जब महामानव हों साथ तो डरने की क्या बात
नमस्कार, मैं कपिल आपके सामने एक बार फिर से, लीजिए महामानव ने एक बार फिर ये सिद्ध कर दिया कि इंसान, हालांकि वो खुद को इंसान नहीं मानते - अवतार मानते हैं, तो भी हम अकिंचन जीवों की साधारण समझ से, कि अगर इंसान ये ठान ले कि उसे कुछ करना है तो संविधान-फंविधान आड़े नहीं आ सकता। महामानव और डिप्टी महामानव ने इस देश को बहुत कुछ दिया है, इतना कुछ दिया है कि संभाले नहीं संभल रहा। ये जो डंका पूरी दुनिया मे ंबज रहा है, पहले तो उसी को शांत करना पड़ेगा, उसकी आवाज़ से अच्छे-अच्छों के कान फट जा रहे हैं। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पूरी दुनिया के सभी देशों का जो समर्थन भारत के हम़ में दिखा हम तो उससे अभिभूत हो गए, कई देशों ने तो समर्थन देने में इतनी हड़बड़ी की, कि एक ही दिन में तीन-चार बार समर्थन दे दिया। डोलांड के समर्थन के बयान तो आज तक नहीं रुक रहे। खैर वो बीती बात है नई और ताज़ी बात ये है कि पूरी दुनिया में भारत की छवि सुधारने के बाद महामानव ने अब देश की तरफ नज़र घुमाई है, और आप तो जानते ही हैं कि महामानव ने जिस ओर भी नज़र घुमा ली, वहीं अफरा-तफरी मच गई है यानी छवि सुधर गई है।
महामानव जब कुछ बड़ा और ऐतिहासिक करते हैं, तो किसी ना किसी सज्जन को तक़लीफ होने लगती है। जाहिर है लोग उनसे जलते हैं। जो लोग जलते हैं, महामानव का नया तीर उनकी इसी जलन का शांत करने के लिए, हमेशा-हमेशा के लिए शांत करने के लिए है। सुना एक नया कानून प्रस्तावित किया गया है। कानून कुछ यूं है कि अगर देश की कोई भी जांच एजेंसी ये मान ले कि किसी संसद या विधानसभा सदस्य ने कोई अपराध किया है, ये शब्द ”मान ले” इस कानून में बहुत महत्वपूर्ण है, ज़रा इसे ध्यान रखिएगा। तो यदि कोई जांच एजेंसी मान ले कि किसी संसद सदस्य ने कोई अपराध किया है, तो उसे हिरासत में लिया जाएगा, अब जांच एजेंसी करेगी जांच, और जांच में लगता है समय, तो इस सोच-विचार के दौरान, यानी जांच के दौरान, यदि तीस दिन पूरे हो गए तो उस संसद सदस्य की सदस्यता समाप्त, विधानसभा सदस्य की सदस्यता समाप्त, यदि वो प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री हो तो वो पद समाप्त, और यदि कोई मंत्री हो तो उसका वो मंत्रित्व समाप्त। हजारों सालों में पहली बार ऐसा कोई राजा गद्दी पर बैठा है, जिसने मौलिक अधिकारों तक को अपने कानूनों की आड़ में बख्शा नहीं है।
इस पूरे कानून में कहीं भी ”मान लो” शब्द का इस्तेमाल नहीं किया गया है, जबकि पूरा कानून, इसी अनुपस्थित ”मान लो” शब्द पर टिका हुआ है। जांच एजेंसी ने ”मान लिया” तो व्यक्ति हिरासत में, अब वो जांच एजेंसी न्यायलय से कहेगी कि आप भी ”मान लीजिए” बाकी साबित करना तो दूसरा चरण है। जज कहेगा कोई सबूत दो तो मानूं, एजंेसी कहेगी, अजी छोड़िए, हमने ”मान लिया” यही क्या कम सबूत है। आप बस कुछ दिन, इसे तीस दिन समझिए, इस व्यक्ति को, जो चुनाव जीता है, मुख्यमंत्री है, हिरासत में रखिए। इकत्तीसवें दिन बेशक छोड़ दीजिएगा। तब तक हम मान लेंगे कि इसके खिलाफ कोई सबूत नहीं है, कोई संलिप्तता इसकी नहीं है। पी एम एल ए में वैसे भी जमानत का प्रावधान नहीं है। बस हो गया खेल। इस पूरी प्रक्रिया में ”मान लेने” पर ही सारी कार्यवाही चल रही है, चलेगी। अब मान लीजिए कि इकत्तीसवें दिन, जांच एजेंसी ये कह भी दे, कि हमारे मानने में थोड़ी गलती हो गई जनाब, लेकिन खेल तो हो चुका।
