहीं मानता। खैर अभी कुछ देर पहले एक स्वामी जी की वीडियो देखी



इस वीडियो में स्वामी जी कह रहे हैं कि सार्वजनिक रूप से कथा सुनाने में शास्त्र की मार्यादा ये है कि ये सब जाति को कथा सुनाने का अधिकार केवल ब्राहम्ण को है। मैं इन महान ज्ञानी बाबा के इस तर्क से बिल्कुल सहमत हूं। भई जिस जाति का काम शास्त्रों में वर्णित है, वो काम उन्हीं जातियों को करना चाहिए। जैसे ब्राहम्ण को ये अधिकार है कि वो कथा सुनाए, और किसी अन्य जाति को ये अधिकार नहीं है कि वो कथा सुनाए, या बाबा जी के अनुसार सार्वजनिक रूप से ना सुनाए। यानी कथा सुनाना, पूजा करना, हवन करना आदि पर केवल ब्राहम्णों का अधिकार है। ब्राहम्णों के अलावा कोई और जाति यदि इन कामों को करती है तो ये शास्त्र सम्मत नहीं है, और काम तो भैया कुछ भी हो, शास्त्र सम्मत होना चाहिए। 



मेरी चिंता दूसरी है। मेरा सवाल ये है कि ये जो यादव जी का बाल उतारा गया, उस्तरे से, वो काम किसने किया था। कि अगर ये काम किसी ब्राहम्ण ने किया तो वो तो जातिच्युत हो गया। क्योंकि ब्राहम्ण बाल उतारने का काम नहीं कर सकता। 


मैं ब्राहम्ण हूं, लेकिन मैं जाति को नहीं मानता, पर ये वाले बाबा जी ही बताएं कि क्या ये सही नहीं है? माने शास्त्रों के हिसाब से तो ब्राहम्ण बाल नहीं उतार सकता, या बाबा जी बताएं उतार सकता है या नहीं। 

दूसरे बाबा जी कह रहे हैं कि कोई अपनी पहचान छुपा कर गया, तो उसकी रिपोर्ट पुलिस में करनी चाहिए, ना कि कानून को अपने हाथों में लेना चाहिए। 


अब इसमें भी हम बाबा जी का फुल टू फुल समर्थन करते हैं। पहले तो पहचान हो कि भीड़ में ये जो लोग दिख रहे हैं, कि वो ब्राहम्ण हैं भी कि नहीं। देखो भाई ये धर्म, जाति समाज, और वेद शास्त्रों की बात है, इसलिए किसी के ब्राहम्ण होने का प्रमाण ये नहीं हो सकता कि वो खुद ऐसा कह रहा है। या उसके आधार कार्ड में ये लिखा है कि वो ब्राहम्ण है, क्योंकि एक तो सरकार ने आज तक कोई जाति आधारित मर्दुमशुमारी यानी जनगणना नहीं करवाई है। दूसरे आधार कार्ड में जाति तो नहीं ही लिखी होती। और नाम के आगे सरनेम, या जातिसूचक नाम जो लिखा जाता है, वो तो खुद की ढोलक होती है। इसलिए लगे हाथ बाबा जी ही बताएं कि शरीर के कौन से हिस्से का कौन सा चिन्ह हो तो पता चलेगा कि कोई ब्राहम्ण है या क्षत्रिय है, या वैश्य है या शूद्र है। भई तमाम आदि - अनादि के ज्ञान का भंडार वो वेद और शास्त्र जिसे बाबाजी मानते हैं, उनमें पक्का ये कहीं ना कहीं लिखा होगा कि ब्राहम्ण होगा तो उसकी पहचान कैसे होगी। मैं स्वयं सिद्ध ब्राहम्णों के पक्ष में नहीं हूं, मुझको पक्का होना कि कोई कह रहा है कि वो ब्राहम्ण है तो उसको ब्राहम्ण होना। 

तीसरे कानून का क्या है जी, भारत के संविधान में कहीं लिखा ही नहीं है कि ब्राहम्ण कौन काम कर सकता है, और यादवों के लिए कौन से काम आरक्षित हैं। बताइए, ऐसा बेकार सा संविधान जो बाबा जी के शास्त्रों के हिसाब से लिखा ही नहीं गया। ये अम्बेडकरी संविधान सबको समान बनाने पर तुला हुआ है। और बाबा जी कह रहे हैं कि अगर कोई अपनी पहचान छुपा कर गया तो उसमें उसका दोष है। दरअसल भारतीय दंड संहिता जो पुरानी वाली थी, और भारतीय न्याय संहिता जो नई वाली है, उन दोनो में ही इम्पर्सनेशन यानी ग़लत पहचान बताना, जिसकी धारा का नंबर है 319, 242, 319, 204, 205, और 337 इनमें से कोई भी धारा यहां कारगर नहीं होती। इन धाराओं में जाति संबंधी मामला है ही नहीं, सब कानूनी मामला है, यानी कानूनी धोखा देना, खुद को सरकारी अधिकारी बताना, कानूनी कार्यवाही में धोखा देना। अब ये तो बाबा जी ही बता पाएंगे कि ये जो कथा हो रही थी, ये कौन सी कानूनी कार्यवाही थी। 

बताइए, अम्बेडकर ने ये कैसा संविधान बना दिया यार, जिसे ब्राहम्ण लोग बहुत कोशिश करने के बाद भी अपने शास्त्रों के हिसाब से ढाल नहीं पा रहे हैं। 




अम्बेडकर के जीते जी भी इन लोगों ने एड़ी-चोटी का जोर लगा लिया, लेकिन अंबेडकर संविधान को ऐसा बना गए कि उसमें जातिगत भेदभाव के लिए जगह नहीं मिलती। इसीलिए तो आर एस एस ने भारतीय संविधान को मानने से ही इन्कार कर दिया था। 30 नवंबर 1949 के आर एस एस के मुखपत्र ऑर्गेनाइज़र के संपादकीय में लिखा था कि संविधान हिंदू सांस्कृतिक मूल्यों और मनुस्मृति से मेल नहीं खाता इसलिए वे इसे नहीं मानेंगे। इसलिए अपने आर एस एस के सहकार्यवाहक कह रहे हैं, और खुद भा ज पा के मंत्री कह रहे हैं कि अब संविधान बदलने का समय आ गया है। अब आप माने चाहे ना माने, ये संविधान तो भा ज पा वाले बदल कर रहेंगे, और इसकी जगह वो मनुस्मृति स्थापित करके रहेंगे। तब आएगा ब्राहम्णों का राज। हा हा हा। 




देखिए, संविधान चाहे जो भी कहता रहे, समानता-फमानता की फर्जी बातें करता रहे। ये जो दलित हैं, उन्हें तो अपनी औकात पता रहनी चाहिए, ये संविधान ने और फिर वोट के अधिकार ने इन्हें बहुत सर पर चढ़ा लिया है। हमारे यहां रोज़ ये जो दलित हैं, इन्हें इनकी सही जगह बताई जाती है। हर रोज खबर आती है कि कहीं किसी दलित के हाथ काट लिए, कहीं उसका सिर काट लिया, कहीं उसे खम्बे से बांध कर पीट दिया, कहीं उसके हाथ-पैर काट दिए, उसकी बेटी के साथ ज़िना किया, कहीं दलितों की शोभा यात्रा को रोक लिया, और फिर उन्हीं दलितों को गिरफ्तार कर लिया। हर हफ्ते दो हफ्ते में एक दो दलित बच्चियों का बलात्कार करके उन्हें मार के खेत में टांग देने की खबर भी आती ही रहती है। तो दलितों को अपनी सही जगह मालूम रहती है। 




बाबा जी से पूछें ज़रा ये सब भी शास्त्र सम्मत है क्या? और बाबा जी, ये जो बाबा बन के चुनाव लड़ रहे हैं, ये शास्त्र सम्मत है क्या? ये जो मठों के महंत हैं, जो मुख्यमंत्री बने हुए हैं, ये धर्म की ध्वजा को नुक्सान नहीं पहंुचा रहे हैं क्या? और एक छोटा सा सवाल और है बाबा जी, सुना रामायण के रचियता, वाल्मीकी, खुद भी ब्राहम्ण नहीं थे, तो रामायण जो उन्होने लिखी, वो तो सिर्फ अपने परिवार के लिए नहीं ही लिखी होगी। तो क्या उस रामायण का पाठ शास्त्र सम्मत होगा बाबा जी? 


असल में इतने सैंकड़ों सालों बाद भारत की गद्दी पर जो हिंदू राजा बैठा, तो ब्राहम्णों ने अपनी गाड़ियों पर ”प्राउड टू बी ब्राहम्ण” या ”प्राउड टू बी हिंदू” लिखवाना शुरु किया। अब ये जो उपलब्धि है ब्राहम्ण होना, जिस पर उन्हें गर्व है, वो गर्व किस चीज़ का है, ये समझ नहीं आता। ब्राहम्ण होने के लिए कोई परीक्षा होती, तो आज खुद को ब्राहम्ण कहने वाले 80 प्रतिशत को उसमें फेल हो जाना था। पर फिर भी दलितों का दमन करने में जो मज़ा है, उसका कोई जोड़ नहीं। और समय-समय पर ये काम करते ही रहते हैं, जिसमें पुलिस प्रशासन पूरी मुस्तैदी से अपना पूरा योगदान देता है। 

पर ये जो फुले, पेरियार, अंबेडकर, शाहू जी महाराज, और अन्य दलित अधिकारों के प्रण्ेाता रहे, उन्होने सब गड़बड़ कर दिया। 



अब ये दलित मनुस्मृति मानने से मना कर दे रहे हैं, बताइए, इनकी इतनी हिम्मत। ये लोग इतने शक्तिशाली हो गए हैं कि जब इन यादव जी का थोड़ा सा अपमान किया गया, वो भी सिर्फ इन्हें सबक सिखाने के लिए, इनके बाल मूंड दिए गए, इनके उपर पेशाब का छिड़काव किया गया, तो इनकी इतनी हिम्मत हो गई, कि इन्होने इसके खिलाफ आवाज़ उठाई। बताइए, एक तो इन पर ये अहसान किया गया, कि इन्हें बस थोड़ा सा अपमान करके बक्श दिया गया, जान से नहीं मारा गया, और इस अहसान का बदला ये इस तरह चुका रहे हैं कि पुलिस में रिपोर्ट कर दिया। 

अब इस देश में ब्राहम्णों के लिए बहुत मुश्किल समय आ गया है। ये दलित रोज़ ब रोज़ ब्राहम्णों का अपमान कर रहे हैं। संसद में पहंुच जा रहे हैं, जज बन जा रहे हैं, और चिंता ये है कि आने वाले समय में अगर सच में जाति जनगणना हो गई, तो देश के ज्यादातर संसाधनों पर ये अपना हक़ मांगने लगेंगे। हो सकता है कि इसके बाद कोई सवर्ण प्रधानमंत्री ही ना बन पाए। सवर्णों को खासतौर पर ब्राहम्णों के लिए खतरे की घंटी बज चुकी है, भाजपा ने बहुत कोशिश की, लेकिन अब तो वो भी घिरती नज़र आ रही है। बाबा जी, अब आप ही बताइए, क्या किया जाए। शास्त्र क्या कहते हैं। वेद क्या कहते हैं। अब तो कतई कलयुग आ गया, क्या ब्राहम्णों को दलितों के साथ, शूद्रों, और आदिवासियों के समकक्ष समझा जाएगा। हाय, हाय, ये क्या हो गया है, हाय हाय ये क्या हो रहा है। 



एक कवि हुए गोरख पांडे, कह गए कि



उसको रोटी-कपड़ा चाहिए

बस इतना ही नहीं

उसे न्याय भी चाहिए

इस पर से उसको सचमुच आजादी चाहिए

उसको फांसी दे दो

वो कहता है कि उसे हमेशा काम चाहिए

सिर्फ काम ही नहीं

काम का फल भी चाहिए

काम और फल पर बेरोक दखल भी चाहिए

उसको फांसी दे दो।

वो कहता है कोरा भाषण नहीं चाहिए

झूठे वादे हिंसक शासन नहीं चाहिए

भूखे नंगे लोगों की जलती छाती पर

नकली जंनतंत्री सिंहासन नहीं चाहिए

उसको फांसी दे दो

वो कहता ह ैअब वो सबके साथ चलेगा

वो शोषण पर टिकी व्यवस्था को बदलेगा

किसी विदेशी ताक़त से वो मिला हुआ है।

उसकी इस गद्दारी का फल तुरत मिलेगा

आओ देशभक्त जल्लादों

पूंजी के विश्वस्त पियादों

उसको फांसी दे दो।


ये जो जाति जणगणना की बात है, ये जो लोग इस देश में सबकी समान भागीदारी चाहते हैं, वे सब दरअसल ब्राहम्णों के सनातन अधिकार को खत्म कर देना चाहते हैं, वे समानता वाली व्यवस्था चाहते हैं, वो तो ये चाहते हैं कि ये देश, ऋषि मुनियों का ये देश, अपनी दलितों पर अत्याचार की सनातन व्यवस्था को छोड़ दे, आप ये समझ लो कि अगर राहुल गांधी की जिद पर जाति जनगणना हो गई, तो दोस्तों ये दलित फिर इस देश में अपना हिस्सा मांगेगे, और लिए बिना बाज नहीं आएंगे। असल में बाबा जी की, सारे ब्राहम्ण समाज की, और सर्वणों की यही सबसे बड़ी चिंता है। 


ग़ालिब मुझे इसीलिए पसंद हैं। खुद मिर्ज़ा थे, लेकिन इस मौके के लिए भी उन्होने एक शेर लिख मारा......

