जी जनाब, तो बहुत चर्चा चल रही, महामानव की डिग्री की। तो बात को जड़ से पकड़ने के लिए कुछ चीजें पहले साफ कर लेना जरूरी है ताकि बाद में काुछ गड़बड़ ना हो। एक तो ये कि खुद महामानव ने कभी नहीं कहा है कि उन्होने बी ए या एम ए किया है। जी नहीं, बल्कि हर बार, बार-बार, उन्होने यही कहा कि वो कोई पढ़े - लिखे इंसान नहीं हैं।
मोदी के वीडियो जिसमें वो खुद को पढ़े - लिखे ना होने की बात कर रहे हैं।
ये जो डिग्री, बी ए, एम ए की दुनिया के सामने रखी गई, महामानव की, वो रखी डिप्टी महामानव ने, जब बड़े चौड़े में उन्होने प्रेस कान्फ्रेंस में महामानव की बी ए और एम ए की डिग्री दोनो हाथों में पकड़ कर दुनिया को दिखा दी।
अब ये जो मुहं दिखाई की तर्ज पर इतने आयोजन के साथ डिग्री दिखाई कार्यक्रम रखा गया था, वही अब भारी पड़ रहा है, तो अगर सीधे से देखा जाए तो ये आफत डिप्टी महामानव की बुलाई गई है, जिसे अब महामानव को भुगतना पड़ रहा है। मैने पहले भी कहा था, दोबारा कह रहा हूं, बेवकूफ दोस्त से समझदार दुश्मन भला।
लेकिन सच कहूं तो मुझे कोर्ट के ये फैसले बहुत अच्छे लग रहे हैं, जिनमें वो महामानव की डिग्री सार्वजनिक करने के फैसले पर रोक लगा दे रहा है। अरे, महामानव, महामानव हैं भई, कैसे उनकी डिग्री को यूं ही जनता के सामने रख दिया जाए। आपको पता नहीं है साहब, कैसे - कैसे बुरे काम किए जा सकते हैं डिग्री के साथ। आप इस डिग्री का महत्व अभी नहीं जानते हैं, मेरा ख्याल है दुनिया की पहली ऐसी डिग्री है जो एंटायर पॉलीटिकल साइंस में दी गई है। जब से मानव सभ्यता की शुरुआत हुई है, उसके बाद जब से डिग्रियां देने की परंपरा चालू हुई है, कोई माई का लाल उठ कर कह दे, कि उसे एंटायर पॉलिटिकल साइंस या किसी भी एंटायर सबजेक्ट की डिग्री मिली है, मान जाउंगा जनाब। अब ऐसी अद्भुत और दुनिया की इकलौती डिग्री तो अमूल्य होगी। अब मान लीजिए कोई इस डिग्री पे अपना ही नाम चस्पा कर दे, और फिर वो खुद एंटायर पॉलिटिकल साइंस का ग्रेजुएट हो जाएगा। भाई साहब अभी आप इस बारे में ठीक से सोचोगे तो आपको पता चलेगा, कि ये डी यू और भारतीय न्यायालयों में बैठे बुद्धिमान और विद्वान जज किस तरह के वैश्विक संकट से हमें बचा रहे हैं ये डिग्री सार्वजनिक ना करके। इतिहास में लोग याद करेंगे कि भारत में कोई महामानव हुआ था, जिसे एंटायर सबजेक्ट की डिग्री दी गई थी। मेरा ख्याल है नोबल पुरस्कार तो महामानव को इसी बात पर दे देना चाहिए कि वो दुनिया के पहले इंसान हैं, जिन्हें एंटायर सबजेक्ट की डिग्री मिली है, अच्छा नोबेल ना भी हो, गिनीज़ बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्डस् में तो नाम जाना ही चाहिए....क्या कहते हैं?
