सोमवार, 29 सितंबर 2025

पति बेटा और हेडमास्टरस्ट्रोक








ये विपक्ष तो बिल्कुल ही हाथ से निकलता जा रहा है, कहां देश फिर से अपने स्वर्णयुग यानी वही ब्राहम्णवाद की तरफ बढ़ाया जा रहा है और ये हैं कि इस पवित्र रास्ते में कदम-कदम पर रोड़ा अटकाने की कोशिश कर रहे हैं। अभी पता चला कि कुछ दिन पहले दिल्ली की महान मुख्यमंत्री रेखा जी गुप्ता के पति मनीष जी गुप्ता ने जब दिल्ली की कामन संभाली तो इन विपक्षियों के कलेजे पर सांप लौटने लगा। अरे वाह, अब क्या कोई हिंदु नारी लोकतांत्रिक चुनाव जीतने पर अपने पति को मीटिंग्स में भी नहीं बुला सकती, अब क्या कोई मुख्यमंत्री पति सीधे सरकारी अफसरों को नौकरशाहों को निर्देश या आदेश भी नहीं दे सकता। बताइए, ये कोई बात हुई भला। सदियों से हमारे देश में, मेरा मतलब है जबसे हमारे देश में लोकतंत्र की स्थापना हुई है, हमने संविधान में महिलाओं को समान अधिकार दिए जाने की बात पर हामी भरी है, लेकिन इसका ये मतलब तो नहीं कि असल में महिलाओं को समान अधिकार दे दिए जाएंगे। जब हम हिंदु राष्टर बना लेंगे तो पक्का हम मनुस्मृति लागू कर देंगे और महिलाओं को समाज में दोयम दर्जा मिल जाएगा, लेकिन जब तक इस संविधान से चलना हमारी मजबूरी है, तब तक ये तो किया ही जा सकता है कि मुख्यमंत्री पद की शपथ एक महिला को दिलवा दी जाए, और असल में पॉवर उसके पति को दी जाए, क्यों? तो ऐसा करके रेखा जी गुप्ता जो मुख्यमंत्री हैं दिल्ली की, और मनीष जी गुप्ता जो पति-परमेश्वर हैं, रेखा जी गुप्ता के, उन्होने एक मिसाल कायम की है, एक उदाहरण सामने रखा है, कि किस तरह देश की सभी महिलाओं को ये समझ जाना चाहिए कि हिंदु राष्ट में क्या होने वाला है। और खुशी की बात ये है कि ये हिंदु राष्ट बस देहरी पर खड़ा हुआ है, बस एक पैर उठा और अंदर.....



लेकिन इस विपक्ष ने तो आसमान सिर पर उठा लिया, कहने लगे कि ये प्रोटोकॉल के भी खिलाफ है, और उस शपथ के भी खिलाफ है जो रेखा जी गुप्ता ने मुख्यमंत्री बनने के लिए ली थी। अब कोई बताए इस विपक्ष को कि भैये ये तैयारी है आने वाले हिंदु राष्टर की, पर तुम क्या जानो इन बातों की बारीकियां। तुमने तो अपनी प्रगतिशीलता को सिर पर बैठाया है और हिंदु संस्कृति को नष्ट करने या कम से कम भ्रष्ट करने की तैयारियां कर रहे हो। 


फिर सुनने में आया कि महामानव ने मणिपुर की यात्रा करने का फैसला आखिरकार ले ही लिया। सब प्रभु की लीला है, पिछले एक साल से सभी गुहार लगा रहे थे, कि महामानव एक बार तो मणिपुर का दौरा कर लें, लेकिन महामानव ठहरे महामानव, कितनी ही हिंसा भड़की, कितनी ही आगजनी हुई, महिलाओं का रेप हुआ। महामानव ने अपनी यात्राओं की दिशा बदल ली, वे अमरीका गए, अफ्रीका गए, योरोप भी गए हों शायद, चीन भी गए, देश के भी कई हिस्सों में घूमें, लेकिन मणिपुर नहीं गए। नहीं गए तो नहीं गए, अब प्रधानमंत्री हर कहीं तो जा नहीं सकता, मेरा मतलब है जब तक दिल ना चाहे तब तक तो नहीं ही जा सकता। लेकिन आखिरकार महामानव की अंर्तचेतना ने पलटी मारी, हमारे एक परम मित्र का कहना है कि अमरीका के इशारे पर महामानव के अंतर्आत्मा ने चिकोटी काटी होगी, लेकिन हम उस मित्र की बात नहीं मानते, महामानव नॉनबायोलॉजिकल हैं, उनकी आत्मा चिकोटी नहीं काटती, उन्हें ईश्वर आदेश देता है, तो ईश्वर ने महामानव को आदेश दिया कि जा, इस मौसम एक चक्कर मणिपुर का लगा। बस फिर क्या था, महामानव ने फौरन एक टिप मणिपुर का बना लिया। महामानव के टिप के लिए मणिपुर की सड़कों के किनारे स्वागत के पोस्टर लगाए गए, जिन्हें सुना है धूर्त मणिपुरियों ने फाड़ दिया, महामानव ने पूरी एहतियात बरती कि वे जाएं तो सड़क के दोनो तरफ बच्चों की कतार हो, जैसे राजाओं -महाराजाओं के जमाने में हुआ करती थी, ताकि महामानव चलती गाड़ी से हाथ हिला सकें। इसलिए स्कूल के बच्चों को भरी बारिश में खड़ा किया गया। बंदोबस्त तो एक एंबुलेंस का भी होना चाहिए था, जो महामानव के कारों के कारवां के बीच में आ जाती, और फिर महामानव एक बार फिर अपनी महामानवीयत दिखाते हुए एंबुलेंस को रास्ता दे देते, लेकिन समय पर एंबुलेंस का इंतजाम नहीं हो सका। इसलिए महामानव ने बड़ा त्याग किया और एंबुलेंस की जगह सिर्फ दो-चार उद्घाटन मणिपुर मे ंकर दिए, ताकि सनद रहे। और फिर शानदार टिप के बाद वापस आ गए। लेकिन फिर भी, फिर भी इस विपक्ष को चैन नहीं आया, ये जो वोट चोर - गद्दी छोड़ का नारा अभी चल रहा है, सुना मणिपुर में भी भीड़ ने वो नारा लगा दिया। महामानव का वैसा स्वागत नहीं हुआ, जैसा कि उम्मीद थी। खैर आगे इस बात का ध्यान रखा जाएगा, हो सकेगा, तो बिहार, या गुजरात से लोगों को मणिपुर ले जाया जाएगा, ताकि महामानव के जाने पर कोई ये कहने वाला मिल सके कि महामानव के कारण ही वो वहां मौजूद है, और उसने महामानव को छुआ है, इसलिए उसे मोक्ष प्राप्त हो गया है। 


लेकिन इन सबमें आप ये मत भूल जाइएगा कि महामानव ने इस वक्त यानी इस समय वो काम किया है जो न सिर्फ आश्चर्यजनक है, बल्कि अभिभूत करने वाला भी है। महामानव ने निश्चय किया कि वे अपनी मां का, 

पिण्डदान करेंगे, बताइए। एक नॉनबायोलॉजिकल व्यक्ति, एक ऐसा व्यक्ति जो सीधे ईश्वर से आदेश लेता हो, वो अपनी मां का पिंडदान करेगा। इतना बड़ा त्याग, इतना शील, इतनी शर्म, इतनी इंसानियत, इतनी महानता, अरे कोई नोबेल वालों को फोन करो भई। ऐसा गज़ब हमने तो अपने जीवन में कभी नहीं देखा यार। बिहार में चुनाव की सरगर्मी है, चुनाव आयोग जबरदस्ती का एस आई आर करवा रहा है, राहुल गांधी, वोट अधिकार यात्रा निकाल चुके हैं, पूरा बिहार गर्म है, नितीश कुमार, आपकी जानकारी के लिए बता दूं, ये बिहार के मुख्यमंत्री हैं, ये नितीश कुमार, कभी टीचर्स पर लाठियां पड़वा रहे हैं, कभी छात्रों पर, कहीं - कहीं तो किसानों को भी नहीं बख्शा जा रहा है, जो नौकरी मांगने पहुंचे, मारो लाठी, जो अपना जन-अधिकार मांगने पहुंचे, मारो लाठी, जो कुछ ना करे बेचारा, उस पर भी मारो लाठी, और ऐसे में, महामानव का बिहार में ही अपनी मां का पिंडदान करना, और असली बेटा होना किसे कहते हैं आखिर। महामानव को बिहार का चुनाव नहीं दिखाई देता, वे इस सब मोह - माया से परे हैं, बिहार में अपनी मां का पिंडदान वो इसलिए नहीं कर रहे कि बिहार में चुनाव है, बल्कि इसलिए कर रहे हैं ताकि वो अपना कर्तव्य पूरा कर सकें। 


ये विपक्षी, ये नाहंजार क्या समझेंगे, ये लोग बात-बे-बात में महामानव की मां को राजनीति में घसीट लाते हैं। ये तो महामानव ही हैं, जो सीने पर पत्थर रख कर सबकुछ झेल जाते हैं, और बिहार में चुनावों के समय अपनी मां का पिंडदान करके भी बिहार की चुनावी राजनीति में अपनी मां को शामिल करने से बचे रहते हैं। पुत्रभक्ति की ऐसी मिसाल, जिसमें कोई ऐसा व्यक्ति जो अपनी मां को पहले ही नकार चुका हो, उसका पिंडदान करे, आपको इतिहास, मिथक, पुराण आदि में भी नहीं मिलेगी। अरे कोई नोबेल वालों को फोन लगाओ रे। 