सुनिए ज़रा ध्यान से


बरहमन कौन है ये कैसे पता चलता है

ग़ालिब को संस्कृत नहीं आती थी इसलिए ब्राहम्ण को बरहमन कहते थे। 


बरहमन कौन है ये कैसे पता चलता है

ज़रा सा ऐंठ कर चलते हैं, उन्हें मुगालता है।


बाकी जात को बेशक मत मानिए, पर अपनी जाति पर गर्व करते रहिए। यही सच्चा असली और शुद्ध देसी घी वाली प्रगतिशीलता है। जातिवाद से मुकाबला तभी हो सकता है, जब नीची जातियां सवर्ण जातियों की प्रभुता को स्वीकार कर लें। अगर आपको भी अपनी जाति पर गर्व है, और आप भी ये मानते हैं कि भारत में जातिवाद नहीं है, तो आप भी प्रगतिशीलता की उच्चावस्था को स्वीकार कर चुके हैं। बाकी जो है वो हैये है। 

नमस्कार। 



शनिवार, 28 जून 2025

वर्तमान वैश्विक युद्ध में हमारी भूमिका

 




ये जो युद्ध चल रहा है, या बंद हो चुका है, या बंद होते हुए भी चल रहा है, यही इस्राइल -ईरान वाला। जिसके सीज़फायर का बिल भी डोलान्ड बाबू ने अपने नाम पर फाड़ लिया है। यही युद्ध, काफी ख़तरनाक युद्ध है। अब ये बेकार की बात है कि किसने युद्ध शुरु किया, और किसका कितना नुक्सान हुआ। असली सवाल जो हम जैसे भारतप्रेमियों को, देशप्रेमियों को पूछना चाहिए कि हमारा इस युद्ध में क्या और कैसा रोल रहा। हमने इस युद्ध में क्या किया, और अब हम क्या करेंगे या कर सकते हैं। 

नमस्कार, मैं कपिल, हालांकि ईरान-इस्राइल युद्ध के बारे में मुझे इतनी ही जानकारी है, जितनी हमारे प्रधानमंत्री को होगी, हो सकता है थोड़ा इधर-उधर हो जाए, लेकिन हमारे महामानव को जो जानकारी है, उनके अब तक के ज्ञान को देख कर, सुन कर समझ कर यही लगता है कि उनकी जानकारी मुझसे ज्यादा नहीं हो सकती। लेकिन खैर मैं अपने इस ज्ञान के भंडार को आपके साथ शेयर करना चाहता हूं। जैसा इस देश के तमाम ज्ञानी, विद्वान लोग कर रहे हैं। खासतौर पर हमारे देश के जो मीडिया चैनल हैं, उन्होेंने सबसे तेज़ और सबसे पहले होने की क़समें खा रखी हैं। अब जब ये मीडिया चैनल वाले यू ट्यूब देख कर, टिक-टॉक देख कर आपके सामने अपना ज्ञान परोस सकते हैं तो मैं क्यों नहीं, या आप ही क्यों नहीं। 

ज़रा सोशल मीडिया खोल कर देखिए, इस वक्त हर व्यक्ति ईरान-इस्राइल वॉर का विशेषज्ञ बना बैठा है, कोई आपको ईरान का इतिहास बता रहा है, कोई इस्राइल के बखिए उधेड़ने लगा हुआ है। लेकिन मैं आपको जो बताने जा रहा हूं, वो बहुत ही खास है। खास इस तरह है कि मैं आपना ज्ञान तो आपको दूंगा ही, साथ ही आपको ये भी बताउंगा कि इस युद्ध में, हमारा, यानी महामानव का क्या योगदान रहा, कि कहीं इतिहास में जब इस दौर की बातें लिखी जाएं तो महामानव के इन क़दमों को कहीं भुला ना दिया जाए। 


तो चलिए शुरु से शुरु करते हैं। हमारी सबसे बड़ी उपलब्धि ये रही कि जब पूरी दुनिया ढूंढ रही थी कि यू एस कहां है तो हमारे विदेश मंत्री ने बताया कि यू एस दरअसल यू एस ए में था। 







अब बताइए, इतनी महत्वपूर्ण जानकारी, वो चाहे किसी भी संदर्भ में दी गई हो, आखिरकार दुनिया के काम तो आई। दुनिया को पता चला कि यू एस आखिर यू एस ए में ही है। भई इतना ताकतवर देश और सिर्फ हमारे विदेश मंत्री को पता था कि वो आखिर है कहां। आखिरकार यही सूचना दुनिया के काम आई। 

जब इस्राइल ने ईरान पर पहला हमला किया, तो उन्होने मोदी जी को फोन किया था। आप उस फोन के बारे में नहीं जानते हैं, नेतन्याहू ने मोदी जी को जानकारी दी कि उन्होने ईरान पर हमला कर दिया है। हालांकि मुझे अब तक ये पता नहीं चल पाया है कि मोदी जी ने उसे क्या कहा, किस ज़बान यानी भाषा में दोनो की बात हुई, मोदी जी के द्वारा जो पता चला वो यही कि मोदी जी ने नेतन्याहू को अपनी चिंताएं बताईं, और इलाके में जल्द से जल्द शांति और स्थाईत्व की बहाली की बात कही। मोदी जी इस सलाह या आदेश इसे आप जो भी समझें, को मानकर आखिरकार नेतन्याहू ने 12 दिनों के बाद सीज़फायर की बात, चाहे आधी -अधूरी ही सही मान ली। 



अब बात रही डोलान्ड द्वारा सीज़फायर की, तो मितरों, आखिर डोलान्ड बाबू को ये सीज़फायर का आइडिया दिया किसने। भारत - पाकिस्तान वॉर से पहले डोलान्ड बाबू ने कितना ही फूं-फां किया हो, किस वो रूस-यूक्रेन की वॉर रुकवा देगा, लेकिन रुकवा नहीं पाया, उसने कहा कि वो अमेरिका के सामने पूरी दुनिया को घुटनों पर ला देगा, नहीं ला पाया, उसने कहा कि वो अमेरिका को फिर से महान बना देगा, नहीं बना पाया। यानी वो जो-जो भी काम करना चाहता था, वो उसका धेला भर भी नही ंकर पाया, उसके मस्क जैसे दोस्त उसका साथ छोड़ गए, तब जी हां तब, उसका डीयर फ्रेंड मोदी ही उसके काम आया। 



आपको शायद याद ना हो, यही मोदी था जिन्होने टरम्प को अमेरिका में चुनाव जितवाया था।

और यही मोदी था जिसने आखिरकार डोलान्ड को मौका दिया कि वो दुनिया में कहीं किसी जगह दो देशों के बीच युद्ध विराम या सीज़फायर करने का ठेका ले सके। भारत पर हमला आतंकवादी हमला हुआ, और मोदी सरकार ने पाकिस्तान पर ऑपरेशन सिंदूर कर दिया। तब ये डोलान्ड ही था, जिसने एक दिन सुबह-सुबह ये घोषणा कर डाली कि उसने भारत -पाकिस्तान के बीच सीज़फायर करवा दिया है। 



और ये कहके उसने नोबेल शांति पुरस्कार की तरफ एक क़दम बढ़ा दिया, और इस तरह उसे ये समझ में आया कि अगर उसे नोबेल शांति पुरस्कार चाहिए तो उसे कुछ बड़ा करना होगा। कुछ ऐसा कि दुनिया की समझ में आए कि वो कितना महान प्रेसीडेंट है। इसलिए जबसे इस्राइल ईरान वॉर शुरु हुई वो तबसे इसी कोशिश में था कि वो किसी तरह डरा-धमका कर, थोड़ा समय लेकर, थोड़ा इधर-उधर करके वहां सीज़फायर करवा दे। आखिरकार उसे मौका मिला और उसने ईरान-इस्राइल में सीज़फायर की घोषणा कर दी। अब आप ये पूछेंगे कि इसमें भारत यानी मोदी का क्या हाथ था। तो मेरे दोस्तों, पहले तो डोलान्ड बाबू को आइडिया ही भारत-पाक वॉर से मिला, दूसरे नेतन्याहू को शांति की बहाली का आदेश देकर, नींव तो सुपरमैन मोदी पहले ही रख चुके थे, डोलान्ड ने तो सिर्फ उस पर रंदा फिराया है। इस तरह पूरी दुनिया के सामने चाहे यही हो कि सीज़फायर मोदी ने करवाया है, पर असल सीज़फायर महामानव ने करवाया है। जैसे भारत-पाक का सीज़फायर चाहे पूरी दुनिया की निगाह में डोलान्ड ने करवाया हो, लेकिन असल में ये सीज़फायर मोदी ने करवाया है। बस वो अपनी जबान से नहीं बोल रहे कि ये सीज़फायर उन्होने करवाया है। इस तरह उन्होने डोलान्ड के दिल में अपने लिए एक परमानेंट सीट रिजर्व करवा ली है। 

यूं महामानव चाहते तो एक फोन कॉल से ईरान-इस्राइल वॉर भी रुकवा ही सकते थे, लेकिन उन्होने जानबूझ कर ऐसा नहीं करवाया, क्योंकि तब उन्हें रथयात्रा में शामिल होने का मौका नहीं मिलता। हालांकि अपने पूरे शासनकाल में पहली बार उन्होने रथ यात्रा में हिस्सा लिया है जबकि ये रथयात्रा हर साल आयोजित होती है। लेकिन आप ही सोचिए, आप देश में ही हों, और रथयात्रा का आयोजन हो, तो ऐवें ही उसमें शामिल हो जाने में क्या ही मजा होगा। असली मजा तो तब है जब आप कहीं विदेश में हों, और वापिस आकर रथयात्रा में शामिल हों, और ये कह सकें कि देखिए रथयात्रा के लिए विदेश यात्रा तक छोड़ दी। एक बात आ जाती है उसमें, वो यूं ही रथयात्रा में शामिल होने वाली बात नहीं होती। 


अब इससे आपको समझ में आया होगा कि डोलान्ड के साथ सिर्फ मुनीर ने खाना क्यों खाया। हमारे महामानव ने उसे मना कर दिया था। बताइए इसके बाद डोलान्ड के पास क्या चारा बचता है, आखिर इतने बड़े देश का राष्टपति, अकेले तो खाना खा नहीं सकता था, मोदी ने मना कर दिया। इसलिए आखिरकार उसने हताश होकर मुनीर को बुलाया और उसके साथ खाना खा लिया। जय हो महामानव की जय हो।

देश के विपक्षी दल, वामपंथी और ये कथित प्रगतिशील पूछ रहे हैं कि ईरान-इस्राइल में हमारी यानी देश की क्या भूमिका थी। तो गिन लीजिए कि हमने ईरान-इस्राइल युद्ध में क्या-क्या हासिल किया है ताकि सनद रहे।


1. युद्ध शुरु होते ही नेतन्याहु ने मोदी को फोन करके आर्शिवाद लिया, लेकिन मोदी ने उसे साफ-साफ बता दिया कि वो इलाके में शांति चाहते हैं। मोदी की बात को मानते हुए नेतन्याहु ने बारह दिन बाद उनके दोस्त डोलान्ड के सीज़फायर को मान लिया। हम विश्वगुरु हुए। 

2. डोलान्ड से पैंतीस मिनट फोन पर बात की, और वो भी उसके आग्रह पर की, जिसमें उसे डांट दिया कि वो भारत-पाक के सीज़फायर की बात ना करे। डोलान्ड इस बात को नहीं माना और उसने शाम को फिर कह दिया कि उसने भारत पाक के बीच सीज़फायर करवाया। उसकी इस धृष्टता के लिए उसे क्षमा कर दिया। हम क्षमावाान हुए। छिमा बड़ेन को चाहिए छोटन को उत्पात। 

3. अमेरिका ने इस बीच अपने लोगों में ये एडवाइज़री जारी कर दी कि अकेलिी महिलाएं भारत की यात्रा ना करें कि यहां रेप हो सकता है। राजस्थान से खबर है कि उदयपुर में एक फ्रांसिसी महिला के साथ बलात्कार हुआ है, इस तरह हमने इस बात को भी सच्चा साबित कर दिया और एक बार फिर पूरी दुनिया में भारत का डंका बजा। हम अपने मन के मालिक हुए, हमें कोई नहीं रोक सकता।

अब सारे फायदे मैं ही थोड़े गिनाउंगा.....अरे भई कुछ जिम्मेदारी तो आप भी लीजिए, और इन कांग्रेसियों को, वामपंथियों को मुंहतोड़ जवाब दीजिए। कमेंट में ईरान-इस्राइल युद्ध में भारत की भूमिका पर कमेंट कीजिए, ताकि पता चल सके कि हम कितने महान देश हैं। 


चचा ग़ालिब माफ कीजिएगा, इन बातों को बहुत पहले से जानते थे, उन्होने बहुत सारे शेर लिखे हैं। एक शेर इस बाबत भी लिखा है, आप मुलाहिजा फरमाइए।


वो कह गए हैं कि

ईरान वॉर पे कभी तुम हमसे पूछना ग़ालिब

हम खुल के बताएंगे क्या हमने किया हासिल


ग़ालिब ने जब ये शेर लिखा था तो उनका मूड खराब था, इसलिए बहुत अच्छा नहीं बन पड़ा, लेकिन उन्होने हमसे वादा किया था, कि अगली बार कोई अच्छा शेर सुनाएंगे।


आप सिर्फ वीडियो मत देखिए, लाइक, कमेंट और शेयर भी कीजिए, ताकि दूसरों तक भी महामानव उर्फ देश की उपलब्धियां पहुंच सकें। फिर मिलते हैं, तब तक के लिए नमस्ते।


बुधवार, 25 जून 2025

झोला - फकीर और परदेस का चस्का




नमस्कार, फिर से कपिल के साथ। देखिए विश्वगुरु जब भी विदेश यात्रा पर निकलते हैं, हमारे देश के ही कुछ फुटकर वामपंथियों, स्वतः स्फूर्त देशप्रेमियों, तथाकथित प्रगतिशीलों की छाती पर सांप लोटने लगते हैं। इस बार जब जी सेवन में महामानव को निमंत्रण नहीं मिला, तो देश भर में शोर मचा दिया कि देखो, किसी ने बुलाया तक नहीं, और जब आखिरी मिनट बुला ही लिया, तो अब शोर मचा रहे हैं कि ये बुलाना भी कोई बुलाना है। आखिर तुम मोदी जी को दो मिनट चैन की सांस, लेने दोगे या नहीं। 


तो महामानव अभी तीन देशों की यात्रा पर निकले हुए हैं। परदेस उन्हें बहुत भाता है, इसलिए वो जल्दी-जल्दी झोला उठाकर चल देते हैं। वैसे भी फकीर आदमी हैं, और फकीर के पांव में चक्कर होता है, बस दो ही लोगांे ने पूरी दुनिया की इतनी यात्रा की है आज तक, एक हवेनसांग  और एक मोदी जी, और भाइयों हवेनसांग की यात्रा भी कोई यात्रा थी भला। मोदी जी तीन चौथाई दुनिया की यात्रा कर चुके हैं। मार्क ट्वेन ने कहा था, ”सीखने के लिए यात्रा करना जरूरी है” मोदी जी मार्क ट्वेन को झूठा साबित कर चुके हैं। एमिल जोला ने कहा, ”जैसी बुद्धिमता यात्रा से बढ़ती है, किसी और चीज़ से नहीं” मोदी जी एमिल जोला को भी झूठा साबित कर चुके हैं। लेकिन उन्होने लाओ त्सू के इस कथन को सच्चा साबित किया है कि, ”यात्रा के लिए किसी योजना की जरूरत नहीं होती”। इसी कथन के सहारे मोदी जी विश्वगुरु बन, बिना किसी योजना के पूरी दुनिया की सैर को निकल जाते हैं। 


अभी देखा कि कोई अभय दुबे हैं, पत्रकार -फत्रकार हैं, कह रहे थे कि पूरी दुनिया का कोई प्रधानमंत्री विदेश यात्रा पर नहीं गया है, मोदी जी तीन-तीन देशों की यात्रा कर रहे हैं।


अब कोई समझाए इन्हें, दुनिया में कोई मोदी जी जैसा है ही नहीं। अरे दुनिया क्या आप पूरे ब्रहमंाड को देख लो। कोई है मोदी जैसा, अमेरिका जैसे देश का राष्टरपति, डोलान्ड, आत्ममुग्धता में भले की मोदी जी से बीस हो, लेकिन खुद को ईश्वर का अवतार तो उसने भी अभी तक नहीं बताया है। वो क्या खाकर हमारे नॉनबायोलॉजिकल, अवतार-ए-ईश्वर से तुलना करेगा। कहां मोदी, कहां डोलान्ड। ऐसे मुश्किल वक्त में जब पूरी दुनिया पर युद्ध का खतरा मंडरा रहा हो, तो बताइए, विश्वगुरु, अवतारी पुरुष, स्वयं को ईश्वर मानने वाले मोदी जी, विश्व यात्रा ना करें तो क्या करें। अब देखिए भारत में जो हादसे थे, वो तो उन्होने मना लिए, अहमदाबाद में जहा प्लेन क्रैश हुआ था, वहां उन्होने फोटुएं खिचवा लीं। उत्तराखंड जाने का उन्हें मौका ना मिला, वरना वहां भी फोटू खिंचवा लेते। ऐसे में फोटो खिचवाने का मौका पैदा करना जरूरी था। 


