शौर्य का सौदा
नमस्कार, चलिए भारत-पाकिस्तान का युद्ध, अगर उसे युद्ध कहा जा सके तो खत्म हुआ। हालांकि जो और जिस तरह की कार्यवाही हुई वो बंटवारे के बाद से लगभग हर पांच-सात सालों में चलती ही रहती है, और इस बार भी कोई अंतिम फैसला हुआ ऐसा नहीं लगता। लेकिन पहलगाम में जो हुआ पाकिस्तान को उसका जवाब दिया गया, भरपूर दिया गया, बढ़िया दिया गया।
प्रधानमंत्री ने फौरन अपनी विदेश यात्रा रद्द की और वापिस देश आ गए। उन्होंने एक लोकतांत्रिक देश का प्रधानमंत्री होने की अपनी ड्यूटी निभाई। कि अगर देश पर हमला हो तो प्रधानमंत्री को सबसे पहले देशवासियों यानी देश की जनता को हौंसला बंधाना चाहिए। इसलिए प्रधानमंत्री ने आते ही देश के लोगों को हौंसला दिया, हालांकि ये हौंसला उन्होने बिहार में जाकर दिया, मुख्यमंत्री नितीश कुमार की बगल में बैठकर उन्होने बिहार चुनाव की रणभेरी बजा दी।
हम जानते हैं कि रणभेरी उन्हे पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध की बजानी चाहिए थी, लेकिन इसमें आपकी समझ का धोखा है, देखिए, रणभेरी, रणभेरी होती है, वो कहीं से भी बजाई जा सकती है। प्रधानमंत्री को तो आप जानते हैं, वे आपदा को अवसर में बदलने में माहिर हैं। उन्होंने देशवासियों को और पूरी दुनिया को दिखा दिया कि, चाहे पहलगाम पर आतंकवादी हमला हो या पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध हो, वे अपने कार्यक्रम से टस से मस नहीं होने वाले। मजबूत कमरपट्टी वाले प्रधानमंत्री ने पाकिस्तान को जवाब इस तरह दिया कि देखो मियां हम तुम्हारे इन हमलों से ज़रा भी चिंतित नहीं हैं। इतने भी नहीं कि अपने चुनावी कार्यक्रम को रोक कर देश की जनता को संबोधित करें। बताइए और किसी प्रधानमंत्री में आप किसी ऐसे हौसले की उम्मीद कर सकते हैं। ये कमाल हमारे माननीय, आदरणीय, विश्वगुरु, सुंदर दाढ़ी वाले प्रधानमंत्री ही कर सकते हैं।
और किसी टटपूंजिए पार्टी की सरकार होती, तो प्रधानमंत्री दिल्ली में उतरता और जब तक युद्ध का फैसला ना हो जाता, तब तक बाकी सारे कार्यक्रम स्थगित कर देता। पर वर्तमान प्रधानमंत्री ने ऐसा नहीं किया, ऐसा लोहे का हौंसला इसी प्रधानमंत्री के पास है। बुरा हो विपक्षियों का ऐसे समय में प्रधानमंत्री की इस हरकत का बेजा मतलब निकाल रहे हैं। मुझे तो भई बहुत गुस्सा आता है जब अपने प्रधानमंत्री को कोई अनुपस्थित प्रधानमंत्री कहता है। हौंसला चाहिए जनाब इस हरकत के लिए।
देश पर कोई आतंकवादी हमला हुआ हो, और प्रधानमंत्री कहे कि सारे एकजुट हो जाओ, सब एकजुट हो भी जाएं, लेकिन फिर एकजुट होने का नारा देने वाला उस एकजुटता की बैठक से ही गायब हो जाए। इसके लिए हौसला चाहिए, जो प्रधानमंत्री के अलावा किसी में नहीं है। सुनते हैं उन्होने दो सर्वदलीय बैठक बुलाईं और दोनो से ही गायब रहे। देखिए इसका सीधा सा गणित ये है कि ये सर्वदलीय बैठकें हाथी के दिखाने वाले दांत थे। विपक्षी पार्टियों के पास कोई अधिकार नहीं, कोई सत्ता नहीं। सिर्फ सवाल और सलाह थीं, जिनकी प्रधानमंत्री को कभी कोई जरूरत पड़ी नहीं। और इसीलिए ये कोई ऐसी महत्वपूर्ण बैठकें नहीं थीं जिनमें प्रधानमंत्री का होना जरूरी हो। सलाह हमारे प्रधानमंत्री ने किसी की मानी नहीं आज तक, और सवालों के जवाब तो उन्हें लिख कर दिए जाएं तो भी वो गड़बड़ कर देते हैं।