पर इस देश का विपक्ष, उफ, क्या कहें। इतना सब कहना पड़ता है, लेकिन इन्हें समझ नहीं आती। विपक्ष इस देश का, इसे जो ना कहा जाए वो कम है। दुनिया के और देशों के विपक्ष को देखो, कैसे लगातार अपनी सरकार के गुणगान करते हैं। एक हमारा विपक्ष है कि सरकार के किसी कदम की तारीफ ही नहीं करता। सरकार ने जी एस टी का मास्टर स्टोक लगाया, तो इसने विरोध किया, कहते थे कि जी एस टी में संशोधन करो, फिर सरकार ने दोबारा मास्टर स्टोक लगाया कि जी एस टी में संशोधन कर दिया, अब भी विरोध कर रहे हैं, कहते हैं सरकार निकम्मी है। बताइए, महामानव की सरकार को निकम्मी बता रहे हैं, निर्मला ताई ने क्या शानदार स्टोक मारा, महामानव के नेतृत्व में, जी एस टी में ऐसा संशोधन किया है कि अब सब कुछ फिर से पटरी पर आ जाएगा। ना ना, इसका ये मतलब नहीं है कि महामानव ने पहले कुछ ग़लत किया था, इसका बस इतना मतलब है कि महामानव तब भी सही थे, अब भी सही हैं, जैसे रुपये की गिरती कीमत से प्रधानमंत्री और भारत सरकार की इज्जत की गिरावट वाला बयान भी सही था, और अब ये बयान कि रुपया नीचे नहीं गिर रहा, डॉलर उपर चढ़ रहा है भी ठीक है, दोनो ही मास्टर स्टोक हैं, बस देखने वाली नज़र चाहिए, जो विपक्ष के पास नहीं है। 


बिहार में एस आई आर करवाना हालांकि चुनाव आयोग का काम है, लेकिन ये वाली लाइन तो महामानव की ही थी कि ये एस आई आर घुसपैठियों की वजह से करवाया जा रहा है। इसलिए चुनाव आयोग के इस मास्टर स्टोक को भी महामानव का मास्टर स्टोक माना जाए। तो विपक्ष ने इसका पुरजोर विरोध किया। इतना विरोध किया कि पूरे बिहार में, और फिर पूरे देश में चुनाव आयोग के खिलाफ ही एक माहौल सा बन गया, और सुप्रीम कोर्ट को चुनाव आयोग को ठीक करना पड़ा। लेकिन महामानव ने चुनाव आयोग को डिफेंड किया, और विरोधियों यानी विपक्षियों को हड़काया कि ये लोग घुसपैठियों की ढाल बन रहे हैं, इसलिए एस आई आर का विरोध कर रहे हैं। ये भी यकीन मानिए मास्टर स्टोक ही है। ये मास्टर स्टोक पर मास्टर स्टोक लगाते जाना सिर्फ महामानव के ही बस की बात है, हम आप जैसे साधारण इंसान ये नही ंकर सकते। तो कुल मिलाकर भक्तजनों आज की कहानी बस ये है कि मास्टर स्टोक के मास्टर ने मां का पिंडदान करके हेडमास्टर स्टोक लगाया है, अब गंेद विपक्ष के पाले में है, जो बे-बात पर महामानव की मां को राजनीति में घसीट रहा था। हमें विपक्ष को सबक सिखाना चाहिए और महामानव की मां को आदरणीय श्रद्धांजली देनी चाहिए। 

चचा ग़ालिब ने इसी बात पर एक लाजवाब शेर कहा था, शेर आपकी नज़र है, इसे नज़र मत लगाइएगा।
ग़ौर कीजिए

ग़में रोज़गार इतना भी ना हो ग़ालिब
विपक्ष से हमें प्यार भी ना हो ग़ालिब
हर क़दम तेरा दिखे मास्टर स्टोक हमें
वोट चोरी का इल्ज़ाम भी ना हो ग़ालिब

अब वोट चोरी, वोट बंदी वाला मामला बहुत हुआ, ग़ालिब चचा कह रहे हैं, कि बस करो यारों। हो गया, अब महामानव को फिर से अपनी फॉर्म में आने दो, कुछ तो इज्जत रखो यार। 
पर मुझे मालूम है तुम ऐसा नहीं करोगे, क्योंकि विपक्ष हो, विपक्ष ही रहोगे, और महामानव के मास्टर स्टोक का विरोध करते रहोगे। तो ठीक है करते रहो, जो मन करे। 

शुक्रवार, 26 सितंबर 2025

नेपाल भारत नहीं हो सकता।


 


 जनाबेमन, जब से नेपाल में नौजवानों ने उपद्रव मचाया, कुछ लोग इसे क्रांति भी कह रहे हैं, जेन ज़ी की क्रांति, खैर तो मेरा ख्याल है आठ तारीख को नेपाल में नौजवानो ने प्रदर्शन करना शुरु कर दिया था, और जल्द ही नेपाल की पार्लियामंेंटजिसे हिंदी में संसद कहते हैं, ना सिर्फ उस पर कब्ज़ा कर लिया बल्कि उसे आग लगा दी। प्रधानमंत्री को भागना पड़ा, इस्तीफा भी भाई ने भागते-भागते ही दिया सुना है। वित्त मंत्री को नंगा करके पीटा और सड़कों पर दौड़ा दिया। 



नेपाल भारत के पड़ोस में एक छोटा सा देश है, जहां ये सबकुछ हुआ, इससे पहले श्री लंका और बांग्लादेश में भी ऐसा ही कुछ हो चुका है। दोनो ही देशों में जनता ने प्रधान मंत्रियों को और अन्य मंत्रियों को दौड़ाया, मारा-पीटा है, तो अब भारत की अगल-बगल के तीन देशों में तो ये हो चुका है। तो भारत के कुछ विद्वान प्रगतिशीलों को लगने लगा कि क्या भारत में भी ऐसा कुछ हो सकता है। मेरा मानना है नहीं, बिल्कुल नहीं, कतई नहीं, ना ना ना। भारत में ये सब, या ऐसा कुछ हो ही नहीं सकता। मैं आपको बताता हूं क्यों।


सबसे पहले तो साल 2014 में भारत पर पहली बार एक हिंदू राजा का राज्यारोहण, जिसे अंग्रेजी में कोरोनेशन कहते हैं हुआ था। 


अभी इस वीडियो में जो आपने सुना वही मैं हिंदी में कह रहा हूं, महामानव का कोरोनेशन यानी राज्याभिषेक हुआ था। तो विश्वगुरु, ब्रहमांडगुरु, नॉनबायोलोजिकल, महामानव भारत की राजगद्दी पर विराजमान हुए थे। याद रखिए नेपाल में इसका उल्टा हुआ था। नेपाल में राजा से उसकी ताकत छीन कर पार्लियामेंट बनाया गया था, जबकि भारत में संसद में ही महामानव का राज्याभिषेक हुआ था। ऐसे में आपको कैसे लगता है कि भारत में वो हो सकता है जो नेपाल में हुआ था। खैर आगे बढ़ते हैं। 


नेपाल के नौजवान, सुनते हैं, वहां के मंत्रियों के भ्रष्टाचार से बहुत परेशान थे। भारत में जबसे महामानव ने सत्ता संभाली है, एक भी भाजपा नेता के उपर भ्रष्टाचार का आरोप नहीं लगा है, बल्कि अगर किसी विदेशी व्यक्ति पर भ्रष्टाचार का कोई आरोप लगा भी हो, तो उसने भाजपा की सदस्यता ग्रहण की और उस पर से भ्रष्टाचार के हर आरोप हट गए हैं। यानी भारत में भ्रष्टाचार नहीं है, कतई साफ, स्वच्छ और भ्रष्टाचार मुक्त सरकार महामानव चला रहे हैं। बाकी जो थोड़ा बहुत भ्रष्टाचार है, वो सब विपक्ष के नेता कर रहे हैं, उन सबको एक - एक करके, किसी ना किसी बहाने से महामानव और डिप्टी महामानव जेल भेज रहे हैं, उनके इस काम में ईडी, सी बी आई, और न्यायालय उनकी मदद कर रहे हैं। ऐसे में जब भारत में कोई भ्रष्टाचार है ही नहीं तो फिर बताइए, नेपाल जैसी कोई चीज़ हो ही कैसे सकती है। यानी नहीं हो सकती, ऐसा मुझे विश्वास है। 


दूसरे, नेपाल में नौजवानों का आरोप है कि सारे नेता, जिनमें प्रधानमंत्री भी शामिल हैं, पूंजीपतियों के हाथों की कठपुतली हैं, बताइए, आपको भारत में कोई ऐसा लगता है, जो किसी पूंजीपति के इशारे पर काम करता हो। जबसे महमानव ने राजगद्दी संभाली है, भारत में तो तरह से रामराज्य आ गया है। यहां बाघ और बकरी एक ही घाट पर पानी पीते हैं, बाघों को भारत में खास इसी काम के लिए अफ्रीका से मंगाया गया था, या शायद चीतों को मंगाया गया था, और बकरियों की कुर्बानी पर रोक लगा दी थी, ताकि वो एक ही घाट पर चीतों के साथ पानी पी सकें। मामले का लब्बो-लुबाब ये है कि भारत में भ्रष्टाचार नहीं है, पूरी दुनिया में है, अमेरिका, फ्रांस, रूस, चीन, सब देशों में भ्रष्टाचार है, भारत की विपक्षी पार्टियों मे ंतो भ्रष्टाचारी भरे हुए हैं, लेकिन महामानव की पार्टी में आप टॉर्च लेकर भी ढूंढोगे तो आपको कोई भ्रष्टाचारी नहीं मिलेगा, यही इस पार्टी की खासियत है, और इसलिए भारत में नेपाल जैसा कोई सिनेरियो बन ही नहीं सकता, ऐसा मुझे पूरा विश्वास है।