एक और वीडियो चल रहा है, मोदी जी को बदनाम करने का, वहां जी सेवन में जहां दुनिया भर के नेता लोग मंच पर खड़े हैं, वहां मोदी जी नहीं दिखते। अब इसे भी आपको समझाना पड़ेगा क्या। अरे उस मंच पर खड़े हुए सारे राष्टराध्यक्ष दोयम दर्जे के थे। आप देखिए एक कमजोर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, सबके बीच खड़े थे, भीड़ में। मोदी जी को आप ऐसा कमजोर समझते हैं कि वो भीड़ में खड़े होंगे। अरे मोदी जी, मोदी जी हैं, वो इन सबके साथ भीड़ में खड़े होकर फोटू ख्ंिाचवाएंगे। अबे जाओ। मोदी जी का जब भी फोटू खिचेगा, अकेले में खिंचेगा, जिसमें फोकस सिर्फ मोदी जी पर होगा। और अगर कोई और कैमरा के सामने आया, तो मोदी जी उसे बाजू पकड़ कर साइड कर देंगे। समझे।


इसलिए आपको जी सेवन वाले फोटू में मोदी जी नहीं दिखाई देते। और आप समझते हैं कि इससे भारत का अपमान होता है। अजी जाइए। 


आपको शायद पता नहीं है, डोलान्ड जो मित्र हैं मोदी जी के। जल्दी से निकल लिए, बिना मोदी से बात किए। फिर उन्हें डर लगा। तो उन्होने मोदी से फोन पर बात करने का आग्रह किया। 



अब आपको मैं समझाता हूं कि टरम्प ने मोदी जी से आग्रह क्यों किया। एक्चुअली, टरम्प डर गया। वो डर गया, कि मोदी जी, जिन्होने युक्रेन और रशिया की वार रुकवा दी थी, वो कहीं, इज्राइल और ईरान की वार ना रुकवा दें। 


याद है ना आपको। जब मोदी जी एक फोन कॉल पर युक्रेन वॉर रुकवा सकते हैं, तो बताइए, वो वहां पहुंच कर क्या नही ंकरवा सकते। ईरान-इज्राइल वार को मोदी चाहे ंतो चुटकी बजा कर रुकवा सकते हैं। इसलिए उनके डीयर फ्रेंड डोलान्ड ने उनसे फोन पर बात करने का आग्रह किया। और ये आग्रह किया तो हम डोलान्ड की इज्जत बचाने के लिए कह रहे हैं, वो तो बकायदा गिड़गिड़ाया होगा, कि मोदी जी, प्लीज, प्लीज मुझसे बात कर लो। और फिर मोदी जी ने शान से बात की। अब फोन पर पता नहीं क्या बात हुई। पर हम सोच ही सकते हैं कि क्या बात हुई होगी। डोलान्ड ने कहा होगा, प्लीज मोदी जी, आप ईरान-इज्रराइल के झगड़े में मत पड़ना, आपको मेरी फ्रेंडशिप का वास्ता। मोदी जी ने पहले तो अपनी लाल आंखें दिखाई होंगी, फिर अपनी तेज़ आवाज़ से उसे डराया होगा, फिर दोस्ती की दुहाई पर पिघल गए होंगे। भोले हैं अपने मोदी जी, दया आ गई होगी इन्हें। इन्होने कहा होगा, जा, जी ले अपनी जिंदगी। और इसलिए उन्होने इरान-इज्राइल वॉर नहीं रुकवाई। तब जाकर टरम्प ने राहत की सांस ली होगी। आप क्या समझेंगे इस महान आत्मा की कारगुजारी को। 


अब आते हैं दूसरे मसले पर। एक और वीडियो वायरल है, जिसमें मोदी बिना प्रॉम्पटर के कुछ बोल नहीं पा रहे हैं। वो एक्चुअली उन्हें साइप्रस का ”गेंड काकरडश्र आूाकदयोा” सम्मान मिला। 



ऐसे में आप बताइए, जब आपको कोई सम्मान मिलता है, वो भी किसी दूसरे देश में, ऐसे हालात में जब आपने उसके लिए कुछ किया भी ना हो, तो आप भी तो नर्वस होते होगे। मोदी जी थोड़ा नर्वस हुए तो इसमें बुरी बात क्या है। वो कुछ ऐसा-वैसा नहीं बोलना चाहते थे, इसलिए उन्होने सर्तकता बरती और पूरे समय मुहं नीचे करके बोलते रहे। ये उनकी महानता का, महान विनम्रता का ही सबूत है। इसे आप उनकी मूर्खता का प्रमाण मत समझिए, विनम्र आदमी ऐसा ही होता है, वो जब अवार्ड लेता है, तो ऐसे ही आंखे नीची करके बोलता है। 

मोदी जी की विद्वता को आप नहीं समझेंगे, वो मैं आपको समझाता हूं, आप किसी भी विदेशी नेता के साथ उनका वार्तालाप देखिए, वो उन्हीें की भाषा में एक चुटकुला सुनाते हैं, और फिर ठठाकर हंसते हैं। मोदी जी कमाल हैं। भारत में भी वो तामिलनाडू में वणक्कम बोलते हैं, बगंाल में बंगाली, लखनउ में लखनवी अंदाज में बात करते हैं, और बिहार में अंग्रेजी बोलते हैं। 

इसी तरह जब वो विदेश जाते हैं, तो वहां भी एक कनेक्शन जोड़ लेते हैं। उन्हीं की भाषा में उन्हें एक चुटकुला सुनाते हैं, और फिर खुद ही हंस पड़ते हैं। 


दोस्तों, इस समय पूरी दुनिया को मोदी जी की जरूरत है। सारी दुनिया मोदी जी को आंखे फाड़ कर देख रही है। ये सही है कि उनके प्रिय मित्र डोलान्ड ने आसिफ मुनीर को खाने पर बुलाया, लेकिन वो सिर्फ इसलिए कि उसे डांट सके, कि वो उनकी और मोदी जी की दोस्ती के बीच आने की कोशिश ना करे, आखिर मोदी और डोलान्ड का रिश्ता बहुत पुराना है। जाने ये रिश्ता क्या कहलाता है। पर रिश्ता, रिश्ता होता है। नेतन्याहू ने भी मोदी जी से बात की है कि वो उनके ही पक्ष में रहें। मोदी जी की बात सब मानते हैं। इस वक्त पुरी दुनिया को मोदी जी की सलाह की जरूरत है, इसलिए जी सेवन में मोदी जी को बुलाया गया है, ताकि वे दुनिया को सही सलाह दे सकें। अपनी सलाहों से और कामों से जिस तरह मोदी जी ने पूरे भारत का पूरी दुनिया में डंका बजाया है, खुद भारत भर में मोदी जी के कामों का डंका बज रहा है। और आप जानते ही हैं कि डंका, डंका होता है, वो एक बार बजना शुरु होता है तो बस बजता चला जाता है। 

हमें एक भारतीय होने के नाते, मोदी जी के इस विश्वरूप को स्वीकार करना चाहिए। मैं देख रहा हूं कि अब भी भारत में महामानव मोदी की आलोचना करने वाले मौजूद हैं, बावजूद इसके कि कई देशद्रोहियों को सालों बिना किसी टायल के जेलों में सड़ाया जा रहा है, लोग मोदी जी की आलोचना करने से बाज़ नहीं आ रहे हैं। 

अपने इस वीडियो में मैं आपसे अपील करता हूं कि मोदी जी के विश्वगुरु वाले रूप को स्वीकार करें, वरना देख लीजिए राहुल गांधी और सोनिया गांधी भी लपेटे में आ ही चुके हैं, रवीश कुमार अभी कुछ दिन और आज़ादी की सांस ले लें, कुछ ही दिनों में उन पर भी ई डी का छापा पड़ सकता है, आप अपनी खैर मनाइए। 


चचा ग़ालिब के इस शेर का मुलाहिजा फरमाइए



गर हो सके तो कैमरे का लैंस देख ले

लपेट रहे हैं हम, तू जी भर के फेंक ले


और आप समझ लीजिए, इस वीडियो को लाइक करना, सब्सक्राइब करना देशभक्ति का सबूत होगा। शेयर करने पर कुछ ही दिनों में अच्छी खबर भी मिल सकती है। बाकी आपकी मर्जी है। फिर मिलता हूं, नमस्ते। 




मोदी की कोई ग़लती नहीं है।

 







कोई पत्थर से ना मारे, मेरे दीवाने को..... ये गाना है मशहूर फिल्म लैला -मजनूं का। अब ये गाना गाकर मैं आपको कोई फिल्मी दास्तान नहीं सुनाने वाला हूं। दरअसल, ये गाना मुझे तब याद आता है जब मैं एक्सीडेंटली, कोई न्यूज़ चैनल खोल कर देखता हूं। बेचारे पत्रकार, क्या ही बुरा दौर है जब इन एंकरों को पत्रकार कहना पड़ रहा है, कोई पत्थर से ना मारे, जिसका दीवाना हूं मैं। यानी प्लीज़ मोदी जी की कोई आलोचना मत करो। 
नमस्कार, मैं कपिल एक बार फिर से आपके साथ हूं। यानी सामने हूं। तो मामला ये है कि ई डी, सी बी आई, पुलिस, खुद गृहमंत्री और अन्य एम एल ए, एम पियों की धमकियों के बावजूद, कोर्टस् द्वारा बेबात की सज़ाओं के बावजूद, लोग बाज़ नहीं आ रहे। प्रधानमंत्री की आलोचना करते जा रहे हैं। लगातार करते जा रहे हैं। बिना रुके करते जा रहे हैं। अरे तुम लोगों में इंसानियत नाम की कोई चीज़ है कि नहीं। बेचारे प्रधानमंत्री को तुमने चारों तरफ से घेर लिया है।



अभी टरम्प ने जी सेवन से जाने के बाद हमारे प्रधानमंत्री से विशेष आग्रह पर पूरे पैंतीस मिनट, याद रखिए दोस्तों, पूरे पैंतीस मिनट, जो आधे घंटे से पांच मिनट ज्यादा होता है। यानी तीस मिनट के बाद और पांच मिनट तक मोदी ने अमेरिका के राष्टरपति, जो हमारे महामानव के डीयर फरेंड भी हैं, उनसे बात की। बताइए, अमेरिका का राष्टरपति हमारे महामानव से पैंतीस मिनटों तक बात करता रहा, वो भी फोन पर। अब ये इतना महत्वपूर्ण संदर्भ है कि इस पर कई पोस्टर आ चुके हैं, 
पोस्टर पैंतीस मिनट का पोस्टर
भारत के विदेश सचिव ने बकायदा एक वक्तव्य दिया है। इस लगभग पांच मिनट के वक्तव्य में उन्होने मोदी और टरम्प की पैंतीस मिनट की फोनकॉल की दो बातों पर खास ज़ोर दिया है। 


एक ये बात राष्टरपति टरम्प के आग्रह पर हुई। यानी हमारे महामानव तो नहीं चाहते थे, जबकि उनके डीयर फरेंड डोलान्ड ने उनसे विशेष आग्रह किया तो हमारे प्रधानमंत्री इस टेलीफोनिक बातचीत के लिए माने। 
दूसरी जो महत्वपूर्ण बात है वो ये कि ये बातचीत पैंतीस मिनट तक चली। याद रखिएगा दोस्तों, पैंतीस मिनट, पैंतीस मिनट, पैंतीस मिनट। 




दोस्तों आप को एक बार फिर बता दूं कि पैंतीस मिनट में तीस से पांच मिनट ज्यादा होते हैं, आसान भाषा में ये बातचीत आधे घंटे से ज्यादा चली। 



बाकी बातचीत क्या हुई, इस बारे में तो हमें मिसरी जी का भरोसा ही करना पड़ेगा, क्योंकि ये बातचीत क्या हुई, वो या तो मोदी जानते है, या टरम्प जानते होंगे, या फिर ईश्वर ही जानता होगा। 
अब मिसरी जी ने हमें बताया कि इस बातचीत में मोदी ने डोलान्ड को साफ - साफ कह दिया कि इस पूरे मामले में कभी भी, ना तो कोई टरेड डील की बात हुई, ना ही भारत-पाक के बीच मध्यस्थता की बात हुई। मिसरी जी ने, जैसा कि उनकी टरेनिंग है, बहुत विश्वास के साथ, शब्दों पर ज़ोर देकर ये वक्तव्य दिया, ताकि उनका वक्तव्य विश्वसनीय हो जाए। इसके बाद तमाम मीडिया ने इसे उठा लिया, और इस फोन की बातचीत को एंकर प्वाइंट बना कर महामानव के आलोचकों से भिड़ गए। ये तो होना ही था। गड़बड़ तब हुई जब शाम को ही खुद डोलान्ड बाबू ने एक बार फिर कह दिया कि, ”मैं ने वॉर रुकवा दी” 
और वो यहीं तक नहीं रुका, उसने एक बार फिर कह दिया कि, ”अब मैं टरेड डील करूंगा” 

उसने आगे भी कहा कि, ”वो दोनो, यानी इंडिया और पाकिस्तान, तो लड़ रहे थे। मैं ने वॉर रुकवा दी।” 

अब देखिए भाई, आप टरम्प को कुछ कहने से रोक नहीं सकते। उसने कह दिया, वो लगातार कह रहा है, कि उसने वार रुकवा दी, उसने टेड की धमकी देकर वॉर रुकवा दी। उसने तो ये तक कह दिया कि वो पाकिस्तान को प्यार करता है। वो तो जी सेवन से मोदी से मिले बिना चला गया और जाकर आसिफ मुनीर के साथ उसने खाना खा लिया। अब टरम्प को तो कोई रोक नहीं सकता। कम से कम मोदी जी तो नहीं ही रोक सकते। लेकिन हमारे यहां के लोग, ये अहसान फरामोश लोग, जिनके लिए मोदी जी ने इतना- इतना कुछ किया। रेलवे स्टेशन पर चाय बेची, फिर घर से भागकर भीख मांग कर गुज़ारा चलाया। अडवाणी जी की डिजिटल फोटो को ई-मेल से दिल्ली भेजा, अपनी बसी बसाई गृहस्थी छोड़ दी, इसी बीच किसी तरह एंटायर पोलिटिकल साइंस में एम ए किया। देश पर अहसान करते हुए पी एच डी नहीं किया बस। इतना कुछ किया मोदी जी ने इस देश के लिए, ताकि देश के लोग उनका अहसान मानें। लेकिन ये लोग कुछ समझते ही नहीं हैं। 
ये लोग फिर से मोदी जी के पीछे पड़ गए। यार कुछ तो सिम्पैथी रखो यार मोदी जी के लिए। मैं आपको पक्का बता रहा हूं, कि मोदी जी ने टरम्प से ये बात की होगी कि, माई डीयर फरेंड डोलान्ड, ये तुम इंडिया-पाकिस्तान की वॉर रुकवाने की बात करना बंद करो। टरम्प ने कहा होगा, ठीक है, अब नहीं कहूंगा। तो मोदी जी ने मिसरी जी को कह दिया होगा कि चलो दे दो स्टेटमेंट, कि ना तो टरेड डील की बात हुई, ना मध्यस्थता की बात हुई। लेकिन टरम्प ने मोदी जी को धोख दे दिया। उसी शाम को फिर से यही दोहरा दिया। 