यही तो लटके-झटकें हैं जिनकी वजह से महामानव और डिप्टी महामानव के चरणों में नतमस्तक हो जाने का दिल चाहता है, मेरा मतलब विपक्षी मुख्यमंत्री, नेता वगैरह को महामानव की शरण में जाने के अतिरिक्त और कोई चारा नज़र नहीं आता तो इन्हीं चतुराइयों की वजह से, जिन्हें कुछ जलकुकड़े, कारगुजारियां, फंदेबाज़ी और संविधान की हत्या जैसे गंदे नामों से पुकारते हैं।
कुछ न्यायविद्ों और कानूनविद्ों का ये कहना है कि इस कानून से मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है। हमने पूछा कैसे, तो उनका कहना था कि अनुच्छेद 14 जो समानता का अधिकार है, वो नागरिक और ग़ैर नागरिक सब पर लागू होता है, जिसमें कानून के समक्ष समानता और कानून से समान संरक्षण की बात होती है। यानी किसी व्यक्ति के खिलाफ या पक्ष में धर्म, जाति, लिंग, जन्म स्थान या पद के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता।
जी, मैं जानता हूं आप क्या सोच रहे हैं। पहला तो इसमें ये कहीं नहीं लिखा है कि ये कानून भाजपा के नेताओं पर भी लागू होगा। बिल्कुल ठीक, यानी जो भाजपा में जाएगा उसे कानून टच भी नहीं करेगा, जैसे ई डी सब पर आरोप लगाएगी, उन्हें हिरासत में लेगी, लेकिन किसी भाजपा सदस्य के खिलाफ कोई कार्यवाही कभी नहीं होगी। लेकिन दोस्तों इससे भाजपा सदस्यों को फायदा मिलता था, लेकिन महामानव और डिप्टी महामानव के पास कोई अपरहैंड नहीं था, कम से कम पदस्थ सरकारों के खिलाफ नहीं था। जैसे हेमंत सोरेन को इतना तमाशा करके गिरफ्तार तो किया गया, लेकिन इतने दिनों उनके जेल में रहने के बावजूद कुछ नही ंकर पाए, क्योंकि सबको पता था कि मामले में कोई जान नहीं है, और उन्हे वापस आ जाना है। अब जब ये तीस दिन वाला मामला बन जाएगा, तो मामला हो ना हो, अपना काम तो पूरा किया ही जा सकेगा।
इसलिए इस कानून में प्रधानमंत्री तक को शामिल किया गया है। मेरा मानना है कि इससे पहले कि कोई जलकुकड़ा इस कानून को सर्वोच्च न्यायलय में चुनौती दे, हमें करना ये चाहिए कि इस कानून को सारे देश पर यानी देश के सारे नागरिकों पर लागू कर देना चाहिए। इसका आधार ये होगा कि नैतिकता का जो आधार निर्वाचित प्रतिनिधियों पर लागू होता है, वही आधार तो सरकारी नौकरी करने वालों पर भी लागू होता है। अब मान लीजिए किसी सरकारी अधिकारी को भी तीस दिन की हिरासत में भेजा जाए, तो उसकी नौकरी खत्म मान ली जाए। इसमें ये जोड़ा जा सकता है कि यदि इस बीच वो सरकारी कर्मचारी भाजपा ज्वाइन कर लें, तो उन्हें छोड़ा जा सकता है। वैसे भी भाजपा सदस्यों के लिए ये माना जाता है कि उन्हें नागपुर से बनकर आया हुआ, सदाचार और नैतिकता का तावीज़ पहनाया जाता है, जिसकी वजह से वो पूरी तरह सदाचारी और नैतिक हो जाते हैं, और ये तावीज़ पहनने वाला कोई ग़लत काम कर ही नहीं सकता।
बल्कि मैं तो कहता हूं कि आम नागरिकों पर भी इसे लागू करना चाहिए। जिस व्यक्ति को पुलिस पकड़ ले, और उसे तीस दिन हिरासत में रखे, उसे या तो देश निकाला दे देना चाहिए, या फिर उसे वो सज़ा दे देनी चाहिए जिस अपराध के लिए उसे पकड़ा गया है। अब मान लीजिए कि पुलिस ने किसी को पकड़ा कि उसे पर हत्या का संदेह है, तो तीस दिन तक जेल में रखो, फिर सीधे फांसी पर चढ़ा दो। मैं कहता हूं जनाब तीन महीने में ही इस देश में राम राज्य आ जाएगा। ई डी, सी बी आई की जरूरत भी खत्म, जनसंख्या बढ़ने की चिंता भी खत्म, किसी को भी पकड़ो तीस दिन जेल में रखो, इकत्तीसवें दिन सीधे देश से बाहर, या फांसी। किस्सा खतम - पैसा हजम।