तीसरे कोर्ट यानी न्यायालय, यानी संविधान के रक्षा के लिए हमने ऐसी - ऐसी संस्थाएं खड़ी की हैं, जो कमाल की हैं। हमारे कोर्ट, हमारे जज, कभी सत्ता के साथ कोई जुगाड़ नहीं करते, हमारे न्यायाधीशों पर कभी करप्शन के आरोप नहीं लगे। यहां तो ऐसी समरसता है कि एक धर्मविशेष के भगवान को ही मुकद्मे में पार्टी बना दिया गया था, एक जज साहब ने तो बकायदा कहा था कि वे अपने ईश्वर का स्मरण करके सोए और जागकर उन्होने एक ऐतिहासिक फैसला लिख दिया था। ऐसे में आप समझ ही सकते हैं कि कैसे हमारी न्यायपालिका ने अपनी धर्मनिरपेक्षता बचा कर रखी हुई है। ऐसी बेदाग न्यायपालिका से भला किसी को शिकायत ही क्या हो सकती है। नेपाल में, श्री लंका में, और बांग्लादेश में भी न्यायपालिका का सत्ता से गठजोड़ था, जज अपने घरों पर नेताओं को, सत्ताधारी पार्टी को बुलाते थे, हमारे देश में ऐसा नहीं होता। जज अपनी दूरी बना कर रखते हैं, और किसी भी सत्ताधारी पार्टी के नेता से उनका कोई सामाजिक संबंध नहीं होता, इससे उनकी निष्पक्षता बनी रहती है। ऐसे में न्यायपालिका में जनता का विश्वास भी बना रहता है। जैसे हमारे यहां न्यायाधीश सत्ता द्वारा निर्दोष मामलों में सालों जेल में पड़े रहने वाले लोगों के पक्ष में अक्सर ही फैसला सुनाते रहते हैं, और इस तरह किसी भी तरह का राजनीतिक दुरुपयोग नहीं करने दिया जाता है। ना ही उन्हें अपने रिटायर होने के बाद किसी तरह का लोभ-लालच होता है, इसलिए वे पूरी तरह निष्पक्ष फैसला सुनाते हैं। हमारे देश में कभी ऐसा नहीं हुआ कि बिना मुकद्में के किसी को सालों जेल में रखा गया हो। 


इतनी सारी खूबियां होने के चलते हमारा देश नेपाल जैसी हालत होने से बचा हुआ है, और बचा रहेगा, ऐसा मुझे विश्वास है।

अब आते हैं, राजनीतिक भ्रष्टाचार पर। सुना बांग्लादेश में चुनाव आयोग ने सत्तापक्ष को सत्ता में बने रहने के लिए चुनावों में ही गड़बड़ कर दी थी। यानी आप वोट किसी को भी दो, जीतना उसी को था, जिसे चुनाव आयोग चाहता था। हो सकता है कि नेपाल में भी ऐसा हुआ हो। लेकिन हमारे देश यानी भारत में ऐसा होना संभव ही नहीं है, यहां का चुनाव आयुक्त जो महिलाओं की निजता का इतना ख्याल रखता है कि वोटिंग की वीडियो को रिलीज़ नहीं करता, यहां तक कि वोटिंग का डाटा तक रिलीज़ नहीं करता, बल्कि उसके दुरुपयोग की आशंका के चलते उसे अपनी साइट तक पर नहीं डालता और इस तरह चुनाव की, लोकतंत्र की मर्यादा को बचाकर रखता है। हां कुछ लोग हैं, जो चुनाव आयोग पर धंाधली का आरोप लगात हैं, लेकिन ये लोग ठीक लोग नहीं हैं, इसलिए इनकी तरफ ध्यान नहीं देना चाहिए, बल्कि चुनाव आयोग ने तो चेतावनी भी दी थी इन्हें। तो ऐसे में मेरे दोस्तों, भारत में नेपाल जैसे हालात नहीं हो सकते, क्योंकि चुनाव आयोग, स्वतंत्र, निष्पक्ष और जवाबदेह है। ऐसा मुझे विश्वास है। 


अब आते हैं, नौजवानों के असंतोष की। तो इसमें एक बात तो ये है कि ये नौजवान आजकल बहुत असंतोष में जी रहे हैं। मुझे तो इनकी मांगे ही समझ नहीं आती। पहले तो ये कहते हैं कि हमें पढ़ाई करनी है। अब इतने सारे लोगों की पढ़ाई की व्यवस्था तो हो नहीं सकती, इसलिए सरकार कांवड़ यात्रा को व अन्य धार्मिक कार्यों का प्रचार करती है, धार्मिक बाबाओं की ऐसी लंबी कतार है कि क्या कहने, इन्हें संसद में बुलाकर इनका सम्मान किया जाता है। इसमें एक थंबरूल ये है जो बाबा जितना मूर्ख होगा, उसे उतना ही बड़ा सम्मान दिया जाता है। खैर इससे एक तो बच्चों की पढ़ाई से ज्यादा धार्मिक कार्यों में रुचि बढ़ती है, दूसरे पढ़ाई की जिम्मेदारी से सरकार मुक्त हो जाती है। दूसरा असंतोष है सरकारी नौकरियों में कमी की, तो भई हमारे महामानव ने आते ही कहा था कि यारों पकोड़े बेचना भी रोजगार है, साइकिल का पंचर लगाना, रेल में चना-चबैना बेचना भी रोजगार है, तो इस तरह सरकार देश में करोड़ों बल्कि अरबों रोजगार दे चुकी है, दूसरे आपके पेपर लीक का मनोविज्ञान समझना होगा। देखिए जब कोई पेपर लीक होता है, तो वो बुरा नहीं होता, उसका फायदा ये होता है कि बच्चों में ये आशा बनी रहती है कि चलो इस बार लीक हुआ है, यानी एक अटेम्पट अभी और दिया जा सकता है।



ऐसे में हमारे देश में नौजवान असंतुष्ट हो ही नहीं सकते। ये जो आप नौजवानों को पुलिस से पिटता हुआ देखते हो, ये सब विपक्ष की चाल है, और हमारे नौजवान भी ये जानते हैं, इसलिए ये कभी नेपाल जैसे हालात यहां नहीं आने देंगे। ऐसा मुझे विश्वास है। 

हमारे देश में महिलाओं का बड़ा सम्मान होता है। इस मामले मे ंतो हमारे विश्वगुरु महामानव ने ऐसी उपलब्धि हासिल की है, जिसका मुकाबला पूरी दुनिया में कोई नही ंकर सकता। हमारे देश में एक ढोंगी संत बना हुआ था, जिस पर बलात्कार का आरोप सिद्ध हुआ है, वो जेल में पड़ा हुआ है, इसमें कोई ढील नहीं है, दूसरा एक मंत्री था, उसे भी जेल में डाला गया है, तीसरा हालांकि बाहर आया है, पर इसके लिए कोई दबाव किसी पर नहीं था, वो तो खुद पीड़िता ने शिकायत वापस ले ली, वरना.....खैर हमारे देश में बढ़िया सिस्टम है, जिसमें रेप होने पर शिकायत होती है, फिर शिकायतकर्ता खुद शिकायत वापस ले लेती है, जिस पर रेप का आरोप हो, अगर वो सत्ताधारी पार्टी में हो तो उसका समर्थन किया जाता है, ताकि किसी के दिल में कोई शक-शुबह हो तो वो संभल जाए, और आइंदा ऐसी कोई शिकायत सामने ना आ सके। और इसलिए हमारे देश में नेपाल जैसा कुछ होने के चांसेज़ माइनस में हैं, ऐसा मुझे पूरा विश्वास है। 

ऐसे में मेरे दोस्तों, जब हमारे देश में सबकुछ इतना बढ़िया-बढ़िया चल रहा है तो मुझे नहीं लगता कि आने वाले किसी भी समय में भारत में नेपाल जैसे हालत बन सकते हैं। महामानव जिन्हें पूरी दुनिया के नेता अपना नेता मानते हैं, जो पूरी दुनिया की कई-कई यात्राएं कर चुके हैं, जिनके एक इशारे पर युद्ध रुक जाते हैं, वे इस देश के महान, नॉनबायोलॉजिकल पी एम बने रहेंगे, और इसमें चुनाव आयोग उनकी पूरी मदद करेगा। ऐसे में इस देश में नेपाल नहीं हो सकता। बाकी सब चंगा सी। अपनी खैर मनाओ जी

चचा हमारे, यानी चचा ग़ालिब इस बारे में कह गए हैं, एक शेर, सुनिए और सिर धुनिए
कि

तू किसी और से पूछ नेपाल का हाल
मेरे मुल्क के हालात बहुत अच्छे हैं
यहां सब चंगा है, सब चंगा है
बस एक राजा है जो कि नंगा है


थोड़ा बहर इधर-उधर हो जाती है, ग़ालिब के शेरों की यही खूबसूरती है कि पहले मिसरे की बहर दूसरे से नहीं मिलती, खैर चचा की बातेें, चचा ही जानें, हमारा काम आप तक पहुंचाना था, पहुंचा दिया। पर ये तो आप भी मानोगे कि चचा को भी विश्वास था कि यहां नेपाल जैसा काम नहीं हो सकता। समझे कुछ।
बाकी चाहे जो हो, आप देखते रहिए मुझसे मिलते रहिए।

मंगलवार, 23 सितंबर 2025

महामानव का दुख: आम आदमी की आपदा



तो जनाब बारिश गजब बहुत हुई इस बार। ऐसा लग रहा था कि पिछले कुछ सालों की कसर निकाल रही है। पंजाब, हिमाचल, जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड, बिहार, यू पी, हरियाणा, यानी सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तां हमारा का उत्तरी भाग तो लगभग सारा का सारा डूब ही रहा है, सुना मुम्बई में भी पानी भर गया। भर गया तो भर गया, उसमें सरकार क्या कर सकती है जी। 



बारिश का होना भगवान की मर्जी है, सड़कों पर पानी भरना भगवान की मर्जी है, बाढ़ आना भगवान की मर्जी है, बाढ़ में घर बह जाना भगवान की मर्जी है। लोगों को इतना समझ नहीं आता कि भगवान की मर्जी के आगे किसी की नहीं चलती। ये तो चाहते हैं कि सरकार भगवान के कामों में हस्तक्षेप करने लगे और सरकार है कि धर्म को बचाने में, भगवान को बचाने में लगी हुई है। जिसकी जितनी लिखी है उससे ज्यादा तो वो जी नहीं सकता, अब इसके लिए सरकार को दोष क्यों देना भाई। 



