सोमवार, 22 सितंबर 2025

नया टैक्स - नया रिश्ता





 पिछले दिनों काफी कुछ हो गुज़रा है जनाब। हालांकि बड़े विद्वान लोग कह गए हैं कि हर बात पर तब्सरा करना ज़रूरी नहीं होता। तो भी आदत से मजबूर लोग क्या करें, बताइए। हम लोगों के लिए चुप बैठ पाना तो बहुत मुश्किल है साहब। राहुल गांधी ने बिहार में जो वोट अधिकार यात्रा निकाली, उसे मीडिया चैनलों ने दिखाया ही नहीं, लेकिन सोशल मीडिया में खूब वायरल हुआ साहब,
हर जगह की यात्रा हर जगह की भीड़ और हर जगह ”वोट चोर- गद्दी छोड़” का नारा। भई सही बताएं हमको तो उससे बहुत ज्यादा दुख हुआ, महामानव की आंखों में आंसू आ गए, जो उन्होने जब्त कर लिए, और फिर सही समय देख कर उन आसुंओं का सही सदुपयोग किया। बड़े लोगों की यही पहचान होती है कि वो अपने दुख को भी अपने फायदे के लिए इस्तेमाल कर ले जाएं। खैर दूसरी तरफ कोई भाई साहब वोट अधिकार यात्रा की रैली के बाद मंच पर चढ़ कर गाली-गुफ्तार कर आए। देखिए भाई मैं गाली-गलौज के सख्त खिलाफ हूं, इसलिए मुझे इस पर ऐतराज है, कोई भी, किसी को भी, किसी भी तरह की गाली दे इससे मुझे सख्त ऐतराज होता है।

सही किया कि भाजपा के नेताओं ने बिहार बंद किया, जनता को भी करना चाहिए था। महामानव के आवाह्न पर, उनके रोने पर, भाजपा के नेताओं ने बहुत भरोसा किया, सुना काफी जगहों पर भाजपा के नेता उतरे भी, और उन्होने बिहार की जनता को इधर-उधर जाने से रोका भी, लेकिन अफसोस की बिहार की जनता ने महामानव का साथ नहीं दिया। 
बिहार में बंद पर जनता को परेशान करते भाजपा नेता वीडियो
खैर मेरा मानना है कि ये सब किया-धरा भाकपा माले के नेताओं का है, दरअसल ये दीपाकंर भट्टाचार्य जो हैं, 


ये बहुत वबाल काटे हैं जी, राहुल गांधी की वोट अधिकार यात्रा के शुरु होने से पहले ही ये साहब वोट चोर- गद्दी छोड़ का नारा लगा दिए, जनता इस नारे को लपक ली, और आज पूरे देश में सबकी जबान पर ये नारा चढ़ गया। सबसे पहले तो इन्हें ही ठीक करना होगा, तब ना महामानव के आसुओं पर जनता का ध्यान जाएगा। दूसरे मेरा मानना है कि महामानव जब चीन में थे, तो पुतिन और जी शिनपिंग के साथ हंस रहे थे, बहुत बड़े ठहाके वाला हंसी हंस रहे थे। 

अब उनके चेलों-चपाटों ने वो वीडियो खूब वायरल कर दी थी, कि देखो हमारे विश्वगुरु के साथ दुनिया के बडे़-बड़े नेता हंसते हैं। अब दिक्कत ये है कि एक तरफ आपकी यूं दांत दिखाकर हंसती हुई फोटो है दूसरी तरफ आपकी यूं रोते हुए वीडियो आ जाती है। 



इसका नुक्सान ये होता है कि जनता को समझ नहीं आता कि आप असल में हंस रहे हैं या रो रहे हैं। 

भई भारी मिस्टेक हो गया। ये ए एन आई वाले भारी गड़बड़ कर दे रहे हैं आजकल, इन्हें ठीक से समझाना पड़ेगा। 
पर आज का हमारा वीडियो इस मुद्दे पर हइये नहीं। मां वाले मुद्दे पर बहुत सारे लोग वीडियो बना चुके हैं, और हमारा मानना है कि जिस बारे में विद्वान लोग बात कर चुके हों उस बारे में ज्यादा बोलना -बतलाना नहीं चाहिए। हम तो आज आपके साथ महामानव के नए मास्टर स्टोक पर बात करने आए हैं। जिसके नाम के पहले ही जी लगा हुआ है। जी हां, वही है भारत भू का महान, रामराज्य, विश्वगुरु वाला टैक्स यानी जी एस टी। 