इस देश को पता नहीं किन अच्छे कर्मों के फलस्वरूप ऐसे देवता प्रधानमंत्री मिले हैं, जो चंद्रयान के समय वैज्ञानिकों को फार्मुले बता देते हैं, सर्जिकल स्टराइक के समय सेना के आला अफसरों को उपाय सुझा देते हैं, दुनिया भर से उन्हें युद्ध विराम के लिए गुहार लगती रहती है, जिन युद्धों को कोई नहीं रुकवा पाए उन्हें वो एक कॉल पर रुकवा देते हैं।
ऐसे प्रधानमंत्री को भला क्या जरूरत होगी विपक्ष या जनता को विश्वास में लेने की।
हो सकता है कि पहलगाम में आतंकवादी घटना में सुरक्षा चूक हुई हो, लेकिन इसे इस तरह कहना तो देशद्रोह है, सरासर देशद्रोह है। आप ये कह सकते हैं कि अच्छा होता कि पहलगाम में ये आतंकवादी घटना ना हुई होती, पर्यटकों को पर्याप्त सुरक्षा मिली होती, लेकिन होई है सोई जो राम रचि राखा....
लेकिन सबसे ज्यादा बुरा है पहलगाम में आतंकवादी घटना के शिकार लोगों जिनमें पर्यटक भी थे, और स्थानीय लोग भी थे, की हत्याओं का कोई राजनीतिक लाभ लेना। और देखिए विपक्षी पार्टियां यही कर रही हैं। इन्होने पहले भी यही किया था। राहुल गांधी ने पुलवामा के शहीदों के नाम पर वोट मांगे.....
माफ कीजिएगा, बहुत कोशिश करने पर भी हमें राहुल गांधी वाला वीडियो नहीं मिला, दरअसल हमे पूरे विपक्ष के किसी भी नेता द्वारा पुलवामा के शहीदों के नाम पर वोट मांगने वाला वीडियो नहीं मिला। लेकिन इस वीडियो में प्रधानमंत्री जो कह रहे हैं, वो दरअसल विपक्षियों के मन की बात है। हमारे प्रधानमंत्री मन की बात के भी माहिर हैं, और वे राजनीति के भी माहिर हैं। वे जानते थे कि विपक्षी पार्टियां पुलवामा के शहीदों के नाम पर राजनीति करेंगी और वोट मांगेंगी, इसलिए उनके इस कदम को टांय-टांय फिस्स करने के लिए उन्होंने पहले ही पुलवामा के शहीदों के नाम पर वोट मांग लिए, लेकिन अपने मन में ये विचार रखने के लिए देश की जनता विपक्ष को कभी माफ नहीं करेगी।
इस बार भी यही हो रहा है। जब प्रधानमंत्री ने पाकिस्तान के खिलाफ एकजुट हो जाने की बात कही, तब विपक्ष के मन में था कि एकजुट नहीं होंगे और सर्वदलीय बैठक से गायब हो जाएंगे, लेकिन प्रधानमंत्री उनका ये इरादा पहले ही भांप गए और खुद सर्वदलीय बैठक से गायब हो गए।
उसके बाद क्या हुआ। उसके बाद विपक्षी पार्टियों ने राजनीति करना शुरु किया। बताइए, किसी लोकतंात्रिक देश में किसी को भी ये अधिकार क्यों होगा कि वो सरकार से सवाल करे, और सवाल भी सेना की कार्यवाही को लेकर किए जाएं। ये तो गलत है, सरासर गलत है। मानते हैं कि सीज़फायर की घोषणा अमरीका के राष्टरपति टरम्प ने की थी, लेकिन वो हमारे प्रधानमंत्री के डीयर फ्रेंड हैं, और एक दोस्त दूसरे दोस्त के लिए क्या नहीं कर सकता, और इसलिए प्रधानमंत्री ने टरम्प की घोषणा के बाद सीज़फायर की घोषणा करके प्रधानमंत्री ने दोस्ती का फर्ज अदा किया है।
आपको ये तो मानना पड़ेगा, प्रधानमंत्री ने कभी सीधे-सीधे टरम्प की इस घोषणा का खंडन नहीं किया, कि उसने दोनेा देशों को व्यापार की धमकी देकर सीज़फायर करवाया, लेकिन भारत की सम्प्रभुता को ऐसे बचा लिया कि पहली घोषणा के बाद खुद घोषणा करके सीज़फायर किया। मेरे ख्याल में ये एक बहुत ही बारीक कूटनीतिक बात है, जिसे रवीश कुमार, राहुल गांधी, और बाकी मोदी विरोधी नहीं समझ पाएंगे, कभी नहीं समझ पाएंगे, इस कूटनीति को समझने के लिए आपके पास अंजना ओम कश्यप की पत्रकारिता संबंधी काबिलियत,
अर्णब गोस्वामी जैसा अभ्यास,
रुबिका लियाकत जैसी ईमानदारी,
अमीश देवगन जैसी दिलेरी चाहिए।
कहां से लाओगे?
