बुधवार, 25 जून 2025

मोदी की कोई ग़लती नहीं है।

 







कोई पत्थर से ना मारे, मेरे दीवाने को..... ये गाना है मशहूर फिल्म लैला -मजनूं का। अब ये गाना गाकर मैं आपको कोई फिल्मी दास्तान नहीं सुनाने वाला हूं। दरअसल, ये गाना मुझे तब याद आता है जब मैं एक्सीडेंटली, कोई न्यूज़ चैनल खोल कर देखता हूं। बेचारे पत्रकार, क्या ही बुरा दौर है जब इन एंकरों को पत्रकार कहना पड़ रहा है, कोई पत्थर से ना मारे, जिसका दीवाना हूं मैं। यानी प्लीज़ मोदी जी की कोई आलोचना मत करो। 
नमस्कार, मैं कपिल एक बार फिर से आपके साथ हूं। यानी सामने हूं। तो मामला ये है कि ई डी, सी बी आई, पुलिस, खुद गृहमंत्री और अन्य एम एल ए, एम पियों की धमकियों के बावजूद, कोर्टस् द्वारा बेबात की सज़ाओं के बावजूद, लोग बाज़ नहीं आ रहे। प्रधानमंत्री की आलोचना करते जा रहे हैं। लगातार करते जा रहे हैं। बिना रुके करते जा रहे हैं। अरे तुम लोगों में इंसानियत नाम की कोई चीज़ है कि नहीं। बेचारे प्रधानमंत्री को तुमने चारों तरफ से घेर लिया है।



अभी टरम्प ने जी सेवन से जाने के बाद हमारे प्रधानमंत्री से विशेष आग्रह पर पूरे पैंतीस मिनट, याद रखिए दोस्तों, पूरे पैंतीस मिनट, जो आधे घंटे से पांच मिनट ज्यादा होता है। यानी तीस मिनट के बाद और पांच मिनट तक मोदी ने अमेरिका के राष्टरपति, जो हमारे महामानव के डीयर फरेंड भी हैं, उनसे बात की। बताइए, अमेरिका का राष्टरपति हमारे महामानव से पैंतीस मिनटों तक बात करता रहा, वो भी फोन पर। अब ये इतना महत्वपूर्ण संदर्भ है कि इस पर कई पोस्टर आ चुके हैं, 
पोस्टर पैंतीस मिनट का पोस्टर
भारत के विदेश सचिव ने बकायदा एक वक्तव्य दिया है। इस लगभग पांच मिनट के वक्तव्य में उन्होने मोदी और टरम्प की पैंतीस मिनट की फोनकॉल की दो बातों पर खास ज़ोर दिया है। 


एक ये बात राष्टरपति टरम्प के आग्रह पर हुई। यानी हमारे महामानव तो नहीं चाहते थे, जबकि उनके डीयर फरेंड डोलान्ड ने उनसे विशेष आग्रह किया तो हमारे प्रधानमंत्री इस टेलीफोनिक बातचीत के लिए माने। 
दूसरी जो महत्वपूर्ण बात है वो ये कि ये बातचीत पैंतीस मिनट तक चली। याद रखिएगा दोस्तों, पैंतीस मिनट, पैंतीस मिनट, पैंतीस मिनट। 




दोस्तों आप को एक बार फिर बता दूं कि पैंतीस मिनट में तीस से पांच मिनट ज्यादा होते हैं, आसान भाषा में ये बातचीत आधे घंटे से ज्यादा चली। 



