ये विपक्ष तो बिल्कुल ही हाथ से निकलता जा रहा है, कहां देश फिर से अपने स्वर्णयुग यानी वही ब्राहम्णवाद की तरफ बढ़ाया जा रहा है और ये हैं कि इस पवित्र रास्ते में कदम-कदम पर रोड़ा अटकाने की कोशिश कर रहे हैं। अभी पता चला कि कुछ दिन पहले दिल्ली की महान मुख्यमंत्री रेखा जी गुप्ता के पति मनीष जी गुप्ता ने जब दिल्ली की कामन संभाली तो इन विपक्षियों के कलेजे पर सांप लौटने लगा। अरे वाह, अब क्या कोई हिंदु नारी लोकतांत्रिक चुनाव जीतने पर अपने पति को मीटिंग्स में भी नहीं बुला सकती, अब क्या कोई मुख्यमंत्री पति सीधे सरकारी अफसरों को नौकरशाहों को निर्देश या आदेश भी नहीं दे सकता। बताइए, ये कोई बात हुई भला। सदियों से हमारे देश में, मेरा मतलब है जबसे हमारे देश में लोकतंत्र की स्थापना हुई है, हमने संविधान में महिलाओं को समान अधिकार दिए जाने की बात पर हामी भरी है, लेकिन इसका ये मतलब तो नहीं कि असल में महिलाओं को समान अधिकार दे दिए जाएंगे। जब हम हिंदु राष्टर बना लेंगे तो पक्का हम मनुस्मृति लागू कर देंगे और महिलाओं को समाज में दोयम दर्जा मिल जाएगा, लेकिन जब तक इस संविधान से चलना हमारी मजबूरी है, तब तक ये तो किया ही जा सकता है कि मुख्यमंत्री पद की शपथ एक महिला को दिलवा दी जाए, और असल में पॉवर उसके पति को दी जाए, क्यों? तो ऐसा करके रेखा जी गुप्ता जो मुख्यमंत्री हैं दिल्ली की, और मनीष जी गुप्ता जो पति-परमेश्वर हैं, रेखा जी गुप्ता के, उन्होने एक मिसाल कायम की है, एक उदाहरण सामने रखा है, कि किस तरह देश की सभी महिलाओं को ये समझ जाना चाहिए कि हिंदु राष्ट में क्या होने वाला है। और खुशी की बात ये है कि ये हिंदु राष्ट बस देहरी पर खड़ा हुआ है, बस एक पैर उठा और अंदर.....
लेकिन इस विपक्ष ने तो आसमान सिर पर उठा लिया, कहने लगे कि ये प्रोटोकॉल के भी खिलाफ है, और उस शपथ के भी खिलाफ है जो रेखा जी गुप्ता ने मुख्यमंत्री बनने के लिए ली थी। अब कोई बताए इस विपक्ष को कि भैये ये तैयारी है आने वाले हिंदु राष्टर की, पर तुम क्या जानो इन बातों की बारीकियां। तुमने तो अपनी प्रगतिशीलता को सिर पर बैठाया है और हिंदु संस्कृति को नष्ट करने या कम से कम भ्रष्ट करने की तैयारियां कर रहे हो।
फिर सुनने में आया कि महामानव ने मणिपुर की यात्रा करने का फैसला आखिरकार ले ही लिया। सब प्रभु की लीला है, पिछले एक साल से सभी गुहार लगा रहे थे, कि महामानव एक बार तो मणिपुर का दौरा कर लें, लेकिन महामानव ठहरे महामानव, कितनी ही हिंसा भड़की, कितनी ही आगजनी हुई, महिलाओं का रेप हुआ। महामानव ने अपनी यात्राओं की दिशा बदल ली, वे अमरीका गए, अफ्रीका गए, योरोप भी गए हों शायद, चीन भी गए, देश के भी कई हिस्सों में घूमें, लेकिन मणिपुर नहीं गए। नहीं गए तो नहीं गए, अब प्रधानमंत्री हर कहीं तो जा नहीं सकता, मेरा मतलब है जब तक दिल ना चाहे तब तक तो नहीं ही जा सकता। लेकिन आखिरकार महामानव की अंर्तचेतना ने पलटी मारी, हमारे एक परम मित्र का कहना है कि अमरीका के इशारे पर महामानव के अंतर्आत्मा ने चिकोटी काटी होगी, लेकिन हम उस मित्र की बात नहीं मानते, महामानव नॉनबायोलॉजिकल हैं, उनकी आत्मा चिकोटी नहीं काटती, उन्हें ईश्वर आदेश देता है, तो ईश्वर ने महामानव को आदेश दिया कि जा, इस मौसम एक चक्कर मणिपुर का लगा। बस फिर क्या था, महामानव ने