अभी हाल ही में एक भयानक हवाई हादसा हुआ। हालांकि भारत के प्रधानमंत्री हमें किसी और हादसे के परिप्रेक्ष्य में ये समझा ही चुके हैं कि ये हादसे दरअसल ईश्वर जनता को ये चेतावनी देने के लिए करते हैं कि जनता हर चुनाव में उन्हीं की पार्टी को वोट करे।
खैर, विमान हादसा हुआ तो जाहिर है कि मासूम जनता ये सोचेगी कि भई इसकी जांच होगी, और हो सकता है कि कोई ऐसी बात निकल कर आए कि भविष्य में किसी हादसे से बचा जा सके। लेकिन हमारी मजबूत सरकार पहले से ही सब जानती है। इसलिए हमारे गृहमंत्री कहते हैं, साफ-साफ कहते हैं कि ये एक्सीडेंट है और एक्सीडेंट कोई रोक नहीं सकता।
कुल मिलाकर मामला वही है जो मैं ने आपको पहले ही बताया था। जब ये चराचर जगत ईश्वर इच्छा से चल रहा है, तो जाहिर है ये हादसे भी ईश्वर इच्छा से ही होते हैं, और हमारी सिद्ध सरकार के मुखिया, उप-मुखिया, आदि ये अच्छी तरह जानते हैं कि ईश्वर की इच्छा के विरुद्ध कुछ भी करना, पाप होता है। इसलिए इस हादसे को, या इन हादसों को ईश्वर की इच्छा मानिए, और जांच-फांच की बेकार बातें करके, प्रधानमंत्री, गृहमंत्री आदि को परेशान मत कीजिए।
ज़रा सोचिए, मान लीजिए कि किसी हादसे की जांच होती है और कोई तकनीकी गड़बड़ी सामने आ जाती है। अब अगर तकनीकी गड़बड़ होगी तो जाहिर है ये भी तय होगा कि जिम्मेदारी किसकी थी। जो लोग मेहनत करके किसी पद तक पहुंचे हैं, और अब सत्ता सुख भोग रहे हैं, आप चाहते हैं कि उनके सिर पर जिम्मेदारी का ठीकरा फोड़ दिया जाए। आप उन्हें परेशान करना चाहते हैं, वो तो भला हो रक्षा मंत्री का जो ऐसे किसी भी प्रयास को जड़ से ही मार देते हैं।
ग़लती या जिम्मेदारी किसी की भी हो, जिस सरकार में सारा काम ईश्वर की इच्छा से होता हो, वहां इस्तीफा नहीं होता। ये कोई कमजोर सरकार तो है नहीं, कि यहां एक रेल दुर्घटना होने पर नैतिक आधार पर इस्तीफा दे दिया जाता। एक थे रेल मंत्री भला सा नाम था उनका, वो लाल बहादुर शास्त्री, सुना एक रेल हादसा हो गया था, 1956 की बात है शायद, थूटूकोडी एक्सप्रेस पटरी से उतरी और उस हादसे में 150 लोगों की मौत हुई। लाल बहादुर शास्त्री ने इस्तीफा दे दिया, कमजोर सरकार के मंत्री थे। उस वक्त प्रधानमंत्री की छाती छप्पन इंच की नहीं होती थी, इसलिए मंत्रियों में कुछ नैतिकता बोध होता होगा। आज ये सब नैतिकता-फैतिकता की फालतू बातें नहीं होती, इसलिए कोई भी हादसा हो, मंत्री लोग को कोई फरक नहीं पड़ता, वो तो सीधे-सीधे धमकाते हैं, कि अगली बार से तुम चला लेना, देखें कैसे एक्सीडेंट नहीं करते।
है किसी में हिम्मत ऐसा सोचने की, ऐसा कहने की। ये हिम्मत सिर्फ छप्पन इंची छाते वाले पी एम की पार्टी के लोगों की ही हो सकती है। सुनते हैं लाल बहादुर शास्त्री ने एक रेल हादसे के बाद ही इस्तीफा दे दिया था। हमारे वर्तमान रेलमंत्री बहुत बहादुर हैं, दर्जनों रेल हादसे हो गए, उनके माथे पर शिकन तक नहीं आई, उन्हें किसी बात की जिम्मेदारी से कोई मतलब ही नहीं है, मेरा मतलब ना वो हादसों की जिम्मेदारी लेते हैं, ना उनसे विचलित होते हैं, जैसे हमारे प्रधानमंत्री!