अब जिनके भी दोस्त हैं, धोखेबाज दोस्त हैं, वो इन धोखेबाज़ दोस्तों की फितरत जानते ही हैं। 
लेकिन आप, मेरे भारत के बहनो भाइयों, मोदी जी के मितरों.....आप तो समझदार बनो। क्या यही आपकी इन्सानियत है, आप मोदी जी को ज़रा तो मौका दो, ज़रा सा उन्हें सांस लेने दो। उस आदमी ने, माफ कीजिएगा, ज़बान फिसल गई, महामानव ने कितनी मेहनत की है, कितने त्याग किए, कैसे - कैसे प्रयत्न किए हैं, आपको क्या मालूम, इस पैंतीस मिनट की फोन कॉल के लिए। उन्होने पता नहीं क्या - क्या प्रयास करके जी सेवन का इन्वीटेशन हासिल किया, जब वो प्लेन से उतरे तो उन्हें रिसीव करने के लिए एक छुटके नेता को भेज दिया गया, कारपेट तक नहीं बिछाया गया। 

एक प्रधानमंत्री का, वो भी नॉनबायोलॉजिकल प्रधानमंत्री के इतने बड़े अपमान को महामानव, थूक के साथ गटक गए। इसके बाद फोटो सेशन, जो महामानव का सबसे पसंदीदा शगल है, उसमें भी उन्हें शामिल नहीं किया गया। 

इसे भी मोदी ने जब्त कर लिया। फिर उनसे मिले बिना टरम्प निकल लिए। लेकिन महामानव ने एड़ी-चोटी का ज़ोर लगाकर कोशिश की और आखिरकार, टरम्प के साथ फोन से बात करने में वो सफल हो ही गए। महामानव के इतने प्रयासों को आप कोई महत्व नहीं दे रहे हैं, और टरम्प के एक छोटे से बयान पर आप उनकी आलोचना कर रहे हैं। 
अरे कुछ तो इन्सानियत रखो यार। 
महामानव देश के पी एम हैं, और देश के पी एम को इतनी छूट तो मिलनी चाहिए कि वो जब किसी से फोन पर बात करे, तो उसकी बात का यकीन किया जाए, और अगर इसके बाद उसकी बात झूठ निकले तो उस पर बात ना की जाए, या कम से कम उसकी आलोचना ना की जाए। 
माना कि पाकिस्तान के साथ युद्ध में सबसे पहले अमेरिका ने कहा कि सीज़फायर हुआ है।
माना कि टरम्प ने ये तक कह दिया कि उसने सीज़फायर के लिए भारत को टरेड की धमकी दी थी।
माना कि टरम्प ने ये तक कह दिया था कि उसने भारत पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता की।
माना कि हमने आज तक सार्वजनिक तौर पर, खुले में अमेरिका से ये नहीं कहा कि ऐसा नहंी हुआ था। 
माना कि प्रधानमंत्री ने कहीं ये बयान नहीं दिया, दबी जुबान भी ये नहीं कहा कि टरम्प जो कह रहा है वो ग़लत कह रहा है।
फिर भी, मेरा मतलब फिर भी, जैसा भी है, वो आपका प्रधानमंत्री है, महामानव है। उसकी आलोचना मत करो यार। कुछ तो इन्सानियत रखो। 

कुल मिलाकर मामला ये है कि ग्रह कुछ उल्टे चल रहे हैं। अभी महामानव का कुछ सीधा नहीं पड़ रहा, चीन गलवान दबाकर बैठा है, पाकिस्तान से दोस्ती कर ली। अमेरिका ने पाकिस्तान की मदद की, उसे दोस्त कह दिया, पूरी दुनिया में कोई दोस्त साथ नहीं आ रहा। और उपर से देश में भी तुम जैसे लोग उन्हें चैन नहीं लेने दे रहे।

चचा ग़ालिब ने कहा था

डंका जो बज रहा था, दुनिया में ए दोस्त
आवाज़ नहीं आई, क्या ढोल फट गया

ये शेर ग़ालिब ने एक बार नशे की हालत में लिखा था, हमें मिल गया तो आपको सुना दिया। मोदी जी सुनेंगे तो कहेंगे कि ये ग़ालिब ने नहीं कहा। लेकिन हमें पता है कि दुनिया में देश के डंके की बाबत ग़ालिब अपनी तीखी नज़र से देख कर ये शेर कह गए थे कि बवक्ते ज़रूरत काम आए। 

बाकी आपसे अनुरोध है कि ब्लॉग को सब्सक्राइब कर लें, इसे लाइक करें, अहसमति हो तो कमेंट करें, ना हो तो भी कमेंट करें। और हां, शेयर भी करें। ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग इस बात को समझें कि मोदी से सहानुभूति रखें, उनकी आलोचना ना करें, जैसे न्यूज चैनलों के एंकर लोग नहीं कर रहे। बाकी आपकी मर्जी, हम कोई सुप्रीम कोर्ट तो हैं नहीं कि आपको ये बताएंगे कि आपको क्या सोचना है। आप अपनी मर्जी के मालिक हैं। नमस्ते।











शुक्रवार, 20 जून 2025

हादसे ईश्वर की मर्ज़ी होते हैं

 

अभी हाल ही में एक भयानक हवाई हादसा हुआ। हालांकि भारत के प्रधानमंत्री हमें किसी और हादसे के परिप्रेक्ष्य में ये समझा ही चुके हैं कि ये हादसे दरअसल ईश्वर जनता को ये चेतावनी देने के लिए करते हैं कि जनता हर चुनाव में उन्हीं की पार्टी को वोट करे। 

खैर, विमान हादसा हुआ तो जाहिर है कि मासूम जनता ये सोचेगी कि भई इसकी जांच होगी, और हो सकता है कि कोई ऐसी बात निकल कर आए कि भविष्य में किसी हादसे से बचा जा सके। लेकिन हमारी मजबूत सरकार पहले से ही सब जानती है। इसलिए हमारे गृहमंत्री कहते हैं, साफ-साफ कहते हैं कि ये एक्सीडेंट है और एक्सीडेंट कोई रोक नहीं सकता। 

कुल मिलाकर मामला वही है जो मैं ने आपको पहले ही बताया था। जब ये चराचर जगत ईश्वर इच्छा से चल रहा है, तो जाहिर है ये हादसे भी ईश्वर इच्छा से ही होते हैं, और हमारी सिद्ध सरकार के मुखिया, उप-मुखिया, आदि ये अच्छी तरह जानते हैं कि ईश्वर की इच्छा के विरुद्ध कुछ भी करना, पाप होता है। इसलिए इस हादसे को, या इन हादसों को ईश्वर की इच्छा मानिए, और जांच-फांच की बेकार बातें करके, प्रधानमंत्री, गृहमंत्री आदि को परेशान मत कीजिए।

ज़रा सोचिए, मान लीजिए कि किसी हादसे की जांच होती है और कोई तकनीकी गड़बड़ी सामने आ जाती है। अब अगर तकनीकी गड़बड़ होगी तो जाहिर है ये भी तय होगा कि जिम्मेदारी किसकी थी। जो लोग मेहनत करके किसी पद तक पहुंचे हैं, और अब सत्ता सुख भोग रहे हैं, आप चाहते हैं कि उनके सिर पर जिम्मेदारी का ठीकरा फोड़ दिया जाए। आप उन्हें परेशान करना चाहते हैं, वो तो भला हो रक्षा मंत्री का जो ऐसे किसी भी प्रयास को जड़ से ही मार देते हैं। 

ग़लती या जिम्मेदारी किसी की भी हो, जिस सरकार में सारा काम ईश्वर की इच्छा से होता हो, वहां इस्तीफा नहीं होता। ये कोई कमजोर सरकार तो है नहीं, कि यहां एक रेल दुर्घटना होने पर नैतिक आधार पर इस्तीफा दे दिया जाता। एक थे रेल मंत्री भला सा नाम था उनका, वो लाल बहादुर शास्त्री, सुना एक रेल हादसा हो गया था, 1956 की बात है शायद, थूटूकोडी एक्सप्रेस पटरी से उतरी और उस हादसे में 150 लोगों की मौत हुई। लाल बहादुर शास्त्री ने इस्तीफा दे दिया, कमजोर सरकार के मंत्री थे। उस वक्त प्रधानमंत्री की छाती छप्पन इंच की नहीं होती थी, इसलिए मंत्रियों में कुछ नैतिकता बोध होता होगा। आज ये सब नैतिकता-फैतिकता की फालतू बातें नहीं होती, इसलिए कोई भी हादसा हो, मंत्री लोग को कोई फरक नहीं पड़ता, वो तो सीधे-सीधे धमकाते हैं, कि अगली बार से तुम चला लेना, देखें कैसे एक्सीडेंट नहीं करते। 


है किसी में हिम्मत ऐसा सोचने की, ऐसा कहने की। ये हिम्मत सिर्फ छप्पन इंची छाते वाले पी एम की पार्टी के लोगों की ही हो सकती है। सुनते हैं लाल बहादुर शास्त्री ने एक रेल हादसे के बाद ही इस्तीफा दे दिया था। हमारे वर्तमान रेलमंत्री बहुत बहादुर हैं, दर्जनों रेल हादसे हो गए, उनके माथे पर शिकन तक नहीं आई, उन्हें किसी बात की जिम्मेदारी से कोई मतलब ही नहीं है, मेरा मतलब ना वो हादसों की जिम्मेदारी लेते हैं, ना उनसे विचलित होते हैं, जैसे हमारे प्रधानमंत्री!


विमान हादसा हुआ, रेल हादसा हुआ, आतंकवादी घटना हुई, कोई प्राकृतिक विपदा आ गई मान लो, प्रधानमंत्री को कोई फर्क नहीं पड़ता।  जब पुलवामा हादसा हुआ था, तो हमारे प्रधानमंत्री डिस्कवरी चैनल के लिए एक डॉक्यूमंेटी शूट कर रहे थे। 


अगर कोई ऐसा वैसा, कम बड़ी छाती वाला पी एम होता उस वक्त, तो फौरन शूटिंग छोड़ कर भागता कि अपनी जिम्मेदारी निभाए। लेकिन महामानव तो महामानव हैं, उन्हें सूचना मिली, लेकिन उनके माथे पर शिकन तक न आई, कितने ही लोग मर जाएं, हमारे पी एम बहुत जीवट वाले हैं, एक तो उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता, दूसरे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता, तीसरे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। उन्होने इत्मिनान से अपनी शूटिंग पूरी की, फिर पूछा, ”हां भई बताओ, क्या हुआ?” आखिर सब कुछ ईश्वर इच्छा से होता है, उनका ईश्वर से सीधा कनेक्शन है, तो......बाकी आप समझदार हैं। 

पर अभी मैं बात कर रहा हूं अहमदाबाद में हुए विमान हादसे की। सारा देश शोक मे हैं, कई सारे हादसे एक साथ हुए हैं, और ये देश लगातार शोक में चल रहा है। पहलगाम का शोक, फिर केदारनाथ में हैलीकॉप्टर क्रैश हो गया, फिर अहमदाबाद विमान हादसा हो गया, फिर केदारनाथ में हैलीकॉप्टर क्रैश हो गया, फिर इंद्रयाणी नदी का पुल गिर गया, उसमें मरने वालों के लिए शोक। 
प्रधानमंत्री अहमदाबाद विमान हादसा मनाने पहुंचे तो उनके साथ हर एंगल से तस्वीर लेने वाले लोग मौजूद थे, तस्वीरें बहुत बढ़िया आई हैं। ऐसा होना भी चाहिए, जिम्मेदारी कोई भले ना ले, पर वीडियो तो सुंदर होना ही चाहिए। 

पर अंतिम सवाल ये है कि विमान हादसे की जिम्मेदारी किसी मंत्री को लेनी चाहिए या नहीं। तो भाई इसका सीधा सा लॉजिक ये हैं ये सवाल


पहला: क्या भारत की कोई राष्टरीय विमानन सेवा है?
जवाब है नहीं। किसी जमाने में भारत की राष्टरीय विमान सेवा होती थी, जिसे एयर इंडिया कहा जाता था, लेकिन अब इसका निजीकरण हो चुका है, और अब टाटा ग्रुप इसका मालिक है। तो जब भारत की कोई निजी विमानन सेवा ही नहीं है तो फिर भारत सरकार किसी भी विमान हादसे की जिम्मेदारी क्यों और कैसे ले सकती है।


सवाल दो: भारत में हवाई अड्डों का संचालन किसकी जिम्मेदारी है।
जवाब: भारत में हवाई अड्डों का संचालन और रख-रखाव ए ए आई यानी एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया करती है। लेकिन अब ज्यादातर एयरपेार्ट जिन्हें हिन्दी में हवाई अड्डा कहा जाता है उन्हें अडाणी या जी एम आर ग्रुप देखते हैं। अब ये जो एयर इंडिया के विमान के साथ हादसा हुआ, उसका मालिक टाटा ग्रुप था, और जिस हवाई अड्डे से उस विमान ने उड़ान भरी उसका संचालन और देखरेख अडाणी करता है। ऐसे में प्रधानमंत्री हों, गृहमंत्री हों, या नागरिक उड्डयन मंत्री हों, ये सब किसी भी हादसे की जिम्मेदारी कैसे ले सकते हैं। बल्कि असली सवाल तो ये बन जाता है कि जब देश की कोई विमान कंपनी नहीं, हवाई अड्डों को निजी कंपनियां संभाल रही हैं, तो फिर देश में उड्डयन सेवा संबंधित कोई मंत्रालय भी क्यों होगा? और आखिर सिविल एविएशन मिनिस्टर करता क्या होगा? उसकी कोई जिम्मेदारी तो होगी नहीं, कि उसके हाथ में कुछ है नहीं। तो वो तो अफसोस ही जाहिर कर सकता है। वैसे कोई बता सकता है कि देश के वर्तमान सिविल एविएशन मिनिस्टर हैं कौन, कहीं, किसी जगह उनकी अफसोस वाली वीडियो या बयान हो तो कमेंट में लिंक दीजिएगा। सिविल एविएशन मिनिस्टर और कुछ बेशक ना कर सकता हो, कम से कम अफसोस जाहिर करता दिखे तो भी कुछ तो ढाढस बंधेगी पीड़ितों को। 

