
दोस्तों जब से राहुल गांधी के चुनाव चोरी के आरोपों पर केचुआ ने प्रेस कांन्फ्रेंस की है, तमाम तथाकथित प्रगतिशील और वामपंथी, कांग्रेसी और उनके साथी-सपाड़े, चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार की धज्जियां उड़ाने में लगे हैं, हालांकि इसकी कोई ज़रूरत नहीं थी। आज मैं इसी पर बात करूंगा। लेकिन उससे पहले मैं अपने महामानव का स्तुतिगान करना चाहता हूं। वे जिन्हें ईश्वर ने भेजा है, बेवजह भेजा है, लेकिन भेजा है। जिनका पूरी दुनिया में डंका बज रहा है, हालांकि उसकी भी कोई ज़रूरत नहीं थी, लेकिन खैर बज रहा है, डंका। और नोबेल पुरस्कार तो वो ले ही लेते, अगर उनके परम मित्र, डोलांड इस दौड़ में उनसे आगे ना होते।
आप लोग यूं ही, यानी बेमतलब महामानव को कुछ - कुछ कहते रहते हो, लेकिन अगर आप गौर से देखें तो उनके जैसा महामानव, यानी सुपरमैन मिलना मुश्किल ही नहीं असंभव है। याद कीजिए ऑपरेशन सिंदूर के वक्त, जिस दिन उनके परम् मित्र डोलांड ने सीज़फायर की घोषणा की, और महामानव ने तड़प कर उसी क्षण सीज़फायर कर दिया।
लेकिन अपने दोस्त डोलांड का नाम तक नहीं लिया। राहुल गांधी समेत विपक्ष के तमाम नेता उन्हें उकसाते रहे, बार - बार ताने देते रहे, लेकिन महामानव ने एक बार झूठे मुहं भी डोलांड का नाम नहीं लिया। राहुल गांधी ने बार - बार कहा, कि डोलांड ने 12 बार फिर 18 बार फिर 25 बार सार्वजनिक रूप से ये कह दिया है कि भारत-पाकिस्तान के बीच सीज़फायर उसने करवाया है। इसके बावजूद इतने आरोप अपनी छप्पन इंच की छाती पर झेलने के बावजूद, महामानव ने अपनी वफादारी नहीं छोड़ी, और अपने मित्र डोलांड का नाम अपने होंठो पर नहीं आने दिया।
विपक्ष ने जब ये दांव चला कि आप नाम मत लीजिए, संसद एक साथ मिल कर डोलांड की भर्त्सना करे, तब भी, मितरों, अपनी दोस्ती की लाज रखी महामानव ने, और भारतीय संसद में ऐसा नहीं होने दिया।
दोस्ती के इतिहास में आपको कई कहानियां मिल जाएंगी, लेकिन ऐसी अद्भुत कहानी की मिसाल ढूंढे नही मिलेगी जब एक दोस्त ने अपने मित्र की लाज रखने के लिए पूरे देश की इज्जत की ऐसी -तैसी कर दी हो। हमारे महामानव ने दोस्ती की वो मिसाल पेश की है, जिसके उपर उपन्यास लिखे जाएंगे, कहानियां लिखी जाएंगी, गीत गाए जाएंगे। जब देश की इन घटनाओं को कलमबद्ध किया जाएगा तो महामानव का नाम लिखा जाएगा, जिसने अपनी दोस्ती के उपर देश की, सेना की भद् पिटवाना मंजूर किया, लेकिन दोस्ती की लाज रख ली। ऐसे महामानव को, डोलांड मित्र को, कोटी-कोटी प्रणाम।
खैर, ये तो पुरानी बात थी, लेकिन महामानव की महानता को दर्शाने का इससे अच्छा उदाहरण हमें नहीं लगता कि कोई और मिल सकता है। अब आते हैं आज के मुद्दे पर। तो केचुआ के तीनों आयुक्त बैठे और उन्होने प्रेस कांन्फ्रेंस की। हालांकि बोलना सिर्फ ज्ञानेश कुमार जी की जिम्मेवारी थी, तो वही बोले, और उन्होने, माफ कीजिएगा, प्वाइंट बाय प्वाइंट हर सवाल का जवाब दिया।
तथाकथित प्रगतिशीलों को, वामपंथियों को, और उनके संगी-साथियों को यही बात नागवार गुज़री, कि ज्ञानेश कुमार ने अपने ज्ञान का विस्तार करते हुए, हर आरोप का, हर सवाल का ऐसा खूबसूरत जवाब दिया कि सुनने वाले, और बाद में सुनने वाले तो हक्के -बक्के रह ही गए, बल्कि उनके जवाबों ने ऐसा समां बांधा कि अब तक लोग सदमें में हैं। उनके इस एक घंटा पच्चीस मिनट के बोलने को अगर मैं एक सबक का रूप देना चाहूं तो, महामानव प्रेस कांफ्रेंस के सबक से सीख कर अपने उपर से वो आरोप हटा सकते हैं कि उन्होने अपने तीन कार्यकालांे में कभी कोई प्रेस कांफ्रेंस नहीं की है।
