ये जो युद्ध चल रहा है, या बंद हो चुका है, या बंद होते हुए भी चल रहा है, यही इस्राइल -ईरान वाला। जिसके सीज़फायर का बिल भी डोलान्ड बाबू ने अपने नाम पर फाड़ लिया है। यही युद्ध, काफी ख़तरनाक युद्ध है। अब ये बेकार की बात है कि किसने युद्ध शुरु किया, और किसका कितना नुक्सान हुआ। असली सवाल जो हम जैसे भारतप्रेमियों को, देशप्रेमियों को पूछना चाहिए कि हमारा इस युद्ध में क्या और कैसा रोल रहा। हमने इस युद्ध में क्या किया, और अब हम क्या करेंगे या कर सकते हैं।
नमस्कार, मैं कपिल, हालांकि ईरान-इस्राइल युद्ध के बारे में मुझे इतनी ही जानकारी है, जितनी हमारे प्रधानमंत्री को होगी, हो सकता है थोड़ा इधर-उधर हो जाए, लेकिन हमारे महामानव को जो जानकारी है, उनके अब तक के ज्ञान को देख कर, सुन कर समझ कर यही लगता है कि उनकी जानकारी मुझसे ज्यादा नहीं हो सकती। लेकिन खैर मैं अपने इस ज्ञान के भंडार को आपके साथ शेयर करना चाहता हूं। जैसा इस देश के तमाम ज्ञानी, विद्वान लोग कर रहे हैं। खासतौर पर हमारे देश के जो मीडिया चैनल हैं, उन्होेंने सबसे तेज़ और सबसे पहले होने की क़समें खा रखी हैं। अब जब ये मीडिया चैनल वाले यू ट्यूब देख कर, टिक-टॉक देख कर आपके सामने अपना ज्ञान परोस सकते हैं तो मैं क्यों नहीं, या आप ही क्यों नहीं।
ज़रा सोशल मीडिया खोल कर देखिए, इस वक्त हर व्यक्ति ईरान-इस्राइल वॉर का विशेषज्ञ बना बैठा है, कोई आपको ईरान का इतिहास बता रहा है, कोई इस्राइल के बखिए उधेड़ने लगा हुआ है। लेकिन मैं आपको जो बताने जा रहा हूं, वो बहुत ही खास है। खास इस तरह है कि मैं आपना ज्ञान तो आपको दूंगा ही, साथ ही आपको ये भी बताउंगा कि इस युद्ध में, हमारा, यानी महामानव का क्या योगदान रहा, कि कहीं इतिहास में जब इस दौर की बातें लिखी जाएं तो महामानव के इन क़दमों को कहीं भुला ना दिया जाए।
तो चलिए शुरु से शुरु करते हैं। हमारी सबसे बड़ी उपलब्धि ये रही कि जब पूरी दुनिया ढूंढ रही थी कि यू एस कहां है तो हमारे विदेश मंत्री ने बताया कि यू एस दरअसल यू एस ए में था।
अब बताइए, इतनी महत्वपूर्ण जानकारी, वो चाहे किसी भी संदर्भ में दी गई हो, आखिरकार दुनिया के काम तो आई। दुनिया को पता चला कि यू एस आखिर यू एस ए में ही है। भई इतना ताकतवर देश और सिर्फ हमारे विदेश मंत्री को पता था कि वो आखिर है कहां। आखिरकार यही सूचना दुनिया के काम आई।
जब इस्राइल ने ईरान पर पहला हमला किया, तो उन्होने मोदी जी को फोन किया था। आप उस फोन के बारे में नहीं जानते हैं, नेतन्याहू ने मोदी जी को जानकारी दी कि उन्होने ईरान पर हमला कर दिया है। हालांकि मुझे अब तक ये पता नहीं चल पाया है कि मोदी जी ने उसे क्या कहा, किस ज़बान यानी भाषा में दोनो की बात हुई, मोदी जी के द्वारा जो पता चला वो यही कि मोदी जी ने नेतन्याहू को अपनी चिंताएं बताईं, और इलाके में जल्द से जल्द शांति और स्थाईत्व की बहाली की बात कही। मोदी जी इस सलाह या आदेश इसे आप जो भी समझें, को मानकर आखिरकार नेतन्याहू ने 12 दिनों के बाद सीज़फायर की बात, चाहे आधी -अधूरी ही सही मान ली।