यही पंजाब के लोग हैं जिन्होने आम आदमी पार्टी की सरकार बनाई है, अब ये चाहते हैं कि केन्द्र सरकार इनकी मदद करे। क्यों करे भई, आप एक बात तो समझ लीजिए, जो महामानव की सरकार बनाएगा, वहीं डबल इंजन या टिपल इंजन की सरकार चलेगी, वरना एक इंजन की सरकार तो महामानव नहीं चलाएंगे। आप समझ लीजिए, नहीं चलाएंगे मतलब नहीं चलाएंगे। एक इंजन से रेल नहीं चलती आप सरकार चलाने की बात कर रहे हैं, साल 2014 से अब तक आप ही बताइए, कहीं भी आपने सुना है कि कहीं सिंगल इंजन की सरकार सही से काम कर पा रही हो। जहां भी कोई ढंग का काम हो रहा है वो सिर्फ डबल इंजन की सरकार कर रही है, कहीं-कहीं जहां किसी रीजनल पार्टी से समझौता करना पड़ता है वहां हो सकता है कि इंजन तीन हों, सरकार का पता नहीं। जब किसान अंादोलन हुआ था, तो इन्हीं पंजाब के लोगों ने पूरे एक साल या उससे भी ज्यादा तक महामानव को परेशान रखा था और तब मजबूरी में, शायद पहली बार महामानव को अपने एक दो नहीं, बल्कि पूरे तीन कानून वापस लेने पड़े थे। कितनी किरकिरी हुई होगी सोचिए ज़रा दोस्त के सामने महामानव की। दोस्त ने कहा होगा, क्या यार, तू इतना भी नही ंकर पाया मेरे लिए कि सारे देश के किसानों को मेरा गुलाम बना दे। और महामानव को थूक गटक के चुप रह जाना पड़ा होगा। और अब तुम लोग किस मुहं से महामानव से चाहते हो कि केन्द्र सरकार तुम्हारी आफत के समय, इस आपदा के समय तुम्हारी मदद करें। 



जब हिमाचल, उत्तराखंड और पंजाब में बाढ़ अपनी तबाही मचा रही थी, तब महामानव बिहार बंद का आवाह्न कर रहे थे, और ये ठीक भी था, महामानव की मां को बिहार के ही एक लड़के ने गाली दी थी। इसके लिए पूरे बिहार को सबक सिखाना जरूरी था, किसी माई के लाल में ये हिम्मत कैसे हो कि वो महामानव को कुछ कह सके। पूरे देश के सभी चैनलों पर महामानव की मां की गाली की बातें हों रही थीं। हर कोई ये जानना चाहता था कि किसी कि इतनी हिम्मत हो कैसे गई? बताइए तो। अब जाहिर है ऐसे में जब इतना भावनात्मक मुद्दा सामने हो तो इन चैनलों के पास इतना समय तो नहीं ही होगा कि वो पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड में आपदा प्रभावित लोगों को दिखा सके। वहां बाढ़ से हुई तबाही दिखा सके, उनकी मदद के लिए सरकारी प्रवक्ताओं से सवाल पूछ सके। महामानव को अपनी मां की गाली से इतना दुख हुआ कि वो भावनात्मक रूप से परेशान हो गए, और इसीलिए रो दिए, महामानव का रोना था कि उनके सारे डिप्टी महामानव रो दिए, सारे चैनलों के एंकर रो दिए, ये रोआ राटा ही हर चैनल का एकमात्र कार्यक्रम बन गया। और इस तरह बाढ़ की आपदा की जो खबरें चलानी चाहिए थीं, उनकी जगह महामानव का रोना दिखाया गया, बिहार बंद दिखाया गया, और भी वो सब कुछ किया गया जो महामानव की भावनाओं को शंात करने के लिए किया जा सकता था।



अब आप मुझे बताइए कि अगर महामानव परेशान हों, तो गोदी चैनलों को क्या कर्तव्य है, यही ना कि वो महामानव की भावनाओं के लिए कुछ करे, उनके बारे में अच्छी - अच्छी बातें कहे, उनके दुश्मनों को बुरी - बुरी बातें कहे। या कि देश में चल रही बाढ़ की आपदा पर बात करे, अरे ये भारत की जनता है, हर सीजन इसका यही काम है, गर्मी बढ़ी मर गए, बाढ़ आई मर गए, बिमारी हो गई मर गए, कुछ भूख से मर गए, कुछ ने आत्महत्या कर ली, जो इन सबसे नहीं मरे, वो दंगों में मर गए। अब महामानव का क्या यही काम रह गया कि वो इन मुसीबतज़दा लोगों की चिंता करते रहें। महामानव को और बहुत काम हैं। 



इधर सुना पंजाब में एक कुत्ता बाढ़ग्रस्त इलाके में लोगों की मदद करता पाया गया। बढ़िया कुत्ता है, सुना जब लोग राहत सामग्री लेकर जाते थे, तो बाढ़ में डूबे रास्तों पर ये कुत्ता इनकी मदद करता था, इनके आगे-आगे चलता था। बढ़िया कुत्ता है, मदद कर रहा है। इसे पता है जब आपदा आती है तो ये नहीं देखा जाता कि किसने तुम्हें रोटी दी थी, किसने गाली दी थी, किसने पत्थर मारा था। मुझे लगता है कि इस कुत्ते की समझ यही थी कि आपदा आने पर लोगों की मदद करना चाहिए। बढ़िया कुत्ता है। आपदा में काम आ रहा है, आपदा प्रभावित लोगों के लिए काम कर रहा है। 




खैर हम बात कर रहे थे कि इस बार बारिश की, जो बहुत ज़ोर से हुई लेकिन आपने देखा होगा, कि दिल्ली के किसी भी हिस्से में पानी नहीं भरा। जब से रेखा जी गुप्ता की सरकार आई है, देश की राजधानी में तीन इंजनों वाली सरकार चल रही है। कहां पहले रोज़ लेफ्टिनेंट गर्वनर को दिल्ली सरकार को हड़काना पड़ता था, जब से तीन इंजन वाली सरकार आई है, गर्वनर साहब बिल्कुल चुप हैं, क्योंकि दिल्ली में पानी नहीं भरा। कोई समस्या ही नहीं है दिल्ली में, पानी की निकासी की सुंदर व्यवस्था हो गई है, सड़कों के गड्ढे भर दिए गए हैं। नदियां साफ हो गई हैं, रेखा जी गुप्ता और लेफ्टिनेंट गर्वनर साहब ने खुद करवाई हैं। तो जहां पूरा देश बाढ़ से जूझ रहा है वहीं दिल्ली में इतना पानी गिरने के बावजूद कोई समस्या नहीं है। ये कमाल तीन इंजनों का कमाल है भई वाह। 



एक बात यहां जो मेरी नज़र में आई और किसी की नज़र इस पर नहीं गई, वो है राहत सामग्री जिहाद, या इसे हयूमैनिटी जिहाद भी कह सकते हैं। महाराष्ट में मस्जिदों के दरवाजे खोल दिए गए और राहत सामग्री बांटी, दिल्ली में भी ये लोग यही काम कर रहे हैं। मैं महामानव से अपील करता हूं कि वो या उनका कोई डिप्टी, या प्रोस्पेक्टिव महामानव कहीं किसी मंच से ये मानवता जिहाद जो ये लोग फैला रहे हैं, उसका भी जिक्र कर दे, और इन्हें सबक सिखा दे। अरे भई ये लोग यू पी एस सी जिहाद के बाद अब पूरे देश में राहत सामग्री बांटकर मानवता जिहाद फैला रहे हैं, इन्हें महामानव कभी माफ नहीं करेंगे। 



रेखा जी गुप्ता जैसे डबल या टिपल इंजन की सरकार चलाने वाले अन्य राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने भी महामानव से बहुत कुछ सीखा है, अब हम सीधे-सीधे पुरानी सरकारों पर सारी मुश्किलों का ठीकरा फोड़ सकते हैं, और अपनी जिम्मेदारियों से साफ बच सकते हैं। बस इस सोशल मीडिया पर किसी तरह लगाम लगानी पड़ेगी। ये सोशल मीडिया पर जिस तरह के वीडियो आ जाते हैं, उससे दिल्ली की, व अन्य राज्यों में भाजपा सरकारों की छवि खराब होती है, इससे देश की छवि खराब होती है। मुझे लगता है किसी हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के जज को किसी भी केस में एक टिप्पणी ये भी कर ही देनी चाहिए कि अगर कोई व्यक्ति किसी आपदा की, या सरकार की नाकामी की, या भ्रष्टाचार की, या सरकारी दमन की, लूट की कोई फोटो सोशल मीडिया पर शेयर करेगा, या सरकार से कोई सवाल पूछेगा, या मान लीजिए अपने तईं कुछ भला या अच्छा करता दिखेगा, जैसे बाढ़ के समय लोगों के लिए बचाव या राहत का काम करता मिलेगा, तो उसे टू इंडियन यानी सच्चा भारतीय नहीं माना जाएगा, और उसे बिना किसी टायल के पांच-सात साल के जेल में डाला जाएगा, वो भी बिना जमानत। ये लोग तभी सुधरेंगे।


मेरा तो ये मानना है दोस्तों कि, इतने सालों बाद जो इतनी बारिश आई, इससे कुछ अच्छा या बुरा नहीं हुआ। हमारे यहां पानी भरने के लिए इतनी ज्यादा बारिश की जरूरत है ही नहीं। हमने खुद ही ऐसे-ऐसे काम किए हैं कि धराली-थराली में, हिमाचल में, जम्मू में, पहाड़ टूटने में मदद की है, हां कुछ लोग ऐसे पगलेट भी हैं, जो इसका विरोध करते हैं, और ऐसी आपदाओं के लिए सचेत भी करते हैं। जैसे ये साहब हैं, सुना इनके उपर ऐसी ही पहाड़ों को नुक्सान ना पहुंचाने वाली याचिका पर इन्हें पांच हजार का जुर्माना लगा था, और अब तक कोर्ट के चक्कर काट रहे हैं महाशय। हुंह, हिमालय बचाने निकले थे। और दिल्ली, गुड़गांव और मुम्बई का क्या है ना भाई लोग, कि लोगों का ेअब आदत पड़ चुकी है। बस अब ये सरकार जो आई है, जिसकेे आते ही दिल्ली के लेफ्टिनेंट गर्वनर बिल्कुल साइलेंट हो गए हैं, वही चमत्कार करेगी, इसका भरोसा रखिए। 

बाकी जो है सो हइए है। हां, आपसे अगर बन पड़े तो आर एस एस के कार्यकर्ता मत बनिए, बल्कि आपदा प्रभावित इलाकों के लिए जितना भी बन पड़े मदद जरूर कीजिए, जैसा कि लोग कर रहे हैं। 
चचा ग़ालिब ने बड़े ग़मगीन होकर एक शेर लिखा था, 