जी एस टी को कुछ लोग ग़लत-सलत नामों से पुकारते हैं, कुछ लोग इसे गब्बर सिंह टैक्स बोलते हैं, कुछ गोबर सड़ा टैक्स बोलते हैं, आज हम आपको बताते हैं कि जी एस टी का असली नाम असल में गुड्स एंड सर्विसेज़ टैक्स यानी वस्तु एंव सेवा कर है। ये टैक्स भारत की जनता से वसूलने का जो कारण बताया गया था वो ये था कि जो तमाम अप्रत्यक्ष कर लोगों से वसूले जा रहे हैं, उन्हें खत्म कर दिया जाए और टैक्स को सरल और आसान बनाया जाए, ताकि देने वाला और लेने वाला, दोनो ही इसे आसानी से समझें और जनता को भी समझने में आसानी हो। कहते हैं कि ये अब तक भारत का सबसे बड़ा अप्रत्यक्ष कर सुधार था। इसीलिए इसे गुडस् एंड सर्विसेज टैक्स कहा गया, यानी ये कर वस्तुओं और सेवाओं पर लगाया जाता है। 

तो साहेब हुआ यूं कि जी एस टी की वजह से जनता बहुत यानी काफी परेशान थी, चारों तरफ हाहाकार मचा हुआ था। किसी को समझ ही नहीं आता था कि आखिर कौन सा जी एस टी कहां पर आयद होगा, कौन सा फॉर्म भरना पड़ेगा। मुझे तो आजतक समझ नहीं आया कि आखिर ये है क्या बला, कुछ दिन तो भाई कोशिश की, कि इसे समझ लिया जाए, लेकिन फिर थकहार कर अपने अकाउंटेंट के हवाले छोड़ दिया। अब हर महीने अकाउंटेंट को एक निश्चित रकम सिर्फ इसलिए देनी पड़ती है ताकि वो निल जी एस टी जमा कराता रहे, क्योंकि धंधा तो मैने जैसा बताया ही है पहले ही ठप्प पड़ा हुआ है, अपनी गाड़ी तो उम्मीद के भरोसे चल रही है जनाब। कभी आएगा काम तो टैक्स भी जमा कर ही देंगे। 
अच्छी बात ये रही कि महामानव की सरकार ने आम जनता की इस परेशानी को समझा, देर में समझा लेकिन समझा, और इस मुश्किल सवाल का हल ये निकाला कि अब जी एस टी को, जैसा कि बताया जा रहा है, कि अब जी एस टी को, मेरा मतलब सरकार ने जो हल निकाला है वो है कि जनता के लिए आसान बनाने के लिए जी एस टी को......
माफ कीजिएगा, समझ ही नहीं आया कि इस वाक्य को पूरा कैसे किया जाए। दरअसल जब जनता को जूते खाने की आदत पड़ जाए तो उसे मिठाई की आदत नहीं डालनी चाहिए। शासन का ये महत्वपूर्ण सूत्र आधुनिक चाणक्य की चाणक्य नीति से निकला हुआ बताते हैं। लेकिन महामानव जनता के शुभचिंतक हैं, इसलिए वे चिंता करते हैं कि जनता का शुभ कैसे हो रहा है। शुभचिंता शब्द से आप विचलित ना हों, शुभचिंतक का मतलब भी दरअसल बिल्कुल वैसा नहीं है जैसा कि बोलने सुनने से समझ में आता है। शुभचिंतक का आधुनिक मतलब है वो व्यक्ति जिसको आपके शुभ से चिंता हो जाती हो, वही शुभचिंतक होता है। महामानव और आधुनिक चाणक्य नीति का सारतत्व ये निकला कि कोई ऐसा हल निकाला जाए जी एस टी की समस्या का कि लाठी भी टूट जाए और सांप भी जस का तस रहे। तो उसका जो हल निकाला गया वो ये कि जी एस टी में कुछ नामों और शब्दों का बदलाव किया गया है। अब देखिए नामों और शब्दों के बदलाव का ही सारा खेला है, आप चाहे जो भी कहिए, इलाहाबाद प्रयागराज हो गया, चारों तरफ खुशहाली ही खुशहाली हो गई, इसी तरह फैजाबाद को अयोध्या करने से कैसा चमत्कार हुआ बताते हैं, इसी तरह जी एस टी में अगर कुछ नामों को बदल दिया जाए तो जनता में खुशी की लहर दौड़ जाएगी, ऐसा बताते हैं। 
लेकिन ये जनता वाकई बहुत बुरी है। बाज़ार उपर जाने का नाम नहीं ले रहा, और जनता ने इस नये जी एस टी का, वैसा स्वागत नहीं किया, जैसे की उम्मीद थी। मेरा ख्याल है इसे नये वाले जी एस टी को ही एक नया नाम दे देना चाहिए, कहना ये चाहिए कि पुराना जी एस टी खराब था, इसलिए उसे बदलकर हम एक नया सिस्टम ला रहे हैं, जो आज से पहले की सरकारों ने सोचा भी नहीं था। जैसे इसे आर आर टी यानी रामराज्य टैक्स कह देते। ऐसा करने से एक ही तीर से कई सारे शिकार किए जा सकते थे। 
जैसे कहा जा सकता था कि सत्तर सालों में पहली बार - चमत्कार ऐसा महान कर नहीं लाया गया था, जैसा महामानव ले आए हैं। 
जैसे ये नेहरु ने ग़लती की थी कि भारत में जी एस टी नहीं था, इसलिए उस ग़लती को ऐसे सुधारा गया है कि आर आर टी यानी रामराज्य टैक्स लाया गया है। 
जैसे सनातन की आस्था सिर्फ आर आर टी यानी रामराज्य टैक्स ही बचा सकता है। 
जैसे हिंदू खतरे में है। 
जैसे घुसपैठिए आए हुए हैं। 
जैसे अर्बन नक्सल नहीं चाहता कि भारत महान बने, विश्वगुरु बने, इसलिए आर आर टी यानी रामराज्य टैक्स लाना जरूरी था। 
जैसे जिनके पास घर नहीं होते, उनका पता जीरो नंबर होता है। 
निर्मला सीतारमण मैं प्याज नहीं खाती जी। 
और अगर फिर भी काम ना बने तो
मोदी का वीडियो, मुझे गालियां दी गईं। 
महामानव की मां और जी एस टी 2.0