फौरन एक टिप मणिपुर का बना लिया। महामानव के टिप के लिए मणिपुर की सड़कों के किनारे स्वागत के पोस्टर लगाए गए, जिन्हें सुना है धूर्त मणिपुरियों ने फाड़ दिया, महामानव ने पूरी एहतियात बरती कि वे जाएं तो सड़क के दोनो तरफ बच्चों की कतार हो, जैसे राजाओं -महाराजाओं के जमाने में हुआ करती थी, ताकि महामानव चलती गाड़ी से हाथ हिला सकें। इसलिए स्कूल के बच्चों को भरी बारिश में खड़ा किया गया। बंदोबस्त तो एक एंबुलेंस का भी होना चाहिए था, जो महामानव के कारों के कारवां के बीच में आ जाती, और फिर महामानव एक बार फिर अपनी महामानवीयत दिखाते हुए एंबुलेंस को रास्ता दे देते, लेकिन समय पर एंबुलेंस का इंतजाम नहीं हो सका। इसलिए महामानव ने बड़ा त्याग किया और एंबुलेंस की जगह सिर्फ दो-चार उद्घाटन मणिपुर मे ंकर दिए, ताकि सनद रहे। और फिर शानदार टिप के बाद वापस आ गए। लेकिन फिर भी, फिर भी इस विपक्ष को चैन नहीं आया, ये जो वोट चोर - गद्दी छोड़ का नारा अभी चल रहा है, सुना मणिपुर में भी भीड़ ने वो नारा लगा दिया। महामानव का वैसा स्वागत नहीं हुआ, जैसा कि उम्मीद थी। खैर आगे इस बात का ध्यान रखा जाएगा, हो सकेगा, तो बिहार, या गुजरात से लोगों को मणिपुर ले जाया जाएगा, ताकि महामानव के जाने पर कोई ये कहने वाला मिल सके कि महामानव के कारण ही वो वहां मौजूद है, और उसने महामानव को छुआ है, इसलिए उसे मोक्ष प्राप्त हो गया है।
लेकिन इन सबमें आप ये मत भूल जाइएगा कि महामानव ने इस वक्त यानी इस समय वो काम किया है जो न सिर्फ आश्चर्यजनक है, बल्कि अभिभूत करने वाला भी है। महामानव ने निश्चय किया कि वे अपनी मां का,
पिण्डदान करेंगे, बताइए। एक नॉनबायोलॉजिकल व्यक्ति, एक ऐसा व्यक्ति जो सीधे ईश्वर से आदेश लेता हो, वो अपनी मां का पिंडदान करेगा। इतना बड़ा त्याग, इतना शील, इतनी शर्म, इतनी इंसानियत, इतनी महानता, अरे कोई नोबेल वालों को फोन करो भई। ऐसा गज़ब हमने तो अपने जीवन में कभी नहीं देखा यार। बिहार में चुनाव की सरगर्मी है, चुनाव आयोग जबरदस्ती का एस आई आर करवा रहा है, राहुल गांधी, वोट अधिकार यात्रा निकाल चुके हैं, पूरा बिहार गर्म है, नितीश कुमार, आपकी जानकारी के लिए बता दूं, ये बिहार के मुख्यमंत्री हैं, ये नितीश कुमार, कभी टीचर्स पर लाठियां पड़वा रहे हैं, कभी छात्रों पर, कहीं - कहीं तो किसानों को भी नहीं बख्शा जा रहा है, जो नौकरी मांगने पहुंचे, मारो लाठी, जो अपना जन-अधिकार मांगने पहुंचे, मारो लाठी, जो कुछ ना करे बेचारा, उस पर भी मारो लाठी, और ऐसे में, महामानव का बिहार में ही अपनी मां का पिंडदान करना, और असली बेटा होना किसे कहते हैं आखिर। महामानव को बिहार का चुनाव नहीं दिखाई देता, वे इस सब मोह - माया से परे हैं, बिहार में अपनी मां का पिंडदान वो इसलिए नहीं कर रहे कि बिहार में चुनाव है, बल्कि इसलिए कर रहे हैं ताकि वो अपना कर्तव्य पूरा कर सकें।
ये विपक्षी, ये नाहंजार क्या समझेंगे, ये लोग बात-बे-बात में महामानव की मां को राजनीति में घसीट लाते हैं। ये तो महामानव ही हैं, जो सीने पर पत्थर रख कर सबकुछ झेल जाते हैं, और बिहार में चुनावों के समय अपनी मां का पिंडदान करके भी बिहार की चुनावी राजनीति में अपनी मां को शामिल करने से बचे रहते हैं। पुत्रभक्ति की ऐसी मिसाल, जिसमें कोई ऐसा व्यक्ति जो अपनी मां को पहले ही नकार चुका हो, उसका पिंडदान करे, आपको इतिहास, मिथक, पुराण आदि में भी नहीं मिलेगी। अरे कोई नोबेल वालों को फोन लगाओ रे।