बाकी बातचीत क्या हुई, इस बारे में तो हमें मिसरी जी का भरोसा ही करना पड़ेगा, क्योंकि ये बातचीत क्या हुई, वो या तो मोदी जानते है, या टरम्प जानते होंगे, या फिर ईश्वर ही जानता होगा। 
अब मिसरी जी ने हमें बताया कि इस बातचीत में मोदी ने डोलान्ड को साफ - साफ कह दिया कि इस पूरे मामले में कभी भी, ना तो कोई टरेड डील की बात हुई, ना ही भारत-पाक के बीच मध्यस्थता की बात हुई। मिसरी जी ने, जैसा कि उनकी टरेनिंग है, बहुत विश्वास के साथ, शब्दों पर ज़ोर देकर ये वक्तव्य दिया, ताकि उनका वक्तव्य विश्वसनीय हो जाए। इसके बाद तमाम मीडिया ने इसे उठा लिया, और इस फोन की बातचीत को एंकर प्वाइंट बना कर महामानव के आलोचकों से भिड़ गए। ये तो होना ही था। गड़बड़ तब हुई जब शाम को ही खुद डोलान्ड बाबू ने एक बार फिर कह दिया कि, ”मैं ने वॉर रुकवा दी” 
और वो यहीं तक नहीं रुका, उसने एक बार फिर कह दिया कि, ”अब मैं टरेड डील करूंगा” 

उसने आगे भी कहा कि, ”वो दोनो, यानी इंडिया और पाकिस्तान, तो लड़ रहे थे। मैं ने वॉर रुकवा दी।” 

अब देखिए भाई, आप टरम्प को कुछ कहने से रोक नहीं सकते। उसने कह दिया, वो लगातार कह रहा है, कि उसने वार रुकवा दी, उसने टेड की धमकी देकर वॉर रुकवा दी। उसने तो ये तक कह दिया कि वो पाकिस्तान को प्यार करता है। वो तो जी सेवन से मोदी से मिले बिना चला गया और जाकर आसिफ मुनीर के साथ उसने खाना खा लिया। अब टरम्प को तो कोई रोक नहीं सकता। कम से कम मोदी जी तो नहीं ही रोक सकते। लेकिन हमारे यहां के लोग, ये अहसान फरामोश लोग, जिनके लिए मोदी जी ने इतना- इतना कुछ किया। रेलवे स्टेशन पर चाय बेची, फिर घर से भागकर भीख मांग कर गुज़ारा चलाया। अडवाणी जी की डिजिटल फोटो को ई-मेल से दिल्ली भेजा, अपनी बसी बसाई गृहस्थी छोड़ दी, इसी बीच किसी तरह एंटायर पोलिटिकल साइंस में एम ए किया। देश पर अहसान करते हुए पी एच डी नहीं किया बस। इतना कुछ किया मोदी जी ने इस देश के लिए, ताकि देश के लोग उनका अहसान मानें। लेकिन ये लोग कुछ समझते ही नहीं हैं। 
ये लोग फिर से मोदी जी के पीछे पड़ गए। यार कुछ तो सिम्पैथी रखो यार मोदी जी के लिए। मैं आपको पक्का बता रहा हूं, कि मोदी जी ने टरम्प से ये बात की होगी कि, माई डीयर फरेंड डोलान्ड, ये तुम इंडिया-पाकिस्तान की वॉर रुकवाने की बात करना बंद करो। टरम्प ने कहा होगा, ठीक है, अब नहीं कहूंगा। तो मोदी जी ने मिसरी जी को कह दिया होगा कि चलो दे दो स्टेटमेंट, कि ना तो टरेड डील की बात हुई, ना मध्यस्थता की बात हुई। लेकिन टरम्प ने मोदी जी को धोख दे दिया। उसी शाम को फिर से यही दोहरा दिया। 



अब जिनके भी दोस्त हैं, धोखेबाज दोस्त हैं, वो इन धोखेबाज़ दोस्तों की फितरत जानते ही हैं। 
लेकिन आप, मेरे भारत के बहनो भाइयों, मोदी जी के मितरों.....आप तो समझदार बनो। क्या यही आपकी इन्सानियत है, आप मोदी जी को ज़रा तो मौका दो, ज़रा सा उन्हें सांस लेने दो। उस आदमी ने, माफ कीजिएगा, ज़बान फिसल गई, महामानव ने कितनी मेहनत की है, कितने त्याग किए, कैसे - कैसे प्रयत्न किए हैं, आपको क्या मालूम, इस पैंतीस मिनट की फोन कॉल के लिए। उन्होने पता नहीं क्या - क्या प्रयास करके जी सेवन का इन्वीटेशन हासिल किया, जब वो प्लेन से उतरे तो उन्हें रिसीव करने के लिए एक छुटके नेता को भेज दिया गया, कारपेट तक नहीं बिछाया गया। 

