सोमवार, 15 सितंबर 2025

मगरमच्छों के देश में



 सुनते हैं भारत किसी जमाने में सोने की चिड़िया कहलाता था, इस बात पर शक करने का कोई कारण मुझे नहीं दीखता, क्योंकि सिकंदर-ए-आज़म फिल्म में मोहम्मद रफी ने ये गाना गाया है, और अगर बालीवुड की फिल्म में ये गाना गाया गया है, तो पक्का है कि उस वक्त ये देश पक्का सोने की चिड़िया रहा होगा। ये फिल्म 1965 में बनी थी जबकि सिकंदर कहते हैं कि 327 ई. पूर्व भारत आया था। जब उसके बहादुर, देशभक्त सैनिकों ने बियास नदी का पानी पिया तो उन्होने सिकन्दर के खिलाफ बगावत कर दी, और आप चाहे कितने भी महान हों, यदि आपके देशभक्त सैनिक आपके खिलाफ बगावत कर दें, तो ये जान लीजिए साहब कि आप आगे नहीं बढ़ सकते, आपको मजबूरन पीछे जाना होता है। तो सिकंदर को भी बिचारे को दो साल बाद, यानी 325 ई. पूर्व में वापस लौटना पड़ा, हालांकि सुनने में ये भी आया है कि वो जिंदा अपने वतन नहीं पहुंच पाया, कि रास्ते में ही उसका इंतकाल हो गया। छू गया हालांकि वो बहादुर हिंदुकुश को, मरने से पहले, यही बहुत रहा। 




खैर सोने की इस चिड़िया का अभी हाल ये है कि जनसंख्या डेढ़ अरब हो चुकी है, जिसमें से पौने अरब लोगों को सरकार मुफ्त राशन दे रही है। इसलिए नहीं कि सरकार के मन में प्यार उमड़ रहा है, और वो दयावान होकर जनता को राशन दे रही है, बल्कि इसलिए कि सरकारी आंकड़ों के हिसाब से इन लोगों के पास दो वक्त का खाना तक नहीं है। और कुल मिलाकर बात यूं बैठी है कि सोने की चिड़िया के पर काट कर कुछ लोगों ने उसे अपनी तिजोरी में रखा हुआ है, ये लोग उस सोने की चिड़िया के लिए, सुना एक चिड़ियाघर भी बनवा चुके हैं, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने अभी हाल ही में एक एस आई टी भी बिठा दी है, कि भैये ये बताओ कि चिड़ियाघर तक तो ठीक था, लेकिन तुम ये जो जिनावर ले आए हो अपने चिड़ियाघर में, वो कैसे लाए हो। खैर मैं बात कर रहा था, सोने की चिड़िया की तो, सोने की चिड़िया तक ही रहते हैं।



आपको पता है, किसी जमाने में एक कहावत होती थी, ऑल रोडस् लीडस् टू रोम, यानी दुनिया की सारी सड़कों का अंत रोम में ही होता है। क्यों थी ये कहावत, क्योंकि कहा जाता था, कि दुनिया के सबसे सुरक्षित लोग, रोम के नागरिक होते थे, वो दुनिया में कहीं भी जाएं, उन्हें इज्जत मिलती थी, सुरक्षा मिलती थी। क्योंकि अगर किसी रोमन नागरिक को दुनिया के किसी भी हिस्से में कोई नुक्सान हो जाए तो रोमन सेना, रोमन सत्ता का कहर उस देश पर टूटता था। इसलिए रोमन नागरिकों को पूरी दुनिया में इज्जत भी मिलती थी और सुरक्षा भी मिलती थी। हमारा, यानी सोने की चिड़िया वालों का ये हाल है कि अमरीका हमारे बच्चों को, या नागरिकों को जब वापस भेजता है, तो ऐसे हथकड़ियां और बेड़ियां लगा कर भेजता है कि जैसे किन्हीं दुर्दांत अपराधी को पकड़ा हो, बेखतर, हमारा अपमान करता है, दुनिया भर के मंचों पर हमारे खिलाफ, यानी पूरे देश के खिलाफ प्रोपेगैंडा करता है, और हम चुपचाप देखते हैं, लव लेटर लिखना तो छोटी बात है, जाकर बार बार उसके गले पड़ जाते हैं। जहां लाल-लाल आंखें दिखानी चाहिए थीं, वहां रिरियाते हैं, बार बार डेलीगेशन भेजते हैं कि बड़े भाई हम पर रहम करो, हमें सजा मत दो। और अमरीका, दोस्ती निभाते हुए कभी सिर पर चपत लगाता है, कभी सीधे मुहं पर थप्पड़ मार देता है। दे टैरिफ पर टैरिफ, दे बयान पर बयान, हालत ये कर दी कि पूरी दुनिया में जगहंसाई हो रही है, और हमारी चिड़िया पूंछ दबा कर बैठी हुई है कि सांसत से सांस मिले तो आगे कुछ करें। 