बल्कि मेरा तो कहना है ये मोदी जी के दस सबसे मजबूत और भविष्य द्रष्टा वाले कदमों में गिना जाना चाहिए। हवाई सेवा, हवाई अड्डा, बेच दो, सड़कें, रेलें, जंगल, जमीन, बांध, नदियां, टेलीफोन, गैस, पैटरोल सबका निजीकरण कर दो। सरकार सिर्फ दो चार चीजों के लिए बनी रहनी चाहिए।
एक तो इलैक्शन के लिए, कि इलैक्शन होगा तो सरकार होगी। 
दूसरा ईडी, सी बी आई आदि को किस के पीछे लगाना है, इस काम के लिए, 
तीसरा सत्ता सुख लेने के लिए, जैसे विदेश यात्राएं, पांच सितारा सुविधाएं, मुफ्त कार, बार, आदि की सुविधा लेने के लिए, 
चौथा किसी को धमकी देनी हो, बलात्कार आदि करने हों तो, अगर एम पी, एम एल ए ना हों तो ये काम साधारण गुंडे करने लगते हैं। और अच्छा नहीं लगता। 
और पांचवा और सबसे महत्वपूर्ण काम ये कि यदि कोई इस तरह का हादसा हो जाए, तो वहां जाकर फोटो, वीडियो निकालने के लिए, रील बनाने के लिए, और ज्यादा हो तो अफसोस जाहिर करने के लिए सरकार का, प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, रक्षामंत्री आदि आदि मंत्रियों का होना जरूरी है। 
तो इन कामों को सरकार पूरा करे, बाकी जिम्मेदारी ईश्वर की है कि वो किसे मारना चाहता है, किसे बचाना चाहता है, इस काम में सरकार ही क्या कर लेगी, आप लोग अपनी किस्मत को रोते रहिए, और मनाते रहिए। सरकार ईश्वर भरोसे ही रहेगी.....
अरे हां, ग़ालिब ने इस मामले में भी एक शेर लिख मारा है
वो कहते हैं।
हौसला दे सकता है हर कोई जमाने में
सरकार वो है जो सिर्फ अफसोस जाहिर करे
बाकी आप खुद समझदार हैं, लाइक, सब्सक्राइब और शेयर, करें और इस सबमें शेयर सबसे इम्पॉर्टेंट है। ठीक है जी। नमस्ते। 


सोमवार, 16 जून 2025

आखिर कौन देगा जवाब

 नमस्कार, मैं कपिल एक बार फिर आपके साथ। कमाल है जी, कमाल है। ये इस देश में चल क्या रहा है? यार हमारे देश के प्रधानमंत्री विश्वगुरु बनने की कगार पर खड़े हैं और ये हमारे ही देश के लोग उनका बनियान खींच दे रहे हैं। उन्हें विश्वगुरु बनने से रोक रहे हैं, महामानव की ऐसी बेकदरी इसी देश में हो सकती है। ये तथाकथित प्रगतिशील लोगों को हमारे महामानव फूटी आंख नहीं सुहाते। इस देश के लिए महानतम से महानतम बलिदान करने वाले हमारे महानतम महामानव के एक-एक काम में यानी हर काम में रोड़ा अटकाकर आखिर ये लोग क्या ही हासिल कर लेंगे। 

इस देश को आगे बढ़ने से रोकने वाले इन लोगों की हरकतों पर ग़ौर कीजिए ज़रा। ये किसी सवाल का जवाब नहीं देते, ये किसी के प्रति उत्तरदायी नहीं होते, बस सवाल पूछते हैं, लगातार सवाल पूछते हैं, हर बार, हर क़दम पर महामानव के हर काम पर सवाल उठाते हैं, उसकी आलोचना करते हैं। इनका और काम ही क्या है? यानी इनको कोई काम नहीं रह गया है बस आलोचना करो। 

याद है आपको, मोदी जी ने कहा था कि वो पैटरोल की कीमतों में कमी कर देंगे। आप यकीन मानिए वो कमी करने ही वाले थे कि इन लोगों ने सवाल पूछने शुरु कर दिए। उन दिनों जब प्रधानमंत्री नए-नए प्रधानमंत्री बने थे, तभी से वो इन विपक्षियों की आंखों में खटकने लगे थे। इन विपक्षियों को पता होना चाहिए कि पैटरोल की कीमते ऐसे ही नहीं घट जातीं, वो पहले बढ़ती हैं, यानी उपर चढ़ती हैं, फिर वो नीचे आती हैं। हमारे देश में राहुल गांधी पैटरोल की इन कीमतों को नीचे ही नहीं आने दे रहे। मैं आपको बता रहा हूं, ये राहुल गांधी लगातार हमारे प्रधानमंत्री से सवाल पूछ कर उन्हें परेशान कर रहे हैं। पूरी दुनिया में किसी की हिम्मत नहीं है कि हमारे प्रधानमंत्री से कोई सवाल पूछ सके, पर ये लोग, ये विपक्ष वाले हमारे महामानव को सवाल पूछ कर परेशान कर रहे हैं। इनकी वजह से पैटरोल की कीमतें नीचे आने का नाम नहीं ले रही हैं। दोस्तों, अब बहुत हो गया, मोदी जी से पैटरोल की कीमतों के बारे में कोई सवाल पूछने का मतलब नहीं बनता। अब पैटरोल की कीमतों पर राहुल गांधी को जवाब देना ही होगा। वो सीधे-सीधे जनता को बताएं की वो इस मंहगे पैटरोल के बारे में क्या कर रहे हैं। 

ठीक इसी तरह से आपको याद होगा कि इस देश में क्रांतिकारी क़दम उठाया था महामानव ने। उन्होने 8 नवंबर को 8 बजे टी वी पर आकर अचानक घोषणा कर दी कि अब से 500 और 1000 के बैंक नोट अवैध हो गए। 

जिगरा चाहिए साहब अपने ही देश की करेंसी को अचानक अवैध घोषित करने के लिए। पर आपको ये याद नहीं होगा कि जब पूरी दुनिया में मोदी जी की इस नोटबंदी का जश्न मनाया जा रहा था, तब भारत में, जी हां, आपके ही देश में, इसी राहुल गांधी ने मोदी जी की नोटबंदी की आलोचना की थी। मोदी जी ने कहा था कि इस नोटबंदी से वो भ्रष्टाचार पर लगाम लगा देंगे, आतंकवाद की कमर तोड़ देंगे, आम आदमी के पास छुपे कालेधन का बाहर निकाल लेंगे। मोदी जी के इस क़दम के पीछे बहुत ही गहरी कूटनीति थी। वो चाहते थे कि जब कालाधन बाहर आए तो वो ऐसे ही लोगों के खाते में पंद्रह-पंद्रह लाख रुपया डलवा दें। तब भी इसी राहुल गांधी ने नोटबंदी की आलोचना की थी। इसी ने नोटबंदी जैसे महान क़दम को नज़र लगाई थी, मजबूरन मोदी जी को कहना पड़ा कि अगर कोई उनकी कमी निकल जाए, उनकी कोई ग़लती निकल जाए, तो वो चौराहे पर आकर देश जो सजा दे वो भुगतने तक के लिए तैयार हो गए थे। 

लेकिन बुरा हो राहुल का, खुल कर नोटबंदी की आलोचना करने लगे। 

राहुल गांधी की इसी हरकत की वजह से नोटबंदी से ना तो कालाधन वापस आया, ना आतंकवाद की कमर टूटी, और ना ही भ्रष्टाचार पर लगाम लगी। बल्कि भ्रष्टाचार और बढ़ गया। अब इस पर राहुल गांधी को जवाब देना ही होगा। आखिर महामानव के नोटबंदी जैसे महान क़दम की आलोचना करने की जरूरत ही क्या थी। महामानव, को इस तरह परेशान करने के लिए, उनसे सवाल पूछने के लिए, देश राहुल गांधी को कभी माफ नहीं करेगा। 


साथियों, आपको याद होगा, कोरोना के समय, जब पूरी दुनिया में लॉकडाउन हो गया था, हमारे छप्पन इंच की छाती वाले प्रधानमंत्री ने सारी चेतावनियों के बावजूद देश में टरम्प की रैली करवाई थी।

राहुल गांधी आलोचना करते हैं कि वो बहुत ही खतरनाम काम था। मैं पूछता हूं कि राहुल को ये अधिकार किसने दिया कि वो मोदी के इस क़दम की आलोचना करें। 

आखिर कोरोना में मरने वाले चार-पांच लाख लोगों की जान ज्यादा ज़रूरी थी या टरम्प की रैली। जाहिर है टरम्प की रैली से हमें बहुत फायदा हुआ। कोरोना जो बहुत पहले ही भारत की धरती पर आ गया होता, उसे मोदी ने एक-दो हफ्ते के लिए टाल दिया। ऐसा वीर काम महामानव मोदी ही कर सकते थे, और उन्होने किया। 

महामानव मोदी सिर्फ राजा, राजनेता, या प्रधानमंत्री ही नहीं हैं, वे दूरगामी सोच वाले डॉक्टर भी हैं, उन्होने कोरोना को भगाने के ऐसे-ऐसे उपाय बताए कि पूरी दुनिया भौंचक रह गई। उन्होने दिव्य दृष्टि से देखा कि थाली बजाने से जो ध्वनि तरंगे पैदा होती हैं, उनसे कोरोना वायरस मर जाता है, इसलिए उन्होने पूरे देश से थाली बजवा दी। इसके लिए समय भी बताया और एक दिन शाम को पूरा देश थालियां बजा रहा था। 

तब भी दोस्तों, आपको शायद याद ना हो, ये राहुल ही था जिसने इस क़दम की आलोचना की थी, और वैज्ञानिकों और डाक्टरों की, दवाई की वैक्सीन की बात की थी। 


मोदी जी की इस ईश्वरीय सोच पर राहुल के इसी अविश्वास की वजह से थाली की आवाज से कोरोना वायरस नहीं मरा, और इतना नुक्सान हुआ। मोदी जी ने अपनी महानता का परिचय देते हुए एक नया रास्ता निकाला, उन्होने लोगों से कहा कि दिए जलाओ, कोरोना को भगाओ, 

लेकिन फिर से राहुल ने आलोचना कर दी। राहुल को महामानव के कोरोना काल में लिए गए इन फैसलों पर सवाल उठाने के लिए जनता को जवाब देना ही होगा। 

उसे क्या लगता है कि हम उसकी बातों को मान कर महामानव के ईडियॉटिक उपायों को भुला देंगे। हम ऐसा नहीं करेंगे मित्रों, हम बार -बार राहुल से सवाल पूछेंगे। 

जबसे मोदी जी प्रधानमंत्री बने हैं, वो अपनी पूरी कोशिश कर रहे हैं कि विदेशों में भारत को नंबर वन देश बनाया जाए। अब विदेशों में भारत को नंबर वन बनाने के लिए विदेशों की यात्रा करना तो जरूरी है, लेकिन इन विपक्षियों को, प्रगतिशीलों को ये साधारण सी बात समझ नहीं आ रही। वो महामानव मोदी जी की इन विदेश यात्राओं की आलोचना करते हैं। राहुल ने कई बार सभाओं में मोदी की इन विदेश यात्राओं की आलोचना की है, उन पर सवाल उठाए हैं। 


मोदी जी ने इन यात्राओं से कई देशों के प्रधानमंत्रियों और राष्टरपतियों को अपना डीयर फ्रेंड बनाया है। भारत में टरम्प की खास यानी विशेष रैली करवाई है, क्या किसी और प्रधानमंत्री ने कभी ऐसा किया था। हो सकता है कि बदले में विश्वगुरु मोदी की ऐसी महान रैलियां और देशों में ना हुई हों, लेकिन इसके पीछे का कारण यही है, जैसा और जितना डीयर फ्रेंड मोदी इन राजनेताओं को मानते हैं, ये राजनेता मोदी को उतना डीयर फ्रेंड नहीं मानते। अब बताइए, इसमें मोदी की क्या गलती है। लेकिन राहुल इस पर भी उनकी आलोचना करने से बाज़ नहीं आते। अब राहुल को इस देश की जनता को जवाब देना चाहिए कि मोदी की इतनी कोशिशों के बावजूद, इतनी विदेश यात्राओं के बावजूद आखिर क्यों देश को दुनिया से समर्थन नहीं मिल रहा है। ये जनता राहुल से पूछ रही है कि आखिर इतनी सारी विदेश यात्राओं के बावजूद, क्यों महामानव मोदी की विदेश नीति लगातार फेल हो रही है। 


दोस्तों, राहुल को जवाब देना ही होगा, कि पुलवामा अटैक क्यों हुआ? वो आर डी एक्स वाली गाड़ी का क्या हुआ? राहुल लगातार ये सवाल सुपरमैन मोदी से पूछते हैं, लेकिन हम उनसे सवाल करेंगे। विश्वगुरु को वैसे ही इतनी चिंताएं हैं, वे अपने ईश्वर के साथ सीधे कनेक्शन में बिज़ी हैं, उनसे इस तरह के तुच्छ सवाल करना, सरासर बेअदबी है। हमें ये सारे सवाल राहुल से करने चाहिएं, कि आखिर पहले पुलवामा और बाद में पहलगाम जैसी आतंकवादी घटनाएं क्यों हो रही हैं। राहुल को जवाब देना ही होगा, कि कश्मीर में इतनी सेना मौजूद होने के बावजूद सुरक्षा में चूक हुई तो कैसे? ये सवाल सीधे राहुल से होगा, कि आखिर ऐसी क्या मजबूरी थी कि प्रधानमंत्री को अपनी विदेश यात्रा छोड़ के भारत आना पड़ा और फिर सीधे बिहार की चुनाव रैली में जाना पड़ा। क्या राहुल इस देश के लिए इतना भी नहीं कर सकते? राहुल को इन सवालों के जवाब देने ही होंगे। 

पिछले लोकसभा चुनाव में मोदी जो को चार सौ सीटें मिलना तय थीं, लेकिन राहुल ने भारत जोड़ो यात्रा निकाल कर सब गुड़-गोबर कर दिया। 

मोदी जी का एकछत्र राज का सपना एक बार फिर सपना ही रह गया। और तो और, हमारी प्यारी, क्योंकि सास भी कभी बहु थी फेम स्मृति ईरानी जी चुनाव हार गईं।

स्मृति ईरानी की फोटो


 हमें इसका बेहद अफसोस है, लेकिन मोदी जी की पैनी निगाह पर हमें पूरा भरोसा है, उसी कैलीबर की एक और अभिनेत्री कंगना रानौत को वो लोकसभा चुनाव जिता कर लोकसभा में ले आए हैं। 

कंगना रानौत का फोटो

बुरा हो राहुल का कि मोदी जी को सिर्फ 240 सीटों से समझौता करना पड़ा। आखिर राहुल को जवाब देना ही होगा कि मोदी जी को क्यों सिर्फ 240 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा। लेकिन दुख की बात ये है कि राहुल को इतने से भी संतोष नहीं है, वो लगातार मोदी से सवाल पूछ कर, उनकी फजीहत कर रहे हैं, उनके लिए मुश्किलें खड़ी कर रहे हैं। आपको याद होगा, मोदी जी ने क्या शानदार तरीका निकाला था, पहलगाम के बदले के बाद, उन्होने पूरे देश में सिंदूर दान के कार्यक्रम के बारे में सोचा था। लेकिन राहुल ने उनकी इस योजना में भी पलीता लगा दिया। पहले तो उन्हें सीज़फायर पर घेरा, फिर उनके सिंदूर दान कार्यक्रम पर सवाल खड़ा कर दिया, और अब तो उन्हें सीधा सरेंडर कह रहे हैं। हम पूछते हैं राहुल से कि आखिर टरम्प की घोषणा के बाद सीज़फायर करने की जरूरत ही क्या थी, जब हम युद्ध में जीत रहे थे, तो पीछे हटने का क्या कारण था, राहुल को इसका जवाब देना ही होगा। 


