गुरुवार, 4 सितंबर 2025

अशुद्ध बेवकूफ - विशुद्ध बेवकूफ

बेवकूफियों का प्रतिमान - महामानव 




नमस्कार, मैं कपिल एक बार फिर आपके सामने। जनाब आगे बढ़ने से पहले कुछ बातें साफ कर लें। ये जो टाइटल है इसका ग़लत मतलब मत समझिएगा, इसका सही मतलब समझिए। आज के दौर में जब संसद में समोसों के चरित्र, व्यक्तिव और मूल्यों पर महत्वपूर्ण बहस हो सकती है, 



तो मैं महामानव यानी अपने महामानव से ये आग्रह करना चाहता हूं, इसी संक्रांति काल में इस देश में बेवकूफों पर, बेवकूफियों पर भी एक गहन और सारगर्भित चर्चा होनी चाहिए। 


कृप्या करके ये ना समझिएगा कि मैं महामानव को बेवकूफियों का प्रतिमान बनाना चाहता हूं। मेरे लिए ये साफ कर देना ज़रूरी है ताकि जो लोग मेरा वीडियो देख रहे हैं वो भ्रमित ना हों, और वीडियो के संदेश को सही से समझें, एक बार दोहरता हूं। मैं महामानव को बेवकूफ नहीं कह रहा हूं, उन्हें बेवकूफियों का प्रतिमान बताकर उन्हें बेवकूफों का बादशाह नहीं बताना चाहता। मैं सिर्फ ये आग्रह कर रहा हूं कि बेवकूफी का भी एक नेशनल स्टैंडर्ड यानी राष्टीय प्रतिमान होना चाहिए, ताकि साधारण जनता को, आपकी ज़बान में आम आदमी को ये पता चल सके कि बेवकूफ किसे कहते हैं, और क्या करने से, कहने से, इंसान बेवकूफ की गिनती में आ सकता है।



खै़र आगे बढ़ने से पहले ये भी साफ कर देना जरूरी है कि बेवकूफ और  पागल  में बुनियादी फर्क होता है, यानी दे आर फंडामेंटली डिफरेंट फ्रॉम वन अनदर, बेवकूफ को अंग्रेजी में स्टूपिड कहते हैं, और पागल को अंग्रेजी में मेंटली इल और हिंदी में विक्षिप्त कहा जाता है। इसका सीधा सा मतलब ये हुआ कि पागल एक मेडिकल टर्म है, जबकि बेवकूफ कोई भी हो सकता है, सिर्फ मिकदार का फर्क होता है। कोई ज्यादा बेवकूफ होता है, कोई कम बेवकूफ होता है। दूसरा फर्क ये होता है कि यदि कोई व्यक्ति विक्षिप्त है तो ज्यादा संभावना इस बात की होती है कि उसे सही मेडिकल केयर मिले, चिकित्सकीय सुविधाएं मिलें, तो वो ठीक हो सकता है। जबकि बेवकूफी को कोई इलाज नहीं होता, या कम से कम अब तक तो नहीं ही मिला है। तीसरा फर्क कानूनी है। यदि आप विक्षिप्त हों तो आप देश के किसी प्रतिष्ठित पद पर विराजमान नहीं हो सकते, लेकिन बेवकूफों पर इस तरह का कोई प्रतिबंध नहीं लगा है, इससे हुआ क्या कि एक साहब को कहना पड़ा, कि 

बस एक ही उल्लू काफी है बरबाद गुलिस्तां करने को

हर शाख पे उल्लू बैठा है अंजाम-ए-गुलिस्तां क्या होगा

यहां उन्होने उल्लू को बेवकूफ बताया है, हालांकि ऐसा नहीं होता है, लेकिन वो जमाना दूसरा था तब उल्लुओं को बेवकूफ माना जाता था, और इस तरह उन सज्जन का कहना था कि देश में राज करने वाले सारे.........समझे आप। खैर हमने उनकी इस चेतावनी पर कान नहीं दिया वरना आज हम इतनी मुसीबत मे ंना होते, यानी कम मुसीबत में होते.....शायद। 


कुछ बेवकूफ अपनी हरकतों से पहचाने जाते हैं, कुछ लगते तो ठीक-ठाक हैं, लेकिन अपनी बातों से जाहिर कर देते हैं कि वो बेवकूफ हैं, कुछ ऐसे भी होते हैं, जिनका बहुत देर में पता चलता है कि ये जो चतुराई दिखा रहे थे, दरअसल बेवकूफी थी, लेकिन हम इसे चतुराई समझ बैठे थे। बेवकूफों की अपनी खास पहचान होती है और अगर आप ध्यान से देखें तो बेवकूफों को आप मीलों दूर से पहचान सकते हैं।