प्रधानमंत्री ने इसके बाद जो कदम उठाया वो तो पाकिस्तान पर कार्यवाही और सीज़फायर से भी बड़ा मास्टर स्टरोक था। उन्होने दोतरफा रणनीति अपनाई, खुद को पूरे देश में इस युद्ध का विजेता स्थापित करने का आनन-फानन कार्यक्रम बनाया और साथ ही पूरी दुनिया में भारत का पक्ष रखने के लिए और दुनिया का जनमत भारत के पक्ष में बनाने के लिए बहु-पार्टी टीमों का गठन किया गया और उन्हें भी आनन-फानन रवाना कर दिया गया। इस तरह एक तरफ पूरी दुनिया में ये टीमें मोदी को स्थापित करेंगी और यहां मोदी पूरे भारत में खुद को स्थापित करेंगे। सुनते हैं कि ये टीमें विदेशों में जाकर वहां के भूतपूर्व मंत्रियों, नौकरशाहों और राजनयिकों से मिल रही हैं, और उनसे भारत के बारे में अच्छी - अच्छी बातें कह रही हैं।
लेकिन महत्वपूर्ण ये है कि ये टीमें वहां जो भी मिल रहा है, उन्हें ये समझा रही हैं कि मोदी कितने प्रभावशाली व्यक्ति हैं, और वे कितने अच्छे प्रधानमंत्री हैं।
पूरे देश में मोदी फौजी वर्दी पहने जेट से निकलते हुए का पोस्टर छपवा दिए हैं। ऐसा लगता है कि बस अभी-अभी पाकिस्तान पर बम गिरा कर आए हैं। गुजरात में रैली किए तो खुद कर्नल सोफिया कुरैशी के परिवार वालों से अपने उपर फूलों की बारिश करवा लिए, इसमें मेरा बस ये सुझाव है कि जीप या कार की जगह अगर मोदी हाथी पर होते, तो क्या शानदार दृश्य होता, वाह, मजा ही आ जाता। जैसे एक राजा युद्ध जीत कर आया हो, और जनता उसके उपर पुष्प वर्षा कर रही हो।
ये जो आपके सवाल हैं कि युद्ध की जानकारी जनता के साथ, विपक्षी पार्टियों के साथ शेयर करनी चाहिए, ये नाजायज सवाल हैं। आप सवाल पूछ रहे हैं कि बताइए पाकिस्तान का दावा है कि उसने हमारे जेट मार गिराए। बताइए, हम आपको क्यों बताएंगे, और जिसने बताया उसने घोर इनडिसीप्लिन किया, उसे इसकी सजा मिलनी चाहिए। किसी विदेशी चैनल पर बोल दिया कि ये महत्वपूर्ण नहीं है कि जेट गिरे, महत्वपूर्ण ये है कि हमने उससे सीखा और फिर जो हमला किया वो सफल रहा। भई ये बात बताने से पहले प्रधानमंत्री से पूछना चाहिए था, पूछना क्या चाहिए था, सरकार का रुख समझना चाहिए था। सरकार के प्रवक्ता कह रहे हैं कि ये बताने से सेना का मौरल डाउन होता है, और सेना के अफसर खुद ही ये बात बता दे रहे हैं, अब सरकार के प्रवक्ताओं का मौरल डाउन हो गया, बताइए इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा?