अब बात रही डोलान्ड द्वारा सीज़फायर की, तो मितरों, आखिर डोलान्ड बाबू को ये सीज़फायर का आइडिया दिया किसने। भारत - पाकिस्तान वॉर से पहले डोलान्ड बाबू ने कितना ही फूं-फां किया हो, किस वो रूस-यूक्रेन की वॉर रुकवा देगा, लेकिन रुकवा नहीं पाया, उसने कहा कि वो अमेरिका के सामने पूरी दुनिया को घुटनों पर ला देगा, नहीं ला पाया, उसने कहा कि वो अमेरिका को फिर से महान बना देगा, नहीं बना पाया। यानी वो जो-जो भी काम करना चाहता था, वो उसका धेला भर भी नही ंकर पाया, उसके मस्क जैसे दोस्त उसका साथ छोड़ गए, तब जी हां तब, उसका डीयर फ्रेंड मोदी ही उसके काम आया।
आपको शायद याद ना हो, यही मोदी था जिन्होने टरम्प को अमेरिका में चुनाव जितवाया था।
और यही मोदी था जिसने आखिरकार डोलान्ड को मौका दिया कि वो दुनिया में कहीं किसी जगह दो देशों के बीच युद्ध विराम या सीज़फायर करने का ठेका ले सके। भारत पर हमला आतंकवादी हमला हुआ, और मोदी सरकार ने पाकिस्तान पर ऑपरेशन सिंदूर कर दिया। तब ये डोलान्ड ही था, जिसने एक दिन सुबह-सुबह ये घोषणा कर डाली कि उसने भारत -पाकिस्तान के बीच सीज़फायर करवा दिया है।
और ये कहके उसने नोबेल शांति पुरस्कार की तरफ एक क़दम बढ़ा दिया, और इस तरह उसे ये समझ में आया कि अगर उसे नोबेल शांति पुरस्कार चाहिए तो उसे कुछ बड़ा करना होगा। कुछ ऐसा कि दुनिया की समझ में आए कि वो कितना महान प्रेसीडेंट है। इसलिए जबसे इस्राइल ईरान वॉर शुरु हुई वो तबसे इसी कोशिश में था कि वो किसी तरह डरा-धमका कर, थोड़ा समय लेकर, थोड़ा इधर-उधर करके वहां सीज़फायर करवा दे। आखिरकार उसे मौका मिला और उसने ईरान-इस्राइल में सीज़फायर की घोषणा कर दी। अब आप ये पूछेंगे कि इसमें भारत यानी मोदी का क्या हाथ था। तो मेरे दोस्तों, पहले तो डोलान्ड बाबू को आइडिया ही भारत-पाक वॉर से मिला, दूसरे नेतन्याहू को शांति की बहाली का आदेश देकर, नींव तो सुपरमैन मोदी पहले ही रख चुके थे, डोलान्ड ने तो सिर्फ उस पर रंदा फिराया है। इस तरह पूरी दुनिया के सामने चाहे यही हो कि सीज़फायर मोदी ने करवाया है, पर असल सीज़फायर महामानव ने करवाया है। जैसे भारत-पाक का सीज़फायर चाहे पूरी दुनिया की निगाह में डोलान्ड ने करवाया हो, लेकिन असल में ये सीज़फायर मोदी ने करवाया है। बस वो अपनी जबान से नहीं बोल रहे कि ये सीज़फायर उन्होने करवाया है। इस तरह उन्होने डोलान्ड के दिल में अपने लिए एक परमानेंट सीट रिजर्व करवा ली है।
यूं महामानव चाहते तो एक फोन कॉल से ईरान-इस्राइल वॉर भी रुकवा ही सकते थे, लेकिन उन्होने जानबूझ कर ऐसा नहीं करवाया, क्योंकि तब उन्हें रथयात्रा में शामिल होने का मौका नहीं मिलता। हालांकि अपने पूरे शासनकाल में पहली बार उन्होने रथ यात्रा में हिस्सा लिया है जबकि ये रथयात्रा हर साल आयोजित होती है। लेकिन आप ही सोचिए, आप देश में ही हों, और रथयात्रा का आयोजन हो, तो ऐवें ही उसमें शामिल हो जाने में क्या ही मजा होगा। असली मजा तो तब है जब आप कहीं विदेश में हों, और वापिस आकर रथयात्रा में शामिल हों, और ये कह सकें कि देखिए रथयात्रा के लिए विदेश यात्रा तक छोड़ दी। एक बात आ जाती है उसमें, वो यूं ही रथयात्रा में शामिल होने वाली बात नहीं होती।