बेवकूफ खुद को चालीस गज़ का समझते हैं। यानी वो हर चीज़ में अपनी टांग अड़ाते हैं। बात कोई भी हो, उन्हें खुद को विशेषज्ञ बताने की जल्दी होती है। वो मंगलयान से लेकर मालगाड़ी तक और पर्यावरण से लेकर बच्चों की परीक्षा तक सबमें खुद को एक्सपर्ट मानते हैं। वे चाहते हैं कि लोग उन्हें बिना कोई सवाल किए गंभीरता से लें और इस चक्कर में खुद अपना ही ढोल पीट देते हैं। अक्सर कुछ भी बोल देना, बढ़-चढ़ कर बोलना, और फुल कॉन्फिडेंस में झूठ बोलना उनकी पहचान को जगजाहिर कर देता है। यहां ये बताना भी ज़रूरी है कि बेवकूफी का कानफिडेंस यानी आत्मविश्वास सबसे बड़ा आत्मविश्वास होता है, उसके आगे सारी आस्था, विश्वास आदि फेल हैं। \



 मैने सोचा बादल होगा तो राडार से बचा जा सकता है।

 सर्दी नहीं बढ़ रही हमारी उम्र बढ़ रही है।

टू ए बी मिलता ह ैना

 पानी का स्वाद

बेवकूफ स्वयंसिद्ध होते हैं, उनकी हर बात मैं से शुरु होती है, मैं पर ही खत्म होती है। यानी मैं बचपन में ये करता था, मैं ने ये किया, मैने वो तीर मारा था, मेरे से अच्छा तीर कोई नहीं मार सकता, आदि आदि इत्यादि।  पर फिर खुद ही अपना भांडा भी खुद ही फोड़ते हैं। 

लेकिन फिर भी बाज नहीं आते, क्योंकि अपनी नज़रों में वो खुद को ईश्वर का अवतार मानते हैं, और यही मानते हैं कि वो जो भी कर रहे हैं, यानी बेवकूफियां, वही ईश्वर की कृपा से कर रहे हैं। खैर ईश्वर से हमें इस किस्म की टुच्ची बेवकूफियों की उम्मीद नहीं है, कभी भी नहीं थी। पर बेवकूफों को कोई समझा नहीं सकता। मुझे याद आया, एक हमारे चाचा थे, असल में जगत चाचा थे, जो कहते थे कि बेवकूफ की सबसे बड़ी पहचान ये होती है कि ”एक तो कुछ जानता नहीं, दूसरे किसी की मानता नहीं”। कैसे मानेगा, वो सबसे पहले तो ये माने बैठा है कि वो सबकुछ जानता है, उसे सबकुछ पता है, तो वो दूसरों को बताता है, खुद उसे कोई कुछ नहीं बता सकता। आमतौर पर लोगों को ऐसा व्यवहार जो है अहंकारी लग सकता है, लेकिन ये उनकी ग़लतफहमी होती है, ये उस व्यक्ति का अहंकार नहीं होता, बेवकूफी ही होती है। परसाई ने बेवकूफों की एक किस्म विशुद्ध बेवकूफ भी बताई है, हालांकि उन्होने अशुद्ध बेवकूफ कहा था, लेकिन तर्क ये कहता है कि अगर दुनियाजहां में अगर कोई अशुद्ध बेवकूफ है तो कोई विशुद्ध बेवकूफ भी होगा। यही विशुद्ध बेवकूफ हमारी आज की चर्चा का विषय है। विशुद्ध बेवकूफ का सबसे बड़ा लक्षण ये होता है कि वो खुद नहीं जानता कि वो बेवकूफ हैं, और अगर वो किसी पॉवरफुल पद पर बैठा हो तो उसके चारों तरफ अशुद्ध बेवकूफों की भीड़ जमा हो जाती है जो समय - समय पर उसे महान बताने का कार्य करती है और यूं, अशुद्ध बेवकूफ विशुद्ध बेवकूफ को वो खाद - पानी देता है जिससे विशुद्ध बेवकूफ फल-फूल कर इत्ता बड़ा हो जाता है कि अतंतः परम या चरम बेवकूफी की अवस्था को ग्रहण कर लेेता है।