कारण तो दोस्तों ये बताने के बहुत हो सकते थे कि आखिर ये जी एस टी क्यों लाया गया था, या उसमें अब बदलाव क्यों किया गया है। मेरा सिर्फ ये कहना है कि महामानव को पिछले दिनों बहुत सारी परेशानियों का सामना करना पड़ा है, अब पूरे देश में महामानव के खिलाफ माहौल बनता दिख रहा है। राहुल गांधी चैन की सांस नहीं लेने दे रहे हैं, तेजस्वी, ममता, अखिलेश, स्टालिन, पिनाराई, ने वैसे परेशान किया हुआ है, एक दोस्त था, वो भी धोखा दे गया। ऐसे में उन्हें और परेशान न किया जाए। अगर थोड़ा बहुत दिक्कत होती है तो मेरी देश की जनता से अपील है कि झेल लो यार। क्या ही जाता है, इतने दिनों जो जी एस टी जाता था, वो भी तुम्हारी जेब से जाता था, अब जो जा रहा है वो भी तुम्हारी जेब से जा रहा है, आगे जो जाएगा वो भी तुम्हारी ही जेब से जाएगा। तो इसमें इतना रोने गाने की क्या बात है। 
जनता बहुत अहसानफरामोश हो गई है दोस्तों, महामानव को उनके महान कामों का वैसा सिला नहीं मिल रहा है, जैसा छ सौ करोड़ जनता से उम्मीद थी। खैर, जी एस टी टू प्वाइंट ओ अब आ ही गया है, तो टैक्स भरिए और महामानव के लिए तालियां बजाइए, बाकी आपकी मर्जी।

चचा हमारे ग़ालिब चचा, एक शेर कह गए हैं जी एस टी पर, सुनिए, शायद आपकी भी आंखें खुल जाएं। 

हर किसी की किस्मत नहीं होता जी एस टी ग़ालिब
ये वो बला है जो बिन बुलाए आ जाती है कसम से

ग़ालिब के जमाने में जो जी एस टी था, वो सीधा पी एम केयर फंड में जाता था, अब ऐसा नहीं होता, अब उसका सदुपयोग बिगड़ी हुई राज्य सरकारों से दुश्मनी निकालने के लिए किया जाता है। बाकी आपका और मेरा कोई माई-बाप नहीं है। जी एस टी भरिए और भरिए, और भरिए।अच्छी जनता बनिए। बाकी अगली बार मिलूंगा। नमस्ते। 


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