ये बाढ़ पंजाब की, ये लैंड स्लाइड हरियाणा की
ग़ालिब के दिल पे चोट लगाती हैं क्या कहें
सब देश में चिल्लाते हैं, आफत में पड़े लोग
शर्म तुझको मगर आती नहीं है, क्या कहें

हेटर्स कहेंगे कि भाई, ग़ालिब के जमाने में पंजाब और हरियाणा कहां था, अरे मेरे मितरों, महामानव की नज़रों से देखोगे तो इससे भी बड़े-बड़े चमत्कार दिखेंगे। समझे क्या
अभी तो फौरन से ये करो कि राहत कार्यों में मदद करो, और इस अपील को शेयर करो। बाकी बातें बाद में
ठीक है। नमस्ते।

सोमवार, 22 सितंबर 2025

नया टैक्स - नया रिश्ता





 पिछले दिनों काफी कुछ हो गुज़रा है जनाब। हालांकि बड़े विद्वान लोग कह गए हैं कि हर बात पर तब्सरा करना ज़रूरी नहीं होता। तो भी आदत से मजबूर लोग क्या करें, बताइए। हम लोगों के लिए चुप बैठ पाना तो बहुत मुश्किल है साहब। राहुल गांधी ने बिहार में जो वोट अधिकार यात्रा निकाली, उसे मीडिया चैनलों ने दिखाया ही नहीं, लेकिन सोशल मीडिया में खूब वायरल हुआ साहब,
हर जगह की यात्रा हर जगह की भीड़ और हर जगह ”वोट चोर- गद्दी छोड़” का नारा। भई सही बताएं हमको तो उससे बहुत ज्यादा दुख हुआ, महामानव की आंखों में आंसू आ गए, जो उन्होने जब्त कर लिए, और फिर सही समय देख कर उन आसुंओं का सही सदुपयोग किया। बड़े लोगों की यही पहचान होती है कि वो अपने दुख को भी अपने फायदे के लिए इस्तेमाल कर ले जाएं। खैर दूसरी तरफ कोई भाई साहब वोट अधिकार यात्रा की रैली के बाद मंच पर चढ़ कर गाली-गुफ्तार कर आए। देखिए भाई मैं गाली-गलौज के सख्त खिलाफ हूं, इसलिए मुझे इस पर ऐतराज है, कोई भी, किसी को भी, किसी भी तरह की गाली दे इससे मुझे सख्त ऐतराज होता है।

सही किया कि भाजपा के नेताओं ने बिहार बंद किया, जनता को भी करना चाहिए था। महामानव के आवाह्न पर, उनके रोने पर, भाजपा के नेताओं ने बहुत भरोसा किया, सुना काफी जगहों पर भाजपा के नेता उतरे भी, और उन्होने बिहार की जनता को इधर-उधर जाने से रोका भी, लेकिन अफसोस की बिहार की जनता ने महामानव का साथ नहीं दिया। 
बिहार में बंद पर जनता को परेशान करते भाजपा नेता वीडियो
खैर मेरा मानना है कि ये सब किया-धरा भाकपा माले के नेताओं का है, दरअसल ये दीपाकंर भट्टाचार्य जो हैं, 


ये बहुत वबाल काटे हैं जी, राहुल गांधी की वोट अधिकार यात्रा के शुरु होने से पहले ही ये साहब वोट चोर- गद्दी छोड़ का नारा लगा दिए, जनता इस नारे को लपक ली, और आज पूरे देश में सबकी जबान पर ये नारा चढ़ गया। सबसे पहले तो इन्हें ही ठीक करना होगा, तब ना महामानव के आसुओं पर जनता का ध्यान जाएगा। दूसरे मेरा मानना है कि महामानव जब चीन में थे, तो पुतिन और जी शिनपिंग के साथ हंस रहे थे, बहुत बड़े ठहाके वाला हंसी हंस रहे थे। 

अब उनके चेलों-चपाटों ने वो वीडियो खूब वायरल कर दी थी, कि देखो हमारे विश्वगुरु के साथ दुनिया के बडे़-बड़े नेता हंसते हैं। अब दिक्कत ये है कि एक तरफ आपकी यूं दांत दिखाकर हंसती हुई फोटो है दूसरी तरफ आपकी यूं रोते हुए वीडियो आ जाती है। 



इसका नुक्सान ये होता है कि जनता को समझ नहीं आता कि आप असल में हंस रहे हैं या रो रहे हैं। 

भई भारी मिस्टेक हो गया। ये ए एन आई वाले भारी गड़बड़ कर दे रहे हैं आजकल, इन्हें ठीक से समझाना पड़ेगा। 
पर आज का हमारा वीडियो इस मुद्दे पर हइये नहीं। मां वाले मुद्दे पर बहुत सारे लोग वीडियो बना चुके हैं, और हमारा मानना है कि जिस बारे में विद्वान लोग बात कर चुके हों उस बारे में ज्यादा बोलना -बतलाना नहीं चाहिए। हम तो आज आपके साथ महामानव के नए मास्टर स्टोक पर बात करने आए हैं। जिसके नाम के पहले ही जी लगा हुआ है। जी हां, वही है भारत भू का महान, रामराज्य, विश्वगुरु वाला टैक्स यानी जी एस टी। 

जी एस टी को कुछ लोग ग़लत-सलत नामों से पुकारते हैं, कुछ लोग इसे गब्बर सिंह टैक्स बोलते हैं, कुछ गोबर सड़ा टैक्स बोलते हैं, आज हम आपको बताते हैं कि जी एस टी का असली नाम असल में गुड्स एंड सर्विसेज़ टैक्स यानी वस्तु एंव सेवा कर है। ये टैक्स भारत की जनता से वसूलने का जो कारण बताया गया था वो ये था कि जो तमाम अप्रत्यक्ष कर लोगों से वसूले जा रहे हैं, उन्हें खत्म कर दिया जाए और टैक्स को सरल और आसान बनाया जाए, ताकि देने वाला और लेने वाला, दोनो ही इसे आसानी से समझें और जनता को भी समझने में आसानी हो। कहते हैं कि ये अब तक भारत का सबसे बड़ा अप्रत्यक्ष कर सुधार था। इसीलिए इसे गुडस् एंड सर्विसेज टैक्स कहा गया, यानी ये कर वस्तुओं और सेवाओं पर लगाया जाता है। 

तो साहेब हुआ यूं कि जी एस टी की वजह से जनता बहुत यानी काफी परेशान थी, चारों तरफ हाहाकार मचा हुआ था। किसी को समझ ही नहीं आता था कि आखिर कौन सा जी एस टी कहां पर आयद होगा, कौन सा फॉर्म भरना पड़ेगा। मुझे तो आजतक समझ नहीं आया कि आखिर ये है क्या बला, कुछ दिन तो भाई कोशिश की, कि इसे समझ लिया जाए, लेकिन फिर थकहार कर अपने अकाउंटेंट के हवाले छोड़ दिया। अब हर महीने अकाउंटेंट को एक निश्चित रकम सिर्फ इसलिए देनी पड़ती है ताकि वो निल जी एस टी जमा कराता रहे, क्योंकि धंधा तो मैने जैसा बताया ही है पहले ही ठप्प पड़ा हुआ है, अपनी गाड़ी तो उम्मीद के भरोसे चल रही है जनाब। कभी आएगा काम तो टैक्स भी जमा कर ही देंगे। 
अच्छी बात ये रही कि महामानव की सरकार ने आम जनता की इस परेशानी को समझा, देर में समझा लेकिन समझा, और इस मुश्किल सवाल का हल ये निकाला कि अब जी एस टी को, जैसा कि बताया जा रहा है, कि अब जी एस टी को, मेरा मतलब सरकार ने जो हल निकाला है वो है कि जनता के लिए आसान बनाने के लिए जी एस टी को......
माफ कीजिएगा, समझ ही नहीं आया कि इस वाक्य को पूरा कैसे किया जाए। दरअसल जब जनता को जूते खाने की आदत पड़ जाए तो उसे मिठाई की आदत नहीं डालनी चाहिए। शासन का ये महत्वपूर्ण सूत्र आधुनिक चाणक्य की चाणक्य नीति से निकला हुआ बताते हैं। लेकिन महामानव जनता के शुभचिंतक हैं, इसलिए वे चिंता करते हैं कि जनता का शुभ कैसे हो रहा है। शुभचिंता शब्द से आप विचलित ना हों, शुभचिंतक का मतलब भी दरअसल बिल्कुल वैसा नहीं है जैसा कि बोलने सुनने से समझ में आता है। शुभचिंतक का आधुनिक मतलब है वो व्यक्ति जिसको आपके शुभ से चिंता हो जाती हो, वही शुभचिंतक होता है। महामानव और आधुनिक चाणक्य नीति का सारतत्व ये निकला कि कोई ऐसा हल निकाला जाए जी एस टी की समस्या का कि लाठी भी टूट जाए और सांप भी जस का तस रहे। तो उसका जो हल निकाला गया वो ये कि जी एस टी में कुछ नामों और शब्दों का बदलाव किया गया है। अब देखिए नामों और शब्दों के बदलाव का ही सारा खेला है, आप चाहे जो भी कहिए, इलाहाबाद प्रयागराज हो गया, चारों तरफ खुशहाली ही खुशहाली हो गई, इसी तरह फैजाबाद को अयोध्या करने से कैसा चमत्कार हुआ बताते हैं, इसी तरह जी एस टी में अगर कुछ नामों को बदल दिया जाए तो जनता में खुशी की लहर दौड़ जाएगी, ऐसा बताते हैं। 
लेकिन ये जनता वाकई बहुत बुरी है। बाज़ार उपर जाने का नाम नहीं ले रहा, और जनता ने इस नये जी एस टी का, वैसा स्वागत नहीं किया, जैसे की उम्मीद थी। मेरा ख्याल है इसे नये वाले जी एस टी को ही एक नया नाम दे देना चाहिए, कहना ये चाहिए कि पुराना जी एस टी खराब था, इसलिए उसे बदलकर हम एक नया सिस्टम ला रहे हैं, जो आज से पहले की सरकारों ने सोचा भी नहीं था। जैसे इसे आर आर टी यानी रामराज्य टैक्स कह देते। ऐसा करने से एक ही तीर से कई सारे शिकार किए जा सकते थे। 
जैसे कहा जा सकता था कि सत्तर सालों में पहली बार - चमत्कार ऐसा महान कर नहीं लाया गया था, जैसा महामानव ले आए हैं। 
जैसे ये नेहरु ने ग़लती की थी कि भारत में जी एस टी नहीं था, इसलिए उस ग़लती को ऐसे सुधारा गया है कि आर आर टी यानी रामराज्य टैक्स लाया गया है। 
जैसे सनातन की आस्था सिर्फ आर आर टी यानी रामराज्य टैक्स ही बचा सकता है। 
जैसे हिंदू खतरे में है। 
जैसे घुसपैठिए आए हुए हैं। 
जैसे अर्बन नक्सल नहीं चाहता कि भारत महान बने, विश्वगुरु बने, इसलिए आर आर टी यानी रामराज्य टैक्स लाना जरूरी था। 
जैसे जिनके पास घर नहीं होते, उनका पता जीरो नंबर होता है। 
निर्मला सीतारमण मैं प्याज नहीं खाती जी। 
और अगर फिर भी काम ना बने तो
मोदी का वीडियो, मुझे गालियां दी गईं। 
महामानव की मां और जी एस टी 2.0