विमान हादसा हुआ, रेल हादसा हुआ, आतंकवादी घटना हुई, कोई प्राकृतिक विपदा आ गई मान लो, प्रधानमंत्री को कोई फर्क नहीं पड़ता। जब पुलवामा हादसा हुआ था, तो हमारे प्रधानमंत्री डिस्कवरी चैनल के लिए एक डॉक्यूमंेटी शूट कर रहे थे।
अगर कोई ऐसा वैसा, कम बड़ी छाती वाला पी एम होता उस वक्त, तो फौरन शूटिंग छोड़ कर भागता कि अपनी जिम्मेदारी निभाए। लेकिन महामानव तो महामानव हैं, उन्हें सूचना मिली, लेकिन उनके माथे पर शिकन तक न आई, कितने ही लोग मर जाएं, हमारे पी एम बहुत जीवट वाले हैं, एक तो उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता, दूसरे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता, तीसरे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। उन्होने इत्मिनान से अपनी शूटिंग पूरी की, फिर पूछा, ”हां भई बताओ, क्या हुआ?” आखिर सब कुछ ईश्वर इच्छा से होता है, उनका ईश्वर से सीधा कनेक्शन है, तो......बाकी आप समझदार हैं।
पर अभी मैं बात कर रहा हूं अहमदाबाद में हुए विमान हादसे की। सारा देश शोक मे हैं, कई सारे हादसे एक साथ हुए हैं, और ये देश लगातार शोक में चल रहा है। पहलगाम का शोक, फिर केदारनाथ में हैलीकॉप्टर क्रैश हो गया, फिर अहमदाबाद विमान हादसा हो गया, फिर केदारनाथ में हैलीकॉप्टर क्रैश हो गया, फिर इंद्रयाणी नदी का पुल गिर गया, उसमें मरने वालों के लिए शोक।
प्रधानमंत्री अहमदाबाद विमान हादसा मनाने पहुंचे तो उनके साथ हर एंगल से तस्वीर लेने वाले लोग मौजूद थे, तस्वीरें बहुत बढ़िया आई हैं। ऐसा होना भी चाहिए, जिम्मेदारी कोई भले ना ले, पर वीडियो तो सुंदर होना ही चाहिए।
पर अंतिम सवाल ये है कि विमान हादसे की जिम्मेदारी किसी मंत्री को लेनी चाहिए या नहीं। तो भाई इसका सीधा सा लॉजिक ये हैं ये सवाल
पहला: क्या भारत की कोई राष्टरीय विमानन सेवा है?
