नमस्कार जनाब, मैं कपिल, एक बार फिर आपके सामने। क्या कहें हुज़ूर ये बार बार सब को ये समझाने में कि महामानव और उनकी कैबिनेट सही काम कर रही है, बिल्कुल सही जा रही है, हमारे दांतों तले पसीना ला देती है, पर हम कोशिश करने से बाज़ नहीं आते, क्या है ना, कोशिश करते रहना चाहिए, क्योंकि हमें यकीन है कि किसी ना किसी दिन, इतनी अक्ल तो आ ही जाएगी कि कौन सा काम छुप के करना चाहिए, और कब ज़बान को लगाम देनी चाहिए।
खैर साहब, बहुत बिजली कड़की, बहुत तेज़ और बहुत जोर से कड़की, इतनी कड़की, इतनी कड़की, कि कड़क-कड़क के कड़क हो गई बिजली और जिनके लिए बिजली कड़कती थी और दिल घड़कता था, उसने आंखे फेर ली, बेवफा सनम हो गया, और मजबूरन हमें आखों का रंग बदलना पड़ा, कहां हम लाल आंखें करने की भरपूर प्रैक्टिस किए बैठे थे कि मौका आए और हम दिखाएं, लेकिन जिसके कंधे पर बंदूक रखी थी, उसने कंधा उचका दिया।
लेकिन इस देश के पढ़े-लिखे, बौद्धिक वर्ग को, यानी तथाकथित प्रगतिशीलों कों, वामियों को महामानव का मास्टर स्टोक या तो समझ नहीं आ रहा, या वे अपनी आदत के हिसाब से खीर में मक्खी डालने का काम कर रहे हैं।
कितनी सहजता से महामानव ने तमाम लीडरों को, पुतिन को, जिनपिंग को, और अन्यों को अपने जाल में फंसा लिया है, महामानव उन्हें हाथ के इशारे से दुनियावी राजनीति के गुर सिखाते हैं, जब महामानव हंसते हैं, तो वो सब भी हंसते हैं, जब महामानव चुप होते हैं, तो वो भी चुप हो जाते हैं, सब हमारे महामानव के इशारे का इंतजार करते हैं।
महामानव की बात ही निराली है। वो ब्रहमांड के देश-काल से परे हैं, जैसा कि आप जानते ही हैं कि वो नॉनबायोलॉजिकल हैं। तो वे पहले से ही जानते थे कि अब उन्हें चीन को दोस्त बनाना है, इसलिए आपको याद होगा कि उन्होने छोटी आंखों वाले गणेश जी का जिक्र किया था।
यहां महामानव ये कहना चाहते थे कि चीन से गणेश जी की मूर्ति लाना कोई दिक्कत वाली बात नहीं है, और नॉनबॉयोलॉजिकल महामानव होने का यही सबसे बड़ा लाभ है कि आपको सबसे पहले पता चल जाता है कि भविष्य में क्या होने वाला है, और भविष्य को भांप कर आप कदम चांप कर तेज़ी से अपना पाला बदल लेते हैं। ये भविष्य देखने वाली सलाहियत क्योंकि छुटभैये एंकरों के पास नहीं होती इसलिए वो पकड़े जाते हैं।
ल्ेकिन एक बात माननी पड़ेगी कि विश्वगुरु ने कम से कम दुनिया को ये दिखा दिया कि अगर वो चाहें तो कभी भी पाला बदल सकते हैं, इसे डर के काम करना नहीं कहते, जैसा कि कुछ लोग कह रहे हैं, इसे नासमझी और बेवकूफी भी नहीं कहते, बल्कि इसे ही असली डिप्लोमैसी कहते हैं। अरे भई जब तक अमरीका से चल रहा था, तब तक वहां चलाया, फिर जब अमरीका ने दबाया तो किसी दूसरे के दरवाजे चले गए। इतने बेगै़रत हम नहीं हैं कि अमेरिका धमकाता रहे, टैरिफ लगा दे, और हम तब भी उसे गले लगाते रहें। अमरीका टैरिफ लगाएगा तो हम चीन को गले लगा लेंगे, या कम से कम लगाने की कोशिश तो करेंगे ही। और एक बात ध्यान रखना दोस्तो कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती। आज नहीं तो शी जिनपिंग भी महामानव को गले लगने से नहीं रोक पाएगा, और उस वक्त महामानव लपक कर उसके गले लगेंगे और वीडियो बनाने वालों को, ए एन आई को मौका मिल जाएगा कि वो एक और महामानवीय वीडियो जारी कर सके।