तो मुसीबत ये है कि हमारे देश का ये हाल हुआ कैसे। क्योंकि भैया हमको तो ये पता है कि इज्जत हो या बेइज्जती शुरु घर से ही होती है। कहने का मतलब ये है कि भारत के नागरिक जिन्हें भारतीय कहा जाता है, उनकी इज्जत बाहर तो तब होगी जब उनके घर यानी देश में उनकी कोई इज्जत होगी। और यहां हाल ये है कि इस देश का सबसे निरीह प्राणी अगर कोई है तो वो इस देश का आम नागरिक है। सरकार, पुलिस, चपरासी, जज, डीएम, बी डी ओ, यहां तक कि टैफिक पुलिस का कानस्टेबल भी, जब चाहे, जिस किसी नागरिक को चाहे, गाली दे सकता है, मार सकता है, उसके उपर थूक सकता है, उसे पकड़ कर जेल में बंद कर सकता है, और चाहे तो एनकांउटर भी कर सकता है। कोई कुछ नहीं बोलेगा। अगर आप कुछ भी बोलें, मान लीजिए आपने कभी किसी नागरिक के उपर हुए अत्याचार की दुहाई दी, तो पहला सवाल तो आप के उपर यही उठेगा कि महाशय की ये बात सेना का, पुलिस का, एडमिनिस्टेशन का हौसला कम करने वाली बात है, और इसलिए देश विरोधी बात है, और इसलिए जो अत्याचार का विरोध करे, उसे जेल में डाल दिया जाए। अब जेल में डालने की ताकत तो उनके पास हमेशा से है, इसलिए वो बेझिझक आपको जेल में डाल देंगे, पूछ-गिछ बाद में होगी। 
आप इसे इस तरह समझिए, इस देश का असली मालिक इस देश का नागरिक है। यानी संविधान जहां से शुरु होता है, वो इस देश का नागरिक है। लेकिन असल में वो जो नागरिक शब्द है, वो संविधान की प्रस्तावना तक ही सीमित है। इसके बाद उस नागरिक का जो अपमान, नीचे से लेकर उपर तक होता है, वो भयावह है, जो कि रोजमर्रा का काम बन गया है। कोई भी पुलिस वाला, सरकारी कर्मचारी, किसी संस्थान या व्यक्ति की सुरक्षा में लगा हुआ कोई भी कर्मचारी, सेना का जवान, कभी भी, कहीं भी, किसी भी नागरिक को, गाली दे सकता है, हड़का सकता है, धमकी दे सकता है, शारीरिक ंिहंसा कर सकता है। और आज़ाद भारत के इतिहास में किसी भी सरकारी कर्मचारी को किसी भी भारतीय नागरिक को गाली देने या उसका अपमान करने के जुर्म में, कोई भी, जरा जिन्नी भी सजा नहीं हुई है। जिस देश के नागरिकों की अपने ही देश में कोई इज्जत ना हो, वो किसी और देश में अपने लिए किसी भी तरह की इज्जत की मांग कैसे कर सकते हैं। 