कारण तो दोस्तों ये बताने के बहुत हो सकते थे कि आखिर ये जी एस टी क्यों लाया गया था, या उसमें अब बदलाव क्यों किया गया है। मेरा सिर्फ ये कहना है कि महामानव को पिछले दिनों बहुत सारी परेशानियों का सामना करना पड़ा है, अब पूरे देश में महामानव के खिलाफ माहौल बनता दिख रहा है। राहुल गांधी चैन की सांस नहीं लेने दे रहे हैं, तेजस्वी, ममता, अखिलेश, स्टालिन, पिनाराई, ने वैसे परेशान किया हुआ है, एक दोस्त था, वो भी धोखा दे गया। ऐसे में उन्हें और परेशान न किया जाए। अगर थोड़ा बहुत दिक्कत होती है तो मेरी देश की जनता से अपील है कि झेल लो यार। क्या ही जाता है, इतने दिनों जो जी एस टी जाता था, वो भी तुम्हारी जेब से जाता था, अब जो जा रहा है वो भी तुम्हारी जेब से जा रहा है, आगे जो जाएगा वो भी तुम्हारी ही जेब से जाएगा। तो इसमें इतना रोने गाने की क्या बात है। 
जनता बहुत अहसानफरामोश हो गई है दोस्तों, महामानव को उनके महान कामों का वैसा सिला नहीं मिल रहा है, जैसा छ सौ करोड़ जनता से उम्मीद थी। खैर, जी एस टी टू प्वाइंट ओ अब आ ही गया है, तो टैक्स भरिए और महामानव के लिए तालियां बजाइए, बाकी आपकी मर्जी।

चचा हमारे ग़ालिब चचा, एक शेर कह गए हैं जी एस टी पर, सुनिए, शायद आपकी भी आंखें खुल जाएं। 

हर किसी की किस्मत नहीं होता जी एस टी ग़ालिब
ये वो बला है जो बिन बुलाए आ जाती है कसम से

ग़ालिब के जमाने में जो जी एस टी था, वो सीधा पी एम केयर फंड में जाता था, अब ऐसा नहीं होता, अब उसका सदुपयोग बिगड़ी हुई राज्य सरकारों से दुश्मनी निकालने के लिए किया जाता है। बाकी आपका और मेरा कोई माई-बाप नहीं है। जी एस टी भरिए और भरिए, और भरिए।अच्छी जनता बनिए। बाकी अगली बार मिलूंगा। नमस्ते। 


शुक्रवार, 19 सितंबर 2025

महामानव - चीन और चीनी

 



नमस्कार जनाब, मैं कपिल, एक बार फिर आपके सामने। क्या कहें हुज़ूर ये बार बार सब को ये समझाने में कि महामानव और उनकी कैबिनेट सही काम कर रही है, बिल्कुल सही जा रही है, हमारे दांतों तले पसीना ला देती है, पर हम कोशिश करने से बाज़ नहीं आते, क्या है ना, कोशिश करते रहना चाहिए, क्योंकि हमें यकीन है कि किसी ना किसी दिन, इतनी अक्ल तो आ ही जाएगी कि कौन सा काम छुप के करना चाहिए, और कब ज़बान को लगाम देनी चाहिए। 



खैर साहब, बहुत बिजली कड़की, बहुत तेज़ और बहुत जोर से कड़की, इतनी कड़की, इतनी कड़की, कि कड़क-कड़क के कड़क हो गई बिजली और जिनके लिए बिजली कड़कती थी और दिल घड़कता था, उसने आंखे फेर ली, बेवफा सनम हो गया, और मजबूरन हमें आखों का रंग बदलना पड़ा, कहां हम लाल आंखें करने की भरपूर प्रैक्टिस किए बैठे थे कि मौका आए और हम दिखाएं, लेकिन जिसके कंधे पर बंदूक रखी थी, उसने कंधा उचका दिया। 




लेकिन इस देश के पढ़े-लिखे, बौद्धिक वर्ग को, यानी तथाकथित प्रगतिशीलों कों, वामियों को महामानव का मास्टर स्टोक या तो समझ नहीं आ रहा, या वे अपनी आदत के हिसाब से खीर में मक्खी डालने का काम कर रहे हैं। 



कितनी सहजता से महामानव ने तमाम लीडरों को, पुतिन को, जिनपिंग को, और अन्यों को अपने जाल में फंसा लिया है, महामानव उन्हें हाथ के इशारे से दुनियावी राजनीति के गुर सिखाते हैं, जब महामानव हंसते हैं, तो वो सब भी हंसते हैं, जब महामानव चुप होते हैं, तो वो भी चुप हो जाते हैं, सब हमारे महामानव के इशारे का इंतजार करते हैं। 


महामानव की बात ही निराली है। वो ब्रहमांड के देश-काल से परे हैं, जैसा कि आप जानते ही हैं कि वो नॉनबायोलॉजिकल हैं। तो वे पहले से ही जानते थे कि अब उन्हें चीन को दोस्त बनाना है, इसलिए आपको याद होगा कि उन्होने छोटी आंखों वाले गणेश जी का जिक्र किया था। 


यहां महामानव ये कहना चाहते थे कि चीन से गणेश जी की मूर्ति लाना कोई दिक्कत वाली बात नहीं है, और नॉनबॉयोलॉजिकल महामानव होने का यही सबसे बड़ा लाभ है कि आपको सबसे पहले पता चल जाता है कि भविष्य में क्या होने वाला है, और भविष्य को भांप कर आप कदम चांप कर तेज़ी से अपना पाला बदल लेते हैं। ये भविष्य देखने वाली सलाहियत क्योंकि छुटभैये एंकरों के पास नहीं होती इसलिए वो पकड़े जाते हैं।

ल्ेकिन एक बात माननी पड़ेगी कि विश्वगुरु ने कम से कम दुनिया को ये दिखा दिया कि अगर वो चाहें तो कभी भी पाला बदल सकते हैं, इसे डर के काम करना नहीं कहते, जैसा कि कुछ लोग कह रहे हैं, इसे नासमझी और बेवकूफी भी नहीं कहते, बल्कि इसे ही असली डिप्लोमैसी कहते हैं। अरे भई जब तक अमरीका से चल रहा था, तब तक वहां चलाया, फिर जब अमरीका ने दबाया तो किसी दूसरे के दरवाजे चले गए। इतने बेगै़रत हम नहीं हैं कि अमेरिका धमकाता रहे, टैरिफ लगा दे, और हम तब भी उसे गले लगाते रहें। अमरीका टैरिफ लगाएगा तो हम चीन को गले लगा लेंगे, या कम से कम लगाने की कोशिश तो करेंगे ही। और एक बात ध्यान रखना दोस्तो कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती। आज नहीं तो शी जिनपिंग भी महामानव को गले लगने से नहीं रोक पाएगा, और उस वक्त महामानव लपक कर उसके गले लगेंगे और वीडियो बनाने वालों को, ए एन आई को मौका मिल जाएगा कि वो एक और महामानवीय वीडियो जारी कर सके। 

पर अभी बात करेंगे टैरिफ की और सिर्फ टैरिफ की, तो देखिए, हमने वफा की, उसने बेवफाई की, टैरिफ लगा दिया, चीन ने तो टैरिफ नहीं लगाया है।
मोदी का भाषण कि व्यापारी चीनी स्वदेशी सामान बेचें

हमने अभी घोषणा कर दी कि लोग व्यापारियों से कहें कि वो मुनाफे का लालच छोड़ें और स्वदेशी सामान बेचें। महामानव की घोषणा सुनते ही सब व्यापारियों ने अपनी दुकानों से विदेशी सामान निकाल फेंके और स्वदेशी सामान से अपनी दुकानों को सजा लिया। फौरन देश में स्वदेशी फोन बिकने लगे, स्वदेशी बिजली की लड़ियां, स्वदेशी कारें, स्वदेशी ई वी कारें, स्वदेशी कमप्यूटर, स्वदेशी ई-रिक्शा, स्वदेशी पानी के पम्प, स्वदेशी खिलौने, स्वदेशी बड़ी आंखों वाले गणेश जी, यहां तक कि कल तक जो संतरे, अमरूद और अन्य फल हम चीन से मंगाते थे, वो सब अब भर-भर के स्वदेशी मिलने लगा, और हम स्वदेशी खरीदने लगे। पिछले ग्यारह सालों ने महामानव ने जो स्वदेशी का आंदोलन चलाया था, जिससे पूरे भारत में तमाम स्वदेशी सामानों की फैक्टरियां लगी थीं, वो अब लगातार स्वदेशी सामान बनाने लगी और हमारे व्यापारी, खासतौर पर अडानी, अंबानी, टाटा, बिरला और जितने भी नये पुराने खरबपति हैं, उन सबने महामानव के एक ही संदेश पर विदेशी सामानों का बहिष्कार कर दिया और स्वदेशी बनाने, खाने, पहनने और ओढ़ने और बेचने लगे।  