पर अभी बात करेंगे टैरिफ की और सिर्फ टैरिफ की, तो देखिए, हमने वफा की, उसने बेवफाई की, टैरिफ लगा दिया, चीन ने तो टैरिफ नहीं लगाया है।
मोदी का भाषण कि व्यापारी चीनी स्वदेशी सामान बेचें
हमने अभी घोषणा कर दी कि लोग व्यापारियों से कहें कि वो मुनाफे का लालच छोड़ें और स्वदेशी सामान बेचें। महामानव की घोषणा सुनते ही सब व्यापारियों ने अपनी दुकानों से विदेशी सामान निकाल फेंके और स्वदेशी सामान से अपनी दुकानों को सजा लिया। फौरन देश में स्वदेशी फोन बिकने लगे, स्वदेशी बिजली की लड़ियां, स्वदेशी कारें, स्वदेशी ई वी कारें, स्वदेशी कमप्यूटर, स्वदेशी ई-रिक्शा, स्वदेशी पानी के पम्प, स्वदेशी खिलौने, स्वदेशी बड़ी आंखों वाले गणेश जी, यहां तक कि कल तक जो संतरे, अमरूद और अन्य फल हम चीन से मंगाते थे, वो सब अब भर-भर के स्वदेशी मिलने लगा, और हम स्वदेशी खरीदने लगे। पिछले ग्यारह सालों ने महामानव ने जो स्वदेशी का आंदोलन चलाया था, जिससे पूरे भारत में तमाम स्वदेशी सामानों की फैक्टरियां लगी थीं, वो अब लगातार स्वदेशी सामान बनाने लगी और हमारे व्यापारी, खासतौर पर अडानी, अंबानी, टाटा, बिरला और जितने भी नये पुराने खरबपति हैं, उन सबने महामानव के एक ही संदेश पर विदेशी सामानों का बहिष्कार कर दिया और स्वदेशी बनाने, खाने, पहनने और ओढ़ने और बेचने लगे।
ये सब करने के बाद जब महामानव पुतिन और शी जिनपिंग से मिले, तो उनके पास इसके अलावा कोई चारा ही नहीं था कि वे ध्यान से महामानव की बातों को सुनें, और समझें। मुझे पूरा यकीन है कि महामानव उन्हें समझा-बुझा कर थोड़ा प्यार से, थोड़ा डांट कर आए हैं। अब अमरीका की सारी दादागिरी निकल जाएगी। क्या सोचता था, हमें डरा लेगा, मजबूर कर देगा। हमने स्वदेशी का ऐसा दांव खेला, और चीन से हाथ मिलाया है कि अब बेचारा डर के मारे थर-थर कांपता होगा। इसी को मेरे दोस्तों महामानव का मास्टर स्टोक कहते हैं।
इतना तक भी होता तो ठीक था, महामानव के एक और डिप्टी महामानव, माफ कीजिएगा, महामानव के बाद कई सारे डिप्टी महामानव हैं। इन्हें आप पहचानते ही हैं, महामानव के जिनपिंग के गले लगने की कोशिशों की आहट जैसे ही इन वाले डिप्टी महामानव को लगी, उन्होने लपक कर मौके का फायदा उठाया और देश में चीनी के ज्यादा इस्तेमाल को बढ़ावा देने की जिम्मदारी अपने सिर ओढ़ ली। इतना त्याग, इतनी प्रतिबद्धता आपको शायद ही किसी और देश के नेताओं में मिले। एक महामानव ने चीन को अपनाया, दूसरा चीनी को अपनाने लगा। डिप्टी महामानव ने त्याग और समर्पण की ये गंगा सुनते हैं अपने ही घर से शुरु की है।