आपने सोशल मीडिया पर वायरल कई वीडियो देखे होंगे जिनमें कोई पुलिस वाला, कोई सरकारी अफसर, कोई निर्वाचित प्रतिनिधि किसी सामान्य भारतीय नागरिक, यानी आम आदमी को, गाली दे रहा है, धमका रहा है, धक्का दे रहा है, उसके साथ हाथापाई कर रहा है। लेकिन इनमें से किसी भी सरकारी कर्मचारी को, आज तक कभी भी, किसी भी परिस्थिति में पूछा तक नहीं गया है कि तुमने ऐसा क्यों किया, तुम्हारे पास ये अधिकार या हिम्मत कैसे आ गई कि तुम किसी भारतीय नागरिक के साथ ऐसे पेश आए। सजा देना तो दूर की बात समझिए। कोर्टस् में जज भारतीय नागरिक से कैसे पेश आते हैं, वो भी हम लगातार देखते ही रहते हैं, अब अगर थोड़ा बहुत पैसा आपके पास हो तो थोड़ी बहुत इज्जत आपको मिलती है, लेकिन कहीं अगर आप ग़रीब हैं, तो ये मान लीजिए साहब कि आपकी इज्जत इस देश में दो कौड़ी भी नहीं है। पुलिस वाला, अबे ओए कह कर बुलाएगा, बेबात पर थप्पड़ या लात मार देगा, पैसा सब छीन लेगा, और सुनवाई कहीं होनी नहीं है। 



क्योंकि इस देश में कागज़ पर चाहे जो लिखा हो, कोई भी सरकारी संस्था, या व्यक्ति किसी व्यक्ति के प्रति उत्तरदायी नहीं है। सिर्फ इस देश का आम आदमी उत्तरदायी है। उसे हर वक्त, हर परिस्थिति में हर सवाल का जवाब देने के लिए तैयार रहना चाहिए। अब मान लीजिए कि आप कार में कहीं जा रहे हैं, आपको किसी पुलिसवाले ने हाथ देकर रोक लिया। अब आप उस पुलिसवाले से ये नहीं पूछ सकते कि भैया मेरे तूने मुझे रोका क्यों है। अब वो पुलिस वाला आपके भविष्य का मालिक है। वो आपसे सिर्फ पांच-सात सौ रुपये, या जितने की उसे जरूरत है, लेकर आपको छोड़ सकता है, या फिर आपको सीधा जेल में भी डाल सकता है। कोई जज, कोई वकील, उससे नहीं पूछेगा कि भाई मेरे तूने इनकी कार को रोका क्यूं था। क्योंकि यकीन मानिए, इस देश में पुलिस को ये अधिकार है कि वो जब चाहे, जैसे चाहे, जितना चाहे, आपको मार-पीट सकती है, कोई आपको बचा नहीं सकता। आप किसी से नहीं कुछ नहीं पूछ सकते। सड़क के जाम पर टिके हुए पुलिस वाले से नहीं पूछ सकते कि, क्यों? पंचायत में प्रधान से नहीं पूछ सकते कि, क्यों? किसी मंत्री से विधायक से नहीं पूछ सकते कि, क्यों? डीएमए, बीडीओ, छोड़िए किसी सरकारी ऑफिस में जाकर किसी कर्ल्क से आप कुछ नहीं पूछ सकते, उल्टे ये सभी आपसे सब कुछ पूछ सकते हैं। कोई पुलिस वाला आपको सरेराह रोक कर, कुछ भी पूछ सकता है, आपकी जामातलाशी ले सकता है, बेवजह आपको गिरफ्तार कर सकता है। कोई जज आपको सालों हिरासत में रखने का आदेश दे सकता है और फिर बिना कोई गिल्ट महसूस किए आपको छोड़ सकता है। सरकार की, सुरक्षा एजेंसियों की, जांच एजेंसियों की, चुनाव आयोग की, न्यायालय की, किसी की कोई जवाबदेही भारतीय नागरिक के प्रति नहीं है, बल्कि आपको उन्हें हर बात पर जवाब देना होगा, नहीं दिया तो अंजाम बुरा होगा। 