जवाब है नहीं। किसी जमाने में भारत की राष्टरीय विमान सेवा होती थी, जिसे एयर इंडिया कहा जाता था, लेकिन अब इसका निजीकरण हो चुका है, और अब टाटा ग्रुप इसका मालिक है। तो जब भारत की कोई निजी विमानन सेवा ही नहीं है तो फिर भारत सरकार किसी भी विमान हादसे की जिम्मेदारी क्यों और कैसे ले सकती है।
सवाल दो: भारत में हवाई अड्डों का संचालन किसकी जिम्मेदारी है।
जवाब: भारत में हवाई अड्डों का संचालन और रख-रखाव ए ए आई यानी एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया करती है। लेकिन अब ज्यादातर एयरपेार्ट जिन्हें हिन्दी में हवाई अड्डा कहा जाता है उन्हें अडाणी या जी एम आर ग्रुप देखते हैं। अब ये जो एयर इंडिया के विमान के साथ हादसा हुआ, उसका मालिक टाटा ग्रुप था, और जिस हवाई अड्डे से उस विमान ने उड़ान भरी उसका संचालन और देखरेख अडाणी करता है। ऐसे में प्रधानमंत्री हों, गृहमंत्री हों, या नागरिक उड्डयन मंत्री हों, ये सब किसी भी हादसे की जिम्मेदारी कैसे ले सकते हैं। बल्कि असली सवाल तो ये बन जाता है कि जब देश की कोई विमान कंपनी नहीं, हवाई अड्डों को निजी कंपनियां संभाल रही हैं, तो फिर देश में उड्डयन सेवा संबंधित कोई मंत्रालय भी क्यों होगा? और आखिर सिविल एविएशन मिनिस्टर करता क्या होगा? उसकी कोई जिम्मेदारी तो होगी नहीं, कि उसके हाथ में कुछ है नहीं। तो वो तो अफसोस ही जाहिर कर सकता है। वैसे कोई बता सकता है कि देश के वर्तमान सिविल एविएशन मिनिस्टर हैं कौन, कहीं, किसी जगह उनकी अफसोस वाली वीडियो या बयान हो तो कमेंट में लिंक दीजिएगा। सिविल एविएशन मिनिस्टर और कुछ बेशक ना कर सकता हो, कम से कम अफसोस जाहिर करता दिखे तो भी कुछ तो ढाढस बंधेगी पीड़ितों को।
बल्कि मेरा तो कहना है ये मोदी जी के दस सबसे मजबूत और भविष्य द्रष्टा वाले कदमों में गिना जाना चाहिए। हवाई सेवा, हवाई अड्डा, बेच दो, सड़कें, रेलें, जंगल, जमीन, बांध, नदियां, टेलीफोन, गैस, पैटरोल सबका निजीकरण कर दो। सरकार सिर्फ दो चार चीजों के लिए बनी रहनी चाहिए।
एक तो इलैक्शन के लिए, कि इलैक्शन होगा तो सरकार होगी।
दूसरा ईडी, सी बी आई आदि को किस के पीछे लगाना है, इस काम के लिए,
तीसरा सत्ता सुख लेने के लिए, जैसे विदेश यात्राएं, पांच सितारा सुविधाएं, मुफ्त कार, बार, आदि की सुविधा लेने के लिए,
चौथा किसी को धमकी देनी हो, बलात्कार आदि करने हों तो, अगर एम पी, एम एल ए ना हों तो ये काम साधारण गुंडे करने लगते हैं। और अच्छा नहीं लगता।
और पांचवा और सबसे महत्वपूर्ण काम ये कि यदि कोई इस तरह का हादसा हो जाए, तो वहां जाकर फोटो, वीडियो निकालने के लिए, रील बनाने के लिए, और ज्यादा हो तो अफसोस जाहिर करने के लिए सरकार का, प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, रक्षामंत्री आदि आदि मंत्रियों का होना जरूरी है।
तो इन कामों को सरकार पूरा करे, बाकी जिम्मेदारी ईश्वर की है कि वो किसे मारना चाहता है, किसे बचाना चाहता है, इस काम में सरकार ही क्या कर लेगी, आप लोग अपनी किस्मत को रोते रहिए, और मनाते रहिए। सरकार ईश्वर भरोसे ही रहेगी.....
अरे हां, ग़ालिब ने इस मामले में भी एक शेर लिख मारा है
वो कहते हैं।
हौसला दे सकता है हर कोई जमाने में
सरकार वो है जो सिर्फ अफसोस जाहिर करे
बाकी आप खुद समझदार हैं, लाइक, सब्सक्राइब और शेयर, करें और इस सबमें शेयर सबसे इम्पॉर्टेंट है। ठीक है जी। नमस्ते।
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