डिप्टी महामानव ने अपनी ही गन्ने की फैक्टरियों से इथेनॉल की फैक्टरियां अपने बेटों के लिए खुलवा दीं, और फिर उस इथेनॉल को सरकार को बेचा। दोस्तों अगर आपको पता ना हो तो बता दूं, गन्ने से चीनी, और इथेनॉल। बड़के महामानव चीन में और डिप्टी महामानव ने यहां चीनी से फायदा कमाने के रास्ते निकाले हैं। अमरीका क्या खा के हमारी बराबरी करेगा, अब तक तो जिनपिंग को भी बुखार आ गया होगा। जहां ऐसे महामानव हों, उनके ऐसे डिप्टी महामानव हों, उस देश को तो विश्वगुरु बनना ही ठहरा। इसमें कोई शक-शुबह की गुंजाइश ही नहीं है।
तो सुनते हैं कि डिप्टी महामानव ने अपने दो बेटों की फैक्टरियों से इथेनॉल सरकार को बेचा और अब पूरे देश में पैटरोल में बीस प्रतिशत पैटरोल मिलाकर बेचा जा रहा है। कमाल ये है कि डिप्टी महामानव ने जो कदम उठाया, लोग उससे बच ना सकें, इसके लिए हर पैटरोल पंप पर सिर्फ यही मिलेगा, ई 20 यानी 20 प्रतिशत इथेनॉल वाला पैटरोल, लोग डिप्टी महामानव के इस क़दम को भी नहीं समझे और लगे बुराइयां करने, कि हमारी गाड़ियां खराब हो गईं, इनमें जंग लग गया, कि इनका माइलेज कम हो गया। अरे भाई जब सीमा पर सैनिक माइनस टेम्परेचर में खड़ा हो सकता है तो क्या तुम इतना सा त्याग नही ंकर सकते। डिप्टी महामानव को देखो, कोई लालच नहीं, बदले में क्या मिलेगा इसकी कोई चिंता नहीं, बस बिना किसी स्वार्थ के, बिना किसी रिसर्च के, बिना किसी के बात सुने, पैटरोल में इथेनॉल मिला दिया।
सिर्फ किसानों को फायदा देने के लिए डिप्टी महामानव ने ई-20 पैटरोल बिकवा दिया पूरे देश में, मां फलेषु कदाचन्। फल की इच्छा ही नहीं करते, सिर्फ पैटरोल में इथेनॉल मिलाते हैं। हमारे देश में त्याग, समपर्ण, समझदारी और ज्ञान की कोई कदर ही नहीं है। कभी भी नहीं थी, आज महामानव और महामानव के इन महत्वपूर्ण कदमों की आलोचना हो रही है, लेकिन कोई दिन आएगा जब पूरा देश इनकी सराहना करेगा, पंद्रह साल बाद जब आप अपनी गाड़ियां कबाड़ी को देंगे और उसके बदले सैंतीस सौ रुपए आपको मिलेंगे तो आपको डिप्टी महामानव के इस कदम की याद आएगी, जब आपको लगेगा कि अच्छा हुआ कि इतना पैटरोल पीकर भी जंग लगे इंजन की ये कार या मोटरसाइकिल जो आपने लाखों में खरीदी थी, उसे निकाल दिया तो अच्छा किया।
खैर अब आते हैं, अपनी आखिरी बात पर, चचा हमारे, ग़ालिब था जिनका नाम, वो चीन और चीनी पर काफी कुछ कह गए हैं, उनमें से एक शेर चुन कर आपको सुना रहा हूं। ग़ौर फरमाइएगा
चीन और चीनी का इस्तेमाल कर यूं ग़ालिब
इसको गले लगा ले, पैटरोल में मिला दे
हां त्याग बस इतना सा इस देश की खातर कर
चुपचाप देखता रह, कुछ बोल ना निकाले
ये वन हंडरेड पर्सेंट खालिस ग़ालिब का, शेर है, ना यकीन हो तो उनके खोए हुए दीवान में देखिए। बाकी सब बढ़िया है, महामानव जिनपिंग से बात कर आए हैं, अब देश में बड़ी आंखों वाले गणेश आया करेंगे। तो अब चलते हैं, फिर मिलते हैं। गुडबाय। नमस्कार
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