सबसे पहले केरल-तामिलनाडू और बंगाल को निपटाया जाए। केस लगाना क्या मुश्किल है। सीधा सा स्क्रिप्ट है, पहले पुलिस एक फालतू सा एफ आई आर लिखे, जिसमें दो रुपये का हिसाब ना मिलने के लिए एक सेंटेस लिखे। फिर ई डी उस पर स्वतः संज्ञान से अपनी कार्यवाही करे और मुख्यमंत्री को गिरफ्तार कर ले। कोर्ट और जज का क्या है, ये कहा जा सकता है कि राष्टीय सुरक्षा का मामला है, इसलिए सारे सबूत उजागर नहीं किए जा सकते, और इसके लिए समय चाहिए। बस तीस दिन तो यूं ही निकल जाने हैं, इकत्तीसवें दिन, अच्छा चलिए दो-चार दिन की छूट और दे दीजिए, फिर बस, उसे मुख्यमंत्री की सदस्यता खत्म, राज्य में खौफ का माहौल, सत्ताधारी पार्टी में खलबली, और फिर....फिर आएगा असली रामराज, जब पूरे भारत में सिर्फ सनातन की फिक्र करने वाली पार्टी का राज होगा, और हमारे महामानव का असली राज्याभिषेक होगा।
दूसरे नंबर पर आएंगे, देश के दुश्मन नंः वन, अभी हमें वॉयर के एडिटर को, अभिसार शर्मा को, नेहा ठाकुर को सिर्फ एफ आई आर देकर डराना होता था, लेकिन ये ढीठ लोग डरते नहीं हैं। लगातार महामानव के पीछे पड़े रहते हैं, अब आएगी इनकी शामत। अब सिर्फ एक एफ आई आर करवाओ, और पकड़ कर हिरासत में डाल दो, आरोपी बना दो, इकत्तिस दिन तक हिरासत में रखो और फिर सीधा फांसी....वाह, पूरे देश में किसी की हिम्मत ना हो, कि महामानव के खिलाफ चूं भी कर सके। चूं चूं का मुरब्बा बना दो इन सबका, बड़े तीस मार खां बनते हैं अपने आप को। इस देश को राम-राज्य बनाने की राह में ये सबसे बड़ा रोड़ा हैं दोस्तों, इसलिए इन्हें या तो देश निकाला दिया जाएगा, या फिर सीधे फांसी चढ़ा दिया जाएगा।
फिर देश के हर उस व्यक्ति को, जिसे आप पसंद नहीं करते, जैसे अर्बन - नक्सल हुए, सनातन विरोधी हुए, या और कोई भी हुए, माने कोई भी....आप समझ रहे हैं ना....बस, फिर उन सबकी धर-पकड़ होगी, अभी तक सिर्फ नागरिकता साबित करने को कहा जा रहा था, देशभक्ति साबित करने को कहा जा रहा था, लेकिन ये लोग तो सिर चढ़ कर बोल रहे थे। कानून की दुहाई दे रहे थे। इनके कई लोगों को बिना किसी केस के, बिना सबूत के बंद कर रखा है, तो भी बाज़ नहीं आ रहे थे। अब देखें कहा बच कर जाएंगे ये लोग।
और करो कानून की बातें, हम कानून ही बदल देंगे। बड़ा कानून की दुहाई देते हो, संविधान की दुहाई देते हो, समानता और बंधुत्व की बातें करते हो, अब आओ मैदान में, हमारे खिलाफ जो बोलेगा, वो सीधा अंदर जाएगा, और एक बार अंदर गए बेटा जी, तो सब कुछ खत्म कर दिया जाएगा।
बस अब कानून बदल दिया है, थोड़े ही दिन में रामराज आता ही होगा। मालाएं वालाएं लेकर तैयार रहिए, हम सूटकेस वगैरह तैयार करवाते हैं।
बाकी चचा यानी हमारे चचा ग़ालिब, खैर ये है कि पहले ही जन्नतनशीन हो गए, वरना उन्हें भी पहले नागरिकता साबित करनी पड़ती, फिर भी इकत्तिस दिन की जेल और फिर देश निकाला झेलना पड़ता, तो चचा ग़ालिब ने ये शेर कहा है, मजबूरी में कहा लेकिन कहा है, आप भी सुन लीजिए
तीस दिन की जेल तेरी उल्फत में झेल कर
यूं मारा जाउंगा मैं ये तेरा खेल खेल कर
तीस दिन दोस्तों, तीस दिन, बस यही मियाद है लोकतंत्र की, संविधान की, आजादी और समानता के अधिकार की, उसके बाद सीधे महामानव राज आएगा, और उसके बाद चारों तरफ सिर्फ सन्नाटा होगा। इंतजार कीजिए....
नमस्कार
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