मंगलवार, 16 सितंबर 2025

टैरिफ वार - महामानव का सीक्रेट वैपन

 टैरिफ वार - महामानव का सीक्रेट वैपन





नमस्कार, मैं कपिल एक बार फिर आपके सामने। आज कुछ भी बात करने से पहले कुछ बहुत साफ कर देना चाहता हूं। मैं कल अपने एक दोस्त से बात रहा था, जो इकॉनॉमिक्स में पी एच डी है, एक कॉलेज में पढ़ाते हैं, और देश और दुनिया की इकॉनॉमी पर जिनकी अच्छी पकड़ रही है। तो मैं जो बातें आज आपके सामने रखूंगा, मैं ने उन्हें भी बताईं, और बजाय मेरी विद्वता पर खुश होने के, वो मुझ पर गुस्सा हो गए, बहुत बड़ी-बड़ी बातें करने लगे, उनकी सारी बातों में मुझे कुछ समझ नहीं आया, लेकिन जो एक बात उनकी सारी बहस में मुझे समझ में आई, कि वो एक तरफ तो महामानव के परम मित्र, तू तड़ाक की दोस्ती वाले डीयर फ्रेंड डोलान्ड को बेवकूफ बता रहे थे, और दूसरे हमारे महामानव को भी जाने क्या-क्या कह रहे थे। उनकी इस पूरी बातचीत में मुझे ये लगा, कि ये लोग कितना भी पढ़-लिख लें, लेकिन देशप्रेमी ये नहीं हैं। देशप्रेमी होते तो ये नहीं कहते कि अमरीका ने भारत की मुसीबत कर दी, माने ठीक है कर दी, लेकिन कहना नहीं चाहिए। टू इंडियन वो होता है, जो ग़लत हो तो भी उसे ग़लत ना कहे, क्यों माई लॉर्ड ठीक है ना? 



बताइए, कोई महामानव को अच्छा समझे बिना देशप्रेमी कैसे हो सकता है। टू इंडियन, जी हां, ये लोग पढ़ - लिख गए हों बेशक, लेकिन ये टू इंडियन नहीं हो सकते। आज के हालात को, मेरा मतलब है, अमेरिका के टैरिफ को, सही से समझने के लिए, आपको इकॉनॉमी नहीं, महामानवीयत को समझने की जरूरत है। ये लोग पढ़ाई-लिखाई के नज़रिए से, इसे देखने की कोशिश कर रहे हैं, और इसलिए लगातार ग़लत नतीजों पर पहुंच रहे हैं, इसीलिए इस पूरे मामले में इन्हें महामानव की चतुराई, उनकी हिम्मत, समझ-बूझ नहीं दिखाई दे रही। अरे मेरे मितरों, अमेरिका के देश पर लगने वाले टैरिफ को समझने के लिए पहले तो आंखों पर राष्टवाद का चश्मा लगाना पड़ेगा, जिसके बाद आपको पता चलेगा कि इस सबमें हमारे महामानव का, यानी हमारे देश का क्या भला होने वाला है। तो दोस्तों मैं इकॉनॉमिस्ट नहीं हूं, दुनिया और देश की क्या, मुझे तो अपनी निजी इकॉनॉमी भी आज तक समझ नहीं आई है, पैटोल की कीमत 60-70 से सौ हो गई, लेकिन मुझे जाने क्यूं लगता है कि महंगाई नहीं बढ़ी है। कंपनियों से लगातार हजारों की तादाद में लोगों की छंटनी हो रही है, लेकिन यकीन मानिए मुझे ये नहीं लगता कि रोजगार घट रहा है, बेरोजगारी बढ़ रही है, मेरा अपना काम ठप्प हो गया, लेकिन मुझे नहीं लगता कि देश में काम-धंधा घट रहा है, ना खाना अफोर्ड कर पा रहे हैं, ना दवा अफोर्ड कर पा रहे हैं, लेकिन फिर भी.....


मेरे कहने का मतलब है कि मेरा आज का वीडियो समझने के लिए आपको इकॉनॉमिस्ट होने की जरूरत नहीं है, सिर्फ महामानव के प्रति आपका प्रेम होना जरूरी है। चलिए अब शुरु करते हैं।


अमरीका की दादागिरी चलती थी किसी जमाने में, अब नहीं चलती। अब हम कहते हैं, तू क्या है बे। लेकिन अमरीका मानता नहीं, उसने भारत के उपर टैरिफ लगा दिया, मेरा मतलब पहले भी टैरिफ था, लेकिन अब उसने इसे बढ़ा दिया। अब ज्यादातर पढ़े-लिखे, यानी इकॉनॉमी पढ़े - लिखे लोग लगे चिल्लाने की यू ंतो भारतीय बाजार बर्बाद हो जाएगा। लेकिन ये उनकी ग़लती नहीं है, ये उनकी पढ़ाई की ग़लती है, जिसकी वजह से वो व्यापार को यूं नहीं समझ पाते।