लोगों ने भई तरह - तरह के तर्क रचे हुए हैं डिग्री का फर्जी साबित करने के। तो सबसे पहले तो यही समझ लीजिए कि मुझे किसी हाल में नहीं लगता कि ये डिग्री फर्जी है, और इसलिए आज अपने इस वीडियो में मैं उन सारे तर्कों को आपके सामने खोल दूंगा जिससे ये डिग्री आपके सामने सच्ची और पुख्ता साबित हो जाएगी।
तो पहला दावा तो यही है कि ये डिग्री कमप्यूटर प्रिंटेड है, जबकि 1983 में हाथ से लिखी हुई यानी हस्तलिखित डिग्री दी जाती थीं।
एक महिला का बयान जिसमें वो हाथ से लिखी डिग्री की बात करती है।
तो भाईयों, भैनों, यानी मितरों, इसके दो सीधे से तर्क हैं, पहला तो ये कि महामानव को जब, और जिसने ये डिग्री दी थी, वो पहले से जानता था कि ये व्यक्ति जो डिग्री ले रहा है, वो आगे जाकर महामानव, विश्वगुरु आदि, आदि में तब्दील होने वाला है, इसलिए बाकी दुनिया को हाथ से लिखी हुई डिग्री दी गई थी, जबकि सिर्फ और सिर्फ महामानव को कमप्यूटर प्रिंटेड डिग्री दी गई थी। इसका दूसरा कारण ये था कि महामानव ने खुद एक बार कहा था कि उन्होने 1988 में एक डिजिटल कैमरा से आडवाणी जी की फोटो खींची और ई मेल से उसे दिल्ली भेज दिया था, जो दूसरे दिन अखबार में छप गई थी। मामला ये है कि पहला डिजिटल कैमरा 1990 में बिका था, और ईमेल में पहला फोटो अटैचमेंट 1992 में हुआ था, जबकि भारत में इंटरनेट 1995 में आया था, तो शंकालु जन, यानी जलकुकड़े लोग कहेंगे कि ये कैसे संभव हुआ कि 1988 में महामानव ने उस डिजिटल कैमरा से फोटो खींची जो बना ही नहीं था, उस इंटरनेट से फोटो भेज भी दी, जो भारत में उपलब्ध ही नहीं था। ये सब आस्था की बात है, आस्था में तर्क नहीं होता मितरों। पहले आंख बंद करके एक बार जोर से महामानव के नाम का ध्यान कीजिए, और तब ये आपको संभव होता लगेगा, ब्रहमंाड गुरु के लिए ये सब छोटे कारनामें हैं, और इसी आस्था से जब आप देखेंगे तो तर्क को पोटली में बांध लेंगे और फिर आपको भी डी यू की तरह, और हाईकोर्ट की तरह इन तर्कों में कोई वजन नज़र नहीं आएगा कि जिस फॉट यानी ”ओल्ड इंग्लिश टेक्स्ट एम टी” को बना कर पेटेंट ही 1992 में कराया गया हो, उसमें कोई डिग्री 1993 में कैसे प्रिंट हो सकती है। सब आस्था की बात है, भक्तों, आंख बंद कीजिए, तो सारी चीजें पानी की तरह साफ हो जाएंगी। बाकी तर्कों का क्या है, कुछ भी तर्क दे दीजिए, तर्क से दुनिया नहीं चलती मितरों, तर्क से दुनिया नहीं चलती।
ये तर्क भी कोई खास नहीं है, कि खुद महामानव ने कहा है कि वो पढ़े - लिखे नहीं हैं। अरे भई जो विद्वान लोग होते हैं, वो अपनी विद्वता हांकते नहीं फिरते जगह-जगह, कबीरदास जी कह गए हैं, अजगर करे ना चाकरी, पंछी करे ना काम, दास मलूका कह गए सबके दाता राम। तो रहीम दास जी ने जैसा कि इस दोहे में समझाया है कि जो विद्वान होते हैं, उन्हें काम करने की जरूरत नहीं पड़ती, राम जी उन्हें अपने आप दे जाते हैं, जरूरत की चीजें। जैसे महामानव तो 30 साल, या पैंतीस साल तक भिक्षा मांगने में बिज़ी थे, इसलिए उनकी जरूरत पड़ने पर डी यू ने फौरन डिग्री उपलब्ध करवा दी, इसमें इतना अचरज की क्या बात है।