ये सारे प्रगतिशील लोग आखांे पर लोकतंत्र का चश्मा लगा कर बैठे हैं, इन्हें नहीं पता कि मोदी जी, हज्जारों साल बाद कोई हिंदू राजा इस देश का सम्राट बना है। राहुल गांधी अपने इस सवाल पूछने की आदत से फिर से इस देश में लोकतंत्र लाना चाहते हैं। महामानव को लोकतंत्र से डराना चाहते हैं, लेकिन महामानव लोकतंत्र की धमकियों से डरने वाले नहीं हैं। मुझे पूरा यकीन है कि महामानव, इस सबके बावजूद विजयी होकर निकलेंगे। 


इस देश की हालत दिन-ब-दिन खराब होती जा रही है। पूरी दुनिया में देश की साख का बट्टा लग चुका है। अब राहुल गांधी सवालों से और नहीं भाग सकते। हमने पहले नेहरु पर जिम्मेदारी डालने की कोशिश की थी, लेकिन हम जानते हैं कि ये खेल अब ज्यादा नहीं चल सकता। इसलिए देश की इस हालत की जवाब देही राहुल की बनती है। और राहुल का जवाब देना होगा। आज मैं आपसे अपील करता हूं कि राहुल को कटघरे में खड़ा करके ये सवाल किया जाए कि पिछले ग्यारह सालों में उसने देश को इतना बदहाल क्यों कर दिया है।


मैं बहुत निराश हूं कि राहुल, इन सवालों के जवाब नहीं दे रहे हैं। इसी निराशा में ग़ालिब का ये शेर याद आता है


हमसे सवाल पूछ के, परेशान तू न कर

उससे सवाल पूछ ले, जो जवाब दे सके


इसीलिए हम राहुल से सवाल पूछ रहे हैं। महामानव मोदी को मज़े करने दो, उन्हें अब और न सताओ। राहुल गांधी से सवाल पूछो। 

नमस्कार


बुधवार, 11 जून 2025

नरेन्दर - सरेंडर

 






यूं तो ये कथा बहुत पुरानी है, दादी नानी की कहानी जितनी पुरानी, लेकिन कुछ कथाएं ऐसी होती हैं जैसे शराब। जितनी पुरानी होती हैं, उतना ही उनका मैटल मजबूत होता जाता है। आज जब प्रधानमंत्री जी को एक पुल पर तिरंगा फहराते हुए चलते हुए देखा तो कसम से आंखें भर आईं। किसी जमाने में एक फोटो देखी थी, जिसमें प्रधानमंत्री तिरंगे से मुहं पोंछ रहे हैं, 


पिछले 12 - 15 सालों में कम से कम उन्हें ये तो समझ आया कि तिरंगा फहराया जाता है, उससे मुहं नहीं पोंछा जाता। अभी कुछ समय पहले एक और भाजपा विधायक थे, जो तिरंगे से नाक पोंछते नज़र आए थे। 


भाजपा विधायकों को थोड़ा धीरे-धीरे समझ आता है कि तिरंगा राष्टरीय ध्वज है जिससे मुंह और नाक नहीं पोंछा जाता, उसका सम्मान किया जाता है, उसे गर्व से फहराया जाता है। प्रधानमंत्री को एक दशक से ज्यादा लग गया ये समझने में, विधायकों को हो सकता है थोड़ा जल्दी समझ में आ जाए। 


अभी जो बात हो रही है सरेंडर की, वो सरेंडर नहीं था या नहीं था। मेरा मानना है कि वो सरेंडर नहीं था, बल्कि अपनी छवि को सुंदर बनाने का उत्साह था, जो छलक-छलक पड़ रहा था, और आप कह रहे हैं कि जीत के दावों के बावजूद तीन दिन में ही युद्ध रोक दिया गया। यहां दर्जी वर्दियां सिल कर बैठे थे, फोटोग्राफर सारे फोटोशूट की तैयारियां करके बैठे थे, फोटोशॉप वाले कम्प्यूटर पर तैयार बैठे थे। पोस्टर बन चुके थे, रैलियों की सारी तैयारियां हो चुकी थीं, लोगों को आने वाले दिनों में ऑपरेशन सिंदूर के सिलसिले में क्या-क्या कार्यक्रम होने चाहिए, उसकी सूचना भिजवाई जा चुकी थी। ऐसे में आप बताइए कि आप होते तो क्या करते। अगर ये युद्ध और चलता रहता तो इन सारी तैयारियों का क्या होता। 


तो इन सब तैयारियों के सही इस्तेमाल के लिए युद्धविराम होना जरूरी था। ऑप्टिकस् तो यही कहता है कि सेना की सफल कार्यवाही को इसलिए रोका गया ताकि सरेंडर मोदी की कार्यवाही को सफल बनाया जा सके। सैनिक वर्दी में लाइफ साइज़ पोस्टर, नसों में खून की जगह सिंदूर के नारे,  बाइस मिनट में बाइस तारीख का बदला जैसे जुमले, ये है पहलगाम के बदले की सही हक़ीकत। 


मैं बस कोशिश कर रहा हूं सरेंडर मोदी की सही मानसिक स्थिति के आंकलन की। देखिए एक तरफ सेना अपने परे गौरव और अभिमान के साथ युद्ध कर रही थी। सेना को अच्छी तरह पता था कि उसे कहां और कितना वार करना है। लेकिन हमारे न्यूज़ स्टूडियोज़ में बैठे एंकरों को ये बात थोड़े ही पता थी। किसी ने इस्मलामबाद को नेस्तनाबूद किया था, तो किसी ने लाहौर पर कब्जा करवा दिया था। 


मुझे लगता है कि सरेंडर मोदी ने टी वी पर इन्हीं न्यूज़ चैनलों को देखा और अपने इन खबरचियों की खबरों पर यकीन कर लिया। फिर हो सकता है कि उन्हें लगा हो कि यार, अब ज्यादा हो जाएगा, जितना बचा है उतना पाकिस्तान छोड़ देना चाहिए। और उन्होेने दया करके युद्धविराम के आदेश दे दिए। ये तो उन्हें बाद में पता चला कि ये सारे स्टूडियोज़ में बैठे एंकर और उनके एडिटर झूठ बोल रहे थे। इसलिए उनकी इस युद्धविराम में कोई ग़लती नहीं है। उनके एंकरों ने तो उन्हें पाकिस्तान का बेताज बादशाह बना ही दिया था। ऐसे में राहुल को उन्हें इतनी रियायत तो देनी चाहिए, उन्हें सरेंडर मोदी नहीं कहना चाहिए। 

ये जो चल रहा है सरेंडर का, राहुल गांधी ने कह दिया, नरेंदर......सरेंडर.....



अब ये कोई बात हुई भला। आपको समझना पड़ेगा, यूं आप किसी पर, वो भी विश्वगुरु पर इस तरह की तोहमत नहीं लगा सकते। यूं तो सरेंडर का पूरा इतिहास भरा पड़ा है, देखिए वीर सावरकर ने, 



जब वो जेल में थे, तो ब्रिटिश सरकार को कई पत्र लिखे, उनमें खुद को छोड़ देने की दुहाई की, और ये तक कहा 


कि सरकार अगर अपने विविध उपकार और दया दिखाते हुए मुझे रिहा करतेी है तो मैं और कुछ नहीं हो सकता बल्कि मैं संवैधानिक प्रगति और अंग्रेज सरकार के प्रति वफ़ादारी का, जो उस प्रगति के लिए पहली शर्त है, सबसे प्रबल पैरोकार बनूंगा। अब ये सब लिखा तो सावरकर ने ही था, लेकिन दरअसल ये सब उन्होने अंग्रेज सरकार को धोखा देने के लिए लिखा था, और देश सेवा के लिए लिखा था। ये बात आपको समझ नहीं आती। अंग्रेज सरकार वीर विनायक दामोदर सावरकार की चाल में ऐसी फंसी कि ना सिर्फ उन्होने सावरकार को रिहा किया, बल्कि उनकी मासिक पेंशन भी बांध दी। अंग्रेज सरकार को लगा कि ये तो अब हमारा काम करेगा, हमारा वफादार रहेगा। लेकिन सावरकर ने सरेंडर नहीं किया था, जैसे मोदी जी ने नहीं किया। बल्कि सावरकर ने रिहा होने के बाद, 1941 में बिहार में भागलपुर में हिन्दू महासभा के 23वें अधिवेशन को संबोधित करते हुए ब्रिटिश शासकों के साथ सहयोग करने की नीति का ऐलान किया। लेकिन इसके पीछे भी सावरकर का, माने वीर सावरकर की ये चाल थी, कि अंग्रेजों को दिखाते रहो कि देखो मैं तुम्हारा वफादार हूं, 


अपनी अंग्रेजों के खिलाफ इसी सरेंडर वाली चाल को आगे बढ़ाते हुए सावरकार ने मदुरै में 1940 के अधिवेशन में भाषण दिया कि उन्होने एक लाख हिंदुओं को अंग्रेजों की सेना में भर्ती कराया है, जिसने आखिर कार सुभाष चंद्र बोस की आज़ाद हिंद फौज को रोकने में अंग्रेजों की मदद की। 

लोग यूं ही सावरकर को बदनाम करते हैं, उन्होने सरेंडर नहीं किया था, अपने पत्रों के ज़रिए उन्होने सिर्फ अंग्रेजों को धोखा दिया था। रिहा होने के बाद में वे मन से देशसेवा ही करना चाहते थे, बुरा हो गांधी का इससे पहले कि सावरकर को देशसेवा का मौका मिलता, उन्होनेे आज़ादी के लिए हां कर दिया। और बेचारे सावरकार को लगातार कोशिशों के बावजूद देश सेवा का मौका नहीं मिल सका और वो बेचारे ताजीवन अंग्रेजों की सेवा ही करते रह गए। यहां तक कि जब अंग्रेज भारत छोड़ गए, तो भी सावरकार अपने अंग्रेजों को धोखा देने की नीति पर कायम रहते हुए अंग्रेजों की सेवा करते रहे। इससे उनकी वफादारी का सबूत मिलता है। इसमें उनका कोई दोष नहीं है। भई अगर वो अंग्रेजों के वफादार ना बनते तो कोई और बन जाता, और ये उनका सिद्धांत था, कि अगर पैसा आ रहा हो, तो कोई मौका छोड़ना नहीं चाहिए। 

तो राहुल गांधी जो सावरकर के मन की बात नहीं समझ पाए, वे सावरकार को माफीवीर बताते हैं, जबकि खुद सावरकर ने अपने को वीर का खिताब दिया था। अब बताइए, कोई खुद को वीर कहना चाहे तो क्या ये गुनाह हो गया। हमारे महामानव की शिक्षा का तो पता नहीं, पर दीक्षा इन्हीें विचारों की छत्रछाया में हुई है, इसलिए वो सारे गुण जो वीर सरेंडर सावरकर के थे, वही इनमें भी आ गए हैं। 

इसलिए खुद का विश्वगुरु कहने-कहलवाने वाले हमारे वर्तमान महामानव ने खुद को ईश्वर बताने में कोई कमी नहीं छोड़ी। अब अगर आप उन्हें ईश्वर ना माने तो उसमें उनकी गलती नहीं है, बल्कि खुद आपकी गलती है। वे तो लगातार अपने कामों के ज़रिए, भाषणों के ज़रिए ये कहते ही रहे हैं, उनके भक्तों ने तो उन्हें आधा-पौना ईश्वर मान ही लिया है। लेकिन खुद वो मानते हैं कि वो बहुत बचपन से ही सरेंडर संघ के सदस्य बन चुके थे। और अपने पूरे जीवन में उन्होनें इसी सरेंडर से काम लिया और सफलता की सीढ़ियां चढ़ते गए। सरेंडर की ये गाथा, इतनी रोचक है कि इस पर कई महाकाव्य, लघुकाव्य, वृहद उपन्यास, लघु उपन्यास, और हजारों कहानियां लिखी जा सकती हैं। छोटी-छोटी कॉमिक्स तो वैसे ही मार्केट में खूब घूम रही हैं। 


राहुल गांधी के संरेडर पर खूब वबाल भी हुआ है, हो रहा है। ये राहुल भी जाने कहां -कहां से ऐसी बातें ले आते हैं। डोनाल्ड टरम्प ने भी ये नहीं कहा कि मोदी जी ने सरेंडर किया, उसने तो सिर्फ ये कहा, और करीब दर्जन भर बार कहा कि उसने व्यापार की धमकी देकर सीज़फायर करवाया है, 


पर ये नहीं कहा कि मोदी जी ने सरेंडर किया है। ऐसे में आप ही बताइए, क्या नरेन्दर मोदी को सरेंडर मोदी कहना सही है? फैसला आप पर है, क्योंकि आप जनता हैं, और लोकतंत्र में जनता की बात ही चलती है। कमेंट करके बताइए कि अब आप इन्हे सरेंडर मोदी कहेंगे या नहीं। मर्जी है आपकी, क्योंकि फैसला है आपका। 

बाकी ग़ालिब जो चचा थे हमारे, ये एक शेर अर्ज़ कर गए हैं।


दुश्मन से नहीं डरना गर बाजुओं में दम हो

रुक जाना ज़रा हटके, पानी जो तुझमें कम हो


ग़ालिब ऐसे ही फालतू शेरों के लिए बदनाम हैं, आप इस पर ध्यान मत दीजिए। बस लाइक और शेयर कीजिए, और हां, सब्सक्राइब भी कर ही लीजिए। ठीक है। नमस्ते। 


सोमवार, 9 जून 2025

अजनबी




अजनबी

सुबह अभी हुई नहीं थी जब वो बस से रामपुर उतरा। रात का 9 बजे दिल्ली के आई एस बी टी से चढ़ कर वो रामनगर पहुंचा था। उसे उम्मीद थी कि उसकी इस खस्ता हालत में उसका दोस्त मुस्तकीम उसकी मदद जरूर करेगा। आखिर जब मुस्तकीम की अपनी तबीयत खराब हुई थी और दिल्ली में उसका कोई होता-सोता नहीं था तो उसने ना सिर्फ पैसे से मदद की थी बल्कि अस्पताल में दोनो वक्त खाना पहुंचाना, खून की जरूरत पूरी करना, दवाइयों की दौड़भाग करके उसने मुस्तकीम की भरपूर मदद की थी।

वो दिन बहुत अच्छे थे, चौक पर उसकी चाय-नाश्ते की दुकान थी और खासी अच्छी चलती थी। हर दिन करीब-करीब 5 से 7 हजार तक बना ही लेता था। बैंक में अच्छा खासा पैसा जमा था और उसने दिल्ली जैसी जगह में भी दो घर खरीदे हुए थे।

मुस्तकीम उसकी दुकान पर नाश्ता करने के लिए आया था, पहले पहल तो वो सिर्फ ग्राहक था, फिर वो रेगुलर हो गया तो वो दोनो एक दूसरे को नाम से जानने लगे, धीरे-धीरे, जैसा होता है, दुकान पर मुस्तकीम का खाता चलने लगा, जिसे चुकाने में मुस्तकीम हमेशा ही देर करता था, लेकिन उसे कोई एतराज़ नहीं था।