दरअसल महामानव ने अमरीका पर सर्जीकल स्टाइक कर दी है। आपको याद होगा, जब चीन से हमारा झगड़ा हुआ था, तो महामानव ने कैसी चतुर सुजान वाली चाल चली थी, महामानव ने चीन की कमर तोड़ने के लिए, उसके व्यापार को बर्बाद करने के लिए, सीधे उसके दिल पर चोट की थी। फौरन टिकटॉक को बंद कर दिया गया था। भारत में आज भी टिकटॉक बैन है। भारत में टिकटॉक के बैन होते ही चीन घुटनों पर आ गया था, उसने रोना -पीटना शुरु कर दिया था। लेकिन महामानव का दिल नहीं पसीजा, कोई भारत के उपर हमला करे, तो हमारे महामानव, हमारे छप्पन इंची छाती वाले, लाल आंखों से जो फैसला ले लेते हैं, वो अटल फैसला होता है। चीन ने भारत के पास कितने ही डेलीगेशन भेजे, माफी मांगी, और कई तरह के हथकंडे अपनाए कि महामानव का दिल पिघल जाए और वो टिकटॉक से बैन हटा लें, लेकिन महामानव ने ऐसा नहीं किया। और आपको जानकर खुशी होगी, मुझे भी हुई, जब मुझे इस शानदार खबर का पता चला कि महामानव ने अमरीका के खिलाफ भी कार्यवाही कर दी है। 


तो दोस्तों, इस रिपोर्ट के आधार पर ये तो पक्का कहा जा सकता है कि बहुत जल्द ही अपनी इस वैश्विक पहचान के आंशिक बैन के बाद अमरीका घुटनों पर आ जाएगा, और हमारे महामानव के सामने नाक रगड़ेगा, आखिर उसकी वैश्विक पहचान का मामला है, जिस पर सुधीर भैया की रिपोर्ट के हिसाब से हमने सिर्फ आंशिक कार्यवाही की है, लेकिन इस कार्यवाही को आंशिक से पूर्ण करने में छप्पन इंची छाती को कोई ज्यादा देर नहीं लगने वाली है, समझे ना। और अभी तो सिर्फ कोक और पेप्सी की बात हो रही है, अभी आप देखना, महामानव आयरन मैन, कैप्टन अमेरिका और स्पाइडर मैन को भी भारत आने से रोक देंगे, फिर देखें ये अमरीका क्या करता है, आगे आगे देखिए होता है क्या। अभी तो महामानव ने लाल आंखें नहीं की हैं, जो एक बार कर दीं, तो फिर.....


इसके अलावा आप ये ना समझिए कि हमारे पास और कोई रास्ता नहीं है। अजी हमने पिछले चौदह सालों में जो डंका बजाया है, जो डंका बजाया है, पूरी दुनिया उस डंके को सुन रही है। हालांकि मैं इकॉनॉमी का एक्सपर्ट नहीं हूं, लेकिन मैंने ऐसे -ऐसे एक्सपर्टस् को सुना है, कि क्या कहने। 


इन एक्सपर्टस् का ये कहना है कि ये टैरिफ लगा कर भारत का तो क्या ही बिगड़ेगा, लेकिन अमरीका ने अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली है। ये तो आप ने सुन ही लिया कि किस तरह अमरीका में भारतीय माल महंगा हो जाएगा, और अमरीकी जनता कैसे त्राहीमाम-त्राहीमाम करती हुई महामानव के पास आएगी। और तब, तब मेरे मितरों, महामानव मुस्कुरा कर कहेंगे, 


इसलिए मैं निश्चिंत हूं, बावजूद इसके कि भारतीय बाजार में अफरा-तफरी है, मैं निश्चिंत हूं, बावजूद इसके कि तथाकथित वामपंथियों, प्रगतिशीलों ने इस टैरिफ को लेकर अपनी चिंता जाहिर की है, मैं बहुत मुतमइन हूं, बावजूद इसके कि भारतीय कारोबारी, व्यापारी, नौकरीपेशा लोग चिंता कर रहे हैं, मैं बहुत मुतमइन हूं, बावजूद इसके कि सारे पढ़े-लिखे लोग, सारे इकॉनॉमिस्ट, बेतरह चिंता कर रहे हैं, मैं बहुत बेफिक्र हूं, अरे दोस्तों, चिंता करनी चाहिए अमरीका को, जिसके उपर इस टैरिफ का असर पड़ेगा। हमारा क्या है, पिछले चौदह सालों में महामानव ने हमें इस कदर पक्का और मजबूत बना दिया है कि