प्रेस कान्फ्रेंस के शुरु होने से लेकर प्रेस कांफ्रेंस के खत्म होने तक ज्ञानेश कुमार जी ने केचुआ के लगभग सारे कानूनों को खोल कर सामने रख दिया, केचुआ में कितने लोग काम करते हैं, केचुआ किन नियमों को मानता है, नियम क्या हैं, शर्तें क्या हैं, केचुआ के क्या अधिकार हैं। उन्होने केचुआ की सारी, अच्छा सारी नहीं तो मान लीजिए कि ज्यादातर नियमावली और कानून को जनता के सामने रखा। और बहुत बढ़िया तरीके से रखा, सवाल - जवाब से पहले उनके इस वक्तव्य का वोट चोरी के या चुनाव में धंाधली के आरोपों के जवाब की नींव तैयार करना था। उन्होने चुनाव आयोग की तुलना मां से करते हुए कहा कि सारी पार्टियां चुनाव आयोग से ही निकली हैं, इसलिए चुनाव आयोग किसी एक पार्टी के साथ पक्षपात नहीं करता, बल्कि उसके लिए सारी पार्टियां समकक्ष होती हैं। इस तरह केचुआ ने खुद को मां बना दिया, अब सिर्फ बाप की ज़रूरत थी वो भी शायद पूरी हो चुकी है। इस तरह उन्होने सभी राजनीतिक कार्यकर्ताओं को, राजनीतिक पार्टियों को अपना बेटा बना लिया। लेकिन सबसे बड़ी बात ये है कि किसी राजनीतिक विश्लेषक की ये हिम्मत नहीं हुई कि वो ज्ञानेश कुमार जी की इस अनॉलॉजी का खंडन कर सकें। केचुआ और ज्ञानेश कुमार जी का ज्ञान कमाल का है।
इसके बाद शुरु हुआ सवाल और जवाब का एक ऐसा दौर जो सदियों नही ंतो कम से कम दशकों तक तो याद रखा ही जाएगा। हम आपकी सुविधा के लिए इन सवालों और जवाबों को अपनी सुविधानुसार आपके सामने रखते हैं, ताकि आपको समझ में आए कि केचुआ महान से शिकायत क्यों नहीं करनी चाहिए।
सवाल था, वोटर लिस्ट में गड़बड़ी क्यों है?
ज्ञानेश कुमार जी का कहना था, कि ये गड़बड़ी सिर्फ सामान्य ही नहीं है बल्कि जानबूझ कर की गई है, क्योंकि हमारा जो जी चाहेगा, करेंगे। हालांकि उन्होने सीधे-सीधे ये नहीं कहा, लेकिन उनकी बात का लब्बो लुबाब यही था।
उनसे पूछा गया कि सर जी, ये लोग, जो विपक्षी नेता इत्यादी हैं, इत्ते समय से गुहार लगा रहे हैं कि इन्हें सीसीटीवी की फुटेज दे दी जाए, लेकिन आप ऐसा नहीं कर रहे हैं। प्लीज़ दे दीजिए ना फुटेज, बेचारों का भला होगा।
लेकिन ज्ञानेश कुमार ने साफ कह दिया कि देश की मां-बेटियों की वीडियो को इस तरह नहीं दिया जाएगा। क्योंकि केचुआ सिर्फ चुनाव ही नहीं करवाता, वो इज्जत का रखवाला है। देखिए इस देश में दो ही लोग महिलाओं की इज्जत की इस तरह रक्षा करते हैं, एक हमारे महामानव, जिन्होने बेटी बचाओ वाला नारा दिया था। गुजरात में एक लड़की का पीछा करवाने वाली वारदात अगर छोड़ दी जाए तो, वो मां-बेटियों की इज्जत के रखवाले हैं। इसीलिए उन्होने ऑपरेशन सिंदूर नाम रखा था। और दूसरे केचुआ के न भूतो ना भविष्यति आयुक्त ज्ञानेश कुमार जी। इसमें सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण और काबिल-ए-ग़ौर बात ये है कि मां-बहनो-बेटियों की वीडियोग्राफी तो करवाई जाती है, लेकिन वो वीडियो सार्वजनिक नहीं की जाती, क्योंकि इज्जत का सवाल है। अगर इज्जत का सवाल नहीं होता, तो बेशक ये वीडियो दे दी जाती, लेकिन क्या पता राहुल गांधी, और बाकी विपक्षी दल उस वीडियो का क्या करें, जिनमें मां-बहु-बहन-बेटियां आदि वोट देने के लिए लाइन में खड़ी हैं। बिल्कुल सही बात है, महिलाएं वोट करने के लिए लाइन में खड़ी हों ये तो शर्म की बात है, जो शर्म की बात है, उसे सार्वजनिक नहीं किया जाना चाहिए।