ये सब करने के बाद जब महामानव पुतिन और शी जिनपिंग से मिले, तो उनके पास इसके अलावा कोई चारा ही नहीं था कि वे ध्यान से महामानव की बातों को सुनें, और समझें। मुझे पूरा यकीन है कि महामानव उन्हें समझा-बुझा कर थोड़ा प्यार से, थोड़ा डांट कर आए हैं। अब अमरीका की सारी दादागिरी निकल जाएगी। क्या सोचता था, हमें डरा लेगा, मजबूर कर देगा। हमने स्वदेशी का ऐसा दांव खेला, और चीन से हाथ मिलाया है कि अब बेचारा डर के मारे थर-थर कांपता होगा। इसी को मेरे दोस्तों महामानव का मास्टर स्टोक कहते हैं। 
इतना तक भी होता तो ठीक था, महामानव के एक और डिप्टी महामानव, माफ कीजिएगा, महामानव के बाद कई सारे डिप्टी महामानव हैं। इन्हें आप पहचानते ही हैं, महामानव के जिनपिंग के गले लगने की कोशिशों की आहट जैसे ही इन वाले डिप्टी महामानव को लगी, उन्होने लपक कर मौके का फायदा उठाया और देश में चीनी के ज्यादा इस्तेमाल को बढ़ावा देने की जिम्मदारी अपने सिर ओढ़ ली। इतना त्याग, इतनी प्रतिबद्धता आपको शायद ही किसी और देश के नेताओं में मिले। एक महामानव ने चीन को अपनाया, दूसरा चीनी को अपनाने लगा। डिप्टी महामानव ने त्याग और समर्पण की ये गंगा सुनते हैं अपने ही घर से शुरु की है। 


डिप्टी महामानव ने अपनी ही गन्ने की फैक्टरियों से इथेनॉल की फैक्टरियां अपने बेटों के लिए खुलवा दीं, और फिर उस इथेनॉल को सरकार को बेचा। दोस्तों अगर आपको पता ना हो तो बता दूं, गन्ने से चीनी, और इथेनॉल। बड़के महामानव चीन में और डिप्टी महामानव ने यहां चीनी से फायदा कमाने के रास्ते निकाले हैं। अमरीका क्या खा के हमारी बराबरी करेगा, अब तक तो जिनपिंग को भी बुखार आ गया होगा। जहां ऐसे महामानव हों, उनके ऐसे डिप्टी महामानव हों, उस देश को तो विश्वगुरु बनना ही ठहरा। इसमें कोई शक-शुबह की गुंजाइश ही नहीं है। 


तो सुनते हैं कि डिप्टी महामानव ने अपने दो बेटों की फैक्टरियों से इथेनॉल सरकार को बेचा और अब पूरे देश में पैटरोल में बीस प्रतिशत पैटरोल मिलाकर बेचा जा रहा है। कमाल ये है कि डिप्टी महामानव ने जो कदम उठाया, लोग उससे बच ना सकें, इसके लिए हर पैटरोल पंप पर सिर्फ यही मिलेगा, ई 20 यानी 20 प्रतिशत इथेनॉल वाला पैटरोल, लोग डिप्टी महामानव के इस क़दम को भी नहीं समझे और लगे बुराइयां करने, कि हमारी गाड़ियां खराब हो गईं, इनमें जंग लग गया, कि इनका माइलेज कम हो गया। अरे भाई जब सीमा पर सैनिक माइनस टेम्परेचर में खड़ा हो सकता है तो क्या तुम इतना सा त्याग नही ंकर सकते। डिप्टी महामानव को देखो, कोई लालच नहीं, बदले में क्या मिलेगा इसकी कोई चिंता नहीं, बस बिना किसी स्वार्थ के, बिना किसी रिसर्च के, बिना किसी के बात सुने, पैटरोल में इथेनॉल मिला दिया। 

सिर्फ किसानों को फायदा देने के लिए डिप्टी महामानव ने ई-20 पैटरोल बिकवा दिया पूरे देश में, मां फलेषु कदाचन्। फल की इच्छा ही नहीं करते, सिर्फ पैटरोल में इथेनॉल मिलाते हैं। हमारे देश में त्याग, समपर्ण, समझदारी और ज्ञान की कोई कदर ही नहीं है। कभी भी नहीं थी, आज महामानव और महामानव के इन महत्वपूर्ण कदमों की आलोचना हो रही है, लेकिन कोई दिन आएगा जब पूरा देश इनकी सराहना करेगा, पंद्रह साल बाद जब आप अपनी गाड़ियां कबाड़ी को देंगे और उसके बदले सैंतीस सौ रुपए आपको मिलेंगे तो आपको डिप्टी महामानव के इस कदम की याद आएगी, जब आपको लगेगा कि अच्छा हुआ कि इतना पैटरोल पीकर भी जंग लगे इंजन की ये कार या मोटरसाइकिल जो आपने लाखों में खरीदी थी, उसे निकाल दिया तो अच्छा किया। 
खैर अब आते हैं, अपनी आखिरी बात पर, चचा हमारे, ग़ालिब था जिनका नाम, वो चीन और चीनी पर काफी कुछ कह गए हैं, उनमें से एक शेर चुन कर आपको सुना रहा हूं। ग़ौर फरमाइएगा

चीन और चीनी का इस्तेमाल कर यूं ग़ालिब
इसको गले लगा ले, पैटरोल में मिला दे
हां त्याग बस इतना सा इस देश की खातर कर
चुपचाप देखता रह, कुछ बोल ना निकाले

ये वन हंडरेड पर्सेंट खालिस ग़ालिब का, शेर है, ना यकीन हो तो उनके खोए हुए दीवान में देखिए। बाकी सब बढ़िया है, महामानव जिनपिंग से बात कर आए हैं, अब देश में बड़ी आंखों वाले गणेश आया करेंगे। तो अब चलते हैं, फिर मिलते हैं। गुडबाय। नमस्कार

मंगलवार, 16 सितंबर 2025

टैरिफ वार - महामानव का सीक्रेट वैपन

 टैरिफ वार - महामानव का सीक्रेट वैपन





नमस्कार, मैं कपिल एक बार फिर आपके सामने। आज कुछ भी बात करने से पहले कुछ बहुत साफ कर देना चाहता हूं। मैं कल अपने एक दोस्त से बात रहा था, जो इकॉनॉमिक्स में पी एच डी है, एक कॉलेज में पढ़ाते हैं, और देश और दुनिया की इकॉनॉमी पर जिनकी अच्छी पकड़ रही है। तो मैं जो बातें आज आपके सामने रखूंगा, मैं ने उन्हें भी बताईं, और बजाय मेरी विद्वता पर खुश होने के, वो मुझ पर गुस्सा हो गए, बहुत बड़ी-बड़ी बातें करने लगे, उनकी सारी बातों में मुझे कुछ समझ नहीं आया, लेकिन जो एक बात उनकी सारी बहस में मुझे समझ में आई, कि वो एक तरफ तो महामानव के परम मित्र, तू तड़ाक की दोस्ती वाले डीयर फ्रेंड डोलान्ड को बेवकूफ बता रहे थे, और दूसरे हमारे महामानव को भी जाने क्या-क्या कह रहे थे। उनकी इस पूरी बातचीत में मुझे ये लगा, कि ये लोग कितना भी पढ़-लिख लें, लेकिन देशप्रेमी ये नहीं हैं। देशप्रेमी होते तो ये नहीं कहते कि अमरीका ने भारत की मुसीबत कर दी, माने ठीक है कर दी, लेकिन कहना नहीं चाहिए। टू इंडियन वो होता है, जो ग़लत हो तो भी उसे ग़लत ना कहे, क्यों माई लॉर्ड ठीक है ना? 



बताइए, कोई महामानव को अच्छा समझे बिना देशप्रेमी कैसे हो सकता है। टू इंडियन, जी हां, ये लोग पढ़ - लिख गए हों बेशक, लेकिन ये टू इंडियन नहीं हो सकते। आज के हालात को, मेरा मतलब है, अमेरिका के टैरिफ को, सही से समझने के लिए, आपको इकॉनॉमी नहीं, महामानवीयत को समझने की जरूरत है। ये लोग पढ़ाई-लिखाई के नज़रिए से, इसे देखने की कोशिश कर रहे हैं, और इसलिए लगातार ग़लत नतीजों पर पहुंच रहे हैं, इसीलिए इस पूरे मामले में इन्हें महामानव की चतुराई, उनकी हिम्मत, समझ-बूझ नहीं दिखाई दे रही। अरे मेरे मितरों, अमेरिका के देश पर लगने वाले टैरिफ को समझने के लिए पहले तो आंखों पर राष्टवाद का चश्मा लगाना पड़ेगा, जिसके बाद आपको पता चलेगा कि इस सबमें हमारे महामानव का, यानी हमारे देश का क्या भला होने वाला है। तो दोस्तों मैं इकॉनॉमिस्ट नहीं हूं, दुनिया और देश की क्या, मुझे तो अपनी निजी इकॉनॉमी भी आज तक समझ नहीं आई है, पैटोल की कीमत 60-70 से सौ हो गई, लेकिन मुझे जाने क्यूं लगता है कि महंगाई नहीं बढ़ी है। कंपनियों से लगातार हजारों की तादाद में लोगों की छंटनी हो रही है, लेकिन यकीन मानिए मुझे ये नहीं लगता कि रोजगार घट रहा है, बेरोजगारी बढ़ रही है, मेरा अपना काम ठप्प हो गया, लेकिन मुझे नहीं लगता कि देश में काम-धंधा घट रहा है, ना खाना अफोर्ड कर पा रहे हैं, ना दवा अफोर्ड कर पा रहे हैं, लेकिन फिर भी.....