अब मैं ये बताना चाहता हूं कि ये इत्ता लंबा वीडियो मैने क्यों बनाया। क्यूंकि मेरे दिल में एक सवाल है सोशल मीडिया पर जो विद्वान लोग हैं, वो मेरे इस सवाल का जवाब दे ंतो मेरा ही नहीं हिंदुस्तान की जनता का खूब भला होगा। सवाल ये है कि जनता का प्रतिनिधि बनने वाले सत्ता पदों पर बैठे लोगों के लिए अर्हताओं यानी योग्यताओं की सूची में पागलपन का तो जिक्र है, लेकिन बेवकूफी का जिक्र नहीं है। यानी विचार के लिए ही मान लीजिए कि अगर किसी को प्रधानमंत्री बनना हो तो जरूरी है कि वो 


भारत का नागरिक हो

उम्र 25 साल से कम ना हो

विक्षिप्त ना हो

दिवालिया ना हो

किसी जघन्य अपराध में सजायाफ्ता ना हो

लेकिन इन सबमें ये नहीं लिखा है कि वो बेवकूफ ना हो। मेरा सवाल ये है कि आज के इस दौर में क्या ऐसा कोई प्रावधान नहीं होना चाहिए जो किसी बेवकूफ को इतने महत्वपूर्ण पद पर बैठने से रोक सके। कोई टेस्ट हो, कोई ऐसी परीक्षा हो, कोई ऐसा फॉर्म हो, जिससे हम देश के इतने महत्वपूर्ण पद पर किसी बेवकूफ को अपाइंट करने से बच सकें। 

एक बार फिर साफ कर दूं, कि मेरा ये सवाल ये नहीं कहता कि कोई बेवकूफ इस पद पर है, मैं सिर्फ भविष्य के लिए ये प्रावधान चाहता हूं कि इतने महत्वपूर्ण पद के लिए एक योग्यता ये भी होनी ही चाहिए कि जो इस पद पर बैठे वो बेवकूफ ना हो। देखिए हमारे देश में शिक्षा को किसी भी पद के लिए अर्हता नहीं मानते, और ये समझ भी आता है, कोई अशिक्षित हो, तो भी योग्य हो सकता है, लेकिन कोई बेवकूफ हो, तब तो नहीं चलेगा ना? भई इसके लिए तो कोई ना कोई कदम उठाना ही चाहिए। मेरा तो यही मानना है। अब इस वीडियो को देखने के बाद हो सकता है कि कोई मेरा ज्ञान वर्धन करे और मुझे बता सके कि क्यों किसी बेवकूफ को भी पी एम बनाया जा सकता है, और क्यों इस पर प्रतिबंध नहीं होना चाहिए। 


बहुत त्रस्त है यार लोगांे दुनिया, ये जो बेवकूफों ने सत्ता हथियाई हैं, इन दिनों, पूरी दुनिया के लोग त्रस्त हैं। बेवकूफी करते हैं ये लोग, भुगतना पड़ता है जनता को, और फिर अपनी बेवकूफियां छुपाने के लिए हंसते हैं, और लपक कर गले लग जाते हैं। 


तो मेरा तो यही मानना है कि 

एक तो बेवकूफी का एक नेशनल स्टैंडर्ड बनाया जाए ताकि कम से कम अधिकारिक पदों पर बैठे लोग बेवकूफ ना हों। 

दूसरे सरकारी पदों पर, अधिकारिक पदों के लिए, ये अर्हता जरूरी की जाए कि वो व्यक्ति कम से कम बेवकूफ ना हो। 

बाकी आपकी मर्जी


चचा ग़ालिब ने बेवकूफी पर एक बहुत ही सुंदर शेर कहा है।

मुलाहिजा फरमाइए


ग़ालिब वो पूछते हैं, बरबाद क्यों हुआ मैं

कहता हूं मुस्कुरा सच बात अपने दिल की

न तू जोरदार होता, ना मैं कर्जदार होता

न तू बेवकूफ होता, ना ही बंटाधार होता


ग़ालिब भी नाम नहीं लेना चाहते थे, बस मैसेज देना चाहते थे, तो उन्होने ये शेर लिखा, उनके लिए जिन्हें मेरी तरह लगता है कि देश के उच्च पदों पर बेवकूफों को नहीं बैठना चाहिए। बाकी जो है सो हइये है।


नमस्कार


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