अरे हां, सिंदूर को तो भूल ही गया था लगभग.....एक ऑपरेशन सिंदूर किया था पाकिस्तान के खिलाफ, एक सुना कि भारत में भी सिंदूर दान का कार्यक्रम करने की योजना थी, पहले टीवी पर इसकी घोषणा की गई थी, लेकिन बुरा हो, नेहा राठौर का, ममता बनर्जी का, कि इसकी ऐसी मजम्मत की, कि सरकार को, यानी मोदी जी हो ये प्रोग्राम ही कैंसिल करना पड़ा। नेहा राठौर का कहना था, ममता बनर्जी का भी यही कहना था, कि भारत में सिंदूर सिर्फ पति दान कर सकता है, तो इस तरह का कोई भी प्रोग्राम घातक होगा। बताइए, ऐसा कहीं होता है, मोदी जी ने क्या शानदार कार्यक्रम रखा था, पूरे देश में भाजपा कार्यकर्ता, एक चुटकी सिंदूर लेकर जाते और महिलाओं को दान करते, और यूं पूरे देश में वन नेशन, वन हसबैंड कार्यक्रम बन जाना था। ये मैं नहीं कहता, किसी फेसबुक पोस्ट पर पढ़ा था तो यहां आपको बता दिया। खैर सिंदूर कार्यक्रम भी विफल रहा, यानी बैकफुट पर आ गया, अब क्या कहा जाए, सेना के शौर्य का जिस तरह का भौंडा राजनीतिकीकरण विपक्ष कर रहा है, वो वाकई बहुत खराब कदम है। इन्हें मोदी से सीख लेनी चाहिए जो अपने किसी भी भाषण में ऑपरेशन सिंदूर का क्रेडिट नहीं ले रहे, वो पहले ही कह चुके हैं कि मुझे क्रेडिट नहीं चाहिए।
देखिए, किसी भी आतंकवादी हमले के खिलाफ अगर किसी का कोई स्टेटमेंट होना चाहिए तो वो गृहमंत्री का होना चाहिए, जिन्हें हम कई बार देख चुके हैं। ऑपरेशन सिंदूर ना सही, पर गोभी के फूल के साथ अपने ही देशवासियों की हत्या के संबंध में उनकी तस्वीर बहुत लुभावनी थी, एक गृहमंत्री के आचरण का अच्छा उदाहरण उन्होने पेश किया है। इसके अलावा ऑपरेशन सिंदूर के समय रणनीतिक योजना बनाते हुए उनकी जो वीडियो आई उसमें वो सिर हिला रहे हैं, बहुत गंभीर चेहरा बना कर बैठे हैं, हमें तो इसी से तसल्ली हो गई, बस गृहमंत्री ऐसा ही दिखना चाहिए, चुपचाप सिर हिलाते हुए। हमने तो तभी सोच लिया था कि हम जीत गए।
फिर भी मैं ये कहना चाहता हूं कि विपक्ष को ऑपरेशन सिंदूर का पॉलिटिसाइजेशन यानी राजनीतिकरण नहीं करना चाहिए, मोदी जी से सीखना चाहिए कि किस तरह इस तरह की कोई भी हरकत बहुत बुरी होती है, देश हित में नहीं होती है। बस आपसे ये कहना था कि ऑपरेशन सिंदूर को दिल में रखिए और सेना के शौर्य के राजनीतिकरण के विपक्ष के मंसूबांे को फेल कर दीजिए।
अब ग़ालिब का वो शेर जो उन्होने शायद इसी दिन के लिए लिखा था
वो मांगते हैं हमसे देशभक्ति का सबूत
जो वोट मांगते हैं सेना के नाम पे.....
ज्यादा वाह वाह मत कीजिए, ग़ालिब का ही शेर है। आपने शायद सुना नहीं है, ग़ालिब अपने जमाने से आगे के शायर थे। समझे
अब जल्दी ही इसे लाइक और शेयर करके अपनी देशभक्ति का सबूत दीजिए, ठीक है। अगली बार फिर मिलेंगे नमस्ते।
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