हमें कुछ नहीं चाहिए, हमें कुछ भी नहीं चाहिए। इसलिए मैं मुतमइन हूं, भई कहावत है, उरियां नहाएगा क्या और निचोड़ेगा क्या, जिसे कुछ चाहिए ही नहीं, उसे धमका कर अमरीका को क्या हासिल होगा भला। लगाए अमरीका टैरिफ, लगा भई, और लगा ले, 50 की जगह 60 कर दे, 70 कर दे। हमें कोई फर्क नहीं पड़ता, हम अभी ही कौन सुखी हैं, जो तेरे टैरिफ लगाने से दुखी हों। पर ये याद रखना मित्र डोलांड, कि हमारे ही देश में तुम्हारी फोटो की आरती होती थी, तुम्हारी जीत के लिए हवन किया जाता है, तुम्हारे नाम के केक काटे जाते हैं, जिसकी वजह से तुम जीतते रहे हो। अब हम वो बंद कर देंगे, हमारी हिंद सेना, और बाकी जो भी ये सब करते थे, वो अब इसे बंद कर देंगे। 
तो असर तो भाईयों, भैनो डोलांड पर पड़ेगा, हम पर क्या असर पड़ेगा, यानी हम पर कोई असर नहीं पड़ेगा इस टैरिफ का।

इस पचास पर्सेंट टैरिफ पर एक जो थोड़ी सी समस्या मुझे है वो ये कि ये पचास का अंक ज़रा ठीक नहीं बैठता, हमारे यहां सवा, ग्यारह, इक्कीस, या इक्यावन को शुभ माना जाता है। मै बस महामानव से या सुधीर जी से, या अंजना जी से एक निवेदन ये करना चाहता हूं, कि उनकी तो खासी बातचीत है डोलांड से, उनसे ये कहें कि भैये, ये टैरिफ जो है, पचास की जगह इक्यावन कर दें, माने समस्या हो, लेकिन कम से कम रकम तो शुभ रहे, भई, परंपरा, रीति रिवाज और संस्कृति का भी तो ध्यान रखना पड़ता है ना। तो जूते मारें, लेकिन गिन कर शुभ संख्या में मारें, ये ठीक नहीं लगता कि पचास पर रोक दें, इक्यावन कर दें, अगर इसमें दिक्कत हो तो एक सौ एक कर दें। 
हालांकि एक बात मुझे ये भी लगती है दोस्तों कि कहीं ये ग़लती भी नेहरु की ना हो, वो इंसान काफी ग़लत-ग़लत काम करके गया था, हो सकता है उसकी वजह से ये टैरिफ वाला मसला खड़ा हुआ हो, मुझे तो लगता है कि महामानव को एक बयान नेहरु के खिलाफ, उनकी ग़लती बताते हुए दे ही देना चाहिए, हो सकता है कि बात बन ही जाए, करने में क्या जाता है। क्यों?

चचा हमारे, यानी चचा ग़ालिब भी कमाल थे, मरने के बाद उन्होने इस डोलांड-महामानव मित्रता और डोलांड की बेवफाई पर एक तड़पता हुआ शेर कहा था, शेर कुछ यूं है कि

तू बेवफा है तो बेवफा ही सही, हंस के हर सितम सह जाएंगे
जितना भी बढ़ा ले टैरिफ ए दोस्त, तुझे देख कर हम मुस्कुराएंगे।

कुछ लोगों को लगता है कि मैं अपने खुद के शेर चचा के नाम से सुनाता हूं। आप मेरा यकीन कीजिए, इतने वज़नदार शेर मैं लिखने की तो छोड़िए, सोचने की भी हिम्मत नही ंकर सकता। वैसे भी जिन चचा ने शीशे की धूल साफ करने वाला शेर लिखा हो, इस तरह के शेर वही लिख सकते हैं।
खैर आप अमरीका के टैरिफ का मजा लीजिए, बाकी महामानव आपका मजा ले रहे हैं। 


एक नामालूम से शायर थे, बहुत बेकार शेर कहते थे, उनकी एक गज़ल यूं ही, माने यूं ही याद आ गई। सुन लीजिए, शायद काम आ जाए।  

नाम चले हरनामदास का काम चले अमरीका का
मूरख इस कोशिश में है सूरज ना ढ़ले अमरीका का

निर्धन की आंखों में आसूं आज भी हैं और कल भी थे
अंबानी के घर दीवाली तेल जले अमरीका का

दुनिया भर के मज़लूमों ने भेद ये सारा जान लिया
आज है डेरा महामानव के साए तले अमरीका का

काम है उसका सौदेबाज़ी सारा ज़माना जाने है
इसीलिए तो मुझको प्यारे नाम खले अमरीका का

ग़ैर के बलबूते पर जीना मर्दों वाली बात नहीं
बात तो जब है ऐ जालिब अहसान तले अमरीका का

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