एक प्रधानमंत्री का, वो भी नॉनबायोलॉजिकल प्रधानमंत्री के इतने बड़े अपमान को महामानव, थूक के साथ गटक गए। इसके बाद फोटो सेशन, जो महामानव का सबसे पसंदीदा शगल है, उसमें भी उन्हें शामिल नहीं किया गया। 

इसे भी मोदी ने जब्त कर लिया। फिर उनसे मिले बिना टरम्प निकल लिए। लेकिन महामानव ने एड़ी-चोटी का ज़ोर लगाकर कोशिश की और आखिरकार, टरम्प के साथ फोन से बात करने में वो सफल हो ही गए। महामानव के इतने प्रयासों को आप कोई महत्व नहीं दे रहे हैं, और टरम्प के एक छोटे से बयान पर आप उनकी आलोचना कर रहे हैं। 
अरे कुछ तो इन्सानियत रखो यार। 
महामानव देश के पी एम हैं, और देश के पी एम को इतनी छूट तो मिलनी चाहिए कि वो जब किसी से फोन पर बात करे, तो उसकी बात का यकीन किया जाए, और अगर इसके बाद उसकी बात झूठ निकले तो उस पर बात ना की जाए, या कम से कम उसकी आलोचना ना की जाए। 
माना कि पाकिस्तान के साथ युद्ध में सबसे पहले अमेरिका ने कहा कि सीज़फायर हुआ है।
माना कि टरम्प ने ये तक कह दिया कि उसने सीज़फायर के लिए भारत को टरेड की धमकी दी थी।
माना कि टरम्प ने ये तक कह दिया था कि उसने भारत पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता की।
माना कि हमने आज तक सार्वजनिक तौर पर, खुले में अमेरिका से ये नहीं कहा कि ऐसा नहंी हुआ था। 
माना कि प्रधानमंत्री ने कहीं ये बयान नहीं दिया, दबी जुबान भी ये नहीं कहा कि टरम्प जो कह रहा है वो ग़लत कह रहा है।
फिर भी, मेरा मतलब फिर भी, जैसा भी है, वो आपका प्रधानमंत्री है, महामानव है। उसकी आलोचना मत करो यार। कुछ तो इन्सानियत रखो। 

कुल मिलाकर मामला ये है कि ग्रह कुछ उल्टे चल रहे हैं। अभी महामानव का कुछ सीधा नहीं पड़ रहा, चीन गलवान दबाकर बैठा है, पाकिस्तान से दोस्ती कर ली। अमेरिका ने पाकिस्तान की मदद की, उसे दोस्त कह दिया, पूरी दुनिया में कोई दोस्त साथ नहीं आ रहा। और उपर से देश में भी तुम जैसे लोग उन्हें चैन नहीं लेने दे रहे।

चचा ग़ालिब ने कहा था

डंका जो बज रहा था, दुनिया में ए दोस्त
आवाज़ नहीं आई, क्या ढोल फट गया

ये शेर ग़ालिब ने एक बार नशे की हालत में लिखा था, हमें मिल गया तो आपको सुना दिया। मोदी जी सुनेंगे तो कहेंगे कि ये ग़ालिब ने नहीं कहा। लेकिन हमें पता है कि दुनिया में देश के डंके की बाबत ग़ालिब अपनी तीखी नज़र से देख कर ये शेर कह गए थे कि बवक्ते ज़रूरत काम आए। 

बाकी आपसे अनुरोध है कि ब्लॉग को सब्सक्राइब कर लें, इसे लाइक करें, अहसमति हो तो कमेंट करें, ना हो तो भी कमेंट करें। और हां, शेयर भी करें। ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग इस बात को समझें कि मोदी से सहानुभूति रखें, उनकी आलोचना ना करें, जैसे न्यूज चैनलों के एंकर लोग नहीं कर रहे। बाकी आपकी मर्जी, हम कोई सुप्रीम कोर्ट तो हैं नहीं कि आपको ये बताएंगे कि आपको क्या सोचना है। आप अपनी मर्जी के मालिक हैं। नमस्ते।











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