उनसे पूछा गया कि बिहार में एस आई आर की इतनी हड़बड़ी क्यों थी, तो उन्होने बताया कि इलैक्टोरल रिवीज़न चुनाव होने से पहले होता है, बाद में नहीं होता। इसलिए उन्होने चुनाव से पहले बिहार में एस आई आर करवा दिया है। हड़बड़ी वाली बात वो गोल कर गए, जैसा कि जाहिर है करना ही चाहिए। इसी तरह ठाकुर अनुराग वाले सवाल पर उनसे ज्यादा कहते कुछ ना बना तो वो चुप रहे। जैसा कि किसी भी ज्ञानवान व्यक्ति से उम्मीद की जाती है। भई इस सवाल का जवाब उन्हें लिख कर नहीं दिया गया था, इसलिए उन्होने इसका जवाब नहीं दिया।
हां, राहुल गांधी को वहीं की वहीं, एक और धमकी जारी कर दी। ऐसा करने से केचुआ के हक़ - अधिकार की रक्षा उन्होने की, जैसा कि उनसे उम्मीद की जाती है। केचुआ के मुख्य आयुक्त ने एक नई रवायत भी शुरु की, कि वो किसी को भी धमकी दे सकते हैं, अगर उनसे कोई सवाल पूछेगा तो उसे सीधे धमकी दी जाएगी। इस तरह उन्होने केचुआ की रक्षा की, याद रखिएगा, महामानव रक्षति रक्षितः, यानी जो महामानव को बचाएगा, महामानव उसे बचाएंगे। लेकिन यहां ज्ञानेश कुमार जी की दाद देनी पड़ेगी, उन्होने सीधे उन पत्रकारों को नहीं धमकाया जो उनसे सवाल कर रहे थे, इन पत्रकारों को भी केचुआ अध्यक्ष ज्ञानेश कुमार जी की इस दरियादिली पर उन्हें साधुवाद देना चाहिए।
राहुल गांधी ने हालांकि केचुआ पर बड़े-बड़े आरोप लगाए थे, जिनमें मतदाता संख्या से ज्यादा मतदान होने, एक ही व्यक्ति के नाम कई एपिक कार्ड होने, यानी एक ही व्यक्ति द्वारा कई बार वोट डालने, एक ही पते पर कई लोगों के वोट रजिस्टर होने जैसे कई घातक आरोप लगाए थे। लेकिन दाद देनी पड़ेगी, कि इतने सबूतों के साथ लगाए गए इन आरोपों के जवाब हमारे महान केचुआ के महान मुख्य आयुक्त ने बिना डरे दिए। उन्होने सीधे तौर पर बता दिया कि ये आरोप दरअसल मतदाताओं पर लगाया गया है, चुनाव आयोग पर नहीं, हालांकि राहुल गांधी बार-बार ये दोहरा रहे हैं कि धांधली चुनाव आयोग ने की है, लेकिन आप इसे इस तरह समझिए, राहुल गांधी कह रहे हैं कि असल में चुनाव में मतदाता वोट नही ंकर रहे, बल्कि चुनाव आयोग जिसे चाहे वो वोट कर रहा है। ज्ञानेश कुमार जी ने इसी तर्क को ज़रा और एक्सटेंड कर लिया और कहा कि आप जिस पर आरोप लगा रहे हैं, वो मतदाता है, चाहे फर्जी ही हो, और क्योंकि वोट तो हमने ही किया है इसलिए हम मतदाता चाहे वो असली हो या फर्जी उसपर आरोप नहीं लगने देंगे। नहीं समझे, चलिए एक बार फिर कोशिश करता हूं। राहुल गांधी ने कहा कि अगर सही मतदाता वोट करते तो भाजपा सत्ता में नहीं आती, यानी चुनाव आयोग ने फर्जी वोटिंग करवा कर भाजपा को जिताया है। चुनाव आयोग ने माना की क्योंकि आपके हिसाब से हम ही वोटर हैं, तो आपके आरोप भी हमारे यानी मतदाताओ के खिलाफ हैं, इसलिए हम आपको धमकी देते हैं। आया समझ में। ये होता है असली जवाब। तुम केचुआ पर आरोप लगाओगे तो केचुआ उसे सीधे मतदाताओं पर आरोप मानेगा। अब करो बाबू क्या कर लोगे।
मेरा हमेशा से ये मानना रहा है दोस्तों कि केचुआ एक पवित्र संस्था है। अब मुझे ये भी यकीन हो गया है कि केचुआ, सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञानी, संस्था है। इसलिए मैं केचुआ के इन जवाबों से पूरी तरह मुतमइन हो गया हूं। इससे ज्यादा जवाबों की आशा करना बेकार है। बाकी आपकी मर्ज़ी।
बाकी केचुआ को लेकर चचा ने बहुत मज़ेदार शेर कहा है। सुनेंगे?
तो सुनिए
तेरी आंखों में धूल झोंक कर मैं वो करूंगा जो दिल चाहे
महामानव का सिर पे हाथ है मेरे, मै वो करूंगा जो दिल चाहे
वो किसी से नहीं डरते, बस धमकी देते हैं, आप डरिए क्योंकि आप केंचुआ नहीं हैं, और ना ही आपके सिर पर किसी का हाथ है। मेरी मानिए सरेंडर कर दीजिए, जैसे महामानव ने किया है। बाकी आपकी मर्जी।
नमस्कार
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