अब इससे आपको समझ में आया होगा कि डोलान्ड के साथ सिर्फ मुनीर ने खाना क्यों खाया। हमारे महामानव ने उसे मना कर दिया था। बताइए इसके बाद डोलान्ड के पास क्या चारा बचता है, आखिर इतने बड़े देश का राष्टपति, अकेले तो खाना खा नहीं सकता था, मोदी ने मना कर दिया। इसलिए आखिरकार उसने हताश होकर मुनीर को बुलाया और उसके साथ खाना खा लिया। जय हो महामानव की जय हो।
देश के विपक्षी दल, वामपंथी और ये कथित प्रगतिशील पूछ रहे हैं कि ईरान-इस्राइल में हमारी यानी देश की क्या भूमिका थी। तो गिन लीजिए कि हमने ईरान-इस्राइल युद्ध में क्या-क्या हासिल किया है ताकि सनद रहे।
1. युद्ध शुरु होते ही नेतन्याहु ने मोदी को फोन करके आर्शिवाद लिया, लेकिन मोदी ने उसे साफ-साफ बता दिया कि वो इलाके में शांति चाहते हैं। मोदी की बात को मानते हुए नेतन्याहु ने बारह दिन बाद उनके दोस्त डोलान्ड के सीज़फायर को मान लिया। हम विश्वगुरु हुए।
2. डोलान्ड से पैंतीस मिनट फोन पर बात की, और वो भी उसके आग्रह पर की, जिसमें उसे डांट दिया कि वो भारत-पाक के सीज़फायर की बात ना करे। डोलान्ड इस बात को नहीं माना और उसने शाम को फिर कह दिया कि उसने भारत पाक के बीच सीज़फायर करवाया। उसकी इस धृष्टता के लिए उसे क्षमा कर दिया। हम क्षमावाान हुए। छिमा बड़ेन को चाहिए छोटन को उत्पात।
3. अमेरिका ने इस बीच अपने लोगों में ये एडवाइज़री जारी कर दी कि अकेलिी महिलाएं भारत की यात्रा ना करें कि यहां रेप हो सकता है। राजस्थान से खबर है कि उदयपुर में एक फ्रांसिसी महिला के साथ बलात्कार हुआ है, इस तरह हमने इस बात को भी सच्चा साबित कर दिया और एक बार फिर पूरी दुनिया में भारत का डंका बजा। हम अपने मन के मालिक हुए, हमें कोई नहीं रोक सकता।
अब सारे फायदे मैं ही थोड़े गिनाउंगा.....अरे भई कुछ जिम्मेदारी तो आप भी लीजिए, और इन कांग्रेसियों को, वामपंथियों को मुंहतोड़ जवाब दीजिए। कमेंट में ईरान-इस्राइल युद्ध में भारत की भूमिका पर कमेंट कीजिए, ताकि पता चल सके कि हम कितने महान देश हैं।
चचा ग़ालिब माफ कीजिएगा, इन बातों को बहुत पहले से जानते थे, उन्होने बहुत सारे शेर लिखे हैं। एक शेर इस बाबत भी लिखा है, आप मुलाहिजा फरमाइए।
वो कह गए हैं कि
ईरान वॉर पे कभी तुम हमसे पूछना ग़ालिब
हम खुल के बताएंगे क्या हमने किया हासिल
ग़ालिब ने जब ये शेर लिखा था तो उनका मूड खराब था, इसलिए बहुत अच्छा नहीं बन पड़ा, लेकिन उन्होने हमसे वादा किया था, कि अगली बार कोई अच्छा शेर सुनाएंगे।
आप सिर्फ वीडियो मत देखिए, लाइक, कमेंट और शेयर भी कीजिए, ताकि दूसरों तक भी महामानव उर्फ देश की उपलब्धियां पहुंच सकें। फिर मिलते हैं, तब तक के लिए नमस्ते।
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