राहुल गांधी वोट अधिकार यात्रा निकाल रहे हैं, और तमाम सोशल मीडिया साइटस् पे ऐसे लोगों के हजारों वीडियो दिख रहे हैं, जिनमें वो कह रहे हैं कि हमें मृत बता दिया गया है, हमारा वोट कट गया है। कट ही जाएगा, अरे मेरे भाई, इस देश का नागरिक होते हुए तुम्हें कोई अधिकार नहीं है, तो वोट का अधिकार ही क्यों हो। जब सर्वशक्तिमान लोग पदों पर बैठे हैं तुम्हारी किस्मत का फैसला करने तो फिर तुम्हे कोई अधिकार क्यों होगा। कहने का मतलब ये है कि जिन लोगों को आज तक इंसान की तरह जीने का, एक देश का नागरिक होने का सम्मान तक नहीं मिला, उन्हें राहुल गांधी कह रहे हैं कि तुम वोट का अधिकार ले लो, कैसे ले लेंगे साहब। वोट ना देने देना तो एक छोटी बात है, कोई सरकारी अधिकारी आकर बिना वजह मार देगा, पत्नि, बहन, बेटी के साथ बलात्कार कर देगा, घर पर बुलडोजर चला देगा, तो भी इन बेचारों का कोई अधिकार नहीं है। कमाल बात करते हैं, वोट का अधिकार। जब सरकार चाहेगी, जिसे चाहेगी, ये वोट करेंगे, नहीं चाहेगी नहीं करेंगे। और उसके लिए कोई ताम-झाम की भी जरूरत नहीं है, बस मना कर दो। हो जाएगा। 
जब अपने ही देश में नागरिकों की हालत जानवरों से बदतर है, तो फिर काहे का अधिकार, और काहे का नागरिक। ये नागरिकता उन्हीं को भली लगती है जो 28 मंजिला घरों में रहते हैं, जो निजी चिड़ियाघर बना सकते हैं। आपको पता है, कोलकाता बनाने के लिए तीन गांवों को डिसप्लेस किया गया था, आपको पता है, लोधी गार्डन बनाने के लिए भी तीन गांवों को डिसप्लेस किया गया था। अभी एक किताब पढ़ रहा हूं, कई चांद हैं सरे आस्मां, उसमें एक शुरुआती वाकिया है कि एक राजपूत राजा की बेटी, जिसे किसी ने देखा नहीं, उसकी तस्वीर किसी मुसव्विर ने बना दी। राजपूत राजा गांव आया, और सबके सामने अपनी बेटी का कत्ल कर दिया, और पूरे गांव को ये हुक्म दिया कि गांव छोड़ कर चले जाओ, वरना मैं इसमें आग लगा दूंगा। आज भी यही हो रहा है, असम में एक सीमेंट कंपनी को 3000 बीघा जमीन दे दी गई, बिना किसी से पूछे। कोई पूछे, अबे इस देश के नागरिकों तुम्हारी औकत क्या है? कौन हो तुम? क्या अधिकार है तुम्हें......और मजे की बात ये है कि तुम कुछ कह दो, बोल दो, लिख दो, कोई कार्टून बना दो, तो अदालत या तो तुम्हें जेल ही भेजेगी, और अगर किसी कारण थोड़ी दया दिखाएगी तो कहेगी, काहे को ये सब करते हो बे, मत करना आइंदा से, चुप रहना, ठीक है। जाओ। 
खैर.....चचा ग़ालिब इन हालात को जानते थे, एक शेर कह गए हैं, बेबसी में, सुनिए

दिलों जां से बेबस हैं, हाले दिल सुनाएं क्या
जिससे उम्मीदें थीं, उसी को भूल जाएं क्या

वो शायद लोकतंत्र की बात कर रहे थे, या शायद संविधान की बात कर रहे हो, क्या पता। बाकी जीते रहिए जब तक कोई पुलिस वाला, कोई सरकारी अफसर आपकी ऐसी तैसी ना करे। और क्या कहें, हम तो अपना बचा रहे हैं, जब तक दम है।
नमस्कार

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