मुस्तकीम बातें बहुत अच्छी करता था, दुनिया जहान की कोई भी बात हो मुस्तकीम के पास हर चीज़ के बारे में ऐसी-ऐसी कहानियां थीं कि उसकी कहानी सुनता हुआ हर आदमी बस सुनता ही रहता था। उसकी इन्ही बातों के चलते तो वो भी मुस्तकीम से कभी पैसों के लिए नहीं कहता था, बल्कि कभी वक्त-बेवक्त वो रुपये पैसे से मुस्तकीम की मदद भी कर देता था। हालांकि पैसा हाथ आते ही मुस्तकीम उसका सारा हिसाब चुकता कर देता था लेकिन एक तरह से वो दोस्त ही हो गए थे।

बातें ही नहीं मुस्तकीम की शख्सीयत में कुछ ऐसी खास बात थी कि वो जिस भी इंसान से मिलता था वो एकदम उसे पसंद करने लगता था। लंबा-चौड़ा मुस्तकीम, हरदम हंसता रहता था। कभी शानदार कपड़े पहन कर आता था तो कभी कुर्ता झोलझाल, बिखरे बाल, आंखे लाल, लेकिन जब आता था तो वही कहानियों का भंडार और, कहकहों की भरमार, उसकी कही बातें लोगों की जुबान पर चढ़ गई थीं, जब उसके पास पैसा नहीं होता था तो वो कहता था, ”बहादुरशाह ज़फर जब कैद हुआ तो भी बादशाह ही था”, या ”चिड़िया फुर्र जाएगी, खुशी उड़ जाएगी, ज्यादा ना उड़ो”, या ”तीन चीजों का कोई भरोसा नहीं है, बारिश, पाद और कड़की” ऐसी ही ना जाने कितनी ही बातें थी जो मुस्तकीम ने कहीं थीं और लोग ले उड़े थे और फिर वो लोगों के रोज़-ब-रोज़ के मुहावरे बन गए थे।

वही मुस्तकीम जब चार दिनों तक लगातार दुकान पर नहीं आया तो उसे चिंता हुई, यूं मुस्तकीम पहले भी कई-कई दिनों तक गायब रहा था, लेकिन इससे पहले जब भी वो कहीं जाता था तो कई दिन पहले से घोषणा सी करने लगता था कि वो कहां जा रहा है, कितने दिनों के लिए जा रहा है और जब आएगा तो उसकी जेब में कितना माल होगा। लेकिन इस बार तो मुस्तकीम ने ऐसा कुछ नहीं कहा था, बल्कि बातें कुछ इस तरह हुई थीं कि जैसे मुस्तकीम कुछ दिनों तक दिल्ली में ही रहने वाला था। इसलिए वो ज्यादा चिंतित हुआ। फिर चौथे दिन वो दुकान खोल कर लड़कों को काम पर लगा कर मुस्तकीम के घर की तरफ चल पड़ा, घर क्या, जग्गन जाट का हाता था जिसमें उसने दड़बे जैसे किराए के कमरे बना दिए थे, जिनमें बिहार, यू पी से मजदूरी करने वाले मजदूर किराए पर लेते थे, इन दड़बे नुमा कमरों का किराया, 1500 रुपये तक होता था जो दिल्ली के उस इलाके के हिसाब से बहुत सस्ता था, और 8 से 10 मजदूर वहां रहते थे, कुछ दिन की पाली में काम करते थे कुछ रात की पाली में, और इस कमरे को सिर्फ सोने, नहाने और खाना खाने के लिए इस्तेमाल करते थे। ऐसे ही एक दड़बे में रहता था मुस्तकीम, हालांकि अकेला रहता था, तो जब वो मुस्तकीम के दड़बे में पहुचा तो पहले तो उसे लगा कि जैसे दरवाज़ा अंदर से बंद हो फिर थोड़ा ठकठकाया तो पता चला कि दरवाज़ा तो खुला पड़ा है। वो दरवाज़ा खोल कर अंदर पहुंचा तो देखा कि मुस्तकीम बिस्तर से नीचे पड़ा है और बहुत बुरी हालत है। उसने बहुत ही ध्यान से मुस्तकीम को उठाकर बिस्तर पर डाला और उसे होश में लाने की कोशिश की, लेकिन वो सिर्फ इतना कर पाया कि एक बार मुस्तकीम ने आंखे मिचमिचाई और उसे पहचान का मुस्कुराया, उसके लिए बस उतना ही काफी था। उसने आनन-फानन ऑटो बुलवाया और उसमें लाद कर मुस्तकीम को अस्पताल ले गया, वहां पहले उसे इमरजेंसी में डाला गया और फिर उसे भर्ती कर लिया गया।

जब तक मुस्तकीम को होश नहीं आ गया और उसकी हालत इतनी नहीं सुधर गई कि वो ठीक से बातें करने लगा तब तक उसने दुकान की तरफ ध्यान तक नहीं दिया। वो सुबह अस्पताल जाता था, और वहां से दुकान जाता था, दोपहर को खाना लेकर फिर अस्पताल जाता था और फिर शाम को खाना लेकर जाता था और मुस्तकीम को सारी दवाईयां, फल देकर जाता था। उस दौरान वो लगातार मुस्तकीम से कहता रहा कि अगर उसके कोई परिवार वाले थे तो उन्हे इत्तिला जरूर करनी चाहिए ताकि वो आकर उसे देख जाएं। लेकिन मुस्तकीम हर बार उसे टालता रहा, आखिर एक दिन मुस्तकीम ने उसे अपने घर का नंबर दे ही दिया, उसने उसी शाम अपने दुकान की बगल वाले एस टी डी बूथ से मुस्तकीम के घर का नंबर मिला दिया।

मुस्तकीम के घर से उसकी मां, बहन और मामा आए थे, इत्तेफाक से उसी समय उसका ओखला वाला घर खाली हुआ था, तो उसने वो घर उन्हे रहने के लिए दे दिया, अब वो दिन में सिर्फ एक बार मुस्तकीम को देखने अस्पताल जाता था। बाकी समय उसका मामा और बहन अस्पताल में रहते थे। मुस्तकीम की मां ने उसे बताया कि असल में मुस्तकीम के पिता रामपुर के बड़े जमींदार थे, जिनका गांव और शहर दोनों में ही काफी रसूख था, मुस्तकीम पढ़ने में काफी होशियार था और पिता के रसूख के चलते उसे अच्छी नौकरी भी मिल गई थी, लेकिन बाप-बेटे में सिर्फ इस बात पर झगड़ा हो गया था कि मुस्तकीम को कॉलेज के दिनों से ही एक लड़की से प्यार हो गया था। हालांकि लड़की भी काफी पैसे वाले खानदान से थी लेकिन शिया थी, मुस्तकीम के पिता सुन्नी थे, अब भला वो कैसे एक शिया लड़की को अपने इकलौते लड़के की बहू बना कर घर ले आते। मुस्तकीम ने उन्हे समझाने की बहुतेरी कोशिश की लेकिन वो ना समझे, ना समझे, इस बीच उस लड़की की शादी किसी और से तय हो गई और वो अपने घर विदा हो गई। इसी के चलते पहले तो मुस्तकीम उदास रहने लगा, उसने अपनी नौकरी छोड़ दी और आखिरकार अपना घर-बार छोड़ कर वो दिल्ली आ गया। हालांकि ना तो उसकी अपने बाप के साथ कोई तकरार हुई और ना ही उसने अपने बाप से कोई झगड़ा किया, बस एक दिन उसने कहा कि वो कहीं जाना चाहता है और सुबह उठ कर वो चल दिया।

बस इत्ती सी बात, सोच कर वो हंस दिया, आखिर ऐसी छोटी-छोटी बातों पर किस बाप-बेटे में तकरार नहीं होती, मुस्तकीम को उससे मिले हुए तीन साल हो चुके थे और उससे भी दो साल पहले से वो दिल्ली में था। अब पांच सालों में तो बाप-बेटे के बीच सुलह हो जानी चाहिए थी, कि भई वो दुनिया की कोई आखिरी लड़की तो थी नहीं और ना ही उसके बाप को मुस्तकीम के प्यार पर कोई ऐतराज था, वो तो सिर्फ लड़की के शिया होने पर ऐतराज था और ऐतराज जायज़ भी था। आखिर कैसे कोई सुन्नी मुसलमान अपने घर में शिया मुसलमान की लड़की को बहू बना कर ले आता।

आखिर मुस्तकीम पूरी तरह भला-चंगा हो गया, और फिर वो दिन भी आया जब वो अपने मां, मामा और बहन के साथ रामपुर वापस चला गया। उसे मुस्तकीम के जाने का कोई दुख नहीं हुआ, बल्कि उसे तो खुशी ही हुई थी कि आखिरकार एक भला आदमी अपने घर वापस लौट गया था। जाने के बाद पहले कुछ महीने तो मुस्तकीम ने मुतवातर फोन पर बातचीत की, लेकिन धीरे-धीरे ये सिलसिला कम होते होते बंद हो गया।

आज इस बात को दस साल होने को आए, और अब तो दुनिया ही बदल गई है, वो अपनी दुकान में मस्त था लेकिन जाने किसी आंख लगी कि उसकी दुनिया बरबाद हो गई। पहले तो दिल्ली में सीलिंग का भंयकर चक्कर चला, जिसमें उसकी दुकान सील हो गई, फिर उसकी बेटी का दामाद बीमार पड़ गया, जिसमें सारी जमा-पूंजी लग गई, उधर छोटी बेटी की शादी में उसे अपने दूसरे घर को बेचना पड़ा। अगर सिर्फ खर्चा ही खर्चा हो और आमद की कोई सूरत ना हो तो कारूं तक का खजाना खाली हो जाए, वो तो एक छोटा सा चाय-नाश्ते वाला था जिसकी दुकान तक बंद हो चुकी थी। अब किसी तरह उम्मीद की एक किरण नज़र आई थी कि अगर वो किसी तरफ दो-ढाई लाख का इंतजाम कर ले तो उसकी दुकान की सील खुल सकती है। उसे पता था कि एक बार सिर्फ सील खुल जाए तो वो फिर से अपनी वही हैसियत हासिल कर सकता है। लेकिन मुसीबत ये थी कि उसके पास ढाई लाख रुपये नहीं थे।

तभी उसे मुस्तकीम का ख्याल आया, कई दिनो तक तो वो इसी उहा-पोह में रहा कि मुस्तकीम से बात करे या ना करे, फिर सोचा कि चलें देख ही लें, शायद......तो पहले तो उसने मुस्तकीम के रामनगर वाले नंबर पर फोन लगाया, मुस्तकीम को उसने करीब-करीब 4 साल पहले फोन किया था। जब उसने फोन किया तो पता चला कि वो फोन अब काम नहीं कर रहा था। उसकी पत्नि का कहना था कि कौन मुस्तकीम, कैसा मुस्तकीम, मुसीबत में कोई काम नहीं आता, अरे जब अपने ही मुहं मोड़ लें तो किसी ऐसे अजनबी से क्या उम्मीद रखी जाए जो किसी जमाने में आपका दोस्त था। लेकिन उसकी पत्नि के ऐसा कहने की कोई और ही वजह थी, असल में उसे बहुत गुमान था कि उसके भाई उसकी मदद करेंगे, लेकिन मदद  करना तो दूर, उसके भाइयों ने तो अब उन्हे अपने फंक्शनस् में भी बुलाना बंद कर दिया था, और ना ही वो उनके किसी काज-कारज में आते थे। बल्कि जब वो मदद की आशा से उनके घर गई तो भाइयों ने साफ-साफ तो नहीं पर इशारों में ये जता दिया था कि वो किसी भी तरह उसकी मदद करने को तैयार नहीं हैं।

लेकिन हारे हुए आदमी को तो छोटा सहारा भी बहुत होता है उसके पास मुस्तकीम का कोई फोन नंबर तो अब नहीं था लेकिन उसके पास मुस्तकीम का रामनगर वाला पता था, तो हल्की सी आशा के सहारे ही वो रामनगर पहुंचा था। उसने इससे पहले कभी रामनगर का सफर नहीं किया था, और जब वो बस कंडक्टर के टहोकने पर जागा तो अभी रात के तीन ही बजे थे।

बस से नीचे उतर कर पहले तो उसने सोचा कि कोई रिक्शा वगैरह कर लिया जाए और सीधा मुस्तकीम के घर चला जाए। लेकिन फिर घड़ी पर एक निगाह मार कर रुक गया, आखिर वो पहली बार मुस्तकीम के घर जा रहा था, वो मुस्तकीम जिससे उसने पिछले चार साल से कोई बात नहीं की थी, वो मुस्तकीम जिसके पिता ने उसकी शादी शिया मुसलमान लड़की तक से नहीं होने दी थी। क्या वो उस हिन्दु को घर में घुसने देंगे। और उसे तो ये तक नहीं पता था कि आखिर शिया और सुन्नी मुसलमान में भी फर्क होता है, जब मुस्तकीम की मां ने बताया था तो उसे ये सूझा ही नहीं था कि वो उनसे ये पूछे कि अगर दोनो ही मुसलमान थे तो आखिर उनमें फर्क क्या था, लेकिन अब अंधेरी रात में चलते हुए हाइवे पर सड़क के एक किनारे खड़े उसे यही फर्क असमंजस में डाल रहा था।

ऐसे ही चलते-चलते वो एक ठेले के पास पहंुच गया, उसने एक कप चाय पी, और सोचने लगा, मान लो मुस्तकीम ने उसे नहीं पहचाना, कितना अजीब लगेगा, कि वो अचानक ही मुस्तकीम से ढाई लाख रुपये मांगने पहुंचा है। उसने सोचा कहीं ऐसा ना हो कि मुस्तकीम ये सोचने लगे कि वो उससे अपने अहसानों का बदला मांगने पहुंचा है। उसने चाय खत्म की और अपने पैसे दिए, उसने चायवाले को पैसे देते हुए उससे मुस्तकीम के घर का पता पूछा। चायवाले ने उसे बताया कि सबसे बड़े वाली मस्जिद के सामने वाली गली में उसका घर था। बल्कि चाय वाले ने मुस्तकीम के घर का रास्ता भी समझा दिया। लेकिन अभी तो सिर्फ 15 मिनट ही हुए थे, थोड़ा बैठ लिया जाए, थोड़ा रौशनी होगी तो वो वहां से चलेगा। यही सोच कर उसने एक चाय और मांग ली। चाय पीते हुए वो फिर सोचने लगा, अगर मुस्तकीन ने भी उसकी मदद करने से मना कर दिया, नहीं वो मुस्तकीम से मदद नहीं मांगेगा, वो बस उसके हाल-चाल लेगा और बस.......लेकिन फिर दिल्ली से रामपुर आने का क्या मतलब....?उसकी दूसरी चाय भी खत्म हो गयी, लेकिन ऐसा लगता था जैसे समय चींटी की चाल से चल रहा है।