पर इस देश का विपक्ष, उफ, क्या कहें। इतना सब कहना पड़ता है, लेकिन इन्हें समझ नहीं आती। विपक्ष इस देश का, इसे जो ना कहा जाए वो कम है। दुनिया के और देशों के विपक्ष को देखो, कैसे लगातार अपनी सरकार के गुणगान करते हैं। एक हमारा विपक्ष है कि सरकार के किसी कदम की तारीफ ही नहीं करता। सरकार ने जी एस टी का मास्टर स्टोक लगाया, तो इसने विरोध किया, कहते थे कि जी एस टी में संशोधन करो, फिर सरकार ने दोबारा मास्टर स्टोक लगाया कि जी एस टी में संशोधन कर दिया, अब भी विरोध कर रहे हैं, कहते हैं सरकार निकम्मी है। बताइए, महामानव की सरकार को निकम्मी बता रहे हैं, निर्मला ताई ने क्या शानदार स्टोक मारा, महामानव के नेतृत्व में, जी एस टी में ऐसा संशोधन किया है कि अब सब कुछ फिर से पटरी पर आ जाएगा। ना ना, इसका ये मतलब नहीं है कि महामानव ने पहले कुछ ग़लत किया था, इसका बस इतना मतलब है कि महामानव तब भी सही थे, अब भी सही हैं, जैसे रुपये की गिरती कीमत से प्रधानमंत्री और भारत सरकार की इज्जत की गिरावट वाला बयान भी सही था, और अब ये बयान कि रुपया नीचे नहीं गिर रहा, डॉलर उपर चढ़ रहा है भी ठीक है, दोनो ही मास्टर स्टोक हैं, बस देखने वाली नज़र चाहिए, जो विपक्ष के पास नहीं है।
बिहार में एस आई आर करवाना हालांकि चुनाव आयोग का काम है, लेकिन ये वाली लाइन तो महामानव की ही थी कि ये एस आई आर घुसपैठियों की वजह से करवाया जा रहा है। इसलिए चुनाव आयोग के इस मास्टर स्टोक को भी महामानव का मास्टर स्टोक माना जाए। तो विपक्ष ने इसका पुरजोर विरोध किया। इतना विरोध किया कि पूरे बिहार में, और फिर पूरे देश में चुनाव आयोग के खिलाफ ही एक माहौल सा बन गया, और सुप्रीम कोर्ट को चुनाव आयोग को ठीक करना पड़ा। लेकिन महामानव ने चुनाव आयोग को डिफेंड किया, और विरोधियों यानी विपक्षियों को हड़काया कि ये लोग घुसपैठियों की ढाल बन रहे हैं, इसलिए एस आई आर का विरोध कर रहे हैं। ये भी यकीन मानिए मास्टर स्टोक ही है। ये मास्टर स्टोक पर मास्टर स्टोक लगाते जाना सिर्फ महामानव के ही बस की बात है, हम आप जैसे साधारण इंसान ये नही ंकर सकते। तो कुल मिलाकर भक्तजनों आज की कहानी बस ये है कि मास्टर स्टोक के मास्टर ने मां का पिंडदान करके हेडमास्टर स्टोक लगाया है, अब गंेद विपक्ष के पाले में है, जो बे-बात पर महामानव की मां को राजनीति में घसीट रहा था। हमें विपक्ष को सबक सिखाना चाहिए और महामानव की मां को आदरणीय श्रद्धांजली देनी चाहिए।
चचा ग़ालिब ने इसी बात पर एक लाजवाब शेर कहा था, शेर आपकी नज़र है, इसे नज़र मत लगाइएगा।
ग़ौर कीजिए
ग़में रोज़गार इतना भी ना हो ग़ालिब
विपक्ष से हमें प्यार भी ना हो ग़ालिब
हर क़दम तेरा दिखे मास्टर स्टोक हमें
वोट चोरी का इल्ज़ाम भी ना हो ग़ालिब
अब वोट चोरी, वोट बंदी वाला मामला बहुत हुआ, ग़ालिब चचा कह रहे हैं, कि बस करो यारों। हो गया, अब महामानव को फिर से अपनी फॉर्म में आने दो, कुछ तो इज्जत रखो यार।
पर मुझे मालूम है तुम ऐसा नहीं करोगे, क्योंकि विपक्ष हो, विपक्ष ही रहोगे, और महामानव के मास्टर स्टोक का विरोध करते रहोगे। तो ठीक है करते रहो, जो मन करे।
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