मेरे कहने का मतलब है कि मेरा आज का वीडियो समझने के लिए आपको इकॉनॉमिस्ट होने की जरूरत नहीं है, सिर्फ महामानव के प्रति आपका प्रेम होना जरूरी है। चलिए अब शुरु करते हैं।


अमरीका की दादागिरी चलती थी किसी जमाने में, अब नहीं चलती। अब हम कहते हैं, तू क्या है बे। लेकिन अमरीका मानता नहीं, उसने भारत के उपर टैरिफ लगा दिया, मेरा मतलब पहले भी टैरिफ था, लेकिन अब उसने इसे बढ़ा दिया। अब ज्यादातर पढ़े-लिखे, यानी इकॉनॉमी पढ़े - लिखे लोग लगे चिल्लाने की यू ंतो भारतीय बाजार बर्बाद हो जाएगा। लेकिन ये उनकी ग़लती नहीं है, ये उनकी पढ़ाई की ग़लती है, जिसकी वजह से वो व्यापार को यूं नहीं समझ पाते।


दरअसल महामानव ने अमरीका पर सर्जीकल स्टाइक कर दी है। आपको याद होगा, जब चीन से हमारा झगड़ा हुआ था, तो महामानव ने कैसी चतुर सुजान वाली चाल चली थी, महामानव ने चीन की कमर तोड़ने के लिए, उसके व्यापार को बर्बाद करने के लिए, सीधे उसके दिल पर चोट की थी। फौरन टिकटॉक को बंद कर दिया गया था। भारत में आज भी टिकटॉक बैन है। भारत में टिकटॉक के बैन होते ही चीन घुटनों पर आ गया था, उसने रोना -पीटना शुरु कर दिया था। लेकिन महामानव का दिल नहीं पसीजा, कोई भारत के उपर हमला करे, तो हमारे महामानव, हमारे छप्पन इंची छाती वाले, लाल आंखों से जो फैसला ले लेते हैं, वो अटल फैसला होता है। चीन ने भारत के पास कितने ही डेलीगेशन भेजे, माफी मांगी, और कई तरह के हथकंडे अपनाए कि महामानव का दिल पिघल जाए और वो टिकटॉक से बैन हटा लें, लेकिन महामानव ने ऐसा नहीं किया। और आपको जानकर खुशी होगी, मुझे भी हुई, जब मुझे इस शानदार खबर का पता चला कि महामानव ने अमरीका के खिलाफ भी कार्यवाही कर दी है। 


तो दोस्तों, इस रिपोर्ट के आधार पर ये तो पक्का कहा जा सकता है कि बहुत जल्द ही अपनी इस वैश्विक पहचान के आंशिक बैन के बाद अमरीका घुटनों पर आ जाएगा, और हमारे महामानव के सामने नाक रगड़ेगा, आखिर उसकी वैश्विक पहचान का मामला है, जिस पर सुधीर भैया की रिपोर्ट के हिसाब से हमने सिर्फ आंशिक कार्यवाही की है, लेकिन इस कार्यवाही को आंशिक से पूर्ण करने में छप्पन इंची छाती को कोई ज्यादा देर नहीं लगने वाली है, समझे ना। और अभी तो सिर्फ कोक और पेप्सी की बात हो रही है, अभी आप देखना, महामानव आयरन मैन, कैप्टन अमेरिका और स्पाइडर मैन को भी भारत आने से रोक देंगे, फिर देखें ये अमरीका क्या करता है, आगे आगे देखिए होता है क्या। अभी तो महामानव ने लाल आंखें नहीं की हैं, जो एक बार कर दीं, तो फिर.....


इसके अलावा आप ये ना समझिए कि हमारे पास और कोई रास्ता नहीं है। अजी हमने पिछले चौदह सालों में जो डंका बजाया है, जो डंका बजाया है, पूरी दुनिया उस डंके को सुन रही है। हालांकि मैं इकॉनॉमी का एक्सपर्ट नहीं हूं, लेकिन मैंने ऐसे -ऐसे एक्सपर्टस् को सुना है, कि क्या कहने। 


इन एक्सपर्टस् का ये कहना है कि ये टैरिफ लगा कर भारत का तो क्या ही बिगड़ेगा, लेकिन अमरीका ने अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली है। ये तो आप ने सुन ही लिया कि किस तरह अमरीका में भारतीय माल महंगा हो जाएगा, और अमरीकी जनता कैसे त्राहीमाम-त्राहीमाम करती हुई महामानव के पास आएगी। और तब, तब मेरे मितरों, महामानव मुस्कुरा कर कहेंगे, 


इसलिए मैं निश्चिंत हूं, बावजूद इसके कि भारतीय बाजार में अफरा-तफरी है, मैं निश्चिंत हूं, बावजूद इसके कि तथाकथित वामपंथियों, प्रगतिशीलों ने इस टैरिफ को लेकर अपनी चिंता जाहिर की है, मैं बहुत मुतमइन हूं, बावजूद इसके कि भारतीय कारोबारी, व्यापारी, नौकरीपेशा लोग चिंता कर रहे हैं, मैं बहुत मुतमइन हूं, बावजूद इसके कि सारे पढ़े-लिखे लोग, सारे इकॉनॉमिस्ट, बेतरह चिंता कर रहे हैं, मैं बहुत बेफिक्र हूं, अरे दोस्तों, चिंता करनी चाहिए अमरीका को, जिसके उपर इस टैरिफ का असर पड़ेगा। हमारा क्या है, पिछले चौदह सालों में महामानव ने हमें इस कदर पक्का और मजबूत बना दिया है कि



हमें कुछ नहीं चाहिए, हमें कुछ भी नहीं चाहिए। इसलिए मैं मुतमइन हूं, भई कहावत है, उरियां नहाएगा क्या और निचोड़ेगा क्या, जिसे कुछ चाहिए ही नहीं, उसे धमका कर अमरीका को क्या हासिल होगा भला। लगाए अमरीका टैरिफ, लगा भई, और लगा ले, 50 की जगह 60 कर दे, 70 कर दे। हमें कोई फर्क नहीं पड़ता, हम अभी ही कौन सुखी हैं, जो तेरे टैरिफ लगाने से दुखी हों। पर ये याद रखना मित्र डोलांड, कि हमारे ही देश में तुम्हारी फोटो की आरती होती थी, तुम्हारी जीत के लिए हवन किया जाता है, तुम्हारे नाम के केक काटे जाते हैं, जिसकी वजह से तुम जीतते रहे हो। अब हम वो बंद कर देंगे, हमारी हिंद सेना, और बाकी जो भी ये सब करते थे, वो अब इसे बंद कर देंगे। 
तो असर तो भाईयों, भैनो डोलांड पर पड़ेगा, हम पर क्या असर पड़ेगा, यानी हम पर कोई असर नहीं पड़ेगा इस टैरिफ का।

इस पचास पर्सेंट टैरिफ पर एक जो थोड़ी सी समस्या मुझे है वो ये कि ये पचास का अंक ज़रा ठीक नहीं बैठता, हमारे यहां सवा, ग्यारह, इक्कीस, या इक्यावन को शुभ माना जाता है। मै बस महामानव से या सुधीर जी से, या अंजना जी से एक निवेदन ये करना चाहता हूं, कि उनकी तो खासी बातचीत है डोलांड से, उनसे ये कहें कि भैये, ये टैरिफ जो है, पचास की जगह इक्यावन कर दें, माने समस्या हो, लेकिन कम से कम रकम तो शुभ रहे, भई, परंपरा, रीति रिवाज और संस्कृति का भी तो ध्यान रखना पड़ता है ना। तो जूते मारें, लेकिन गिन कर शुभ संख्या में मारें, ये ठीक नहीं लगता कि पचास पर रोक दें, इक्यावन कर दें, अगर इसमें दिक्कत हो तो एक सौ एक कर दें। 
हालांकि एक बात मुझे ये भी लगती है दोस्तों कि कहीं ये ग़लती भी नेहरु की ना हो, वो इंसान काफी ग़लत-ग़लत काम करके गया था, हो सकता है उसकी वजह से ये टैरिफ वाला मसला खड़ा हुआ हो, मुझे तो लगता है कि महामानव को एक बयान नेहरु के खिलाफ, उनकी ग़लती बताते हुए दे ही देना चाहिए, हो सकता है कि बात बन ही जाए, करने में क्या जाता है। क्यों?

चचा हमारे, यानी चचा ग़ालिब भी कमाल थे, मरने के बाद उन्होने इस डोलांड-महामानव मित्रता और डोलांड की बेवफाई पर एक तड़पता हुआ शेर कहा था, शेर कुछ यूं है कि

तू बेवफा है तो बेवफा ही सही, हंस के हर सितम सह जाएंगे
जितना भी बढ़ा ले टैरिफ ए दोस्त, तुझे देख कर हम मुस्कुराएंगे।

कुछ लोगों को लगता है कि मैं अपने खुद के शेर चचा के नाम से सुनाता हूं। आप मेरा यकीन कीजिए, इतने वज़नदार शेर मैं लिखने की तो छोड़िए, सोचने की भी हिम्मत नही ंकर सकता। वैसे भी जिन चचा ने शीशे की धूल साफ करने वाला शेर लिखा हो, इस तरह के शेर वही लिख सकते हैं।
खैर आप अमरीका के टैरिफ का मजा लीजिए, बाकी महामानव आपका मजा ले रहे हैं। 


एक नामालूम से शायर थे, बहुत बेकार शेर कहते थे, उनकी एक गज़ल यूं ही, माने यूं ही याद आ गई। सुन लीजिए, शायद काम आ जाए।  

नाम चले हरनामदास का काम चले अमरीका का
मूरख इस कोशिश में है सूरज ना ढ़ले अमरीका का

निर्धन की आंखों में आसूं आज भी हैं और कल भी थे
अंबानी के घर दीवाली तेल जले अमरीका का

दुनिया भर के मज़लूमों ने भेद ये सारा जान लिया
आज है डेरा महामानव के साए तले अमरीका का

काम है उसका सौदेबाज़ी सारा ज़माना जाने है
इसीलिए तो मुझको प्यारे नाम खले अमरीका का

ग़ैर के बलबूते पर जीना मर्दों वाली बात नहीं
बात तो जब है ऐ जालिब अहसान तले अमरीका का

महामानव-डोलांड और पुतिन का तेल

 तो भाई दुनिया में बहुत कुछ हो रहा है, लेकिन इन जलकुकड़े, प्रगतिशीलों को महामानव के सिवा और कुछ नहीं दिखाई देता। मुझे तो लगता है कि इसी प्रे...