अभी सिर्फ तीन चालीस ही हुए थे। अब वो क्या करे, वो थोड़ी देर माथा पकड़ कर बैठ गया, लेकिन सड़क के एक किनारे पर, चाय के ठेले के पास कोई ऐसे कैसे बैठ सकता था, वो उठा और थोड़ी लंबाई में सड़क पर चलने लगा, फिर कुछ देर चक्कर काटने के बाद, थोड़ी दूर पर एक पीपल के पेड़ पर टेक लगा कर खड़ा हो गया, पेड़ पर धागे बंधे हुए थे जैसे उस पर पूजा होती हो। वो थोड़ा अलग हट कर खड़ा हो गया, फिर थोड़ी देर बाद वापस चाय के ठेले के पास चला आया। वो एक बार फिर पत्थर पर बैठ गया। दिल में किसी तरह चैन नहीं था, क्या होगा, कैसे होगा, क्या मुस्तकीम मुझे पैसा दे देगा, आखिर ढाई लाख रुपये बड़ी रकम होती है। उसने फिर से घड़ी देखी 4 बजकर 3 मिनट, ये घड़ी इतना धीरे क्यों चल रही है। उसने एक चाय और मांग ली और इस बार चाय को बहुत धीरे-धीरे पिया, शायद इसी तरह थोड़ा समय कट जाए।

चार बजकर बीस मिनट, उसने आंखे मूंद लीं, फिर घड़ी देखी तो पांच बज चुके थे, लेकिन नींद नहीं थी, वो पत्थर से उठकर फिर चलने लगा। उसके पैरों में दर्द होने लगा तो फिर से चाय के ठेले के पास जाकर पत्थर पर बैठ गया। एक चाय और, पांच-पैंतालिस, क्या किसी ऐसे आदमी के घर जाने का ये सही समय था जिससे आप कभी चार-पांच साल पहले मिले हों, उसने थोड़ी देर और बैठने का फैसला किया। चाय वाले से पूछा कि मुस्तकीम के घर जाने में कितनी देर लगती है। ”रिक्शा कल्लीजिएगा तो 15 मिन्ट में पौंचा देगा” चायवाले ने कहा, तो इसका मतलब अगर वो साढ़े पांच बजे चले तो पौने छः बजे पहुंचेगा, लेकिन अगर वो पौने छः बजे चले तो ठीक छः बजे पहंुच जाएगा। हां, लेकिन अगर रिक्शे वाला थोड़ा जल्दी चला कर ले गया तो, या उसके घर कोई जागा ना हुआ तो, या अगर वो घर पर ही ना हो.....तो? ये तो उसने सोचा ही नहीं था, अगर मुस्तकीम घर पर नहीं हुआ तो क्या होगा......उसके लिए बैठना दुश्वार हो गया लेकिन अभी वो मुस्तकीम के घर के लिए नहीं जाना चाहता था, आसमान अब भी अंधेरा था। लेकिन वो वहां बैठा भी नहीं रहना चाहता था, आखिर वो क्या करे, घड़ी पांच बीस बजा रही थी, आखिर वो अपना झोला उठा कर वहां से चल पड़ा, पैदल चलेगा तो कम से कम रिक्शे से दोगुना वक्त लगेगा और इसके अलावा उसे कोई ख्याल नहीं आएगा।

सामने से जाती गली से निकल कर वो एक मस्जिद के सामने पहुंचा, काफी बड़ी और सजी हुई मस्जिद थी, क्या यही मस्जिद थी जिसके बारे में चाय वाले ने बताया था, वो थोड़ी देर असमंजस में खड़ा रहा, लेकिन चाय वाले ने तो कहा था कि इस गली के आखिर में दांयी तरफ जाने पर जो बड़ी सड़क आएगी उस पर बांये जाने पर जो मस्जिद आएगी वो ही बड़ी मस्जिद है। आखिर लोग इतनी सारी मस्जिदें बनवाते ही क्यों हैं।  वो थोड़ा आगे बढ़ा और उस गली से दांयी तरफ मुड़ गया, सामने एक किले जैसी मस्जिद खड़ी थी, शायद यही मस्जिद थी, लेकिन हो सकता है ये मस्जिद ना हो, सामने से एक रिक्शा आ रहा था, उसने रिक्शे वाले से पूछा कि बड़ी मस्जिद कौन सी थी, ”कौन मज्जिद पूछ रहे हैं, खलीलुल्लाह या आलिया” भई सबसे बड़ी मस्जिद तो यही है आपके सामने जो है” आपको जाना कहां है” अच्छा मुस्तकीम भाई के यहां जाना है, तो यूं कहिए ना, ये सामने वाली गली में चले जाइए, आखिरी मकान उन्हीं का है” रिक्शे वाला ये कहकर आगे बढ़ गया।

सामने गली में मुस्तकीम का मकान था। लेकिन अब उसकी हिम्मत अंदर जाने की नहीं हो रही थी, लेकिन आखिर कब तक वो उस गली के सामने खड़ा रहता, इसलिए वो गली में घुस गया, गली बस गली थी जिसमें आखिर तक कोई मकान नहीं था। थोड़ी दूर जाने पर गली बंद थी और उसमें एक लोहे का दरवाज़ा दिखाई दे रहा था। वो थोड़ी दे ठिठका, घड़ी पर नज़र डाली तो छः बजने में अभी 3 मिनट थे, क्या ये किसी के घर जाने का सही समय था? उसने थोड़ी देर रुक कर हौले से दरवाज़ा खटखटाया, कहीं कोई आहट नहीं थी, वो थोड़ी देर रुका रहा और उसने फिर हौले से दरवाज़ा खटखटाया, ”कोई है” कोई आहट नहीं.......वो ठिठका खडा रहा। फिर बहुत हिचकिचाते हुए उसने फिर दरवाज़ा खटखटाया, ”कोई है” वो उंचा बोलना चाहता था लेकिन उसके गले से ठीेक से आवाज़ ही नहीं निकली।

”कौन है” अंदर से आवाज़ आई, अब वो क्या जवाब दे, वो थोड़ा सकपकाया और फिर हिम्मत बटोर कर बोला, ”मै.......जी वो मुस्तकीम भाई से मिलना था” दरवाज़ा खुला तो अंदर शॉल लपेटे एक बुर्जुगवार नमुदार हुए। ”आप.....?” ”जी मैं.......मैं दिल्ली से आया हूं....” तब तक बुर्जुगवार भीतर की तरफ मुड़ चुके थे, ”हां.....तभी मैं कहूं कि भई, रामपुर में सुबह-सुबह कौन इतना तमीज़दार ढंग से दरवाजा खटखटा रहा है.......वरना यहां तो लोग गली के मोड़ से ही हलक फाड़ने लगते हैं, और अगर दरवाज़ा ना खुले तो ऐसा पीटते हैं कि टूट ही जाए तो तौबा भली.....आइए” ......बुर्जुगवार सामने पड़े दीवान पर अधलेटे हो गए और अखबार उठा लिया, और उसमें ऐसे मशगूल हो गए जैसे उन्हे पता ही ना हो कि वो वहां मौजूद है। वो कुछ एक पल तो खड़ा रहा, फिर कुछ सोच कर सामने पड़े एक मूढ़े पर बैठ गया। कुछ देर बाद एक छोटा सा लड़का बिना कुछ कहे सुने दो चाय के कप ले आया, तो वो चाय पीने लगा। चाय पीते-पीते ही बुर्जुगवार बोले, ”आप वही साहबान हैं ना जिसके यहां मुस्तकीम दिल्ली में रहा था....” ”.....ज्....जी” उसने जवाब दिया।

तभी अंदर से एक तनोमंद आदमी निकल कर बाहर आया......”जी.....” ”ये देखो दिल्ली से तुम्हारे मिलने वाले आए हैं” ”जी....अरे.....” मुस्तकीम ने उसे पहचान लिया था, वो बहुत ही खुश होकर उससे बगलगीर होकर मिला, और फिर उसे अंदर ले गया। अंदर जाकर उसे थोड़ी तसल्ली हुई, उसे आराम से बैठाया गया और एक और चाय के साथ शानदार नाश्ता परोसा गया। उसने अनमने ढंग से नाश्ता खाया और फिर सोफे पर आराम से बैठ गया। मुस्तकीम घर में ही कहीं चला गया था और उसे कोफ्त हो रही थी। आखिर मुस्तकीम उसके पास क्यों नहीं बैठा, वो क्या समझ गया  था कि वो अपनी गर्ज़ के चलते उसके यहां आया है, क्या उसके चेहरे पर लिखा है कि वो एक लुटा-पिटा, जरूरतमंद शख्स है। अब उसे लगने लगा कि उसका काम यहां नहीं होगा। आखिर वो किन लफ्जों में मुस्तकीम से कहेगा कि उसे......तभी मुस्तकीम फिर वहां आ गया। ”माफ करना......ऑफिस में खबर भिजवाने गया था कि आज और कल नहीं आ पाउंगा.......” अच्छा तो इसलिए वो बाहर गया था। फिर कुछ देर बातें हुईं, ”तो आप नहा तो लीजिए.....अरे बुन्दू.....ज़रा तौलिया ले आना और देख बाथरूम में गीज़र ऑन कर दे......आप ऐसा कीजिए कि आप नहा-धो कर थोड़ा आराम कर लीजिए, फिर करेंगे बातें......” वो मुस्तकीम से कहना चाहता था कि वो नहाना-धोना नहीं चाहता, वो चाहता है कि मुस्तकीम उसकी बात सुन ले, उसका मसला समझ ले और बिना उसके मांगे उसे उसकी जरूरत की रकम मुहैया कर दे। लेकिन वो ऐसा कुछ इशारा तक नहीं कर पाया। बस बुन्दू के लाए तौलिए को लेकर गुसलखाने चला गया।

शाम को मुस्तकीम उसे रामपुर दिखाने ले गया, उसने उसे अपने कई दोस्तों से मिलवाया, कई मस्जिदें दिखलाईं, एक पार्क में भी लेकर गया, ये मुस्तकीम वही मुस्तकीम था जो उसकी दुकान पर आता था, उसकी बातें वैसी ही दिलचस्प थीं हालांकि उसकी ज़बान में एक खास किस्म की शाइस्तगी और ठहराव आ गया था। लेकिन आदमी वही था, ऐसा लगता था जैसे पूरा रामपुर ही उसका दोस्त था। अंधेरा होने से पहले ही वो घर वापस आ गए और घर में तो जैसे कई लोगों की दावत का इंतजाम था, वो खाने पर बैठे तो उसके सामने कई तरह के पकवान और मिठाइयां थीं, लेकिन कुछ भी मांसाहारी नहीं था, ऐसा लगता था जैसे मुस्तकीम ने घर में हिदायत दी थी। उसने खाना खाया और फिर वो मुस्तकीम के साथ बैठक में जा बैठा। फिर मुस्तकीम ने उसे अपना पूरा हाल सुनाया, रामपुर वापस आकर मुस्तकीम ने अपना खुद का बिजनेस खोल लिया था और बहुत अच्छा कमा रहा था। उसका निकाह हो चुका था और वो एक बेटी का बाप था, बेटी अपनी मां के साथ अपने नाना के यहां गई हुई थी, तब उसकी बारी आई तो उसने मौका देखकर अपने सारे हाल बयान कर दिए। बस ये नहीं कहा कि वो रामपुर ये सोच कर आया है कि मुस्तकीम उसकी मदद कर देगा। वो ये बात कह ही नहीं पाया, जाने मुस्तकीम उसके बारे में क्या सोचेगा, क्या पता जो इज्जत मुस्तकीम उसे दे रहा था वो भी खत्म हो जाए और मुस्तकीम उसे मायूस कर दे। क्या पता वो उसकी मदद करने से ही मना कर दे। रात बहुत हुई तो मुस्तकीम ने उसे सोने के कमरे में पहुंचा दिया।

वो दिन भर की मानसिक और शारीरिक थकान थी या गिज़ां की अलसाहट की उसे अच्छी नींद आई और जब आंख खुली तो धूप आ चुकी थी, वो उठकर बाथरूम गया, जब वापस आया तो उसके बेड के सिरहाने पर चाय और ताज़ा अखबार रखा था। उसने चाय पी और फिर नहा-धो लिया। वो ऐसे तैयार हुआ कि मुस्तकीम से कहेगा कि वो जा रहा है, अगर कल की बात-चीत से मुस्तकीम ने कुछ इशारा लिया होगा तो मुस्तकीम ही बात शुरु करेगा, और अगर कुछ ना हुआ तो......उसने सिर झटक कर ख्याल को अपने जेहन से बाहर किया। थोड़ी देर बार बुन्दू नाश्ता ले आया, और उसके पीछे ही पीछे मुस्तकीम चला आया।

”अरे आप तो तैयार हो गए हैं....” ”हां वो.....मुझे लगता है कि अब मुझे चलना चाहिए, बस तुमसे मिल लिया हो गया, तुम आओ कभी दिल्ली......” ”हां हां जरूर, क्यों नहीं, लेकिन.....अच्छा अगर आपका जल्दी जाना जरूरी है तो.....मैं तो सोच रहा था कि एक दो दिन रुककर जाएंगे।” उसकी आशाओं पर तुषारापात हो गया, अगर मुस्तकीम उसके जाने की बात इतनी जल्दी मान गया था तो इसका मतलब अब उससे कोई बात करना बेकार था। ”......तो ठीक है, आप तैयार होकर बाहर आ जाइए, मैं वहीं मिलता हूं आपको......नाश्ता करके आइएगा” ये कहकर मुस्तकीम बाहर निकल गया। अब नाश्ता तो उससे क्या ही होता, बस कुछ ऐसे ही मुंह चुभला कर और चाय पीकर वो निकला, बैठक में वही बुर्जुगवार मिले तो उसने उनसे दुआ-सलाम की और दरवाज़ा खोल कर निकल पड़ा, अगर मुस्तकीम उसे छोड़ने तक नहीं आ रहा तो.......

सामने कार में मुस्तकीम बैठा था। ओह तो ये मुझे बस स्टैंड तक कार में छोड़कर आएगा, उसने सोचा और उसका मन वितृष्ण से भर गया। वो कार मैं बैठ गया, ”दिल्ली से रामपुर बस में 6 घंटे लगते हैं, हम पांच में पहुंच जाएंगे। हम.....यानी.....क्या वो उसके साथ दिल्ली जा रहा था। ”अरे हां भई, तो आप क्या समझे, इतने दिनो बाद आप मुझसे मिलने रामपुर आ सकते हैं तो मैं क्या दिल्ली तक नहीं जा सकता......और दिल्ली है ही कितनी दूर, मुझे तो बहुत पहले आपसे मिलने आना चाहिए था, वो तो बिजनेस ऐसा है कि वक्त ही नहीं मिलता, अब तो आपकी दुकान पर चाय नाश्ता करके ही वापस आउंगा” लेकिन दुकान तो सील हो चुकी है, उसने रात ही मुस्तकीम को ये बात बताई थी, ”हां.....दिल्ली में मेरे बहुत जानकार हैं, अगर उनसे बात ना बनी तो रिश्वत तो है ही......खिड़की का शीशा नीचे कर लीजिए, हवा बहुत अच्छी चल रही है, जाती हुई गाड़ी और जाती हुई हवा को रोकना नहीं चाहिए” और वो ज़ोर से हंस दिया। वो भी उसके साथ हंस दिए, ये कोई अजनबी नहीं था, ये वही मुस्तकीम था।

समाप्त

महामानव-डोलांड और पुतिन का तेल

 तो भाई दुनिया में बहुत कुछ हो रहा है, लेकिन इन जलकुकड़े, प्रगतिशीलों को महामानव के सिवा और कुछ नहीं दिखाई देता। मुझे तो लगता है कि इसी प्रे...