और सबसे आखिरी और सबसे इंर्पोटेंट यानी महत्वपूर्ण बात....क्यों दिखाएं महामानव अपनी डिग्री, अरे जब उन्होंने के चु आ को अपनी डिग्री दी थी, तब क्या के चु आ ने उस डिग्री को जांचा परखा नहीं होगा, पर भैये तुम्हे के चु आ पर यकीन ही है, तुम्हें लगता है कि ये महामानव और के चु आ की तो मिलीभगत चल रही है। इसलिए तुम बार-बार डी यू से डिग्री देने की गुहार लगाते हो, लेकिन महामानव पर, जिन पर पूरी दुनिया यकीन करती है, जिन पर खुद अमरीका का टमप और रूस का पुतिन, और इस्राइल का नेतनयाहू, और यूक्रेन का जेलेंस्की, और ईरान का शाह तक यकीन करता है, फ्रंास का कैमेरून, और भी दुनिया के तमाम लोग यकीन करते हैं, उनका तुम्हें यकीन ही नहीं है, तो फिर आखिरकार कोर्ट को उनके बचाव में उतरना पड़ता है।
के चु आ का बयान महिलाओं की निजता के बारे में
याद रखना दोस्तों, ये महामानव की डिग्री देखने की ज़िद करने वाले आखिरकार किसी व्यक्ति की प्राइवेसी में सेंध क्यों लगाना चाहते हैं। ये चाहते हैं कि मोदी जी ने जो हलफनामा दायर किया है, उसे डिग्री के माध्यम से फर्जी साबित किया जाए। कि अगर डिग्री फर्जी साबित हो गई, तो उनका चुनाव भी रद्द हो जाएगा। इनकी असली मंशा डिग्री देखने की है ही नहीं, ये तो डिग्री के ज़रिए ये साबित करना चाहते हैं कि महामानव ने झूठ बोला है। लेकिन जब तक डी यू है, जब तक कोर्ट है, हम ऐसा नहीं होने देंगे। महामानव निश्चिंत रहें, उनकी डिग्री नहीं दिखाई जाएगी। एक बार दिखा दी, हनक में, अब तो वो भी नहीं करेंगे, ये लोग उसी फोटो में छ छेद कर दे रहे हैं। अजी इनका क्या भरोसा, अबकी डिग्री दिखाई तो कहीं, सच में ही उसे फर्जी साबित ना कर दें।
और वो भूल गए, जब तुमसे कहा था, नागरिकता साबित करो, तो तुमने नारा लगाया था, हम कागज़ नहीं दिखाएंगे, कैसे लोग हो यार, अपने कागज़ात दिखाने से मना करते हो, और महामानव की डिग्री को सार्वजनिक करने की मांग करते हो।
मैं तो महामानव से अपील करता हूं कि इस टॉपिक को ही बैन कर दिया जाए, कोई यदि महामानव की डिग्री की बात करे, तो उसे भारतीय न्याय संहिता की धारा 152 के तहत राजद्रोह में जेल में ठूंस दिया जाए। बाकी कोर्ट है ही ये कहने के लिए कि ये सब चीप पब्लिसिटी स्टंट है, और इसे बंद होना चाहिए। कोई व्यक्ति सार्वजनिक जीवन में है, नेतागिरी कर रहा है, वो कोई हलफनामा देता है, तो उसका ये मतलब कतई नहीं कि वो हलफनामें में दी गई अपनी डिग्री को सच भी साबित करे, ये उसकी निजका का उल्लंघन है। इस देश के लोगों को ये समझना चाहिए कि महमानव महामानव हैं, अभी तो यही खैर समझिए कि उन्होने अपने नाम के आगे डॉक्टर नहीं लगाया है जैसा कि पूर्व एच आर डी मंत्री डॉक्टर रमेश कुमार निशंक पोखरियाल ने लगाया था। बताइए अगर महामानव ऐसा कर लें तब आप क्या कर लीजिएगा। हम तो ये भी अपील करते हैं, डी यू से कि वो 1985 या 87 की एक पी एच डी की डिग्री भी महामानव के नाम की निकाल दे, ताकि इन जलकुकड़ों को सबक सिखाया जा सके।
चचा ग़ालिब की राय इस बारे में ये थी कि शिक्षा डिग्री से नहीं होती, लेकिन अगर कोई स्वतः ही इतना विद्वान हो जाए कि बी ए - एम ए की पढ़ाई उसके आगे छोटी लगे तो खुद डिग्रियों को आकर महामानव के पैरों में गिर जाना चाहिए कि हमें ले लीजिए ताकि हमारे भी भाग सुधरें। तो उन्होने इसी तरह का एक शेर लिखा है,
अर्ज किया है
डिग्री नहीं है फेक, बस इतना समझ लीजे
हमको मिली है लेकिन तुमको ना दिखाना है
सरकार हमारी है जो चाहें डिग्री ले लें
इतनी सी कहानी है, बस ये ही फसाना है
तो समझने वालों के लिए इशारा काफी है, महामानव की डिग्री है, इसमें कोई रहस्य नहीं है, सब जानते हैं डिग्री की हक़ीकत, बस सवाल मत कीजिए, और माननीय विद्वान कोर्ट की बात का यक़ीन कीजिए। हम कुछ भी करते जाएंगे बस डिग्री नहीं दिखाएंगे। समझे।
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